शनिवार, जनवरी 04, 2020

दिल न जाने क्यूँ दिसम्बर की राह तकता है..



यूँ तो गुजरता जाता है हर लम्हा इक बरस,
दिल न जाने क्यूँ दिसम्बर की राह तकता है..

तिवारी जी आदतन अक्टूबर खतम होते होते एक उदासीन और बैरागी प्राणी से हो जाते हैं. किसी भी कार्य में कोई उत्साह नहीं. कहते हैं कि अब ये साल तो खत्म होने को है, अब क्या होना जाना है. अब अगले बरस देखेंगे. दरअसल तो वो साल भर ही कुछ न करते थे मगर अक्टूबर खतम होते होते तक उनके पास एक पुख्ता कारण हो जाता है कुछ भी न करने का. जो १० महीने मे न हुआ वो भला बाकी के २ महिने में कैसे हो सकता है, इसलिए अब अगले साल देखा जायेगा.

ऐसा तिवारी जी ही करते हों ये बात नहीं है. मैं और मेरे अनेक मित्र भी कुछ मामलों को लेकर तिवारी जी ही हैं. सबको अपने स्वास्थय की ऐसी चिन्ता कि बस नया साल लगने दो और हफ्ते में ५ दिन जिम जाना है. अगले साल का न्यू ईयर रिजोल्यूशन जिम और फिटनेस. वजन कम से कम १५ पॉऊण्ड कम करना है. पूछा जाये कि अभी नवम्बर से ही क्यूँ नहीं जिम ज्वाईन कर लेते? मेम्बरशिप साल भर की जिस दिन शुरु करोगे, वहाँ से एक साल की होगी. तब वही तिवारी जी वाली बात कि अरे अब ये साल तो गुजरा ही समझो, अब नये साल में ही फ्रेश माइन्ड से इस पर जुटेंगे.
किसी की पढ़ाई को लेकर, किसी की नौकरी को लेकर, किसी की शादी ब्याह को लेकर – वजह हजार हैं, नये साल के लग जाने के लिए और वो भी १ जनवरी वाले नये साल के लग जाने की.

फिर नया साल आता है. हैप्पी न्यू ईयर के साथ..नये साल का पहला जाम आपके नाम कर के अपने अपने सोचे मन्तव्यों में लोग जुटते हैं और पहला महिना खत्म भी नहीं हो पाता कि सारे सपनों के महल धाराशाही हो जाता है अपवादों को छोड़ कर. सब रोजमर्रा की जिन्दगी में उलझे फिर अक्टूबर खत्म कर नवम्बर में पहुँच जाते हैं. फिर वही कि अब तो साल खत्म होने को है, अब नये साल में देखेंगे.

यह हम सभी का स्वभाव है. हम सब में एक तिवारी जी बसते हैं और हम सभी भली भाँति इसे समझते हैं. आने वाला समय अच्छा होगा, यही आज खुश रहने की वजह दे देता है, इतना ही काफी है हम संतोषी जीवों को.
हम तो बड़े शायरों पर भरोसा रखते हैं:

न शब ओ रोज ही बदले हैं न हाल अच्छा है,
किसी बरहमन ने कहा था कि ये साल अच्छा है.

यही बात हमारे ज्योतिष भी जानते हैं जो हर साल के शुरु में हमारा पूरा साल कैसा रहेगा की भविष्यवाणी करते हैं. मन प्रसन्न हो जाता है. पुराना तो हम भूल चुके होते हैं अपने रिजोल्यूशन की तरह. हालांकि ज्योतिषों की सुनें तो इतने सालों से वो हर साल को इतना बेहरीन बताते आ रहे हैं कि अब तक तो हमें देश का प्रधानमंत्री हो जाना था मगर ए दिल ए नादान..फिर से भूल जा जो गुजरा है..आने वाला समय अच्छा होगा. बस इसी उम्मीद पर फिर से दक्षिणा दे आते हैं ज्योतिष को.

स्वभाव परखने में नेताओं से बेहतर कौन है इस दुनिया में? तब ही तो अच्छे दिन के ख्वाब बेच कर हर बार सत्ता हथिया लेते हैं..और हम टकटकी लगाये बांट जोहते हैं कि आने वाली सरकार सब ठीक कर देगी. अच्छे दिन आने वाले हैं.

सच मानो तो; हम को बदलना होगा आज में जीने के लिए.

जो आज आज है वो कल कल हो जायेगा..
जो आज कल है, वो कल आज हो जायेगा...
वक्त परिवर्तनशील है कुछ नहीं है ठहरता..
आज में जिओ वरना कुछ हाथ ना आयेगा...

-समीर लाल ’समीर’
भोपाल के दैनिक सुबह सवेरे में रविवार जनवरी ५, २०२० में प्रकाशित:
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