बचपन में हमारे मोहल्ले में हमारे अन्य हम उम्र
साथियों के अलावा मुकेश और रवि भी रहा करते थे. मुकेश के भीतर गुंडई के तत्व बचपन से ही थे. पढ़ाई लिखाई में उसका मन कभी लगा नहीं अतः हमारे १२ वीं पास
करने वाले साल में वह ८ वीं फेल होकर स्कूल एवं पढ़ाई से सदा के लिए रिश्ता त्याग
बैठे.
हम सभी के घरों में बचपन से ही मुकेश की
बदमाशियों के चलते उसके साथ घूमने फिरने की मनाही थी मगर हम लोग छिप छिपा कर उसके
साथ घूमा करते थे. दूसरे मोहल्ले के लड़के
मुकेश से हमारी दोस्ती देख हमसे भी डरा करते थे तो हमें बड़ा आनन्द आता था. यह एक इन्सानी गुण है. पावर की फिलास्फी ही यह है. लोग डरते हैं, पावरफुल खुश होते हैं.
एक बार जब मैं और रवि ११ वीं में थे और मुकेश ८
वीं की जंग हारने के अंतिम पडाव पर था, तब हम तीनों को साथ
घूमते हुए रवि के पिता जी ने पकड़ लिया. रवि को मारते हुए वह
पूरे मोहल्ले के सामने से घर ले गये और फिर घर पर भी खूब मारा. मोहल्ले के सामने हुए अपमान को १६ साल का बालक बर्दाश्त न कर पाया और रवि उस रात घर से चुपचाप
भाग गया. फिर कभी पता नहीं चला कि
रवि कहाँ गया? मोहल्ले में खबर थी कि शायद उसने नदी में कूद कर आत्म हत्या कर ली है मगर कोई
तय खबर न थी. पुलिस और प्रशासन के लिए यह
खबर एकदम मुफीद थी क्यूँकि कम से कम उनकी जिम्मेदारी टली. जिम्मेदारी टाल देने की कला ही आज सफलता का मंत्र है.
रवि वाला हादसा देखकर मैने भी मुकेश के साथ
घूमना बंद कर दिया था. बीच में सुना कि मुकेश को
किसी मर्डर केस में जेल हो गई. फिर एक लंबे समय तक मुकेश
के बारे में कोई खबर न रही.
जिन्दगी रुकती कहाँ है? मेहनत से पढ़ाई कर सीए बने और कनाडा आ कर बस गये. फिर एक दिन घर से फोन आया कि अरे! वो तुम्हारा खास दोस्त
मुकेश था न! वो आजकल शिक्षा मंत्री हो
गया है. उसका फोन नम्बर यह है. उसको फोन लगा कर बात कर लेना. तुम्हारा भतीजा शिक्षा विभाग में नौकरी के लिए अप्लाई कर
रहा है. अगर मुकेश जी चाह लेंगे तो
हो जायेगा उसका भला. तुम्हारे तो करीबी दोस्त
रहे हैं, तुमको थोड़ी न मना करेंगे.
मैं अचरज में था. ये वही आवाज थी जिसने एक बार उसके साथ दिख जाने की हालत में
टांगें तोड़ कर घर बैठा देने की बात की थी. पावर का खेला तो
देखो. मेरे अपनों की जुबान बदल गई. गुंडे से नेता बनते ही मुकेश से मुकेश जी. तुलसी दास नें
लिखा था कि समरथ को नहीं दोष गुसांई.....उनको लिखना चाहिये
था कि समरथ में नहीं दोष गुसांई.
कभी ज्ञानी कहा करते थे कि पास्ट आपको हॉन्ट
करता है!! याने कि भूतकाल में किये
गये गलत कार्य आपका भूत बन कर पीछा करते हैं. आज का जमाना कहता है कि आज की आपकी पावर आपके भूतकाल में
किये गये गलत कार्यों पर शावर का काम करता है और उन्हें धो डालता है. जितनी ज्यादा पावर..पास्ट के सफेदी की चमक उतनी ज्यादा चमकदार! वरना तो आज के सारे नेता पास्ट के गटर में नजर आते.
खैर, मुकेश से बात हुई
फोन पर. बड़ा खुश हुआ बरसों बाद आवाज
सुन कर वो भी कनाडा से. विदेश में बसे मित्र वैसे
भी विशिष्ट मित्रों की श्रेणी में आते हैं. भतीजे के बारे में
बताया तो उसने कहा कि अरे, तेरा भतीजा याने कि मेरा
भतीजा.
भतीजा आजकल शिक्षा विभाग में नौकरी कर रहा है. मोहल्ले में उसकी शैक्षणिक योग्यता एक मिसाल का काम कर रही
है आने वाली पीढ़ी के लिए. मुकेश कनेक्शन की किसी को
कानो कान खबर नहीं है. विदेशों में खाता हो या
मित्र, किसी को पता नहीं चलता. जुमले और मजाक में नेता कहते रहते हैं कि विदेशी खातों का
पैसा वापस लायेंगे या पैसा लेकर विदेश भाग गये पुराने मित्रों को वापस लायेंगे,
मगर अंततः पता नहीं चलता कि सब गये कहाँ? हालांकि सब जानते हैं कि हैं कहाँ?
हाल में एक सनसनी खेज खबर आई टीवी पर. पांच बाबाओं
को राज्य मंत्री का दर्जा दे दिया गया. उनमें से एक बाबा का नाम सोशल मीडिया बाबा
बताया गया. सोशल मीडिया पर उनका योगदान यह रहा कि उन्होंने अपनी पोस्टों से नर्मदा
अपने असली बहाव से ८८ गुना तीव्रता से बहता दिखा करा सारे बंजर हो चुके खेत
खलिहानों को फसलों से लहलहवा दिया. फोटोशॉप उनकी सिद्धि का एक अंग है. सभी नेता नर्मदा
परिक्रमा करते दिखे. आजकल सोशल मीडिया के जमाने में फोटोशोपिक इण्डिया ही चुनाव
जितवाता है न की असली भारत.
बाबा की तस्वीर पहचानी सी लगी. गौर से देखा..ओह!
यह तो अपना रवि है, जो भाग गया था घर से! इतने साल बाद एक साधू के रूप में, राज्य
मंत्री बनते अपने मित्र को देख आँख भर आई.
उसका फोन नम्बर जुगाडा. बात हुई. उस वक्त वो
मुकेश के साथ था. पुरानी बातें याद कर खूब हँसी मची ...
हंसे तो वो दोनों इस बात पर भी कि तू क्यूँ सीए
बन गया? क्या मिला सीए करके?
सब वक्त का तकाज़ा है, वरना तो कौन जाने आज हम भी
कोई बाहुबली होते या कोई बाबा या कोई मंत्री होते..सब एक ही थाली के चट्टे बट्टे
हैं.
-समीर लाल ’समीर’
भोपाल के दैनिक सुबह सवेरे में अप्रेल ८, २०१८ को
प्रकाशित:
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क्या बात है! बढ़िया शब्द चयन। यहाँ तो एक बॅालीवुड मूवी बनाने के लिए पूरा मसाला है।
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