सोमवार, दिसंबर 20, 2010

कैक्टस

सेठ बनारसी दास शहर के गणमान्य नागरिक एवं प्रतिष्ठित व्यापारी हैं. अगले विधान सभा चुनाव में सत्ताधारी पार्टी का टिकिट पाने के लिए तरह तरह के आयोजन कर बड़े बड़े नेताओं को आमंत्रित करते रहते हैं.

मुख्य मंत्री अपनी एक दिवसीय यात्रा पर शहर आने वाले हैं. बनारसी दास जानते हैं कि हल्के फुल्के आयोजन के लिए मुख्य मंत्री समय देंगे नहीं.

बहुत सोच विचार कर एक ऐसा प्रयोजन बनाना है कि मुख्य मंत्री घर आने से मना न कर सकें.

तुरंत याद आया पिताजी अभी-अभी गुजरे है .....बस, पिता जी की पुण्य तिथी का आयोजन कर डाला. मुख्य मंत्री आये, श्रृद्धांजलि दी. समाज में सेठ जी का रुतबा दुगना हो गया.

पिता जी को गांव में गुजरे वैसे भी ७ महिने तो बीत ही चुके थे.

 

अब एक कविता:

एक उन्माद

cactus

उम्र के उस पड़ाव मे

उगा लिया था

हथेली पर

एक कैक्टस

अब

उखाड़ना चाहता हूँ

मगर

कांटे डराते हैं मुझे!!

113 टिप्‍पणियां:

  1. बेनामी12/20/2010 08:39:00 pm

    बहुत ही सुन्दर पोस्ट और बढ़िया रचना!
    --
    इस पोस्ट को आज के चर्चा मंच पर भी सुशोभित किया गया है!
    http://charchamanch.uchcharan.com/2010/12/375.html

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  2. सभ्य समाज में विभिन्न अवसरों पर अपनी सभ्यता दिखाने के लिए माता -पिता प्रयोग में आते हैं ...
    बहुत परिवारों में देखा है ये ...
    हाथ में उगाया कैक्टस अब उखाड़ा नहीं काँटों के डर से ...GR8

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  3. हे हे मत उखाडिये कांटे भी चुभेगें और जख्म भी गहरा होगा ..

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  4. हम सबने पता नहीं कैक्टसी भाव उगा लिये हैं हृदय में, अब वे बड़े हो गये हैं, अब तो उन्हें बाहर निकालने में भी अधिक पीड़ा होता है। गुलाब मन मसोस कर रह जाते हैं।

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  5. आवश्‍यकता ही आवि‍ष्‍कार की जननी है।

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  6. गुरुदेव,
    आज टिप्पणी में सुरेश यादव जी की कविता...

    चटकते बरतन...

    दादी-नानी कहती हैं,
    चार बरतन होते जहां,
    खटकते हैं,
    फिर भी साथ तो रहते हैं...

    मेरे रिश्तों के ये बरतन,
    कांच के हो गए हैं,
    जब-जब
    खटकते हैं.
    चटकते हैं...बिखरते हैं...

    जय हिंद...

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  7. कैक्‍टस पर उकेरे दो नाम, एक पूरी कविता. कभी सेहरा कभी रुदाली.

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  8. गागर में सागर भरने का उपयुक्त उदाहरण
    बहुत बढ़िया समीर जी

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  9. आज के व्यवसायिक युग में हर चीज़ कैश कराई जा सकती है ।
    अब कांटे बोयेंगे तो फूल कहाँ से आयेंगे ।

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  10. आदरणीय समीर जी
    नमस्कार
    बहुत कुछ कह गयी आपकी यह पोस्ट ....शुक्रिया

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  11. कभी कभी पुण्यतिथि की तारीख महीने गुजरने की बजाए गए गुजरे पन से तय की जाती है ;)

    लिखते रहिये ...

