जात न पूछो साधु की,पूछि लीजिए
ज्ञान।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान ।।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान ।।
ये तो थे कबीर..जो आज से ६०० साल पहले
इतना कुछ लिख गये जो आज तक प्रासंगिक है. कबीर दास पक्के में फकीर थे- कहन से भी एवं
पहनावे और रहन सहन से भी। उन्हें कभी यह कहने की जरुरत नहीं महसूस हुई कि मैं फकीर
हूँ. जो भी उन्हें देखता, सुनता, जानता –वह स्वतः ही उनके फकीर होने को जान लेता.
नये जमाने के फकीर तो चीख चीख कर कहते
हैं कि मेरा क्या है, मैं तो फकीर हूँ. तब मात्र हँसी के और कुछ सूझता ही नहीं. कई
बार गुगल पर जाकर फकीर का अर्थ जानने की कोशिश की. अनेक ग्रन्थ पढ़ डाले मगर फकीरी
के जितने भी सांचे मिले, किसी में भी यह स्वयंभू फकीर फिट ही नहीं होता. अहम
ब्रह्मा के भाव चेहरे पर लिए, हर विरोध का उपहास करते हुए नये फकीर नई नई परिभाषा
गढ़ने में लगे हैं...
कालजयी ज्ञान को खुद के लिए धता बताते
हुए और दूसरे के लिए जरुरी ठहराते हुए जाने कौन सी एक नई दुनिया का ढोल पीट रहा है
यह फकीर.
सच्चे फकीर कबीर कहते थे:
निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय,
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे
सुभाय।
और नये स्वंयभू फकीर हर निन्दक को देश
द्रोही ठहरा कर पाकिस्तान जाकर बस जाने की सलाह देने वाले दोहे सुना रहे हैं.
आलोचक का नया अर्थ देश द्रोही बता रहे है.
नया फकीर स्वयं रचे नये दोहे पर कभी
नाचता है, कभी विदेश जाकर ड्रम पीटता है, कभी मंच से आंसू बहता है तो कभी ताली पीट
कर आँख नचा कर कुटिल मुस्कान से नवाजता है.
मुझे कतई आश्चर्य न होगा कि कल को
फकीरी की भी एक नई परिभाषा घोषित कर दी जाये और पुराने सारे सच्चे फकीर देश द्रोही
घोषित कर दिये जायें.
दोहों में बदलाव लाया जा रहा है. बदलाव
नित दिनचर्या का अंग बना दिया गया है. कल जो नियम थे वो आज नहीं है और जो आज हैं
वो कल नही रहेंगे. बस, एक अड़धप का माहौल.
सूत्र मात्र एक अंग्रेजी का:
If you can’t convince someone, confuse him!!
याने कि अगर सामने वाले को आप अपनी बात
समझा नहीं पा रहे हो तो उसे कन्फूज कर डालो.
खैर इधर तो खुद को ही अपनी बात न समझा
पाने वाला इसके सिवाय करे भी तो क्या करे.
आज फिर एक दोहा बदला गया..
बाप न पूछो साधु का, गुरु का लिख दो
नाम
पासपोर्ट दे दो उन्हें ताकि विदेश करें
प्रस्थान..
अब यह कौन निर्धारित करेगा कि साधु संत
कौन है? उसकी परिभाषा क्या है? कौन साधु संत होने का प्रमाण पत्र देगा.. जाने कौन
कौन साधु संत बन कर विदेश निकल लेंगे.
एक नया परिवर्तन...एक नया युग..एक नया
दोहा..
आज फिर नया फकीर कहीं नाचेगा है अभी...
-समीर लाल ’समीर’
अच्छी धार है व्यंग की ... पर सच कहूं तो आज के युग में अगर कोई फकीरी के करीब है, झुण्ड में अलग है तो वाही है ...
जवाब देंहटाएंLaajawaab
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंमारक और सटीक व्यंग।
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