चुनाव के बाद बस दो तरह के नेता बचते हैं. एक
जीते हुए और दूसरे हारे हुए.
आज जब बड़े दुखी मन से अपने तुरंत उप्र चुनाव
हारे दोस्त के घर मातम जताने पहुँचा तो वह तो उसी गर्म जोशी से मिले जैसे पहले
मिलते थे. नाई चंपी करके जा रहा था. नौकर जलेबी और समोसे की प्लेट के साथ गरमा गरम
चाय परोस रहा था. उन्हें देख कर लगा कि जैसे मैं चुनाव हार गया हूँ और वो मुझे
ढाढस बँधाने तैयार बैठे हैं. मुस्करा कर कहने लगे कि यार, पहले सरकार चलाने और फिर
इधर चुनाव के चक्कर में ही उलझे रह गये. परिवार के लिए वक्त ही नहीं मिला इसलिए कल
दुबई जा रहे हैं. परिवार के साथ छुट्टी मनाने १० दिनों के लिए. थोड़ा आराम भी तो
जरुरी है.
हम तो गये ही यह पूछने थे कि चुनाव हारने के
बाद अब क्या प्लान है? क्या कोई नया धंधा वगैरह तलाशेंगे? घर परिवर चलाने के लिए
कुछ न कुछ तो करना ही होगा? चुनाव में जब चंदा मांग रहे थे तभी हमें लग गया था कि
बंदा अपनी पूँजी चुक गया है,,वरना किसी से मांगने की क्या जरुरत? चुनाव में उनके
द्वारा उड़ाई रकम देख कर लगा था सारी की सारी पूँजी भी खर्च कर ही दी होगी. मगर आज उनका
हाल देखकर तो लगा कि चुनाव हार कर मानो लाटरी लग गई हो. बंदा सपरिवार दुबई जा रहा
है छुट्टी मनाने. हम तो विभाग से एलटीसी मिलने के बावजूद भी मात्र आगरा, जयपुर और
नैनीताल घूम पाये हैं छुट्टी मनाने.
अब गये थे तो पूछना भी जरुरी था कि भाई साहब,
लौट कर क्या सोचा है, क्या करना है?
कहने लगे कि करना क्या है? अगले चुनाव की
तैयारी करनी है..वाईफ को सत्तारुढ पार्टी ज्वाईन कराना है. बस और क्या!!
इस बार जरा सा चूक गये एक दो साथियों को
पहचानने में. अगली बार तो हम ही जीत रहे हैं..ग्राऊण्ड रिपोर्ट है हमारे पास...चाहो
तो शर्त लगा लो. ये जो जीते हैं न...इनकी कोई औकात थोड़े न है..वो तो हमारे अपने
साथी सेबोटाज़ न करते तो इनकी जमानत जब्त हो जाती. बाप बेटे की लड़ाई के चलते हमारे
शहर में अपने ही विद्रोही हो लिए.
हमने कहा चाहे जैसे भी जीते हों मगर उन्होंने
तो आपको और आपकी पार्टी को सिरे से साफ कर दिया. वे हँसने लगे – बोले, तुम्हें
राजनीति की समझ नहीं है. यहाँ न तो कोई सिरा होता है न ही कोई छोर, जो कोई किसी को
सिरे से खत्म करे और न ही चुनाव के बाद क्या होगा जैसी कोई सोच....जो भी ऐसी सोच
रखता है वो नेता हो ही नहीं सकता..
अगर नेता हो तो चुनाव में हारो या जीतो..नजर
अगले चुनाव पर ही होना चाहिये. जो बीत गई वो बात गई.
और हमारी या आपकी पार्टी जैसी अवधारणा भी मूर्ख
ही पालते हैं. नेता अजर अमर है. नेता मूल रुप से राजनिती की आत्मा है और पार्टी
शरीर. पार्टियाँ बदलती रहती हैं.
इनकी बात सुन कर मुझे याद आया कि कभी हमारे
गुरु जी ने न जाने किस संदर्भ में उदाहरण दिया था कि जरायम पेशा लोगों से यह पूछना
जेल से लौट कर क्या करने का इरादा है? वो भला क्या यह बतायेगा कि लौट कर साधु हो
जाऊँगा? उसका तो सीधा सादा एक जबाब होगा कि अगला असामी देखूँगा कि किसको निशाना
बनाना है. पकड़ा गया तो एक बार फिर जेल यात्रा. ये तो सतत प्रक्रिया है हमारे पेशे
की. विचार किया तो पाया कि दोनों पेशों के बीच है भी तो बहुत झीनी सी लकीर, जिसके
इस पार उस पार आना जाना भी सतत प्रक्रिया ही है. मानो भारत और बंग्लादेश की सरहद
हो.
एक सांस आती है. फिर एक सांस जाती है. इसके बाद
सांस आने का इन्तजार छोड़ दें क्या? नेता जी मुस्कराते हुए समझा रहे हैं..
नेता जी की सिंगापुर की टिकिट देने के लिए बंदा
आ चुका है.
क्या दुबई क्या सिंगापुर..विदेश तो विदेश है..नजर भी न गई इस ओर...
क्या दुबई क्या सिंगापुर..विदेश तो विदेश है..नजर भी न गई इस ओर...
-समीर लाल ’समीर’
#जुगलबन्दी #jugalbandi
#जुगलबन्दी #jugalbandi
जिधर बम उधर हम
जवाब देंहटाएंनेता किसी नहीं कम
जिधर बम उधर हम
जवाब देंहटाएंनेता किसी नहीं कम
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ’राजनीति का ये पक्ष गायब क्यों : ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
जवाब देंहटाएंअब ये तो नेता जी का प्रोफेशन है ... इस बार नहीं अगली बार ... उसको कैसे छोड़ दें ....
जवाब देंहटाएंसमसामयिक पोस्ट तश्तरी जी |
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (21-03-2017) को
जवाब देंहटाएंचक्का योगी का चले-; चर्चामंच 2608
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'