जब लिखना शुरु
करते हैं तो सोचते हैं कि न जाने सबजेक्ट मैटर इतना सारा कहाँ से आयेगा? चलो, लिखना तो शुरु करें भले ही ५०० शब्दों पर रुक जायेंगे.
लोग बताते हैं कि
५०० शब्दों का आलेख आज की इस भाग दौड़ वाली फेसबुकिया दुनिया में बेस्ट रहता है. इन्सान भागते दौड़ते थोड़ा पढ़ भी लेता है और लाईक
करने की उस हीन भावना से भी मुक्त रहता है कि बिना पढ़े लाईक कर दिया.
बताया गया कि बड़े
आलेख पढ़वाने की क्षमता रखने वाले सूरमा कोई और होते हैं, मगर वो कौन होते हैं यह नहीं बता पाये. जैसे आजकल बताया जाता है कि पिछली सारी सरकारें
निक्कमी थीं, सब भ्रष्टाचारी थे, उन्होंने देश के लिए कुछ नहीं किया, मगर किसने किया है इस देश के लिए कुछ, वो नहीं बता पा रहे हैं. यहाँ तक कि अपना खुद का नाम बताने में हिचकिचा
जाते हैं. अच्छे कार्यों के
लिए किसी भी लकीर को छोटा करने के लिए उससे बड़ी लकीर खींचने का प्रचलन अब नहीं रहा. अब बस उस पर आरोपों का पानी फेर कर छोटा किया
जाता है.
यूँ तो व्यंग्य
के धुरंधर वन लाईनर लिख कर भी तूफान उठा दे रहे हैं. कटाक्ष के परचम लहरा रहे हैं. मानो व्यंग्य न
होकर नेताओं के बयान हो गये हों. चल गया तो ठीक
वरना कह दिया कि जुबान फिसल गई थी या मेरे कहने का वो मतलब नहीं था या ये तो जुमला
था. ज्ञानी कहते हैं
कम बोलने के बड़े फायदे हैं. कम मुसीबत आती है. बोलना और लिखना एक सा ही है बस लिख देने से
सबूत दर्ज हो जाता है. इसलिए नेता बोल
कर भाषण और बयान देते हैं, लिख कर नहीं.
बहुत कोशिश और
प्रयोग किये कि कितने शब्दों की सीमा में अपना व्यंग्य आलेख बाँधे कि लोग पढ़ने में
कम्फर्टेबल महसूस करें और पढ़कर आनन्दित हों. आनन्दित से तात्पर्य लाईक करें से है.
ज्ञानी मित्र बता
रहे है कि ये तो औकात की बात है. फिर समझाने की
मुद्रा में आकर कहने लगे कि इसे बाजार में बिक रहे मकानों की तरह समझो. मेनशन भी बिकता है जो हजारों स्क्वायर फुट का
होता है और ३५० स्क्वायर का माईक्रो अपार्टमेंट भी आज की नई दुनिया में धड्ड़ले से
बिक ही रहा है. हर चीज के
खरीददार हैं, तय आपको करना है
कि क्या और किसे बेचना है?
मित्र का ज्ञान
जारी हैं अतः आगे बताते हैं कि हजारों फुट का मेनशन भी न बिके यदि उसे ठीक से
डिजाईन न किया जाये और ३५० वाला माईक्रो अपार्टमेन्ट भी छोटे में सब कुछ समाहित कर
देने की कला को हाईलाईट कर देने से मंहगे दामों में बिक रहे हैं.
लेखनी का सम्मोहन
ही तो तय करता है कि आप पाठक को कब तक और कहाँ तक बांध सकते हैं?
बात जँची तो आजकल
लिखते समय अपने खुद को बिल्डर
होने जैसा का अहसास होने लगता है. इस चक्कर में २
बीएचके, ३ बीएचके, मोड्यूलर किचन टाईप व्यंग्य आलेख साधने के
चक्कर में छोटे छोटे खूब सारे आलेख लिख डाले. मगर हाय री
किस्मत.. बिल्कुल रियल स्टेट मार्केट की तरह ..अपना भी भट्टा बैठ लिया. लिख तो लिये हैं मगर न तो कोई छापने वाला मिल
रहा है और न ही कोई पढ़ने वाला मिल रहा है.
लोग बता रहे हैं
बदलते डिजिटल भारत में विकास की आवाज ये है कि रहने को मकान नहीं आधार कार्ड चाहिये. खाने को हो न हो, शौचालय होना जरुरी है.रियल स्टेट मार्केट तो छोटी सी बात है...पूरा मार्केट भी गिर जाये तो कोई बात नहीं, जीडीपी बढ़ा दिखना चाहिये. प्रपोगंडा के जमाने में तथ्य..मजाक सी बात है.
हम कई बातें समझ
ही नहीं पा रहे हैं. चिड़िया के पंख
नोच कर खुद के शरीर पर चिपका लेने से आप आकाश में नहीं उड़ सकते..बस!! आपने उस चिड़िया की उड़ान को भी रोक कर उसे विकलांग बना दिया है. वही उसकी लकीर छोटी करने वाली बात...उस लकीर को पौंछ कर. हासिल किसी को कुछ नहीं होता..बस!! आकाश में उड़ते पक्षी गायब हो जाते हैं...और आप खुश!! देखो, मुझसे उपर उडान किसकी? न आप उड़ो न कोई और!!
सजग न सिर्फ लेखक, व्यंग्यकार, कवि और शायर को होने की जरुरत है..बल्कि समाज में हर व्यक्ति को..हमें बस यह जानना और ध्यान में रखना चाहिये कि हीरे
का खजाना भी होता है और खदान भी.
खजाने को सहेजना
होता है, पोसना होना है और खदान का
दोहन करना होता है, खोदना होता है.
आज दुविधा यह है
कि जिन्हें हमने चुन कर भेजा है... वो यह तो जानते हैं कि उन्हें हीरा दिया गया
है..मगर यह समझने में ही पूरे पांच साल गुजार दे रहे हैं कि खजाना हाथ लगा है कि
खदान..और फिर बाद में पछताते हुए और मूँह की खाते हुए, बस खिसियाये हुए इतना ही कह पाते हैं कि हम तो जनसेवक
हैं..सेवा करने आये थे....राजनिती का हमें ज्ञान नहीं है, इसीलिए समझ न पाये.....ऐसे में अब तय तो आपको ही करना
है..कि सपोर्ट किस ओर देना है..
वरना हम भी लिख
रहे हैं और दूसरे व्यंग्यकार भी...पढ़ने वाले तय करेंगे कि मेनशन चाहिये कि माईक्रो
अपार्टमेन्ट!! या दोनों..मेनशन में रहेंगे और माईक्रो में इन्वेस्ट करेंगे.
सही मायने में
पूछो तो सोच कर देखना..मकान चाहिये कि घर? फिर चाहे वो बड़ा
सा मेनशन हो या छोटू सा माईक्रो अपार्टमेन्ट!!
साईज़ डज़ नॉट मैटर!!
-समीर लाल ’समीर’
http://palpalindia.com/2018/02/21/kla-sanskriti-Satire-Sameer-Lal-Size-Does-not-Matter-Corrupt-Writing-Hypnosis-news-in-hindi-229656.html
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बढ़िया व्यंग्य
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