सोमवार, जनवरी 23, 2017

जल्लीकट्टू और यू पी के चुनाव: दांव पर जनता


जल्लीकट्टू, तामिलनाडु में मनाया जाना वाला स्पेन जैसा बुल फाईटिंग का उत्सव, पर लगी रोक को लेकर इस मान्यता के लाखों समर्थक एकजुट होकर एक आंदोलन की शक्ल में सड़क पर उतर आये हैं. उनको एकजुट होकर उतरता देखना कई लोगों को सुनहरा अवसर सा नजर आया. श्री श्री रविशंकर और अन्य धर्म गुरुओं ने आव देखा न ताव, बस समर्थन उछाल दिया..शायद भक्तों की संख्या में वृद्धि ही उद्देश्य रहा होगा या ऊँचे लोग ऊँची पसंद की तर्ज पर कोई दूर की कौड़ी खेली हो, कौन जाने. बच रहे नेता जिन्हें इनके साथ खड़े होने में राजनितिक माईलेज मिलेगा, वो इनके साथ तुरंत खड़े हो गये और विरोध में नारा बुलंद किये हुये हैं.
समर्थक बता रहे हैं कि धार्मिक मान्यता है, इसे कोई कोर्ट कैसे रोक सकती है? भले ही ढ़ेरों लोग मर जायें इस प्रथा को जिन्दा रखने की जुगत में मगर कोर्ट की दखलन्दाजी नहीं चलेगी. जितने मूँह, उतने तर्क. कोई कहता है कि बैल को कंट्रोल कर लो तो स्वर्ग मिलता है. कोई कहता है कि कितनों की रोटी इसके इनाम से चलती है तो कोई कहता है कि बैल की विलुप्त होती खास प्रजाति के प्रति जागरुकता जगाने का यह एक महत्वपूर्ण प्रयास है ..एक ने तो हद ही कर दी जब उसने बताया कि देख्र रहे हैं न विपदायें आप?..अम्मा गुजर गईं, बाढ़ ने आ घेरा, चक्रवात ने कितनी जानें ले ली, सुनामी आया और जाने क्या क्या आ रहा होगा?
यह उत्सव होता रहेगा तो इन विपदाओं से हुये जान माल के सामने तो नगण्य सी संख्या में लोग मरेंगे और धन माल नुकसान भी न होगा. ऐसे ऐसे तर्क कि माथा पकड़ कर बैठ जाये इन्सान.
धार्मिक मान्यातायें अपनी जगह हैं मगर वक्त के साथ रितियों और कुरितियों में फर्क की समझ भी तो विकसित करना जरुरी है वरना तो आज भी सती प्रथा में स्त्रियाँ अपने पति की मृत्यु के साथ उसकी चिता पर जल रही होंती.
वैसे ऐसे नाजुक एवं भाड़काऊ समय का ठीकरा अक्सर प्रिंट और टेलीविजन मीडिया के मथ्थे आ कर फूटता है मगर इस बार ये दोनों ही पहले से सचेत होकर इसका तिलक सोशल मीडिया  में माथे लगा गये. कहा जा रहे है कि इस पूरे आंदोलन में सोशल मीडिया की विशेष भूमिका रही और उसी के चलते इसे रोके जाने के फैसले के विरोध मे इतने लोग इक्कठा हो गये.
हमें तो मालूम ही नहीं कि कैसे सोशल मीडिया पर यह जमावड़ा ऑर्गनाईज हुआ हांलाकि सोशल मीडिया  पर काफी सक्रिय हैं हम भी. मगर हो सकता है कहीं हुआ हो और हम चूक गये हों...ठीक वैसे ही जैसे प्रवासी दिवस पर जब साहेब ने घोषणा की कि मुझे सारे १००% अप्रवासी भारतीयों का समर्थन मिला नोट बंदी के लिए ..इसका मैं हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ.
न जाने किस अप्रवासी से पूछ कर यह दावा किया उन्होंने? न तो मुझे याद है कि मुझसे पूछा गया हो और मैं कम से कम तब से अब तक अपने सौ से अधिक भारतीय अप्रवासी मित्रों को फोन कर कर के पता करने की कोशिश कर चुका हूँ कि क्या तुमसे उन्होंने पूछा? सब कह रहे हैं कि क्या मजाक करते हो, वो हमसे बात करके तो देखें जो जली कटी सुनायेंगे कि पूछना भूल जायेगे? हमारे तो जो नोट हम इंडिया से साथ लाये थे वो ही डुबवा दिये..इतना तक नहीं सोचा कि यहीं एम्बेसी में एक काउन्टर खुलवा देते जमा करवाने के लिए...अब २०,००० रुपये जमा कराने भारत जायें तो १,००,००० रुपये तो आने जाने की टिकिट में लग जावेंगे...
खैर जुमलेबाजी तो उनकी आदत है..उनके हिसाब से सोचें तो सारा भारत ही उनके नोट बन्दी के समर्थन में है..चाहे बंदा एटीएम की लाईन में लगकर मर ही क्यूं न गया हो..
वैसे इस जल्लीकट्टू का तो जो अंजाम होगा सो होगा..मगर अब हमें इन्तजार है उस बुल फाईट का, जो स्पेन की तर्ज पर उत्तर प्रदेश में खेला जाने वाला है..
एक ओर चौड़े सीने वाला समर्थ बुल याने खालिस सांड...सर्वगुण एवं सर्व सामर्थय संपन्न...और उसके सामने उसे रोकने वाले...एक जुट हुए अनुभवी..गैर अनुभवी..अर्ध अनुभवी योद्धा... बुल फाईटर्स !! अब यह सामर्थ्यवान सांड यूपी की सड़कों पर उतरेगा...रोकने वाले अपने सामर्थय के अनुसार उसे रोकेंगे..मारेंगे...सांड अपने सिंग से निशाना साधता, कभी नोट को अमान्य घोषित करता और कभी योद्धा के खेमे में फूट डाल उनका चुनाव चिन्ह तक सांसत में डालता, जोर जोर से फुफकारता...उन्हें परास्त करने की जुगत में...कहीं तमाशबीनों को रौंदते हुए एक नया बखेडा ही न खड़ा कर दे...
कितने तमाशबीन अबके इस यूपी की बुल फाईट में मारे जायेंगे..और कितना यह योद्धा रोक पायेंगे और कितना ये सांड़ दौड़ पायेगा..जल्द आने वाला समय बतायेगा..
तय मानिये... भारत किस दिशा में जायेगा..इसका यह निर्णायक पल होगा..कोर्ट इस बुल फाईट में दखल नहीं देता...यह धार्मिक नहीं, राजनितिक मान्यता है.
सोशल मीडिया, इलेक्ट्रानिक मीडिया, प्रिंट मीडिया अपने हिसाब से मीडिया मीडिया खेलेंगे और भुगतेगा यह देश और आमजन!! चाहे बुल जीते या बुल फाईटर!!

-समीर लाल ’समीर’
भोपाल के सुबह सवेरे में प्रकाशित
http://epaper.subahsavere.news/c/16317390

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