इधर कुछ व्यक्तिगत विवशतायें बाध्य करती रहीं कि कुछ न लिख पाऊँ और उधर स्नेही अपने हिसाब से मेरे विषयक आलेख छापते रहे. भाई अख्तर खान आकेला ने छापा और एक अलग अंदाज में भाई जाकिर अली रजनीश जी ने भी जनसंदेश के ब्लॉगवाणी स्तम्भ में छापा. अभिभूत होता रहा उनके स्नेह से और समयाभाव के बीच उतर आई एक गज़ल, तो पेश है आपकी नजर! इस गज़ल को प्राण शर्मा जी का आशीष प्राप्त है.
कब्ज़ियत से जब हुआ बीमार मेरे दोस्तो
तब निकल आये हैं ये उदगार मेरे दोस्तो
जीत कर इक खेल की अब ` वार ` मेरे दोस्तो
देश भर में मन रहा त्यौहार मेरे दोस्तो
फिर अजब दीवानगी का दौर है अब हर तरफ
खेल कैसा बन गया व्यापार मेरे दोस्तो
किस कदर जीवन बिके बेमोल सा बाज़ार में
आदमी ही बन गया हथियार मेरे दोस्तो
ये निशानी थी कभी ईमान की या धर्म की
खादी में हैं घुस गये गद्दार मेरे दोस्तो
एक अन्ना ही बहुत है क्योंकि उसके सामने
झुक गयी है देश की सरकार मेरे दोस्तो
भ्रष्ट खुद हो और जो दे साथ नित ही भ्रष्ट का
दंडनीय हैं दोनों के किरदार मेरे दोस्तो
गंध मुझको मिल सके सोते हुए या जागते
उस चमन की अब रही दरकार मेरे दोस्तो
चंद काँटे तो चुभेंगे फूल चुनने को " समीर "
पाप जड़ से ही मिटे इस बार मेरे दोस्तो
-समीर लाल ’समीर’
भ्रष्ट खुद हो और जो दे साथ नित ही भ्रष्ट का
जवाब देंहटाएंदंडनीय हैं दोनों के किरदार मेरे दोस्तो
लाजवाब!
"समीर" जी इस गजल का तो जवाब ही नहीं है!
जवाब देंहटाएंरोचक भी है और सटीक भी!
--
आपके दिये दोनों लिंको पर भी अभी जाता हूँ!
यह तो आपकी काबिलियत का प्रचार है| फुल चुनने में काँटों का लगना तो जायज है | अच्छी गजल मुबारक हो ............
जवाब देंहटाएंएक अन्ना भी कुछ ना कर पायेगा
जवाब देंहटाएंभ्रष्टाचार का दानव बहुत मज़्बूत है दोस्तो
चंद काँटे तो चुभेंगे फूल चुनने को " समीर "
जवाब देंहटाएंपाप जड़ से ही मिटे इस बार मेरे दोस्तो
..वाह!
लाजवाब गजल
जवाब देंहटाएंआभार
आज के हालात को बयाँ करती गज़ल !
जवाब देंहटाएंये कब्जियत बड़ी बुरी चीज है। जज्ब ही जज्ब किए जाती है। पर इस के बाद कभी कभी पेचिश भी देखने को मिलती है।
जवाब देंहटाएंचंद काँटे तो चुभेंगे फूल चुनने को " समीर "
जवाब देंहटाएंपाप जड़ से ही मिटे इस बार मेरे दोस्तो
वाह क्या बात है.... बहुत खूब! ग़ज़ल के माध्यम से बेहतरीन सन्देश दिया है आपने...
निश्चय ही काँटे चुभेंगे,
जवाब देंहटाएंफूल चुनना ही पड़ेगा।
चंद काँटे तो चुभेंगे फूल चुनने को " समीर "
जवाब देंहटाएंपाप जड़ से ही मिटे इस बार मेरे दोस्तो
bahut sahi kaha
ये निशानी थी कभी ईमान की या धर्म की
जवाब देंहटाएंखादी में हैं घुस गये गद्दार मेरे दोस्तो
गंध मुझको मिल सके सोते हुए या जागते
उस चमन की अब रही दरकार मेरे दोस्तो
चंद काँटे तो चुभेंगे फूल चुनने को " समीर "
पाप जड़ से ही मिटे इस बार मेरे दोस्तो
bahut khubsurat sher hai ye...bahut2 badhai..
