शनिवार, फ़रवरी 04, 2017

सुण भई..ओ बसंत...

आई बसंत बहार...लाई उमंग का त्यौहार.
कोई इसे उमंग, कोई खुशनुमा मौसम तो कोई इसे इश्क का मौसम बताता है. कवि बसंत का नाम सुन कर बौरा जाता है.. और एक हम हैं कि इस विषय पर कुछ कह पाने की योग्यता ही नहीं रखते. कारण शायद ये भी हो कि बसंत से दूर हुए दो दशक बीते और कनाडा में बसंत का अता पता ही नहीं होता..जब भारत बसंत मना रहा होता है तब हम खुद को -३० डीग्री तापमान को झेलते हुए बर्फ में ऑफिस जाने के लिए मना रहे होते हैं..
फेसबुकिया साहित्य का हाल यूँ है कि कोई इसे बसंत कहता है तो कोई वसंत..गनीमत यह हैं कि संत बरकरार है दोनों में..संत से छेडखानी बर्दाश्त न हो पाती..फिर एक बात और कि इश्क का कोई मौसम हो यह बात हमारे गले से उतरती नहीं है.
हम तो ऐसी इश्क की दुनिया के वाशिंदे हैं जहाँ बहारों को मौसम ही सदाबहार मौसम है.
आप खुद सोचें कि गरमी की तपती दुपहरी में पसीना बहाते, या बारिश में भीगते भिगाते कीचड़ से खुद को बचाते या ठंड में दाँत किटकिटाते कोई कैसे किसी से मिलने जाकर प्रणय प्रस्ताव रख सकता था? और उस जमाने में प्रणय प्रस्ताव बिना मिले रख पाना संभव भी न था...न सेल फोन होते थे न ये सारी तकनीकें...तब बसंत ही ऐसा मुफीद मौसम रहता होगा कि इन्सान हंसते मुस्कराते रंग बिरंगे माहौल में सुन्दर कपड़े पहने प्रेमिका से मिलने पहुँचता होगा और अपनी प्रणय अर्जी हाजिर करता होगा.. आसपास की नई खिलती कोपलें...इस प्रस्ताव पर मुहर लगाने को उकसाती होंगी ..प्रेमिका को..मगर आज?
आज तकनीकी ने इश्क के इतने सारे द्वार खोल दिये हैं कि दीवार बची ही नहीं..द्वार ही द्वार हो गये हैं. नेट पर हाजिर हरिद्वार,,, व्हाटसएप, फेसबुक, डेटिंग साईट, टेक्सटिंग, मैसेन्जर और जाने क्या क्या माध्यम हो गये हैं जिनके रास्ते आशिक चले आ रहे हैं. कभी बिहारी की नायिका साजन के आने का संदेशा सुनाने वाले कौव्वे की चोंच स्वर्ण से मढ़वा देने की बात करती थी..आज कौव्वे की जगह फेसबुक के मेसेन्जर पर साजन द्वारा मैसेज के टाईपिंग के दौरान विरहणी को दिखती बिंन्दियाँ या व्हाटसएप पर दिखता ’टाईपिंग’ ने ले ली है जो बता देती हैं कि साजन संदेशा लिख रहे हैं...ऐसे में कौव्वे का जीवों की विलुप्त प्राणियों में शामिल हो जाने का कोई संज्ञान नहीं ले रहा है, इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है. अब साजन के आने की आहट की बिन्दियों को स्वर्ण में मढ़वा देने का शिगुफा भी जल्द आता ही होगा..फेसबुक और व्हाटसएप भारत पर नजर गडाये हुए हैं....उसकी हर संस्कृति को पढ़ रहे हैं..कौन जाने!! करवा चौथ और छट जैसे त्यौहारों को मुख्य धारा में ले आने
टी आर पी वाला मीडिया कल को बसंत नहीं लेकर आयेगा..ये मैं नहीं मानता..वैसे सच कहें तो ले ही आया है...
अब तो इन्हीं तकनीकों ने ऐसी ऐसी सुविधा प्रद्दत करा दी है कि एक ही प्रणय प्रस्ताव दनादन दस जगह भेज दो..कहीं न कहीं से तो बसंत आ ही जायेगा. जहाँ पतझड़ दिखे, वहाँ ब्लॉक... वैसे आजकल तो बाजारवाद के युग में वेलेन्टाइन डे को भी बसंत से ही जोड़ दिया गया है. बाजार वाद मे गंदा है पर धंधा है का बोलबाला है...
एक तरफ बसंत में यू पी के चुनाव आ खड़े हुए हैं ..और बसंत के प्रताडित राहुल और अखिलेश आलिंगनबद्ध नजर आ रहे हैं..अब इससे ज्यादा बसंद का असर भला कहाँ दिखेगा..
अब बसंत आता नहीं..लाया जाता है..जहाँ स्माईली मिल जाये ..वहाँ बसंत!!
-समीर लाल ’समीर’

1 टिप्पणी:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "निजहित, परहित और हम “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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