इतनी अफरा तरफी, हाहाकार, परेशानियाँ, व्यापार का अरबों का नुकसान, थमा
सहमा कतारों में खड़ा भारत, पेटीएम का फायदा, पहले से बंद
भारत को ही फिर और बंद करने की विपक्षियों की जुगत, भक्तों की भक्ति की परीक्षा
(सब अव्वल नम्बर से पास कहलाये), अभक्तों की साफ साफ पहचान (कुछ जो सरेन्डर हो गये
वो ग्रेस मार्क से पास माने गये, बाकी के सब फेल और स्पेशल केस में नीतिश गुड
सैकेण्ड क्लास से पास घोषित).
संभाले नहीं संभलते हालात, नित बदलते नियम, अदूरदर्शिता और अहम
ब्रह्मा की खुले आम नुमाईश, हड़बड़ी में लिए गये सभी स्वमेव फैसले, मगरमच्छीय आँसूं
और हड़बड़ाहट में छपते नकली जैसे असली और असली जैसे नकली नोट और अंततः एक
समझौता..सभी मित्रों और दलों के साथ...सब खुश हो जाओ..हम सब एक ही जमात के हैं फिर
आपस में कैसा मनमुटाव.
एक आम प्रोजेक्ट का नियम..ये प्रोजेक्ट मेरा है जब तक सब
बढ़िया चल रहा है...और मेरा ही रहेगा अगर सफल हो गया तो....जैसे ही फेल होने लगो तो
पूरी टीम को शामिल कर लो..कि ये प्रोजेक्ट सबका है..तीम एफर्ट से ही प्रोजेक्ट
चलता है जैसा ज्ञान बांटने लगो, फिर फेल हो तो फेल..पास हो तो पास...मेरा क्या?
पूरा निचोड़:
१००० और ५०० के पुराने नोट बंद करके उसके बदले नये ५०० और २००० के नोट
आ गये हैं. आपके पास अगर कालाधन है, जिस पर महिलाओं को रुपये २५०००० तक की छूट है
तो उसे बैंक में जमा कर उस पर ५०% आयकर अदा कर दें तो बाकी का एकदम सफेद हो
जायेगा. बाकी लोग पुराने बंद नोट अपने खाते में जमा कर दें और नये नोट में
परिवर्तित कर लें.
इसमें बस एक लाईन और जोड देते कि पुराने ५०० और १००० के नोट ३१
दिसम्बर के बाद मान्य नहीं होंगे तो सारा टंटा ही खत्म हो जाता.
अब उस ५०% से गरीब कल्याण योजना चलाओ या बजट में से गरीब कल्याण योजना
के लिए आवंटन घोषित करो, जो इसी टैक्स की रेवन्यू से घोषित होता है, क्या फरक पड़ता
है? मगर दिल बहलाने के लिए गालिब ख्याल अच्छा है. गरीब को भी अच्छा लगेगा और जो उन
योजनाओं का संचालन करेगा, उसे भी. लुटेरे का धन था तो उसे लूट लेने में ग्लानी
कैसी?
इतनी सी बात और ढोल मजीरा सारे जहाँ का.
और सीना तना रहे इस हेतु:
देखो, एक और आखिरी मौका दे दिया है उस ८ नवम्बर के आखिरी मौके के बाद.
संभल जाओ वरना बाद में मैनें पकड़ा न तो छोडूँगा नहीं..८५% ले लूँगा?
अरे महाराज, जो काला है जो चोरी से छिपा कर रखा गया है और जिसे आप पकड़
रहे हैं, उसमें से १५% किस बात के लिए छोड़ रहे हैं??
काला धन छिपा कर रखने के लिए जो जगह लगी उसका किराया तो बनता है न
जी..इसलिये!
बस, अंत में गालिब की जुबां:
थी खबर गर्म के
ग़ालिब के उड़ेंगे पुर्ज़े ,
देखने हम भी गए थे पर तमाशा न हुआ
देखने हम भी गए थे पर तमाशा न हुआ
-अब इन्तजार
अगले तमाशे का!!
-समीर लाल
’समीर’
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा आज शुक्रवार (02-12-2016) के चर्चा मंच "
जवाब देंहटाएंसुखद भविष्य की प्रतीक्षा में दुःखद वर्तमान (चर्चा अंक-2544)
" (चर्चा अंक-2542) पर भी होगी!
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'