भ्रष्ट खुद हो और जो दे साथ नित ही भ्रष्ट का,
जवाब देंहटाएंदंडनीय हैं दोनों के किरदार मेरे दोस्तों...
चलो अपने कुछ किरदार का दंड तो कम कर लिया मैंने...
जय हिंद...
आपकी ये गज़ल वस्तुस्थिति का सटीक चित्रण कर गयी .....
जवाब देंहटाएंबहुत पहले पढ़ी गयी पंक्तियां याद आ गयी "एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों....."अन्ना हज़ारे ने यही किया है ...
सादर !
किस कदर जीवन बिके बेमोल सा बाज़ार में
जवाब देंहटाएंआदमी ही बन गया हथियार मेरे दोस्तो
ये निशानी थी कभी ईमान की या धर्म की
खादी में हैं घुस गये गद्दार मेरे दोस्तो..
आपने इतनी खूबसूरती से सच्चाई को शब्दों में पिरोया है कि आपकी लेखनी की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है! लाजवाब ग़ज़ल ! शानदार प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंक्या रचना है समीर भाई आनंद आ गया !
कुछ मित्रों की याद आ गयी सो आपसे प्रेरित होकर, इसे आगे बढाने की गुस्ताखी कर रहा हूँ !
कुछ गधे भी फेंकते हैं धूल दोनों पांव से
चाँद का मैला करें सम्मान, मेरे दोस्तों
दोस्ती और प्यार का सम्मान यह जाने नहीं
सूर्य पर भी थूकते इंसान , मेरे दोस्तों !
पिंजरे में ये कैद करना चाहते हैं, समीर को
काश मौला अक्ल दे, इनको भी मेरे दोस्तों !
ये निशानी थी कभी ईमान की या धर्म की
जवाब देंहटाएंखादी में हैं घुस गये गद्दार मेरे दोस्तो
sahi baat.
ये निशानी थी कभी ईमान की या धर्म की
जवाब देंहटाएंखादी में हैं घुस गये गद्दार मेरे दोस्तो
एक अन्ना ही बहुत है क्योंकि उसके सामने
झुक गयी है देश की सरकार मेरे दोस्तो
शीर्षक देख कर लगा था की कोई चुटीला व्यंग लेख मिलेगा पढ़ने को ...पर यहाँ तो व्यंग से भरी सटीक कटाक्ष करती गज़ल मिली ... बहुत खूब ..
bahut khoob likha sir aapane
जवाब देंहटाएंaajkal aap blog par nahi ate hamare
har bar hame req karni padti hain tb aate
apana aashirvad banaye rakhe...
http://iamhereonlyforu.blogspot.com/
गजल की हर पंक्ति अच्छी लगी !
जवाब देंहटाएंविचार जब डाइजेस्ट नहीं होते है तो
कब्जियत होती है अच्छा लगा ......
ये निशानी थी कभी ईमान की या धर्म की
जवाब देंहटाएंखादी में हैं घुस गये गद्दार मेरे दोस्तो
waaah ! aafrin ...shandar gazal ...
- http://eksacchai.blogspot.com
आदरणीय समीर लाल जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
खेल कैसा बन गया व्यापार मेरे दोस्तो
किस कदर जीवन बिके बेमोल सा बाज़ार में
.....गजब कि पंक्तियाँ हैं ...
किस कदर जीवन बिके बेमोल सा बाज़ार में
जवाब देंहटाएंआदमी ही बन गया हथियार मेरे दोस्तो ...
वाह समीर भाई .... क्या बात है मुद्दत बाद आपकी कोई ग़ज़ल पढ़ी है ... और क्या कमाल किया है ... जबरदस्त शेर हैं सारे ...
आदरणीय समीर लाल जी,
जवाब देंहटाएंएक अन्ना ही बहुत है क्योंकि उसके सामने
झुक गयी है देश की सरकार मेरे दोस्तो
भ्रष्ट खुद हो और जो दे साथ नित ही भ्रष्ट का
दंडनीय हैं दोनों के किरदार मेरे दोस्तो
गंध मुझको मिल सके सोते हुए या जागते
उस चमन की अब रही दरकार मेरे दोस्तो
चंद काँटे तो चुभेंगे फूल चुनने को " समीर "
पाप जड़ से ही मिटे इस बार मेरे दोस्तो
बहुत सही कहा है आपने ...