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  12. कैक्टस एक बार अपनी जगह बना लेते हैं तो आसानी से नही उखडते……………कोशिश करने पर भी ज़ख्म तो देकर ही जायेंगे पर फिर भी निशाँ नही मिट पायेंगे।

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  13. समीर जी
    तीखा प्रहार, मरने के बाद भी बाप की आत्मा को चैन से रहने देते हमारे नेता गण, तो बाकी लोगोँ का इस्तेमाल क्योँ ना करेँ। कविता भी बहुत भावपूर्ण।

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  14. आपने ही क्‍या देश के हाथ ने ही हाथों पर केक्‍टस उगा लिए हैं। वे इसे उखाड़ने की नहीं सोचत अपितु दूसरों पर प्रहार करते हैं।

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  15. सुन्दर अभिव्यक्ति!

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  16. समीर जी, दोनों ही मन को छू लेने वाली हैं.. कथा भी और कविता भी..

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  17. कैक्‍टस के माध्यम से गहरी बात.... आभार

    जवाब देंहटाएं
  18. समीर जी,
    व्यंग्य और कविता दोनों ही एक से बढ़ कर एक हैं !
    व्यग्य जहाँ सच्चाई को आईना दिखाती है वहीँ कविता संवेदना को प्राणवान करती है !
    धन्यवाद !
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

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  19. sach kah rahe hain aap... ham sabke haath me kaktas ug aaye hain.. achhi rachna..

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  20. ...स्वार्थ के लिए मनुष्य किस हद तक गिरता है...कहानी में यही सच्चाई आपने उजागर की है!....बहुत ही उमदा रचना..

    कविता मनुष्य के जीवन की सचाई को उजागर कर रही है...अति सुंदर प्रस्तुति!बधाई समीरजी!

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  21. ओह! स्वार्थान्धता की कोई सीमा नहीं...जिंदा रहने पर भले ही ना पूछा हो ..पर अपने फायदे के लिए भव्य आयोजन ..वो भी सात महीने पर ही. वासी..इस तरह के उदाहरण मिलते ही रहते हैं,आस-पास.

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  22. कैक्टस उग आयें तो उनसे निजात पाना कहाँ आसान है....

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  23. गहरी बात समीर भाई ... तन्हाई तो नहीं है दिल में आज कल ...
    जल्दी मुलाकात करेंगे ....

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  24. काँटे तो काँटे हैं आते - जाते दर्द देंगे ही । सोचना तो इनके उगने से पहले ही होगा … आपका इशारा अच्छा है और इरादा भी … शुभकामनाएं । "खबरों की दुनियाँ"

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  25. आदरणीय समीर जी
    आपकी तारीफ के लिए शब्द नही है!

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  26. ये राजनीती है, यहाँ यही सब चलता है. रिश्ते-नाते सब बेकार की बातें हैं यहाँ. कैसे भी सत्ता मिले. यहाँ देखने में आया है की गुटीय प्रतिबद्धता अपनी पारिवारिक प्रतिबद्धता से भी बड़ी हो जाती है.
    जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड

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  27. हथेली पर कैक्टस...बिल्कुल अछूता बिम्ब,
    छोटी किंतु अत्यंत प्रभावशाली कविता,
    ...शुभकामनाएं।

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  28. जब उगाया था तो उखाड़ने की चाहना नहीं होनी चाहिये। फूल आते हैं तो बड़ा मोहक लगता है यह केक्टस!

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  29. याने सुन्‍दरता का प्रत्‍येक नयनाभिराम प्रतीक, कोमल और सुखद स्‍पर्शदायी हो, जरूरी नहीं।

    कहानी के मुकाबले कविता अधिक प्रभावी लगी।

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  30. सही में सेठ बनारसी दास शहर के गणमान्य नागरिक एवं प्रतिष्ठित हैं।
    आशा है समीर सर, स्वदेश में मन अच्छे से लगा होगा।

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  31. एक अवसरवादी की लघुकथा मजेदार है... और हथेली पर कैक्टस उगाने का सामयिक बिम्ब नायाब है...

