वक्त कितनी तेजी
से बदलता है और वक्त के साथ ही मान्यतायें और परिभाषायें भी बदलती जाती हैं.
कभी तमाम सरकारी
दफ्तरों में जब बापू यानि गाँधी जी की तस्वीरें लगाई गई थीं तब
उसके पीछे सोच यह रही होगी कि अधिकारी एवं नेता गाँधी की तस्वीर को रोज देखेंगे और
उनसे सादा जीवन एवं उच्च विचार के प्रेरणा लेते हुए देश को सर्वोपरि मानकर राष्ट्र
की सेवा करेंगे.
जिस तरह आजकल
फेसबुक पर थम्स अप का निशान देखर लोग समझ जाते हैं कि सामने वाले नें उनके लिखे को
लाईक किया है ठीक वैसे ही बदलते परिवेश में सरकारी दफ्तरों में टंगी गाँधी जी की तस्वीर
देख कर समझ जाते हैं कि यहाँ घूस ली जाती है. सीधे सीधे लिख देना कि रिश्वत दो और काम कराओ
उचित नहीं लगता अतः वर्षों से इसी तस्वीर के नीचे बैठकर घूस लेते लेते लोगों को
ऐसा अभ्यास करा डाला कि तस्वीर देखो और समझ जाओ. मुहावरा भी तो है कि एक तस्वीर हजारों शब्दों
से ज्यादा बोलती है.
अभ्यास से क्या
नहीं सिखाया जा सकता. एक बच्चे को भी
पंजा दिखाओ तो वह यह थोड़े न समझता है कि कांग्रेस के लिए वोट मांग रहे हैं. पंजा देखते ही सहम जाता है कि जरुर कोई गल्ति
की होगी और अब चांटा पड़ने वाला है. मां बाप ने ऐसा
अभ्यास जो करा दिया है.
गाँधी जी तस्वीर
देखकर जब लोग अब अभ्यस्त हो गये कि यहाँ रिश्वत ली जाती है, तब एकाएक किसी को ख्याल आया होगा कि लोग सौ और
पचास के नोट में घूस लेकर आते हैं जो दिखने में तो ज्यादा मगर होने में कम होते
हैं अतः गाँधी जी के तस्वीर के साथ ५०० रुपये का नोट लाया जाये. ५०० के नोट आने पर शुरावाती दौर में बाजार की
हालत यूँ हो गई थी कि कोई ५०० के नोट को ५०० का कहता ही नहीं था. सौ सौ के नोट को पांच सौ के नोट में बदलवाने के
लिए लोग पूछा करते थे कि गाँधी हैं? सामने वाला पूछता
कि कितने चाहिये? अगला कहता की एक
पेटी (एक लाख) दे दो.. दो गड्डी गाँधी जी सौ सौ
के १०५० नोट में आ जाते ५ प्रतिशत कमीशन पर और अगला झोले में लेकर गये सौ के नोटों
के बदले जेब में दो गड्डी गाँधी लेकर निकल जाता. ये वाले गाँधी छिपने छिपाने में जगह कम घेरते. दिखने में कम, कीमत में दम की कहावत को चरितार्थ करते सभी
रिश्वतखोरों और कालाबाजारियों के चहेते बन गये.
चाहने वालों ने
इनकी ताकत को पहचाना और इनको फिर १००० के नोट पर भी उतारा. गाँधी खूब चले. छिप छिप कर चले. अँधेरी तिजोरियों में चले.
ज्यादा पापुलरिटी
से नजर लग जाती है ऐसा बताते हैं. न जाने किस
कलमूहे की नजर लगी कि जिस धन पर गाँधी होते वो काला धन कहलाने लगा. गाँधी वाले १००० और ५०० के नोट अवैध्य घोषित हो
गये. जिस किसी के पास
हों वो साबित करे कि ये काले वाले गाँधी नहीं गोरा वाले हैं. मानो पूरे देश की जनता को चोर घोषित करके जेल
में भर दो फिर जो जो साबित करता जाये कि मैं चोर नहीं हूँ उसको छोड़ते चलो. हालांकि जनता भी इतनी चतुर निकली कि सबने साबित
कर लिया कि हम चोर नहीं हैं और सब बाहर निकल आये. जितने नोट गाँधी
के नाम पर छिपे थे, सब निकल कर
सरकारी खजाने में चले आये.
मगर गाँधी का मोह
कौन त्याग सका है? नये गाँधी और
अधिक सज धज के साथ आये गुलाबी रंग में नहाये हुए पहले से भी दुगनी शक्ति के साथ
२००० के नोट पर...जैसे कि नया
निरमा आ गया हो जिसमें नींबू हो मिला, सफेदी की चमकार पहले से ज्यादा सफेद..
साथ में १००० और
५०० वाले गाँधी भी वापस बाजार की शोभा बढ़ाने नई सज धज के साथ तैयार हैं.
बस इस बार एक नई
हिदायत और है कि दूसरी तरफ गाँधी जी चश्मा भी अलग से रख
दिया है यह बताने के लिए..कि ठोक बजा कर
चश्मा लगा कर देख लेना..कहीं कोई नकली
नोट न टिका जाये.
अनुभव क्या कुछ
नहीं सिखा जाता.
-समीर लाल ’समीर’
भोपाल से प्रकाशित दैनिक
सुबह सवेरे के रविवार अक्टूबर १, २०१७ के अंक में:
http://epaper.subahsavere.news/c/22560425
#Jugalbandi
#जुगलबंदी
#व्यंग्य_की_जुगलबंदी
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
बहुत बढ़िया,बापू के नाम के साथ जितनी सच्चाई जुड़ी थी,उसके उलट अब भ्रष्टाचार भी जुड़ा है।
जवाब देंहटाएंसबको समाहित कर लिया है अपने व्यापार में,
जवाब देंहटाएंक्या करें, घर चलाना है, निर्दयी संसार में।
पढ़ लिये थे उधर, फिर से पढ़ा, फिर मज़ा आया :)
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