अन्तर तो खुली आँखों दिखता ही है हर तरफ. तुलना करने की बात ही नहीं है कनाडा और भारत.
मेरा देश भारत मेरा है, उसकी भला क्या तुलना करना और क्यूँ करना?
मगर अब रहता तो कनाडा में हूँ, न चाहते हुए भी स्पष्ट अंतरों पर निगाह टिक ही जाती है, जबकि मैं ऐसा कतई चाहता नहीं. यही तो वजह भी बनता होगा कि हर बार जब भारत जाता हूँ तो सोचता हूँ कि अब लौट कर नहीं आऊँगा और मात्र दो महिने में लगने लगता है कि लौट चलो यार, अब बहुत हुआ.
खैर, यह उहापोह की स्थिति तो बनती बिगड़ती रहती है हर प्रवासी के साथ. यहाँ रहो तो वहाँ, वहाँ जाओ तो यहाँ.
एक बात, यहाँ गलियों में बड़ा सन्नाटा रहता है. मेरे जबलपुर की मुख्य सड़को से बड़ी, साफ सुथरी और गढ्ढा रहित. गाड़ी लेकर चलो, तो आदतन मजा ही नहीं आता. न गढ्ढे, न धूम धड़ाक. गाड़ी चलाते हुए काफी पी रहे हैं मानो ड्राईंग रुम में बैठे हों. सफर में सफर न करें तो कैसा सफर. आदतें तो वो ही हैं न, जो बचपन से पड़ी हैं. फिर मजा कैसे आयेगा.
हाँ तो बात थी गलियों का सन्नाटा. सन्नाटा ऐसा जैसे मनहूसियत पसरी हो. न कहीं से लाऊड स्पीकर बजने की आवाज आती होती है, न दूर मंदिर में होती अखण्ड रामायण के पाठ की आवाज, न जोर जोर से झगड़ते दो लोगों की, न सब्जी वाले की पुकार और न ही रद्दी खरीदने वाला. वैसे तो गली कहना ही इसकी बेज्जती है. कुत्ता विहिन गलियाँ विधवा की मांग सी सूनी लगती हैं. ठंडी रात में कई बार डर सा लग जाता है कि कहीं मर तो नहीं गये जो शमशान में सोये हैं. न कुत्ता रो रहा है, न ही कोई धत धत बोलता सुनाई दे रहा है. हड़बड़ा कर उठ बैठता हूँ. जब खुद को चिकोटी काट कर दर्द अहसास लेता हूँ तो संतोष हो जाता है कि घर पर ही हूँ, अभी मरा नहीं.
गाड़ियाँ भी निकलती हैं सड़क से. न हार्न, न दीगर कोई आवाज. न गाली गलौज ओवर टेक करने के लिए. अजब गाड़ियाँ है. आवाज क्या सारी भारत एक्सपोर्ट कर दी ट्रक और टैम्पो के लिए? इत्ते भुख्खड़ हो क्या कि आवाज एक्सपोर्ट करके जीवन यापन कर रहे हो.
गलियों में कुत्ते न दिखने का अर्थ यह नहीं कि यहाँ कुत्ते नहीं होते मगर सिर्फ घरों में होते हैं. न जाने कैसे संस्कार हैं उनके? न तो भौंकते हैं और न काटते हैं? कई बार तो उनसे निवेदन करने का मन करता है जब कोई उन्हें घुमाने निकलता है कि हे प्रभु!! आपकी मधुर वाणी सुने एक अरसा बीता. एक बार, बस एक बार, कृपा करते और भौंक देते. जीवन भर आभारी रहूँगा. मगर कनैडियन कुत्ता, काहे सुने हमारी विनती? इन्सान तो सुनने तैयार नहीं, फिर वो तो कुत्ता है.
और फिर नफासत और नाज़ों में पले से कैसा निवेदन? उसे क्या पता निवेदन की महत्ता? उसे तो इतना पता है कि घूमने निकले हैं और जहाँ कहीं भी मन करेगा, मल त्याग लेंगे. मालिक तो साथ चल ही रहा है पोली बैग लिए, वो उठा लेगा और फैक देगा लिटर डिस्पोजल में. ये घर जाकर स्पेशल खाना खायेंगे और कूँ कां करके सो जायेंगे अपने गद्देदार मखमली बिस्तर पर एसी में. चोर यहाँ आने नहीं हैं, इनको भौंकना नहीं है. ये मस्त जिन्दगी है. नो टेन्शन!! कुत्तों को देखकर लगता ही नहीं कि कुत्ता हैं.