किस कदर जीवन बिके बेमोल सा बाज़ार में
जवाब देंहटाएंआदमी ही बन गया हथियार मेरे दोस्तो
क्या बात है सर, बहुत खूब कहा आपने.
दुनाली पर स्वागत है-
कहानी हॉरर न्यूज़ चैनल्स की
दौर तो सच में अजब दीवानगी का है सब तरफ लेकिन इन पंक्तियों ने उम्मीद जगा दी.....
जवाब देंहटाएंचंद काँटे तो चुभेंगे फूल चुनने को " समीर "
पाप जड़ से ही मिटे इस बार मेरे दोस्तो --
भ्रष्ट खुद हो और जो दे साथ नित ही भ्रष्ट का
जवाब देंहटाएंदंडनीय हैं दोनों के किरदार मेरे दोस्तो
khoob
एक अन्ना ही बहुत है क्योंकि उसके सामने
जवाब देंहटाएंझुक गयी है देश की सरकार मेरे दोस्तो
भ्रष्ट खुद हो और जो दे साथ नित ही भ्रष्ट का
दंडनीय हैं दोनों के किरदार मेरे दोस्तो
बेहद उम्दा भाव है समीर दददा ... जय हो !
आखिरी पंक्तियाँ बहुत सटीक हैं
जवाब देंहटाएंउम्दा गज़ल.
कब्ज़ियात में भी कुछ निकल आया, यह जानकर संतोष हुआ :)
जवाब देंहटाएंAAPKA BADAPPAN HAI KI AAPNE MERA
जवाब देंहटाएंULLEKH KIYAA HAI . GAZAL SAAMYIK
AUR SHEJNIY HAI .
बहुत उम्दा ग़ज़ल ।
जवाब देंहटाएंसभी शे'र ग़ज़ब हैं ।
एक अन्ना ही बहुत है क्योंकि उसके सामने
जवाब देंहटाएंझुक गयी है देश की सरकार मेरे दोस्तो bahut hi shandaar ghazal, sach ke saamne aaina bankar aayi.
bahut daad ke saath
Devi nangrani
बहुत सुंदर शब्दों द्वारा सुंदर अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंअगर आप चाहे तो मेरे इस संकल्प को पूरा करने में अपना सहयोग कर सकते हैं. आप द्वारा दी दो आँखों से दो व्यक्तियों को रोशनी मिलती हैं. क्या आप किन्ही दो व्यक्तियों को रोशनी देना चाहेंगे? नेत्रदान आप करें और दूसरों को भी प्रेरित करें क्या है आपकी नेत्रदान पर विचारधारा?
वाह वाह वाह...लाजवाब ....सभी के सभी एक से बढ़कर एक...
जवाब देंहटाएंफिर अजब दीवानगी का दौर है अब हर तरफ
खेल कैसा बन गया व्यापार मेरे दोस्तो
किस कदर जीवन बिके बेमोल सा बाज़ार में
आदमी ही बन गया हथियार मेरे दोस्तो
इन दो शेरों ने तो निःशब्द ही कर दिया....
बहुत ही लाजवाब ग़ज़ल...
इसे कहते हैं फर्टाइल ब्रेन...कब्जियत में भी इतनी सुन्दर रचना सूझ जाये...तो खुदा इसे बनाये रखे...इरादे तो अच्छे हैं...पर सांप भी तो दूरबीन लिए बैठे हैं...खादी पहन के अन्ना के साथ ना हो जायें...
जवाब देंहटाएंये निशानी थी कभी ईमान की या धर्म की
जवाब देंहटाएंखादी में हैं घुस गये गद्दार मेरे दोस्तो
एक अन्ना ही बहुत है क्योंकि उसके सामने
झुक गयी है देश की सरकार मेरे दोस्तो
बहुत खूब समीर जी । सामयिक गज़ल ।
लपेट लपेट के मार गिराओ सारे दुश्मन ,
जवाब देंहटाएंअबकि खाली न जाए वार दोस्तों ...
का बात है कब्जियत के बाद एकदम फ़रेश स्क्रिप्ट पढने को मिला पब्लिक को ...कौन चूरन लिए थे जी ..बहुत खतरनाक आयटम निकला है कसम से ...
किस कदर जीवन बिके बेमोल सा बाज़ार में
जवाब देंहटाएंआदमी ही बन गया हथियार मेरे दोस्तो
परिस्थितियों और परिवेश को
नए सिरे से परिभाषित करते हुए
जानदार शेर ... वाह !!
