कहते हैं जोड़ियाँ ऊपर से
बन कर आती हैं. मान लेते हैं कि आती होंगी. मगर जोड़ियों के पहले इंसान पधारता है
और वो धीरे धीरे इतनी तिकड़म बैठालना सीख गया है कि ईश्वर को तो ठेंगा दिखाये बैठा
है और बदमाशी की इंतहा तो देखें कि दिखाता है ठेंगा और कहता है लाईक किया, थम्स
अप. ईश्वर भी ठेंगे को लाईक मान कर फेसबुकिया हुए गिन गिन कर मुग्ध होता रहता
होगा. खुद ही सोचें कि न ईश्वर बदला और न ही इंसानों को पूंछ लगने लगी तो फिर
जोड़ियों के यह स्वरुप कैसे बदल गये कि कोर्ट तय करने लगा कि चलेगा, तुम भी जोड़ी ही
हो, रह लो सुरेश और मुकेश साथ में. और तुम रीना और टीना, तुम भी जोड़ी ही कहलाओगी.
इतने पर भी चैन न पड़ा तो शादी करके जोड़ी कहलाना भी जरुरी नहीं रहा, ऐसे ही रह लो
साथ तो भी जोड़ी.
अब तो हालत ये हो लिए हैं
कि चाईना अपना चांद बना रहा है. उधर अमेरीका जुटा है कि हम अपना खुद का आसमान
बनायेंगे. पूरा शहर कृत्रिम आसमान से ढक देंगे और उसके भीतर का मौसम जैसा हम
चाहें, वैसा. जैसे ही मौसम खराब हो, कृत्रिम आसमान से शहर को ढक दो और बेहतरीन
सावन का मौसम लाकर झूला झूलो. वैसे इस बात का ज्यादा प्रचार प्रसार अभी हुआ नहीं
है क्यूँकि अभी ऐसा कुछ बना नहीं है. वरना इस बार कम से कम दिल्ली तो यह कृत्रिम
आसमान का जुमला ही जितवा दे. प्रदुषण मुक्त शहर कि धुँआ कृत्रिम आसमान में लगे
एग्जॉस्ट से बाहर और अंदर सब हरा ही हरा.
खैर, कृत्रिम आसमान का
सपना तो अभी नहीं दिखा पायेंगे क्यूँकि फोटो में ही सही, अभी उदाहरण दिखाने के लिए
कहीं भी वो है नहीं. तो इस बार भी झूठ का आसमान ही तानेंगे, करना धरना तो कुछ है
नहीं. करना होता तो आज रेल्वे ट्रैक पर खाली समय में प्राईवेट ट्रेन चल रही होती.
सारे शहर स्मार्ट सूटेड बूटेड हो गये होते. पूरे देश की नहरों पर सोलर पैनल लगे
होते, हर वस्तु डिजिटल होती है. हालांकि एक वस्तु तो वाकई स्मार्ट भी हो गई और वो
है ईवीएम.
बात चल रही थी जोड़ियों की
और भटक कर कहाँ जा पहुँची? महत्वाकांक्षायें और आशायें इतना बढ़ गई हैं कि ऊपर से
बनाई जोड़ी में अगर अटक भी जायें तो उससे निकलने के रास्ते भी इन इन्सानों ने कई
बना लिये हैं. जैसे अपने यहाँ कानून बनाते समय उसमें एक लूपहोल जरुर छोड़ देते हैं
ताकि सक्षम बच निकलें. उनका बड़ा से बड़ा लोन माफ करके उनको विदेशवास पर भेज दिया
जाता है और किसान का छोटा से छोटा लोन उसे फंदे पर लटकने को मजबूर कर इहलोक की
यात्रा पर भेज देता है.
आजकल माहौल देख कर तो
वाकई ऐसा लगने लगा है कि शादियाँ कम हो रही हैं और तलाक ज्यादा. जिसे देखो वो ही
तलाक की राह पर है. समझौता करने को कोई तैयार ही नहीं.
संबंधों के निर्वहन भी
जरुरतों और सहूलियत की वजह से हो रहे हैं. शादियाँ और तलाक देखकर लग रहा है कि
मानों राजनितिक दलों का गठबंधंन और जरुरत खत्म हो जाने पर या महात्वाकांक्षा पूरी
न होने पर संबंध विच्छेद. कॉमन लॉ की तरह बाहरी समर्थन के गठबंधंन. कुल को आगे ले
जाने के लिए नहीं मगर अपने लिए किए गये सेमसेक्स विवाह की तरह देश को आगे बढ़ाने की
बजाय खुद के सत्ता सुख के लिए गठबंधंन.
कहने को तो यह भी कहते
हैं कि नेता बनाये नहीं जाते, पैदा होते हैं. सही है मगर जो नेता पैदा होते हैं और
सही की राजनीति में आते हैं वो उस स्व-व्यक्तित्व में अपनी तिकड़म से घूर्तता
मिलाते हैं, संवेदनशीलता को मारते हैं और तब जाकर सत्ता सुख पाते हैं.
दोष किसे दें- ईश्वर को
या इंसान को, जिसे ईश्वर ने बनाया.
हम तो यह भी नहीं
प्रार्थना कर सकते कि काश! राजनीतिक जोड़ियाँ भी ईश्वर बना कर भेजता. ये धूर्त तो
उसे बदल कर ईश्वर को ठेंगा दिखा देते हैं और जनता को भ्रमित करते हैं कि हमने
ईश्वर के निर्णय को लाईक किया है.
-समीर लाल ’समीर’
भोपाल से प्रकाशित सुबह
सवेरे में रविवार नवम्बर २५, २०१८
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काश एसा होता तो देश की हालत कुछ ओर होती
जवाब देंहटाएंaapki ek ek line se main sahmat hu
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