शनिवार, दिसंबर 17, 2016

लैस कितना ज्यादा



यह उस भक्तिकाल की बात है जब भक्त का अर्थ होता था प्रभु की सेवा में रत. भगवान की पूजा अर्चना करके भक्त अपनी भक्ति भाव को प्रदर्शित करते थे.

वक्त को सबसे बलवान माना गया है, वो कितना कुछ बदल देता है. बन्दर को मनुष्य बना कर दिखा देता है.यह अलग बाद है कि एक जमात इतनी सदियों बाद भी स्वभाव और हरकतों से बन्दर ही रह गई. उस पर से आमजन का दुर्भाग्य यह कि वो उन्हीं को अपना रहनुमा चुन कर उस्तरा थमा देता है. ऐसे में वो बन्दर आमजन का सिर नहीं मूढ़ेंगे तो करेंगे क्या? यही उनका स्वभाव है. इसमें शिकायत कैसी?

वक्त के साथ बदलाव की बयार ऐसी चली कि भगवान के भक्त पाखंडियों की कतार में लगा दिये गये और भक्त शब्द पर कब्जा किसी खास आका के अनुयायिओं का हो गया. इनका भक्ति भाव प्रदर्शन करे का तरीका भी पूजा अर्चना से बदल कर अभक्तों को गाली गलौच करने में बदल गया.

आभाव, जिसे अंग्रेजी में लैस पुकारा गया, का प्रभाव भी बदलते वक्त के साथ ऐसा हुआ कि जिस क्लॉथ लैस को कभी निवस्त्र या नंगा कहा जाता था वो फैशन का परिमाण बन गया. जो कभी शेम लैस माना  जाता था वो आज बोल्ड की परिभाषा बन गई.

नये युग को नई की पहचान देता, हर तरफ लैस ही लैस का परचम लहराने लगा है. लैस कभी इतना ज्यादा हो जायेगा, इसकी उम्मीद न तो लैस ने की होगी और न ही मोर ने.  

कारों में की लैस एन्ट्री, ड्राईवर लैस कारें, पेपर लैस दफ्तर, पल्युशन लैस वातावरण, वर्कर लैस एसेम्बली लाईन (रोबोटिक्स), कमिटमेन्ट लैस रिलेशनशीप, पॉयलट लैस हवाई जहाज, फीमेल/ मेल लैस कपल आदि आदि न जाने कितने सारे लैस.

हिदी मे लिखे जा रहे इस आलेख को भी आप इत्मिनान से हिन्दी लैस आलेख कह सकते हैं. ब्लेम लैस भला मैं कैसे बच कर निकल सकता हूँ मगर मजबूरी है क्या करें? जिस देश की राज भाषा हिन्दी होते हुए भी, हिन्दी दिवस हिन्दी लैस हो गये हैं, हिन्दी दिवस पर कवियों को सम्मान पत्र अंग्रेजी में दिये जा रहे हैं. राष्ट्र विकास की अधिकतर योजनाओं के नाम हिन्दी लैस हुए जा रहे हैं- मेक इन इन्डिया हो, डिजिटल इन्डिया हो, स्मार्ट सिटी हो या कैशलैस सोसाईटी की अवधारणा.  सभी हमारे हिन्दी लैस हुए जाने की चुगली कर रहे हैं.   

कैश लैस सोसाईटी तो खैर जब होगी तब होगी लेकिन फिलहाल तो कैश लैस एटीम, कैश लैश बैंक, कैश लैस आमजन की जेबें हैं. एक उम्मीद कि जिन राजनितिक दलों को नोटबंदी बंदी के पूर्व संज्ञान में न थी, वो भी कैश लैस हो जावेंगे तो शायद भ्रष्टाचार के मूल चुनावों में नोटों की ताकत में कुछ कमी आये, मगर वो भी कानून में संशोधन ला कर नेस्तनाबूत  कर दी गई. अब राजनितिक जितना चाहें, उतना पुराने नोटों में जमा करायें, बीस हजार के नीचे का दान जितना मरजी नगद में दिखाये, कोई पूछताछ न होगी. याने एक बार फिर उस्तरे से आमजन को ही मूढ़ा गया हमेशा की तरह.

जाने कौन सी परिकल्पना को अंजाम देने की तैयारी है, ये तो वो ही जाने मगर एक आमजन के दिल में तो बस यही तमन्ना है कि वक्त एक ऐसा चमत्कार कर दे कि सरकार पॉवर लैस हो, फिर अपने आप करप्शन लैस सोसाईटी से लेकर विकसित देश की अवधारणा तक पूरी होने में वक्त नहीं लगेगा. कैश लैस सोसाईटी तो बहुत छोटी सी बात है.   

-समीर लाल ’समीर’

4 टिप्‍पणियां:

आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है. बहुत आभार.