बहुत अच्छी ग़ज़ल .
ये निशानी थी कभी ईमान की या धर्म की
जवाब देंहटाएंखादी में हैं घुस गये गद्दार मेरे दोस्तो
क्या बात है...बहुत खूब ग़ज़ल कही है...
भ्रस्टाचार पर कटाक्ष करती बेहतरीन गजल
जवाब देंहटाएंआभार
चंद काँटे तो चुभेंगे फूल चुनने को " समीर "
जवाब देंहटाएंपाप जड़ से ही मिटे इस बार मेरे दोस्तो.
बेहतरीन उद्गार, इस बार गजल के द्वार.
भ्रष्टाचार तो अचानक उठ्ठा और संसद तक पसर गया। पता नहीं यह कब छंटेगा।
जवाब देंहटाएंलोग अधीर हो रहे हैं। पर समझ नहीं पा रहे कि क्या काम करेगा उन्मूलन के लिये!
बेहतरीन ताज़ा ग़ज़ल के लिए शुक्रिया जो अपने लघुतर कलेवर में खेल ,व्यापार सियासत ,दोस्ती और प्यार ,संतोष और गुमान सभी कुछ तो समेटे हुए हैं
जवाब देंहटाएंलाजबाव गजल जी,
जवाब देंहटाएंश्रीमान गज़ल के चंद शेरों में आपने बड़ा सामयिक नज़रिया फरमाया है जो आज के हालत का वास्तविक मूल्यांकन है .शुक्रिया
जवाब देंहटाएंचारो तरफ माहौल तो बन गया है। बस,इतना ध्यान रहे कि केवल कानून से बात नहीं बनेगी। हमारा अपना परिष्कार भी ज़रूरी है मेरे दोस्तो!
जवाब देंहटाएंकिस कदर जीवन बिके बेमोल सा बाज़ार में
जवाब देंहटाएंआदमी ही बन गया हथियार मेरे दोस्तो
bahut khoob.
समीर भाई,एकदम सामयिक गज़ल कही है.. एक एक शेर लाजवाब..
जवाब देंहटाएंलाजवाब!!!
जवाब देंहटाएंप्रजातंत्र क्या है भेड़ो की जमात है
जवाब देंहटाएंभ्रस्टाचार की देखो काली रात है
नेता ही तो देश का लुटेरा है यहाँ
संसद में उल्लुओं का डेरा है यहाँ .....समीर जी आप का उत्साहवर्धन ही मेरे लिए ब्लॉग लिखने की प्रेरणा है ! आप की टिप्पणी के लिए साधुवाद..
खेल अब व्यापार बन गया
जवाब देंहटाएंप्रेरणादायी ग़ज़ल जिसमें आशा का नवसंचार निहित है और निहितार्थ भी। एक मुक्तक शेयर करने का मन बन गया।
जवाब देंहटाएंहर मुश्किल का हल निकलेगा,
आज नहीं तो कल निकलेगा।
भोर से पहले किसे पता था,
सूरज से काजल निकलेगा।
अन्तिम शेर बहुत ही मौजूँ है आपकी इस गजल का।
जवाब देंहटाएंआशा है,यह संजीवनी रामदेवजी की मुहिम में ब्लॉगर मित्रों के सहयोग के काम आएगी।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन गज़ल ।
जवाब देंहटाएंअच्छे लेखन की चर्चा सर्वत्र होती रहती है..बधाइयाँ.
जवाब देंहटाएंSundar Gazal.
जवाब देंहटाएं............
तीन भूत और चार चुड़ैलें।!
14 सप्ताह का हो गया ब्लॉग समीक्षा कॉलम।
किस कदर जीवन बिके बेमोल सा बाज़ार में
जवाब देंहटाएंआदमी ही बन गया हथियार मेरे दोस्तो
मान्यवर इस ग़ज़ल को पढ़ कर लगातार तालियाँ बजा रहे हैं...आपको सुनाई पड़ी या नहीं...अगर नहीं तो और जोर से बजाएं????...अगर तालियाँ नहीं सुनाई पड़ रहीं तो फिर हाल भरपूर दिली दाद से काम चलायें...बहुत कमाल की ग़ज़ल कह गए हैं आप...वाह..वाह वाह करने जैसी...
