रेडियो पर गाना
सुन रहे हैं कान में इयर फोन लगा कर:
कहीं किसी रोज
यूँ भी होता
हमारी हालत
तुम्हारी होती
जो रात हमने
गुजारी मर के
वो रात तुमने
गुजारी होती!!
कितनी गुलजार
रात है आज रविवार की...बाहर बहुत कुड़कुड़ा देने वाली -१० ठंड है..सुनसान सड़क..बरफ
की चादर ओढ़े हुए..घर के भीतर की हीटिंग बाहर की ठंड को धता बता रही है. यथार्थ का
धरातल वो नहीं जो रुमानियत में है..शायद यही वजह हो प्रीत जब हकीकत का धरातल पाती
है शादी के बाद तो युगल विचलित हो उठता है..संभल नहीं पाता..फूल की खुशबू खो जाती
है और फिर वही..कहा सुनी..दूरियाँ..संबंध विच्छेद..
मगर यहाँ फायर
प्लेस अपनी गरम सांसों की आगोश में समेटने की कोशिश में खुद को जला रहा है..
शमा कहे
परवाने से, परे चला जा..
मेरी तरह जल
जायेगा..यहाँ नही आ.. मगर सुनता कौन है..
जलना ही जब
प्रारब्ध है तो कौन भला बदल सकता है उसे..
उधर गाना भी खत्म
हो चुका है और अब सेक्सोफोन पर बज रही है एक रुमानी धुन और रेड वाईन का ग्लास!! गरमाहट
फायर प्लेस निर्लिप्त सा भाव धरे फैला रहा है..वो मौसम और गाने के बीच सेतु बन रहा
है..
मेरे साजन हैं
उस पार,
मैं इस पार...
चल मेरे
मांझी..चल मेरे मांझी,,
खिड़की से झांक
कर देखता हूँ.. दूरआसमां में एक चाँद खिला है..मुझे मूँह चिढ़ाता..कहता है कि तुमसे
उस पार मिल कर आया है पीपल के पेड़ की छांव में..जहाँ अंगना फूल खिले हैं.
दुत्तकारने को
मन कर रहा है मगर सिमेट लेता हूँ उस सोच को अपनी बाँह में..बात तुम्हारी करता है
वो इसलिए..प्यार तो उस पर आना ही था.
कितना नादान
हूँ मैं कि नादान वो चाँद है?
दरअसल नादान
और मासूम तो तुम हो कि न चाँद और न मैं..संभाल पाये खुद को..तुम्हें देख कर..
सेक्सोफोन पर
बजती धुन एक पूरी रात के पार ले आई और उधर आसमान में सुबह का सूरज थपकी देकर मेरी
दुनिया को जगा रहा है...
सुबह हुई अब
जागो प्यारे..दुनिया खड़ी है बांह पसारे..
और मैं रात भर
का जागा..अब कुछ देर आँख बंद कर सो जाने की कोशिश में जुटा सोचता हूँ..कितना अलग
अंदाज है मेरा..
मगर कितनी देर
...दफ्तर तो जाना ही होगा..काम भी जरुरी है न!! ख्यालों में जिन्दगी नहीं गुजरती.
व्हाटसएप की
दुनिया से बाहर जो यथार्थ है, वही व्हाटसएप की दुनिया का चिराग है.. बिना चिराग के
कौन सा अंधकार मिटा है भला.
दोनों के बीच
सामन्जस्य बनाना ही होगा.
दोनों एक
दूसरे के पूरक हैं अब..पूरा कोई भी नहीं!!
एक दार्शनिक
सा विचार..बहता हुआ सा!!
-समीर लाल
’समीर’
पुराने गानों का आधार ले कर बदलती दुनिया की सुन्दर अभिव्यक्ति की है समीर जी
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार ... रोचक शैली
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