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  32. लघुकथा और कविता दोनों ही सन्देश प्रधान रचनाएँ हैं.
    - विजय तिवारी " किसलय "

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  33. ये खुदगर्जी जो न कराए कम है। कभी-कभी तो जीवित व्यक्ति को भी मार देते है :)

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  34. सही कहा आपने , जरूरत पड़ने पर माँ हो या बाप कोई भी मार दिया जाता है

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  35. वाह जी यह तो पिता जी को ही मोहरा बना गये आज कल तो लोग अपनी पुत्री को भी मोहरा बनाने से नही चुकते.... यह आज का सभ्य समाज हे जिस के फीछे के घिन्नोने चहरे बहुत भयांकर हे, ऎसा ही होता हे ...

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  36. शुक्र है गुजरे हुए की ही पुण्यतिथि की है.

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  37. कविता और कथा दोनों के ही माध्यम से बहुत वज़नदार बात कह दी आपने .....कविता ने तो बार बार पढने को विवश किया ...आभार

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  38. आदरणीय समीर जी
    नमस्कार
    व्यंग्य और कविता दोनों ही एक से बढ़ कर एक हैं !

    जवाब देंहटाएं
  39. Maaf kijiyga kai dino bahar hone ke kaaran blog par nahi aa skaa

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  40. बढ़िया कटाक्ष इनकी कार्यप्रणाली पर. बढ़िया सृजन. कविता भी अच्छी लगी.

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  41. समीर जी आपकी लेखनी का क्या कहना...
    एक बार फ़िर करारा..

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  42. कैक्टस को उखाडना बहुत कठिन है ...ऐसे कैक्टस बने रिश्तों को भी ...

    और कथानुसार अपने फायदे के लिए इंसान क्या क्या कर गुज़रता है ...अच्छी प्रस्तुति

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  43. कैक्टस से जो घाव लगता है वह बिलकुल उस जैसा है जैसे कुछ गलत बात जुबां से निकलकर किसी के दिल को लग जाती है..
    वो फिर निकाले नहीं निकलती है..

    बहुत अच्छी पोस्ट.. अच्छा लगा..

    आभार

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  44. कविता और प्रसंग...दोनों ही

    "क्या बात है...क्या बात है"

    लाजवाब...!!!!

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  45. chaliye sir..aapne to meri sudh li.. :)..bahut jyada samay antraal ho gaya..jald hi hajiri dungi... :)

    जवाब देंहटाएं
  46. बेनामी12/22/2010 09:55:00 pm

    bahut hi sudar likha aapane
    sir kaafi time ho gyaa aap hamare blog par nahi ayae kabhi aaiyega
    http://iamhereonlyforu.blogspot.com/
    isame my poem tab par meri likhi hui kavitaye hain...umeed karta hu aapako pasand aayegi

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  47. बहुत ही सुन्दर पोस्ट और बढ़िया रचना!

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  48. फिर भी कई हैं कि इन्हीं कैक्टसों के हमसाया हो बिता देते हैं जिंदगी. आह !

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  49. राजनीति में जूता ऐसे ही चमकाते हैं।

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  50. उम्र के उस पड़ाव मे
    उगा लिया था
    हथेली पर
    एक कैक्टस
    अब
    उखाड़ना चाहता हूँ
    मगर
    कांटे डराते हैं मुझे!!
    .....
    बहुत ही बढ़िया पोस्ट और रचना!

    जवाब देंहटाएं
  51. "समस हिंदी" ब्लॉग की तरफ से सभी मित्रो और पाठको को एक दिन पहले
    "मेर्री क्रिसमस" की बहुत बहुत शुभकामनाये !

