कल ही पोता लौटा है दिल्ली से घूम कर. अपने
कुछ दोस्तों के साथ गया था दो दिन के लिए.
सुना उपर अपने कमरे में बैठा है अनशन पर
कि यदि मोटर साईकिल खरीद कर न दी गई तो खाना नहीं खायेगा. जब तक
मोटर साईकिल लाने का पक्का वादा नहीं हो जाता, अनशन जारी रहेगा.
माँ समझा कर थक गई कि पापा दफ्तर से आ
जायें, तो बात कर लेंगे मगर पोता अपनी बात पर अड़ा रहा. आखिर
शाम को जब उसके पापा ने आकर अगले माह मोटर साईकिल दिला देने का वादा किया तब उसने
खाना खाया.
खाना खाने के बाद वो मेरे पास आकर बैठ गया. मैने
उसे समझाते हुए कहा कि बेटा, यह तरीका ठीक नहीं है. तुमको
अगर मोटर साईकिल चाहिये थी तो अपने माँ बाप से शांति से बात करते, उन्हें
समझाते. पोता हंसने लगा कि दादा जी, यह सब
पुराने जमाने की बातें हो गई. आजकल तो बिना आमरण अनशन और भूख हड़ताल के
कोई खाने के लिए भी नहीं पूछता. यही आजकल काम कराने के तरीका है. इसके
बिना किसी के कान में जूं नहीं रेंगती. सब अपने आप में मगन रहते हैं. मुझे तो
यह तरीका एकदम कारगर लगता है.
मुझे लगा कि शायद मैं ही कुछ पुराने
ख्यालात का हो चला हूँ, नये जमाने का शायद यही चलन हो.
खैर, मैने उससे दिल्ली यात्रा के बारे में
जानना चाहा.
उसने बाताया कि दो दिन में से एक दिन तो
फिल्म, क्रिकेट मैच और दोस्तों के साथ चिल आऊट करने में निकल गया. हालांकि
मैनें उससे जानने की कोशिश की कि चिल आऊट कैसे करते हैं, मगर वह
टाल गया. मैने भी जिद नहीं की इसलिए कि कहीं मेरी
अन्य अज्ञानतायें भी प्रदर्शित न हो जायें. क्रिकेट मैच ट्वेन्टी ट्वेन्टी वाला था, एकदम
कूल. चीअर गर्लस, वाईब्रेशन, गेम सब का सब डेमssकूssल.
मुझे फिर लगा कि जमाना कितना बदल गया है. हमारे
समय में मैच माहौल में गर्मी पैदा कर देते थे और हर दर्शक एक गर्मजोशी के साथ मैच
देखा करता था और आज- हून्ह- कूssल.
फिर दूसरे दिन, एसी
लीमो में दिल्ली का सेलेक्टेड टूर लिया. समय एक ही दिन का बचा था तो सेलेक्टिव
होना पड़ा. सिर्फ राज घाट, जंतर
मंतर इंडिया गेट और संसद भवन देखा कार में बैठे बैठे गाईड के साथ.
मुझे भी दिल्ली गये एक अरसा बीत चुका था
तो मैने सोचा कि चलो, इसी से आँखों देखा हाल सुन कर यादें ताजा
कर लूँ. इसी लिहाज से मैं पूछा बैठा कि गाईड ने
क्या क्या बताया?
अपने फोन में सारी तस्वीरें भी ले आया था. उसी को
दिखाते हुए उसने वर्णन देना शुरु किया कि यह राजघाट है जहाँ सारे नेता इन्क्लूडिंग
प्रधान मंत्री अपना काम और फारेन के नेता भी अपनी यात्रा शुरु करने के पहले दर्शन
के लिए जाते हैं, जैसे आप मंदिर जाते हो न, वैसे ही. फिर
फोटो में उसने दिखाया कि यहाँ से सन २००६ में कुत्ते घुसे थे और कुत्तों के द्वारा
पूरा चैक करने के बाद यहाँ से यू एस के राष्ट्रपति बुश. वैल
मेन्टेन्ड, ग्रीन और क्लीन.
फिर हम लोग जंतर मंतर गये.
मैने बस उसका ज्ञान जानने के हिसाब से पूछ
लिया कि जंतर मंतर क्या है?
फिर क्या था- दादा जी, आप इतना
भी नहीं जानते कि यह अनशन स्थल है. यहाँ अन्ना हजारे भी आमरण अनशन पर बैठे थे
और भारत सरकार के दांत खट्टे कर दिये थे. ये देखो, इस जगह अन्ना हजारे बैठे थे और ये.. इस तरफ सारा जन सैलाब था. इस वाले रास्ते से नेता उनसे मिलने आने की
कोशिश कर रहे थे. इस तरफ से पब्लिक ने उन नेताओं को खदेड़ा
था. सरकार को झुकना पड़ा. उनकी
मांगें माननी ही पड़ी.
मैने उससे कहा कि वो तो सही है बेटा मगर इसे
बनवाया किसने था और किस लिए? पोता बोला वो तो गाईड ने बताया नहीं मगर
यह जगह फेमस इसीलिए है. सब फोटो खींच कर लाया था मगर यंत्रों की
एक भी नहीं. मानों वो सिर्फ सजावट के लिए लगे हों.
फिर संसद भवन भी देखा जहाँ देश भर से चुने
हुए नेता आकर भ्रष्टाचार को अंजाम देने की योजना बनाते हैं. इतने
जरुरी काम में खलल न पड़े इसलिए आम जनता को बिना पास के अंदर जाने की इजाजत नहीं है. हर तरफ
सिक्यूरिटी लगी है जबरदस्त. इन सारे चुने हुए लोगों का स्टार स्टेटस
है. उन्हें देखते ही प्रेस वाले टूट पड़ते हैं. कैमरे
चमकने लगते हैं. मैं तो उनको दूर से ही देखकर बहुत
इम्प्रेस हुआ.
मैं अपने इम्प्रेस्ड पोते को ठगा सा देख
रहा था और वो इससे बेखबर मुझे अपने फोन से फोटो दिखाये जा रहा था.
कहने लगा दद्दु, आपको
पता है कि यह इंडिया गेट है. यह इसलिए फेमस है कि इंडिया में जब भी कोई
चर्चित रेप केस होता है तो यहाँ पर बैठ कर केन्डल लाईट विज़िल किया जाता है. व्हाट ए
गेट, ह्यूज!!! फिल्म वालों के लिए भी बेहतरीन लोकेशन है, कितनी
सारी फिल्मों में यहाँ की शूटिंग की है.
रात को जब लाईटिंग होती है, तो क्या
गजब का लगता है यह गेट. कितने सारे लोग पहुँचते हैं यहाँ चिल आऊट
करने रात में..ग्रेट नाईट आऊट!!!
लुक!!! डेहली इज़ सो फेसिनेटिंग.
वो
बोलता जा रहा है तो मैं अपने ही ख्यालों में डूबा था कि वाकई, बहुत
दिन हो गये दिल्ली गये. कितना कुछ बदल गया है इतने सालो में या
शायद, एसी कार में बैठ कर दिल्ली के सेलेक्टिव
दर्शन का असर!! कौन जाने.
-समीर लाल ’समीर’
भोपाल के दैनिक सुबह सवेरे में रविवार दिसम्बर
८, २०१९ में प्रकाशित:
ब्लॉग पर पढ़ें:
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Reading article is really chilling....
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (10-12-2019) को "नारी का अपकर्ष" (चर्चा अंक-3545) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सटीक !
जवाब देंहटाएंपर वातावरण ही बोझिल है