तिवारी जी का पुराना
बकाया है घंसू पर. आज जब तिवारी जी ने पुनः तकादा किया तो घंसू भड़क उठे. उधार का
व्यवहार ही यह है कि जब अपना ही पैसा वापस मांगो तो भीखमंगे से बत्तर नजर आते हो.
क्या मतलब है तिवारी जी
आपका? कोई भागे जा रहे हैं क्या?
तिवारी जी भी गुस्से में
आ गये बोले कि भाग तो नहीं रहे मगर रुपया भी तो वापस नहीं कर रहे हो? चार साल हो
गये. दो महिना में लौटा देंगे बोल कर लिया था. हर चीज की एक हद होती है. रकम भी
छोटी मोटी तो है नहीं, पूरे ५० हजार हैं. वो तो भला मानो कि हम ब्याज नहीं लगा
रहे! किसी किसान से पूछ कर देखो कि सरकार कैसे ऋण देती है और कैसे ब्याज वसूलती
है? हमारी जगह सरकार से कर्जा लिए होते तो अब तक किसी पेड़ में टंगे मिलते आत्म
हत्या करके.
घंसू थोड़ा सकते में आ गये
मगर रुपये तो हैं नहीं लौटाने को, तो कुछ न कुछ तो माहौल खींचना ही पड़ेगा. ये घंसू
ने मौजूदा सरकार से खूब सीख लिया है पिछले चार सालों में. अतः घंसू ने पैंतरा बदला
और बोले कि तिवारी जी आप तो पढ़े लिखे हैं. आप समझदार हैं. ऐसा बोल देने से सामने
वाला बेवकूफ बनने को तैयार हो जाता है, यह घंसू जानता है. वो आगे बोला - देखिये
रुपये की हालत? कितना गिर गया है. फिर इसके चलते पैट्रोल और डीज़ल के भाव में भी आग
लगी है. थोड़ा बाजार संभल जाने दिजिये. रुपया मजबूत हो जाने दिजिये, लौटा देंगे
आपका पैसा.
तिवारी भड़क गये कि क्या
सोच कर लिये थे उधार? और फिर रुपये के गिरने से तुम्हारा क्या लेना देना? कोई डॉलर
में कर्जा लौटाने की सोच रहे हो क्या हमारा? पैट्रोल में आग लगे या पानी, तुम तो
अपनी साईकिल में घूमते हो, तुम्हारा क्या बनना बिगड़ना है इससे? जबरदस्ती की
बहानेबाजी करते हो. कभी तेल में आग तो कभी रुपये पर पानी.
’कमजोर इन्सान पर तो सब
जोर चलाते हैं’ घंसू रुँआसे से हुए बोल रहे हैं. साहेब भी तो चार साल पहले बोले थे
कि १५ लाख सबके खाते में डलवा देंगे, उनसे क्यूँ नहीं कुछ कहते आप? वो ही आ जाते
तो हम आप का कर्जा आपके मूँह पर दे मारते. हमें भी कोई अच्छा नहीं लगता है कर्जा
अपने उपर रख कर.
आजकल तो वैसे भी अपनी
गल्ती का ठीकरा दूसरे के सर पर फोड़ने का फैशन चल पड़ा है. रुपया गिरा तो १० साल
पहले की नीतियों का दोष. पैट्रोल के दाम बढ़े तो पुरानी सरकार के कर्जे की वजह से.
काला धन नहीं आया तो २० साल पहले के किसी नियम की वजह से. नोटबंदी फेल हो गई तो
पुरानी सरकार की अदूरदर्शीता से. जी एस टी, दलित कानून सब पुरानी सरकार के कारण. हिन्दु
मुस्लिम तो नेहरु की गल्ती. तो फिर ये जो सरकार आई इसने क्या किया, इसका कोई हिसाब
है क्या? कि सिर्फ पुरानी फिल्मों को चलता देखते रहे? और ये पता करते रहे कि पिछले
७० साल में क्या गलत हुआ? उसमें खुद के भी ५ साल गिना गये वो पता ही नहीं. तिवारी
जी चिल्ला रहे हैं.
और घंसू, तुम सुनो!! ये
सब सरकारी चोचले, इसकी गल्ति उसकी गल्ति वाले इन राजनितिज्ञों के लिए छोड़ दो. ये
इनको ही सुहाते हैं. हम तुम साधारण लोग हैं, इनके चक्कर में हम भी लड़ बैठेंगे. फिर
न हम आपस में बात करेंगे और न ही आपस में मदद.
तुम कोशिश करके जब सुविधा
हो मेरा पैसा लौटा देना मगर इनका जामा पहन कर मानवता से मानव का विश्वास मत
डिगाना. ५०,००० रुपये बहुत कम कीमत है मानवता को दांव पर लगाने के लिए.
-समीर लाल ’समीर’
भोपाल से प्रकाशित सुबह
सवेरे के रविवार सितम्बर ०९, २०१८ में:
#Jugalbandi
#जुगलबंदी
#व्यंग्य_की_जुगलबंदी
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
#Hindi_Blogging
"तेल में आग और रुपये पर पानी" विषय की खूबसूरत विवेचना के माध्यम से तिवारी जी और घंसू के बीच समझदारीपूर्ण सुलह सराहनीय एवं अनुकरणीय है
जवाब देंहटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन अमर शहीद जतीन्द्रनाथ दास की पुण्यतिथि पर नमन : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
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