    ()”"”() ,*
    ( ‘o’ ) ,***
    =(,,)=(”‘)<-***
    (”"),,,(”") “**

    Roses 4 u…
    MERRY CHRISTMAS to U
    मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है

    जवाब देंहटाएं
  52. अज की मानसिकता और ओछी राजनिती पर अच्छी लघु कथा। हथेली के कैक्टस तो अन्त तक साथ निभाते है। शुभकामनायें।

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  53. बेनामी12/24/2010 11:35:00 am

    बिना सोचे समझे कांटे उगाने यानि समस्याएं पैदा करने का का यही अंजाम होता है ! बहुत सार्थक पोस्ट होती है आपकी ! आभार !

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  54. गागर में सागर

    बेहतरीन पोस्ट

    नव वर्ष (२०११)की शुभकामनाएँ !

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  55. आदरणीय समीर जी

    "मेर्री क्रिसमस" की बहुत बहुत शुभकामनाये !

    मेरी नई पोस्ट "जानिए पासपोर्ट बनवाने के लिए हर जरूरी बात" पर आपका स्वागत है

    जवाब देंहटाएं
  56. आपको एवं आपके परिवार को क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनायें !

    जवाब देंहटाएं
  57. क्रिसमस की शांति उल्लास और मेलप्रेम के
    आशीषमय उजास से
    आलोकित हो जीवन की हर दिशा
    क्रिसमस के आनंद से सुवासित हो
    जीवन का हर पथ.

    आपको सपरिवार क्रिसमस की ढेरों शुभ कामनाएं

    सादर
    डोरोथी

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  58. बेनामी12/25/2010 04:28:00 pm

    रोज़ सम्मान पा रहे हो समीर जी
    और ये क्या हाथ पे कैक्टस उगा रहे हो या दिखा रहे हो भैया
    उद्धव जी से मिलिये जी !!

    जवाब देंहटाएं
  59. हथेली पर

    एक कैक्टस

    अब

    उखाड़ना चाहता हूँ

    मगर

    कांटे डराते हैं मुझे!!

    apne hi kaante darate hain hume, sach hai! kya khoob likha hai!

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  60. वह बहुत सुंदर लिखा !
    किसी ने पूछा क्या बढ़ते हुए भ्रस्टाचार पर नियंत्रण लाया जा सकता है ?

    हाँ ! क्यों नहीं !
    कोई भी आदमी भ्रस्टाचारी क्यों बनता है? पहले इसके कारण को जानना पड़ेगा.
    सुख वैभव की परम इच्छा ही आदमी को कपट भ्रस्टाचार की ओर ले जाने का कारण है.
    इसमें भी एक अच्छी बात है.
    अमुक व्यक्ति को सुख पाने की इच्छा है ?
    सुख पाने कि इच्छा करना गलत नहीं.
    पर गलत यहाँ हो रहा है कि सुख क्या है उसकी अनुभूति क्या है वास्तव में वो व्यक्ति जान नहीं पाया.
    सुख की वास्विक अनुभूति उसे करा देने से, उस व्यक्ति के जीवन में, उसी तरह परिवर्तन आ सकता है. जैसे अंगुलिमाल और बाल्मीकि के जीवन में आया था.
    आज भी ठाकुर जी के पास, ऐसे अनगिनत अंगुलीमॉल हैं, जिन्होंने अपने अपराधी जीवन को, उनके प्रेम और स्नेह भरी दृष्टी पाकर, न केवल अच्छा बनाया, बल्कि वे आज अनेकोनेक व्यक्तियों के मंगल के लिए चल पा रहे हैं.
    http://www.maha-yatra.com/

    जवाब देंहटाएं
  61. आपकी रचना वाकई तारीफ के काबिल है .

    * किसी ने मुझसे पूछा क्या बढ़ते हुए भ्रस्टाचार पर नियंत्रण लाया जा सकता है ?

    हाँ ! क्यों नहीं !

    कोई भी आदमी भ्रस्टाचारी क्यों बनता है? पहले इसके कारण को जानना पड़ेगा.

    सुख वैभव की परम इच्छा ही आदमी को कपट भ्रस्टाचार की ओर ले जाने का कारण है.

