परिवर्तन संसार का नियम है. जो कल था वो आज नहीं है और जो आज है, वो कल नहीं रहेगा. नित बदलाव ही जीवन
है. जो भी इस बदलाव की आँधी से
कदमताल नहीं मिला पायेगा वो बहुत पीछे छूट जायेगा और कालांतर में भूला दिया जायेगा.
इसे ऐसे समझिये जैसे कि
नवम्बर और दिसम्बर माह में आपने खुद को और लोगों को नोट बदलते देखा था. जिसने इसके साथ वक्त पर कदम ताल नहीं मिलाई वो अब पुराने
नोट धरे बैठा है और कालांतर में इनकी रईसी को लोग भूल जायेंगे.
बदलाव की बयार अलग अलग
क्षेत्र के हिसाब से अलग अलग होती है मगर होती जरुर है.
नोटों के बदलाव की बयार
थमीं भी न थी कि चुनाव के मौसम के आने की दस्तक के साथ आस्था और मित्रता के बदलाव
की बयार बह निकली. परिवार टूटने जुड़ने लगे, रिश्ते बदलने लगे, मित्र बदलने लगे. एक दूसरे के प्रति आस्थायें बदलीं. कोई इधर झुका था वो बदल कर उधर झुक गया. कोई उधर झुला था वो इधर झुक गया. उस दल वाले इस दल में चले आये तो इस दल के कुछ बदल कर उस दल
में चले गये.
कुछ तो दल बदलने के बजाये
दल के दलदल में पूरा दल ही धँसाये चले जा रहे हैं. पूरा का पूरा दल कभी इसके साथ तो कभी उसके साथ दिल्लगी कर
रहा है. दल न भी बदला हो तो दिल बदल
लिया. जो दल कल तक उस दल के साथ
गलबहियाँ कर रहा था वो आज इस दल के साथ कर रहा है. इसे गठबंधन कह कर पुकार रहा है. है तो बदलाव ही. जो अपने दल को कभी
दल नहीं जीवन शैली कहते थे वो वोंटों की थैली का वजन तौल रहे हैं और जो इसे विचार
धारा मान कर चलते थे, उनके विचार कहीं ताक पर धरे
रह गये हैं. सबका उद्देश्य मात्र इतना ही कि सत्ता कबजिया लें किसी भी तरह से. दलबदली, दिलबदली सब जायज है सत्ता
के सियासी खेल में.
इसी बीच दिल्लगी का त्यौहार
वेलेन्टाईन डे भी पड़ जायेगा. इस मौसम का फायदा उठाते हुए
लाखों दिल बदलेंगे, और लाखों दिल लग लेंगे. यूँ तो प्रेम में दिल लगाना, बदलना, टूटना सालों साल फुटकर में
यहाँ वहाँ चलता ही रहता है मगर वेलेन्टाईन डे इसी का एक मेला जैसा स्वरुप है जहाँ
महा सेल सा होल सेल में दिल लगने, टूटने कौर बदलने का कारोबार
होता है, ठीक वैसे ही जैसे दलबदल और
दिलबदल की राजनितिक प्रक्रिया यूँ तो नित खुदरा तौर पर चलती रहती है मगर चुनाव के
उत्सव के दौरान होल सेल में यही खेला देखना नित नये अनुमानों को जन्म देता है.
जिसका सत्ता में आना कल तक
तय माना जा रहा था, आज, इसी दलबदल और दिलबदल के चलते, शंका के दायरे में खड़ा है और शायद कल एक नया दिल लगे, एक नया दलबदल हो और फिर कोई नया अनुमान सत्ता पर काबिज होता
दिखे.
सियासी खिलाड़ियों से इतर आम
जनता तमाशबीन बनी बदलाव की इन कहानियों को नित बदलता देखती रहेगी बस इस आशा में कि
शायद उनकी किस्मत भी बदले..कभी इस बदलाव की बयार में...
मगर आम जनता का डीएनए, विकासशील संसार के डीएनए से कभी मैच करता ही नहीं..और हाय रे उसकी किस्मत, बदलती तो है मगर बस दुर्गति की गति!!
ये वैसा ही बदलता शाईनिंग
इंडिया है जो आठ बड़े शहरों की जगमग से निर्धारित होता है वरना तो आज भी न जाने
कितने शहर नित सड़कों को गहरे से और गहरे गढ्ढों में परिवर्तित होते देखने के लिए
अभिशप्त है.
-समीर लाल ’समीर’
#Jugalbandi #जुगलबन्दी
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "कैंची, कतरन और कला: रविवासरीय ब्लॉग-बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंसब कुछ होते हुए भी महान है अपना देश ...
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (24-01-2017) को "होने लगे बबाल" (चर्चा अंक-2584) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'