नीरज
ये निशानी थी कभी ईमान की या धर्म की
जवाब देंहटाएंखादी में हैं घुस गये गद्दार मेरे दोस्तो...
लाज़वाब गज़ल...हरेक शेर एक सटीक टिप्पणी..आभार
"चंद काँटे तो चुभेंगे फूल चुनने को " समीर "
जवाब देंहटाएंपाप जड़ से ही मिटे इस बार मेरे दोस्तो"
सही कहा है आपने..
फूल के साथ काँटे मुफ्त मिलते है...
सुन्दर और सार्थक ग़ज़ल ...!
"चंद काँटे तो चुभेंगे फूल चुनने को " समीर "
जवाब देंहटाएंपाप जड़ से ही मिटे इस बार मेरे दोस्तो".....
.....आमीन, समीर जी संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ है.
"जिसका कुछ आकार न प्रकार मेरे दोस्तों,
कर रहा है कौन ? कारोबार मेरे दोस्तों,
कल तलक दुश्वार था, बदकार था,फ़टकार था,
शिष्ट का आचार ! भृष्टाचार !! मेरे दोस्तों."
-http://aatm-manthan.com
"चंद काँटे तो चुभेंगे फूल चुनने को " समीर "
जवाब देंहटाएंपाप जड़ से ही मिटे इस बार मेरे दोस्तो".....
.....आमीन, समीर जी संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ है.
"जिसका कुछ आकार न प्रकार मेरे दोस्तों,
कर रहा है कौन ? कारोबार मेरे दोस्तों,
कल तलक दुश्वार था, बदकार था,फ़टकार था,
शिष्ट का आचार ! भृष्टाचार !! मेरे दोस्तों."
-http://aatm-manthan.com
bahut achcha likhe.
जवाब देंहटाएं!!!@@@
जवाब देंहटाएंभ्रष्ट खुद हो और जो दे साथ नित ही भ्रष्ट का
जवाब देंहटाएंदंडनीय हैं दोनों के किरदार मेरे दोस्तो
कितना अर्थपूर्ण लिखा आपने...बदलाव की उम्मीद दूसरों से ही क्यों .... हमारी भागीदारी की भी सोचें....
अच्छी रचना
जवाब देंहटाएं"किस कदर जीवन बिके बेमोल सा बाज़ार में
जवाब देंहटाएंआदमी ही बन गया हथियार मेरे दोस्तो
ये निशानी थी कभी ईमान की या धर्म की
खादी में हैं घुस गये गद्दार मेरे दोस्तो.."
satya kaha sameer ji, maine kabhi kuch panktiyan kahi thi aaj aap ko suna deta hu,
"ऐ देश के लफंगों नेता तुम्ही हो कल के,
ये देश है तुम्हारा, खा जाओ इसको तल के||"- मानस खत्री
गंध मुझको मिल सके सोते हुए या जागते
जवाब देंहटाएंउस चमन की अब रही दरकार मेरे दोस्तो
चंद काँटे तो चुभेंगे फूल चुनने को " समीर "
पाप जड़ से ही मिटे इस बार मेरे दोस्तो
बहुत सुन्दर भाव,अनुपम विचार.
बेहतरीन प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.
मेरे ब्लॉग पर आप आतें हैं तो बहुत अच्छा लगता है.
गद्य पढ़वाते रहे जो मुद्दतों से ब्लॉग पर
जवाब देंहटाएंwith ग़ज़ल हाजिर हैं वो इस बार मेरे दोस्तो
समीर भाई आप हरफ़नमौला हैं बन्धु| मज़ा आया आपकी ग़ज़ल को पढ़कर| हिन्दी की सेवा बहुत ही अच्छे ढंग से कर रहे हैं आप| पर भैये ये तो बोलो कि कब्जियत ही क्यूँ?
अंकल जी, प्यारी सी गजल पर उससे भी स्मार्ट आप दिख रहे हो काले चश्मे में.
जवाब देंहटाएं_____________________________
पाखी की दुनिया : आकाशवाणी पर भी गूंजेगी पाखी की मासूम बातें
सामयिक और समीचीन, भ्रष्टाचार अब जड़ से खत्म हो इसी कामना के साथ बधाई........
जवाब देंहटाएंआकर्षण
बहुत बढ़िया मजा आ गया..
जवाब देंहटाएंबढ़िया :) :)
जवाब देंहटाएंमजे मजे में काम की बात...