    इसमें भी एक अच्छी बात है.

    अमुक व्यक्ति को सुख पाने की इच्छा है ?

    सुख पाने कि इच्छा करना गलत नहीं.

    पर गलत यहाँ हो रहा है कि सुख क्या है उसकी अनुभूति क्या है वास्तव में वो व्यक्ति जान नहीं पाया.

    सुख की वास्विक अनुभूति उसे करा देने से, उस व्यक्ति के जीवन में, उसी तरह परिवर्तन आ सकता है. जैसे अंगुलिमाल और बाल्मीकि के जीवन में आया था.

    आज भी ठाकुर जी के पास, ऐसे अनगिनत अंगुलीमॉल हैं, जिन्होंने अपने अपराधी जीवन को, उनके प्रेम और स्नेह भरी दृष्टी पाकर, न केवल अच्छा बनाया, बल्कि वे आज अनेकोनेक व्यक्तियों के मंगल के लिए चल पा रहे हैं.

    जवाब देंहटाएं
  62. आपकी रचना वाकई तारीफ के काबिल है .

    * किसी ने मुझसे पूछा क्या बढ़ते हुए भ्रस्टाचार पर नियंत्रण लाया जा सकता है ?

    हाँ ! क्यों नहीं !

    कोई भी आदमी भ्रस्टाचारी क्यों बनता है? पहले इसके कारण को जानना पड़ेगा.

    सुख वैभव की परम इच्छा ही आदमी को कपट भ्रस्टाचार की ओर ले जाने का कारण है.

    इसमें भी एक अच्छी बात है.

    अमुक व्यक्ति को सुख पाने की इच्छा है ?

    सुख पाने कि इच्छा करना गलत नहीं.

    पर गलत यहाँ हो रहा है कि सुख क्या है उसकी अनुभूति क्या है वास्तव में वो व्यक्ति जान नहीं पाया.

    सुख की वास्विक अनुभूति उसे करा देने से, उस व्यक्ति के जीवन में, उसी तरह परिवर्तन आ सकता है. जैसे अंगुलिमाल और बाल्मीकि के जीवन में आया था.

    आज भी ठाकुर जी के पास, ऐसे अनगिनत अंगुलीमॉल हैं, जिन्होंने अपने अपराधी जीवन को, उनके प्रेम और स्नेह भरी दृष्टी पाकर, न केवल अच्छा बनाया, बल्कि वे आज अनेकोनेक व्यक्तियों के मंगल के लिए चल पा रहे हैं.

    जवाब देंहटाएं
  63. माफ़ किजियेगा, बहुत दिनो बाद आया । दर असल, PTMBA मे भर्ती हुआ हूँ, वक्त की कमी लगती है ।
    आपकी हर पोस्ट मे गहरे भाव होते है, जो दिल को छू जाते है । इसमे भी, चन्द पन्क्तियों के जरिये "कैकटस" के रूप जो विचार पेश किये है, वो इन्सान को सोचने पर मज़बूर कर देता है । अति सुन्दर ।

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  64. हमेशा की तरह बस यही कहूंगा कि आप बहुत सुन्दर लिखते हैं।

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  65. मुझे तो कैक्टस से बहुत डर लगता है...

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  66. बेनामी12/28/2010 02:49:00 am

    हर बार की तरह इस बार भी बड़ी ही शानदार प्रस्तुति है समीर जी|
    आप का लेख और कविता दोनों का संगम आप की posts में जान दाल देता है|
    'कैक्टस' यानी जीवन के पाप/गलतियों पर बड़ी अच्छी प्रस्तुति.
    शुभकामनाएं,
    मानस खत्री

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  67. जो उखड़़ जाएं
    वे काहे के कांटे
    प्‍याजो की जवानी
    इस कांटे को भी
    नहीं उखाड़ा जा सकता

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  68. kuch kaaton ki chubhan se dil rista hai,khair,aane wale naye saal ki aapko aur parivaar ko bahut shubkamnayein.sadar mehek.

