मंगलवार, अप्रैल 04, 2017

एक किताब की तलाश


किताबों की दुनिया में शायद वेबकूफ इन्सानएक ऐसा विषय है, जिस पर सबसे कम लिखा गया होगा. एक अप्रेल को मन में कोतूहल का जागना स्वभाविक है कि आखिर क्या वजह होगी कि ज्ञानी लेखकों ने इस विषय पर अपनी कलम क्यूँ नहीं चलायी?
जब कोई उत्साहजनक उत्तर न मिला तब सोचा की खुद ही इस विषय लिख कर देखते हैं.
लिखना शुरु भी किया. एक दो पन्ने लिख भी दिये. फिर एकाएक लगा अरे ये क्या, यह तो मैं अपनी आत्मकथा याने आटोबायोग्राफी लिख रहा हूँ. घबराहट में तुरंत लेखन स्थगित कर दिया.
ये भी भला कोई उम्र है आटोबायोग्राफी लिखने की? अभी तो कितना कुछ करना बाकी है, कितना कुछ लिखना बाकी है. आँख बंद कर के सोचता हूँ तो हो चुके से ज्यादा न हो चुकी अभिलाषाओं का पलड़ा तीन गुना ज्यादा भारी लगा.
वैसे तो यह बची अभिलाषाओं का तीन गुना ज्यादा होना किसी भी उम्र के किसी भी व्यक्ति का सत्य है. इसका बची हुई उम्र से कुछ लेना देना नहीं होता.
अतः इस विषय पर लेखन उस समय तक के लिए टाल दिया जब तक की वाकई वाले बूढ़े न हो जायें.
वाकई वाले बूढ़े कौन होते हैं? यह किसी आयु में होते हैं? यह किन हालातों में होते हैं?
कोई यूं भी सोच सकता है कि ८०- ८५ बरस की उम्र में आदमी बूढ़ा हो जाता है..मगर जब शोध का चश्मा धारण करके देखा तो पाया कि आदमी अपनी नजरों में तो कभी बूढ़ा होता ही नहीं है.
यदि बीमारी हजारी के चुंगल में आकर ८० पार अक्षम ही हो जाये या किसी करनी के दुष्परिणामों से बचने के लिए मात्र बुढ़ापे की ढाल बची हो...तब ही आदमी अपने को बूढ़ा बताता है वरना मजाल है कि चाहे मर जायेंगे मगर बूढे न होंगे.
सोने पे सुहागा तब अगर बंदा कहीं से फिल्म जगत या राजनीति से जुड़ा हो..वैसे राजनीति भी फिल्म जगत ही तो है..जो नहीं है उसे दिखाने का भुलावा पैदा करना, तब ऐसे में ६० की उम्र पर तो पुरुष युवा होता है..
राजनीति में पुरुषों की मात्र तीन कटेगरी बताई गई है..बालक, लड़का और फिर युवा...लड़के हैं, लड़कों से गल्ती हो जाती है.. कहते कहते बाबू जी उस मार्ग दर्शक मंडल में शामिल हो जाते हैं..जिस मार्ग दर्शक मंडल के सभी उम्र दराज सदस्य भी परिपक्व एवं अनुभवी युवा ही कहलाते हैं..
इसके इतर अगर महिलाओं की बात करें तो मुझे कृप्या एक ऐसी महिला से मिलवा दिजिये जो अगर बिना प्रमाण पत्र न चैक होने की गारंटी होने पर अपनी दिली ख्वाहिश से अपनी उम्र बयां करे और वो ४० के ऊपर निकल जाये तो ये धरा फट जाये और मैं उसमें समा जाऊँ..अतः महिलाओं को मैं इस विषय से मुक्त रख रहा हूँ.  
तब कोई कैसे अपनी आटोबायोग्राफी लिखे जो लिखी ही बुढापे में जाती है...
ऐसे में बेवकूफ इन्साननामक उपन्यास आज तक नहीं आ पाया तो इसमें आश्चर्य कैसा?

-समीर लाल समीर   

4 टिप्‍पणियां:

  1. एक किताब की तलाश में तो पूरा जीवन गुजर जाता है

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरूवार (06-04-2017) को

    "सबसे दुखी किसान" (चर्चा अंक-2615)
    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    विक्रमी सम्वत् 2074 की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन बाबू जगजीवन राम और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  4. बहुत खूब ! कोई अपने आप को बूढ़ा कहलाना पसंद नहीं करता इसके पीछे कारण है, क्योंकि भीतर से किसी को ऐसा लगता ही नहीं, मन की कोई उम्र नहीं होती, ऐसे देखा जाये तो मन हजारों साल पुराना है पर फिर भी सदा ताज़ा...

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