किसी भी देश, संस्था, प्रोजेक्ट या यहाँ तक कि एक
घर को भी सुचारु रुप से चलाने के लिए बजट अत्याधिक उपयोगी साबित होता है. इसके इस्तेमाल से भविष्य की योजना बनाई जाती है कि आने वाली
एक अवधि में क्या क्या खर्च करना है और इसके लिए आय के क्या क्या साधन होंगे. क्या सारे सोचे गये खर्च उपलब्ध आय से करना संभव हैं या आय
के स्त्रोत बढ़ाने होंगे या किसी पूँजीगत व्यय, घरेलु स्तर पर देखें तो कार खरीदने या मकान बनाने के लिए
लोन लेना होगा तो उस पर आये ब्याज और वापसी का क्या इन्तजाम रहेगा आदि आदि.
मगर सब कुछ इतना सीधा सीधा और सरल सरल होता तो हमारी व्यवस्था से
यह कब का गायब हो चुका होता. हमारी व्यवस्था में सीधा
इन्सान अपनी हैसियत नहीं बचा पाता तो इस बजट की क्या औकात?
हमारी सरकार का बजट घोषणा
दिवस जहाँ एक तरफ तो हमारे उत्सवधर्मी देश में उत्सव सा माहौल लाता है मानो पूरा
देश इसी दिन का इन्तजार कर रहा हो. वहीं दूसरी तरफ इसकी घोषणा
के दौरान इस्तेमाल की गई शब्दावली पूरे देश की १% से भी कम आबादी सही मायने में समझ पाती होगी, यह मेरा अनुमान है. सच सच कोई कहता नहीं मगर कितने लोग जीडीपी, बैलेन्स बजट, बजट डेफिसिट, बैलेस ऑफ पेमेन्ट, करन्ट एकाउन्ट
डॆफिसिट, फिसिकल डेफिसिट जैसे बड़े
बड़े कान्सेप्ट समझते हैं?
यही नासमझी सरकार को एक
बहुत बड़ा मौका लगता है कि जब जनता पूछेगी तो उसे पूछने वाले के हिसाब से समझा
देंगे कि नोट बंदी की वजह से भले करंट डिफिसिट बढ़ा हो मगर लॉगटर्म जीडीपी में
इजाफा होगा. अब समझने वाला हाँ न करे तो
क्या करे, खुद को बेवकूफ घोषित करवाये?
मैने नेता जी से कहा कि आप
इसका सही मायने आमजन से छिपा कर उन्हें भ्रमित कर रहे हैं- वो एकदम से उखड़ पड़े कि अव्वल तो हमें खुद ही ज्यादा नहीं
समझ आया, फिर भी किसी तरह से समझा तो रहे हैं. अब एक दो तथ्य गायब भी हो जायें तो क्या फरक पड़ता है, जबकि यह बजट की स्पेलिंग में पढ़ते समय पढ़ा गया डी ही बोलते
समय गायब है..कल को कहोगे कि बडगट(Budget) क्यूं नहीं बुलाते हैं इसे?
मगर बजट का बेजा इस्तेमाल करना कोई हमारी सरकारों से सीख ले
और मीडिया भी उसे तरह तरह के फ्लेवर दे कर नये नये नाम दे कर टी आर पी बटोरता रहा
है..कभी लॉलीपॉप बजट, कभी लोकलुभावन बजट, कभी रॉबिन हुड बजट और
हाल ही सुना कि चुनाव के मद्दे नजर बजट ही जल्दी घोषित करके वोट बटोरने की जुगत
जुटाते बजट को लारीलप्पा बजट बताया गया..
और जल्दी बजट घोषित करके
सत्तासीन सरकार जाने क्या साबित करने की जुगत में लगी है? नोटबन्दी, कैशलेस सोसायटी, भीम, पेटीएम सब पर लाईट मंदी कर
अब बजट पर रोशनी फेकने की तैयारी है चुनाव में. वैसे मेरी हैसियत अगर प्रशान्त किशोर, राजनीति विशेषज्ञ की
सी होती तो मैं सरकार समझाता कि बजट जल्दी घोषित करने की बजाये बजट में क्या आने
वाल है उसको लीक करते तो ज्यादा फायदा मिलता शायद..फायदा से यहाँ मतलब दुर्गति की
कम दुर्गति..वरना तो आप नोटबन्दी से अपना भविष्त तय कर ही चुके हैं. इश्वर करे
मेरी सोच गलत साबित हो भक्तों..मगर लगता तो यही है..
बोलना और समझाना तो हमेशा
की तरह मन मर्जी का ही है, जनता तो बजट समझने से रही. बजट जल्दी घोषित करने का एक भी जायज कारण सरकार बता दे तो
उस बजट को समझाने के सारे झूठ शिरोधार्य होंगे. मगर ये एकतरफा संवादी सरकार...रेडियों से मन की बात बोलने वाली सरकार..ऐसे कैसे कारण
बतायेगी.. जब आज तक यह भी नहीं बताया कि हमें चुहिया चाहिये थी तो पहाड़ क्यूं खोदा
नोटबंदी करके.
जैसे रहनुमा करेंगे वैसे ही
उन्हें फॉलो करने वाले करेंगे...एक दिन देखा कि
भिखारी भीख माँग रहा है और साहेब ने दुत्कार दिया..अभी बजट नहीं है..अगले बरस आना...
स्कीम पसंद आई..बीबी का फोन आया कि एक सोने का हार बहुत पसंद आ रहा है, ले लूँ? हमने भी कह दिया कि अगले
साल ले लेना..इस साल बजट नहीं है. सीए की बीबी, भला ऐसा तर्क सुनती क्या? वो खरीद लाई और हमसे कह दिया कि बजट डिफिसिट में डाल देना
यह खरीदी...
हम भला बनाये भी तो क्या
बनायें घर का बजट..हमारे घर में आम जनता नहीं..सीए की बीबी और बच्चे रहते हैं!!
इनके वोट की चिन्ता न
करें..ये भारत के वो संभ्रान्त वर्गीय हैं जो वोटिंग के दिन पिकनिक पर चले जाते
हैं.
समीर लाल ’समीर’
#Jugalbandi #जुगलबन्दी