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  69. समीर जी प्रणाम!
    बहुत ही सुन्दर लघु कथा......
    नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें .....

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  70. नववर्ष आपके लिए भी मंगलमय हो और जीवन में सुख सम्रद्धि ले कर आ

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  71. आपको नववर्ष 2011 मंगलमय हो ।
    निसंदेह ।
    यह एक प्रसंशनीय प्रस्तुति है ।
    धन्यवाद ।
    satguru-satykikhoj.blogspot.com

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  72. सुदूर खूबसूरत लालिमा ने आकाशगंगा को ढक लिया है,
    यह हमारी आकाशगंगा है,
    सारे सितारे हैरत से पूछ रहे हैं,
    कहां से आ रही है आखिर यह खूबसूरत रोशनी,
    आकाशगंगा में हर कोई पूछ रहा है,
    किसने बिखरी ये रोशनी, कौन है वह,
    मेरे मित्रो, मैं जानता हूं उसे,
    आकाशगंगा के मेरे मित्रो, मैं सूर्य हूं,
    मेरी परिधि में आठ ग्रह लगा रहे हैं चक्कर,
    उनमें से एक है पृथ्वी,
    जिसमें रहते हैं छह अरब मनुष्य सैकड़ों देशों में,
    इन्हीं में एक है महान सभ्यता,
    भारत 2020 की ओर बढ़ते हुए,
    मना रहा है एक महान राष्ट्र के उदय का उत्सव,
    भारत से आकाशगंगा तक पहुंच रहा है रोशनी का उत्सव,
    एक ऐसा राष्ट्र, जिसमें नहीं होगा प्रदूषण,
    नहीं होगी गरीबी, होगा समृद्धि का विस्तार,
    शांति होगी, नहीं होगा युद्ध का कोई भय,
    यही वह जगह है, जहां बरसेंगी खुशियां...
    -डॉ एपीजे अब्दुल कलाम

    नववर्ष आपको बहुत बहुत शुभ हो...

    जय हिंद...

    जवाब देंहटाएं
  73. आपको और आपके परिवार को मेरी और मेरे परिवार की और से एक सुन्दर, सुखमय और समृद्ध नए साल की हार्दिक शुभकामना ! भगवान् से प्रार्थना है कि नया साल आप सबके लिए अच्छे स्वास्थ्य, खुशी और शान्ति से परिपूर्ण हो !!

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  74. नव-वर्ष और पुत्र विवाह के उपलक्ष में बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  75. .

    कभी-कभी हम सभी अनजाने में यूँ ही एक कैक्टस उगा लेते हैं अपने जीवन में और फिर अपने उगाये हुए कांटे ही हमें तकलीफ देते रहते हैं ताउम्र।

    नव वर्ष आपके जीवन में खुशियाँ लाये।

    .

    जवाब देंहटाएं
  76. समीर जी प्रणाम!
    कैसे है आप......क्या चिट्ठाजगत इन दिनों रुग्ण चल रहा है....

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  77. समीर जी, नमस्कार
    सबसे पहले तो मैं आप से क्षमा मांगनी चाहूंगी . खुशदीप जी ने अपनी लोकप्रिय ब्लॉग के ज़रिए आप सबसे मेरा और मेरी देस्त गीता श्री का परिचय करवाया और सबसे पहली टिप्पणी आपकी आयी । मैं आपको व्यक्तिगत रूप से धन्यवाद देना चाहती थी इसलिए बहुत दिन लग गए । मेरा ताज़ा पोस्ट आपको मेरे मन की व्यथा बता देगी । आशा है आपका स्नेह निरंतर मिलता रहेगा --- नववर्ष आपके लिए मंगलमय हो -- सर्जना

