हर चीज़ जो होती है वो दिखे भी- ऐसा तो कतई ज़रूरी नहीं है. आप ही देखें कि हवा होती तो है लेकिन दिखती कहाँ है? खुशबू होती तो है मगर दिखती कहाँ है? मोहब्बत होती तो है मगर दिखती कहाँ है? यह सब बस अहसास करने की, महसूस करने की बातें हैं.
संभव है कि एक स्थान पर खड़े सभी लोग हवा एक साथ अहसास लें मगर देख तो कोई भी नहीं पायेगा. ऐसा भी संभव है कि एक ही दायरे में खड़े सभी लोगों को फिज़ा में खुशबू का अहसास हो मगर उन्हीं में से कोई एक, जिसे तगड़ा जुकाम हुआ हो वो नाकबंदी के चलते खुशबू न अहसास पाये या फिर उन्हीं में से कोई एक जो महीनों से नहाया न हो, जिसे स्वच्छता का तनिक भी अंदाजा न हो, जिसके पास स्वच्छ भारत की, स्वच्छ भारत अभियान के पहले और बाद में, पहले वाले की तस्वीर के लिए मॉडल बनने की सारी योग्यतायें हैं, उसके आस पास खड़े लोग उस बंदे की दुर्गन्ध से ऐसा परेशान हों कि खुशबू अहसास ही न पायें तो इसमें खुशबू की तो कोई खता नहीं है. स्वभावतः गन्दगी सदा सफाई पर और दुर्गन्ध हमेशा सुगन्ध पर हाबी हो जाती है. फिर यह मानसिक ही क्यूं न हो.
मोहब्बत तो भरी भीड़ में भी उसे करने वाले प्राणी ही आपस में अहसास पाते हैं, भले बाकी की सारी भीड़ अपनी अपनी परेशानियों और नफरतों में उलझी हो.
इन सब बातों का कोई लॉजिक नहीं होता.लाख साधु संत माईक पर चीख चीख कर कहते रहें कि आपस में प्यार करो, नफरत छोड़ों. मगर जिसे प्यार है वही प्यार करेगा. जिसे नफरत है वो नफरत ही करेगा. बाबाओं और साधु संतो की बात भी तब ही समझ आती है जब सच्चे मन से भक्ति करो.वरना तो अगर भरोसा न हो तो डॉक्टर की दवा भी काम न करे. अच्छा और सच्चा भक्त बाबा की बताई राह पर आँख बंद करके चलता है फिर भले ही वो राह गुफा की तरफ जाती हो. कई बार कई बाबा तो प्यार सिखाते सिखाते अति उत्साह में थ्योरी से आगे प्रक्टिकल की क्लास भी लगा डालते हैं और फिर जेल में संतई की सजा काट रहे होते हैं.
ऐसे ही अहसास आज की नई दुनिया में विकास और मंदी हैं. सच्चा और पूर्ण समर्पित भक्त ही इस अहसास को महसूस कर रहा है कि अर्थव्यवस्था मजबूत हो गई है और विकास पुरजोर गति से विकसित होता जा रहा है. वह मन से अहसास करता है और मन की बात सुनता है. उसके कान में बस बाबा के स्वर गुँजते हैं मितरों, अर्थव्यवस्था एकदम तेज गति से मजबूत से भी मजबूत हुई जा रही है और विकास एकदम बुलेट ट्रेन की गति से हुआ चला जा रहा है. कुछ लोगों को देश में निराशाजनक बातें फैलाने में खूब मजा आता है....दुख की बात तो यह है कि सारे आंकड़े भी उन्हीं लोगों के साथ जा मिले हैं. मैं ऐसे आंकड़ों को नहीं मानता. मैं तो विकास को विकसित और अर्थव्यवस्था को मजबूत होते नित अहसास रहा हूँ..आप भी अहसास कर रहे हो कि नहीं? सभी भक्त सम्वेत स्वर में हुंकारा लगाते हुए हामी भर कर उन लोगों को राष्ट्रद्रोही करार करने में जुट चुके हैं जिनको न तो कहीं विकास दिख रहा है और न ही अर्थव्यवस्था में मजबूती.
अगर आपके दिल में राष्ट्रप्रेम है तो अहसासो विकास के विकास को, महसूस करो अर्थव्यवस्था की मजबूती को..वरना नये लिटमस टेस्ट के हिसाब से आप राष्ट्रद्रोही ठहराये जा सकते हैं.
-समीर लाल ’समीर’
भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के रविवार अक्टूबर ८, २०१७ के अंक में:
http://epaper.subahsavere.news/c/22734675
#Jugalbandi
#जुगलबंदी
#व्यंग्य_की_जुगलबंदी
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (09-10-2017) को
जवाब देंहटाएं"जी.एस.टी. के भ्रष्टाचारी अवरोध" (चर्चा अंक 2751)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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करवाचौथ की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन भारतीय वायुसेना दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंक्या बात कही है गुरूजी। बहुत गहरा व्यंग्य।
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