ये कहावत उस समय
की है जब हम बड़े हो रहे थे. हमें समझाया जाता है कि पहले बचाओ फिर खर्च करो. तब इन्सान मकान
और कार आदि उस समय लेता था जब उसकी उन सुविधाओं
को एन्जॉय करने की उम्र गुजर रही होती थी. सारा जीवन किफायत करते करते, अपने सभी सपनों को
मारते सिर्फ एक बचत की मानसिकता के साथ गुजार देते थे ताकि अगली पीढ़ी के लिए
विरासत में कुछ सुविधायें छोड़ जायें. सब प्रयास अगली पीढ़ी के लिए होता था. लोग कठहल और आम
के पेड़ अहाते में लगवाते ही इसलिए थे कि अगर नाती पोते नालायक निकल गये तो भी
बगिया उनके परिवार को संभाल देगी.
वक्त और सोच का
आधार बदल गया है. आज का युवा मेहनत ही इसलिए करने को तैयार होता है क्यूँकि उसके
सिर पर ईएमआई का भूत नाच रहा है. यह नई सोच है नई पीढ़ी की. आज कहावत बदल कर यूँ हो गई है कि
उतने पांव पसारिये, जितनी ईएमआई होय...
याने कि घर भी हो, कार भी हो, वेकेशन भी हो, हर लक्जरी हो..ध्यान बस यह रहे
कि इतनी कमाई हो जाये कि ईएमआई समय पर भर पायें. इस भागम दौड़ में वो यह भी भूल जाता है कि कल को
नौकरी न रही तो क्या? चलो, अपनी क्षमाताओं पर अति आत्म विश्वास हो कि यह नहीं तो दूसरी
नौकरी तुरंत ही मिल जायेगी मगर अपनी साँसों पर आत्म विश्वास कैसा? कौन जाने अगली
आये कि न आये मगर फिर भी..यह ईएमआई आधारित जीवनी..मेरे गले से तो अब भी नहीं उतरती है...बच्चे समझते हैं
कि हम सठिया गये हैं और नये जमाने के चाल चलन की समझ खो बैठे हैं...
खैर आज की तो
सरकार भी ईएमआई वाली मानसिकता से चल रही है कि यह महिना निकल जाये, फलां चुनाव
निकल जाये तब आगे की देखें. लम्बे समय की कोई योजना ही हाथ में नहीं है सब दिवा
स्वप्न देख रहे हैं और सब दिवा स्वप्न दिखा रहे हैं.
हमारे समय में
बैंक से लोन लेना ही समाज में बदनामी का कारण बन जाया करता था कि फलाना कर्जे में
है..बस फोकट की रईसी झाड़ता है..उस पर से अगर लोन न चुका पाओ तो शहर भर डुगडुगी पिटने और
समाज में बदनामी के डर से बंदा आत्म हत्या ही कर लेता था. आज जो डिफॉल्टर होना स्टेटस सिंबल बना हुआ है
वो हमारे समय में आत्म हत्या कर लेने सबब हुआ करता था.
अमीर और गरीब के
बीच आज बस यही फरक है. एक अमीर डिफॉल्टर आज भी फक्र से अपने डिफॉल्ट को तमगे की
तरह लगा कर सर उठा कर समाज में रईसी का परचम लहराता है और एक गरीब किसान, छोटे से लोन के
चक्कर में पेड़ पर लटक जाता है.
वक्त अपनी करवट
अपने हिसाब से लेता है और चीजों के मायने बदल जाते हैं.
आज पूरे देश की
आम जनता शायद एक भी ऐसे किसान का नाम न जानती होगी जो लोन न चुका पाने के कारण
आत्म हत्या कर बैठा मगर हर बंदा उनके नाम जरुर जानता होगा जो लोन न चुका पाने के
कारण विदेश में जा बैठे..चाहे वो ललित मोदी है, विजय मलैय्या हो या आज का नया सितारा निरव मोदी
हो..सभी सरकारी संरक्षण प्राप्त हैं मानो कि जेड सिक्यूरिटी मिली हो और विदेश में
सुरक्षित हैं. गाँधी के चश्में की तरह मानो तो या इन्हें कोहिनूर मान लो तो..जाने कब कौन इनको
भारत वापस लायेगा...और लायेगा भी तो कहीं गाँधी के चश्में कि तरह विजय मलैय्या
बन कर न ले आये तो ही भला..वरना तो बात अंगूठे के घाव पर बैण्ड एड लगा कर हाथ काट लेने
जैसी हो जायेगी.
इनके चलते आज के
वक्त में देश में हाल तो यह हो गया है कि अगर बैंक लोन लेने जा रहे हो तो मित्र
पूछते हैं कि विदेश जाकर बस जाने का इरादा है क्या? और विदेश बस जाने के लिए
इमिग्रेशन लेने के लिए एप्लाई करो तो पूछते हैं कि बैंक से लोन लेने का इरादा है
क्या?
अपनी क्षमताओं और
नॉलेज के आधार पर विदेश जाकर बस जाने का रास्ता तो यूँ भी ट्रम्प बंद करने की फिराक
में है ही..अमरीका फर्स्ट के नारे के साथ...तो अब विदेश जाकर बसने के लिए एक ही रास्ता बच रहेगा और वो
होगा हमारे देशी नारे के साथ...मेक इन इण्डिया वाले का...कि बस भारत में इत्ते बड़े डिफॉल्टर बन जाओ..कि विदेश में आकर
आराम फरमाओ..और खुद को मेड इन इण्डिया डिफॉल्टर का खिताब पहनाओ!!
-समीर लाल ’समीर’
भोपाल से
प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे में फरवरी १८, २०१८ के अंक में प्रकाशित:
बढ़िया लिखा है। मुझे तो भारत में क्या हो रहा है, इसका अधिक ज्ञान नहीं है। आप वहाँ के जीवन पर आधिकारिक रूप से लिख सकते हैं, यह सराहनीय है।
जवाब देंहटाएंधारदार व्यंग्य
जवाब देंहटाएंHi Sameer, read your "Made in India defaulter" article. Bold, heartfelt and to me some instances admiringly sarcastic and witty...����������
जवाब देंहटाएंHi Sameer, read your "Made in India defaulter" article. Bold, heartfelt and to me some instances admiringly sarcastic and witty...👏👏👏👍😊
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