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  78. इस बार गिरेगी धुंध,
    तो मैं तुम्हें ख़त लिखूंगा.
    तुम मेरे देश चले आना.
    मैं तुम्हारी पसंद के रंग,
    आसमान से चुरा कर,
    रख लूँगा सहेज कर.
    जब भी तुम आओगे,
    मैं उन्हें तुम्हें सौंप दूंगा.
    धुंध,कोहरा,कुहासा,
    सफ़ेद भूरा चांदनी सा.
    जब उतरेगा ज़मीन पर,
    तुमको ढूंढूंगा उसमे टटोल कर.
    तब क्या तुम छू दोगे मुझे ?
    शायद नही.
    और यूँ अकेला खड़ा रहूँगा मैं.
    धुंध में,कोहरे में,कुहासे में.
    तब तुम मेरे एहसासों को समेट लेना
    और देना एक वायदा बस,
    कि तुम सालों साल...
    आते रहोगे हर धुंध के
    गुलाबी मौसम में.
    और मैं हर साल,
    लिखता रहूँगा तुम्हे ख़त,
    इसी तरह............


    mere blog pe aapka swagat hai mahoday. Aakar balak ka hausla badhaiyega.


    Aapne to jo likha hai kmaal ka hai....
    Aabhar.....

    जवाब देंहटाएं
  79. कांटे डराते हैं मुझे...... वाह समीर भाई वाह बहुत खूब कविता जितनी छोटी उतनी गहरी। सेठ जी का प्रसंग भी कई तहों को खंगालता है। सुपुत्र के विवाह के लिए, और नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं
  80. वाह जी क्या बात है...
    कैक्टस को प्रतीक के रूप में बड़ी सुन्दरता से इस्तेमाल किया है.अच्छा लगा pdhna.

    जवाब देंहटाएं
  81. बहुत खूब! कविता और लघुकथा दोनों ही बराबर अर्थपूर्ण हैं।

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  82. नये साल की शुभकामनायें ।

    जवाब देंहटाएं
  83. कैक्टस उगाने से पहले निदा फाजली को सुन लिया होता
    जब किसी से कोई गिला रखना
    सामने अपने आईना रखना

    जवाब देंहटाएं
  84. बहोत बढ़िया कैक्टस लगाया है आपने !

    जवाब देंहटाएं
  85. मकर संक्राति ,तिल संक्रांत ,ओणम,घुगुतिया , बिहू ,लोहड़ी ,पोंगल एवं पतंग पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  86. कैक्‍टस के बहारे जिंदगी के रूपों को बखूबी बयां कर दिया आपने। बधाई।

    ---------
    बोलने वाले पत्‍थर।
    सांपों को दुध पिलाना पुण्‍य का काम है?

    जवाब देंहटाएं
  87. जय श्री कृष्ण...आप बहुत अच्छा लिखतें हैं...वाकई.... आशा हैं आपसे बहुत कुछ सीखने को मिलेगा....!!

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  88. सराहनीय प्रस्तुति. कविता और कहानी दोनों ऑंखें खोलने वाले हैं. वैसे केक्टस में ऊपर से जितने भी कांटें दिखें अन्दर से रस से भरपूर ही होता है

    जवाब देंहटाएं
  89. Happy Lohri......
    सुन्दर ...अति सुन्दर !

    १३ जनवरी को पौष माह का आखिरी दिन यानि ठंड का अंत !इसी दिन लोहरी होती है ।
    आप हमारे संग लोहरी मनाने हमारे यहाँ आईएगा ।

    आभार !

    Hardeep

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  90. बेहतरीन एवं प्रशंसनीय प्रस्तुति ।
    हिन्दी को ऐसे ही सृजन की उम्मीद
    सिलसिला जारी रखें ।
    आपको पुनः बधाई ।
    satguru-satykikhoj.blogspot.com

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  91. कांटे तो हमें भी डराते हैं.

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  92. ये वो लोग होते हैं जो आम के साथ गुठलियों से दाम निकालना भी जानते हैं।

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आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है. बहुत आभार.