एक हमारे कुत्ते हैं, जिस पर भौंकना चाहिये, उस पर भौंकते नहीं गरीब भिखारी दिखा तो गली के कोने तो भौंकते हुए खदेड़ देंगे. जो दो रोटी डाल दें, उसके घर के सामने पूरी सेवा भाव से डटे रहेंगे और उसके मन की कुंठा के पर्यायवाची बने हर गुजरती कार पर भौंक भौंक कर झपटते रहेंगे. अक्सर तो उस घर पर आने वाले परिचतों पर ही झपट पड़ेगे. लाख पत्थर मारो, भगाओ मगर दो रोटी की लालसा, बस, उसी गली में परेड. गली हमारी, हम गली के मालिक. गली के कुत्ते, सड़क के कुत्ते, मोहल्ले के कुत्ते-किस नाम से नवाजूँ इन्हें!!
कई बार तो अपने नेताओं को सुनकर कि मैं सड़क का आदमी हूँ, मुझे लगने लगता है कि अम्मा कितना सही कहती थी कि जिनकी संगत करोगे, वैसे ही हो जाओगे.
इन नेताओं की हरकते देख आपको नहीं लगता कि वैसे ही हो गये हैं, जैसी संगत मिली. जब सड़क के आदमी हैं तो आकाश वालों की संगत तो मिलने से रही. भरे पेट अघाये कहीं भी भौंक रहे हैं बेवजह, किसी को दौड़ा रहे हैं, कहीं भी शीश नवा रहे हैं और बता रहे हैं दूसरे नेताओं को कुत्ता!!!
अखबार में समाचार छपा था कि किसी बड़े नेता ने किन्हीं दो बड़े नेताओं को “किसी बड़े नेता के कुत्ते” कहा! अगर अलग शब्दों में देखें तो कुत्ते ने कुत्ते को किसी कुत्ते का कुत्ता कहा, फिर इस पर बवाल कैसा?
वैसे तो एक और राज की बात बताता चलूँ कि यहाँ के नेताओं को देख कर भी नहीं लगता कि नेता हैं..खुद ही कार चला कर आयेंगे अकेले और कोई पहचानता भी नहीं तो खुद का परिचय देते हुए मुस्कराते हुए हाथ मिलाने लगेंगे. हद है, ऐसा भी कोई नेता होता है मगर फिर वहीं, यहाँ के कुत्ते देख कर भी तो यही लगता है, ऐसा भी कोई कुत्ता होता है!!
सही कहा आपने ...
जवाब देंहटाएंज्यादा सन्नाटा भी सही नहीं लगता |
मैंने एक नया ब्लॉग बनाया है, आप देख कर बताएं कैसा है |
HindiVid
ऐसा भी कोई कुत्ता होता है!!
जवाब देंहटाएंवाकई भला ऐसा भी कोई कुत्ता होता है!! वैसे कुत्तागिरी एक कला है .. लगता है कनेडियन कुत्ते इस कला से वंचित हैं.
भारत में यह कला न केवल कुत्तों में है वरन ....
कनाडा के कुत्तों के एक डेलिगेशन को भारत आकर यहाँ के कुत्तों पर शोध करनी चाहिए ,उनसे प्रशिक्षण लेना चाहिए ताकि वे भी कनाडा जाकर अपना कुत्ता धर्म निभा सके , वहां के नेता भी हमारे नेताओं के कुत्तेपन से काफी कुछ सीख सकते है :)
जवाब देंहटाएंसफर में सफर न करें तो कैसा सफर.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति।
राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
समीर जी आपने शत प्रतिशत लिखा जो रोनक भारत में है श्वान की उनके सुरों की और किसी देश में नहीं हैं
जवाब देंहटाएंएक वीडियो देखा था था जिसमे श्वान ने उच्चारण किया हमबर्गर
कुत्ते कुत्ते का फ़र्क...
जवाब देंहटाएंकनाडा का घुपला, खाया-पिया कुत्ता...खाने को हर चीज़ है भौंकना मना है...
भारत का मरगिल्ला, नालियों में मुंह मारता कुत्ता...खाने को कुछ नहीं, बस दिन-रात भौंकना ही भौंकना है...
जय हिंद...
Wahhh
हटाएंजब गाड़ी सड़क पर चल रही हो और कोई वाहन सड़क पर देर तक न दिखे तो भी हम हॉर्न बजा देते हैं। कहीं खराब न हो गया हो?
