मंगलवार, अप्रैल 23, 2013

मैं वही अँधेरों का आदमी…

ss

 

तुमने छुड़ा कर हाथ मेरा

जो पीछे छोड़ दिये थे अँधेरे

उनसे अभ्यस्त होती मेरी ये आँखे

आज जरा सी टिमटिमटाहट से

उस दीपक की, जो बुझने को है अभी

चौंधिया जाती है...

और मेरा बाँया हाथ....

जिस ओर बैठा कर थमवा दिया था हाथ

उस ब्राह्मण ने मेरा तुम्हारे हाथ में

ये कहते हुए कि हे वामहस्थिनी!!

जगमग होगा भविष्य तेरा

शायद कहा होगा चन्द रुपयों की चाहत में

दक्षिणा स्वरुप कि जी सके वो

और उसका परिवार उस रोज..

हाँ, वही बाँया हाथ आज बढ़ उठता है

बुझाने उस त्य़ँ भी बुझती लौ को दीपक की...

और बुझा करके उसे

खुद जल कर रोशन हो उठता हूँ मैं

जगमग जगमग बुझ जाने को

मगर खुद की रोशनी में अचकचाये

आँख मिचमिचाता मैं

उठा लेता हूँ एक पत्थर

उसी बाँये हाथ से...

फोड़ देने को दर्पण...जो सामने है मेरे

कि खुल सकें ये आँखें..

देखो....यही तो तुम कहती थी कि

कितना अजीब है

यह अँधेरों का जहान...

नहीं बर्दाश्त कर पाता

खुद का रोशन होना भी!!

-मैं फिर खो जाता हूँ अँधेरों में..

मैं हूँ ही अँधेरों का आदमी...

न बर्दाश्त कर पा सकने वाला, खुद के साये को भी!!

-समीर लाल ’समीर’

45 टिप्‍पणियां:

  1. रचना तो अच्छी है ,परन्तु आप तो ऐसे न थे !!!!!

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  2. मैं आदमी अंधेरे का बिखेरता प्रकाश रहूं
    टुकड़े टुकड़े होकर बस रुप बदलता रहूं
    खुदा ने चाहा तो फिर मिलेंगे...
    उम्मीद की एक किरण- चमक बाकी हैं कहीं..

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  3. ये भी एक जद्दोजहद है खुद से ही.....

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  4. अजीब सी कशमकश है जीवन में ...

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  5. ek achchhi kavita , baav waali padhvaane kae liyae aabhar

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  6. मन के अंधेरे को सटीक अभिव्यक्त किया है, शुभकामनाएं.

    रामराम

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  7. साधू साधू। आपके अपने अंदाज में...आभार

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  8. साधू साधू। आपके अपने अंदाज में...आभार

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  9. आजकल व्यवस्तता बढ़ गयी है क्या जी?ु

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  10. :-(

    गहन भाव लिए हुए कविता........
    मगर क्यूँ??
    चलिए बढ़ें उजालों की ओर....
    :-)

    सादर
    अनु

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  11. अँधेरे हमें आज रास आ गये हैं ....???

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  12. अंधेरा तो तभी आ गया जब उन्होंने हाथ छुड़ाया ... फिर जब अब्यस्त हो जाए इंसान हो सोचनी बर्दाश्त नहीं होती ...
    गहरी सोच लिए है रचना समीर भई ..

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  13. कहां बिज़ी रहते हो आजकल ... ब्लॉग पर तो नज़र नहीं आते ... क्या मस्ती चल रही है जिंदगी में ... भाभी को प्रणाम ...

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  14. बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति सर! एक पल के लिए मन को व्यक्तिगत रूप से अपरिचित एक अँधेरे कमरे में ले गयी. खूबसूरत रचना.

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  15. मन के उद्गार - सुन्दर अभिव्यक्ति.

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  16. अँधेरे से अँधेरे की ओंर ...
    बहुत खूब .

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  17. भीतर के अँधेरे में एक अजब सा अपनापन है।

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  18. बहुत गहन अभिव्यक्ति ...!!इंसान का अहम उसे कहीं का नहीं छोडता ...!!

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  19. नैराश्य का यह कैसा अहसास.
    फिर चाहे वो कविता में ही क्यों न हो ?

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  20. सुंदर अभिव्यक्ति. जबलपुर में एक बड़ी सी होर्डिंग लगी थी जिसमे लिखा था मेरे पीछे आओ अन्धेरे से उजाले की ओर ले चलूँगा.

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  21. अभी इन दिनों ही आपकी याद आ रही थी -आशंका थी कुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा है क्या ?
    आज ये कविता देख दिल को कुछ तसल्ली हुयी कि बीमार का हाल अब कुछ अच्छा है -गेट वेळ सून

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  22. आपकी यह प्रस्तुति कल के चर्चा मंच पर है
    कृपया पधारें

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  23. बेहद दार्शनिक लहजे में मन की बात कह दी ....

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  24. आज की ब्लॉग बुलेटिन गुरु और चेला.. ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  25. वैसे आप'अँधेरों के आदमी'तो नहीं हैं-कभी-कभी की बात है ये तो!

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  26. बानगी अहसासो की उस रुप में जो आधार है कविता का... :)

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  27. कभी कभी भीतर का अँधेरा ही हमें बहुत कुछ समझा जाता है .. बहुत सुन्दर दादा ...
    बादही दिल से ..

    विजय

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  28. बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति ...

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  29. अँधेरे से चले उजाला की ओर-कविता सुन्दर है:
    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
    latest post बे-शरम दरिंदें !
    latest post सजा कैसा हो ?

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  30. तुम्हे ज़िंदगी के 'अँधेरे' मुबारक,
    उन्हें तो 'उजाले' ही रास आ चुके है !

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  31. नहीं बर्दास्त होता खुद का रोशन होना भी |
    पंक्तियों की निराशा ने ह्रदय में घर सा कर लिया |
    इतनी शशक्त पंक्तिया जो ह्रदय में स्थान बना लें , शायद इसे ही कविता कहते हैं |
    http://utkarshita.blogspot.in

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  32. मन के उद्गार -बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति.

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  33. आपकी बाकी कवि‍ताओं से कुछ हटकर लगी यह कवि‍ता. सुंदर.

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  34. मैं हूँ ही अँधेरों का आदमी...

    न बर्दाश्त कर पा सकने वाला, खुद के साये को भी!!

    ...दिल को छूती बहुत भावपूर्ण रचना...

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  35. बढ़िए अंधेरे से उजाले की ओर ..... गहन अभिव्यक्ति

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  36. बेहद सटीक और शानदार प्रस्तुति | आभार

    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

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  37. आईने से कब तलक तुम अपना दिल बहलाओगे
    छायेंगे जब जब अँधेरे खुद को तनहा पाओगे

    फिजिक्स का फंडा है...ऑब्जेक्ट तभी दिखता है जब उस पर लाइट पड़ती है...जो अँधेरे में भी रह ले... वो महावीर हो जायेगा...

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  38. बेहद खूबसूरत तथ्य पूर्ण और प्रेरणा दायक है आपकी
    कविता ।।।।।

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आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है. बहुत आभार.