इन्सान बेवकूफिओं
का पुलिन्दा होता है. सफल से सफल और
ज्ञानी से ज्ञानी व्यक्ति के पीछे उसके द्वारा की गई ज्ञात एवं अज्ञात बेवकूफियों
की कतार खड़ी होती है.
बेवकूफी और आदमी
की संगाबित्ती, अक्लमंदी और आदमी
की संगाबित्ती पर हमेशा २० पड़ती है. बस फरक इतना सा है
कि एक अकलमन्दी की सफेद चादर के नीचे कई किलो बेवकूफियाँ ढँक जाती हैं. मानो अकलमन्दी की चादर न हुई, कफन हो गया हो..चाहे कितने भी किलो का मुर्दा हो, एक ही साईज सबको ढाँप लेती है. कभी यह सुनने में नहीं आया कि कफन बेचने वाले
ने हाईट या वेट पूछा हो मरने वाले का.
ऐसे में जब डग डग
बेवकूफी और पग पग बेवकूफी का संसार सजा हुआ हो तब इसके लिए एक दिवस विशेष को
अप्रेल फूल के नाम पर बेवकूफियाँ कर हो हो कर मनाना कुछ समझ में नहीं आता. मगर फिर इस बेकरार दिल को मना कर करार दिला देते हैं कि मातृ दिवस, प्रेम दिवस, हिन्दी दिवस और न
जाने कौन कौन से दिवस..दिवस के नाम पर फल
फूल रहे ही हैं तो बेवकूफी ने ऐसी कौन सी बेवकूफी कर दी कि उसका दिवस न मनाया जाये.
बेवकूफियाँ न हों तो अकलमंदी
की औकात दो कौड़ी की रह जाये. जैसे की अगर सभी लोग भगवान हो जायें तो भगवान को पूजेगा कौन? भगवान को भगवान
बनाये रखने में पापियों का जो स्वर्णिम योगदान है, उसे देख कर तो भगवान
भी पापियों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते होंगे मन ही मन ...यह मेरा दावा है.
बेवकूफियों का एक
स्वभाव और भी है कि दूसरों की बेवकूफियाँ तुरंत उचक कर नजर आ जाती हैं और अपनी
बेवकूफियाँ अकलमंदी की पोशाक पहने नजर आती हैं. वो तो जब अपनी
बेवकूफी की पोशाक उतारती है, तब समझ में आता
है कि जिसे अपनी अकलमंदी समझ कर मोहा रहे थे दरअसल उन्हीं को देखकर सामने वाले
मुस्करा रहे थे.
कभी कभी लोग
गल्तियों और असफलताओं को बेवकूफी मान बैठने की भूल कर बैठते हैं. इनके बीच जो
झीनी सी लकीर है उसे न पहचान पाना भी एक बेवकूफी ही है जिसे लोग अपनी अकलमन्दी
मानते आये हैं. दरअसल गल्तियाँ
और असफलताएँ सीख लेने वाली चीजें हैं किन्तु बेवकूफियाँ मात्र बेवकूफियाँ होती हैं, इनको लीपा पोता
तो जा सकता है मगर सीखा कुछ नहीं जा सकता.
नोट बंदी इसका
जीता जाता एकदम ताजा तरीन उदाहरण है. उप्र की जीत से इसके प्रभावों को लीपा पोता गया..और बेवकूफों ने
तालियाँ बजाई...ये ही स्वभाविक हश्र है हर बेवकूफी का.
अब आज दिवस विशेष
पर अपनी बेवकूफी उजागर करती हुए यह उम्मीद करता हूँ कि जल्द ही लोग बेवकूफियों का
महात्म समझेंगे और एक दिवस बेवकूफी चिन्तन का भी घोषित होगा.
वह एक ऐसा दिन
होगा जिस दिन हम सब मिलकर समवेद स्वर में कहेंगे ..बधाई इस बेवकूफी
चिन्तन दिवस पर..आपकी चिन्ता ने एक और बेवकूफी को जन्म दिया है!!
-समीर लाल ’समीर’
अप्रेल २, २०१७ के भोपाल के सुबह सवेरे में प्रकाशित
#Jugalbandi #जुगलबन्दी
कैसी बात करते हैं समीर जी,अपनी बेवकूफियाँ कहीं सरे आम उद्घाटित की जाती हैं !पहुँचे हुये लोग ही ऐसा कर सकते हैं -हमारी हिम्मत नहीं .हम तो उनमें हैं कि बेवकूफ़ी कर और कुएँ में डाल.
जवाब देंहटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन सैम मानेकशॉ और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है।कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंमहोदय, आपने बेवकूफी की जो महत्ता बताई है प्रसंशनीय है । बिना बेवकूफी के बुद्धिमत्ता का कोई पूछ नहीं है । इसलिए कोई एक दिन बेवकूफी की भी होनी चाहिए । मुझे लगता है कि दुनिया का हर व्यक्ति बेवकूफ है । सभी बार बार बेवकूफी करते है, जो कम बेवकूफी करते हैं या सोच-समझकर कदम बढ़ाते हैं उन्हें ही हम अक़्लमंद कहते हैं । इस दुनिया का अस्तित्व ही बेवकूफी पर टिकी हुई है । इसलिए बेवकूफी पर लिखकर हम जैसे बेवकूफ को बेवकूफी का महत्व बताने के लिए आपने अपनी बेवकूफी को सुधार कर जो लेख लिखा है उसके लिए बहुत, बहुत धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंये दिवस वैसे भी अब ख़त्म होता जा रहा है ....
जवाब देंहटाएंसफलता एक ऐसा शब्द है, जो हमे समाज मे उचित न्याय और सम्मान प्रदान करता है । सफलता के बिना मनुष्य रंगहीन, गंधहीन, स्वादहीन पारदर्शी द्रव्य के समान है । यह शब्द बोलने में जितना आसान हैं इसकी यात्रा उतनी ही दुर्गम रास्तों से होकर जाती है ।
जवाब देंहटाएंलेकिन जो बाधाओं को चीरकर अपना मार्ग प्रस्त कर लेता है वही सफल व्यक्ति कहलाता है ।
आज संसार मे प्रत्येक व्यक्ति सफल होना चाहता है, सफलता कौन नही चाहता, जब किसी से सवाल करोगें की कौन- कौन सफल होना चाहता हैं । तो अनायास ही हजारों की संख्या मे लोग अपनी स्वीकृति दे देते हैं, अर्थात मेरे कहने का तात्पर्य है कि हर कोई आज सफलता की पायदान पर चढ़ना चाहता है । लेकिन सफलता के पायदान पर फिसलन कितनी है किसी को नहीं पता । खासकर युवा वर्ग की बात करे तो आज युवा कुछ ही पलों मे दिन-दूनी रात चौगुनी तरक्की कर लेना चाहता हैं,
awadheshvermashine.blogspot.com