जवाब देंहटाएंसही कह रहे हो सर जी, कहने को विकासशील देश में रहते हो आप। कुत्ते तक तो भौंकना नहीं जानते। शेखावत जी का डेलीगेशन वाला कमेंट बहुत शानदार है, लेकिन डेलीगेशन लेकर भारत वाले जायेंगे। हम पुराने जगतगुरू हैं, एक्सपीरियंस वाले। और फ़िर D.O.G. साहब के साथ उनके मालिक और ट्रेनर वगैरह भी तो विदेश घूम आयेंगे।
जवाब देंहटाएंसरकारी खर्च पर टूर।
ब्लॉगजगत श्वानमय हो गया लगता है, जिधर देखो कुकुरकथा, हा हा हा।
सरजी, बना दो कनाडा को जबलपुर, हमारी तो देखी जायेगी। सड़कें, सफ़र, वाहन, कुत्ते - इतनी खामोशी, ये जीवन भी क्या जीवन है जी जिसमें नाद नहीं, आवाज नहीं।
बहुत अच्छी प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंहमेशा कि तरह..लाजवाब है समीर जी
कैसे-कैसे कुत्तों पर आपकी मान्यता पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है।
जवाब देंहटाएंकल ही आपने टिप्पणी करते वक्त कहा कि -'कुछ लिखो भी' बस लिखना शुरू किया और पता है किस पर? एक कुत्ते पर.. अजीब इत्तफाक है ना? कुछ दिन पहले ही उनसे मुलाकात हुई वो मुलाकात क्या रंग लाई यही बताते अपनी पोस्ट में, पर आपकी पोस्ट का तो हमेशा की तरह कोई जवाब ही नहीं है...
जवाब देंहटाएंहमारी जैसी जीवन्तता और कहाँ ? भौं भौं !!!
जवाब देंहटाएंaap sach mei Bharat ko miss karete hai.
जवाब देंहटाएंथोडा डायरेक्ट और तीखा हो गया
जवाब देंहटाएं“कुत्ता विहिन गलियाँ विधवा की मांग सी सूनी लगती हैं.”
जवाब देंहटाएं“आवाज क्या सारी भारत एक्सपोर्ट कर दी ट्रक और टैम्पो के लिए? इत्ते भुख्खड़ हो क्या कि आवाज एक्सपोर्ट करके जीवन यापन कर रहे हो.”
सबसे पहिले त आपका ई दूनो लाईन समीर भाई हमरे दिल में बईठ गया. का बात बोले हैं. लेकिन ई गेंडा को कुत्ता बोलिएगा त कइसे चलेगा...आप केतनो पोस्ट लिख लीजिए ईनेता लोग पर कोनो असर नहीं होने वाला है...सिरीलाल सुक्ल जी जो कुकुराहो (कुत्ता सब का लड़ाई) का जो बर्नन किए हैं ऊ संसद के सेसन में देखाई देता है...बाकी टाईम त ई लोग गेंडा का खाल ओढकर सुतल रहता है. बहुत अच्छा तुलना किए हैं!!!
“कुत्ता विहिन गलियाँ विधवा की मांग सी सूनी लगती हैं.”
जवाब देंहटाएं“आवाज क्या सारी भारत एक्सपोर्ट कर दी ट्रक और टैम्पो के लिए? इत्ते भुख्खड़ हो क्या कि आवाज एक्सपोर्ट करके जीवन यापन कर रहे हो.”
सबसे पहिले त आपका ई दूनो लाईन समीर भाई हमरे दिल में बईठ गया. का बात बोले हैं. लेकिन ई गेंडा को कुत्ता बोलिएगा त कइसे चलेगा...आप केतनो पोस्ट लिख लीजिए ईनेता लोग पर कोनो असर नहीं होने वाला है...सिरीलाल सुक्ल जी जो कुकुराहो (कुत्ता सब का लड़ाई) का जो बर्नन किए हैं ऊ संसद के सेसन में देखाई देता है...बाकी टाईम त ई लोग गेंडा का खाल ओढकर सुतल रहता है. बहुत अच्छा तुलना किए हैं!!!
कुत्ते तो कु्ते है जी, जब से आदमी कुत्ता हुआ है,सुना है तब से कुत्ते आदमी बनने की फ़िराक में हैं। यत्र-तत्र-सर्वत्र सब कुत्ते ही कुत्ते। पूरी दुनिया के कुत्तों में एक समानता है,जहां बिजली का खंबा या गाड़ी का टायर मिला वहां बस----। इससे ही इनकी पहचान होती है।
जवाब देंहटाएंआज तो आपने मनमोहनी पोस्ट लि्ख मारी है
आभार
राम राम
हमारे जैंगो भी बहत संस्कार वाले हैं... बिलकुल भी नहीं भौंकते हैं.... और काटने का तो सवाल ही नहीं उठता उनका... वो इतने तमीज़दार हैं... कि जब भी कोई मेहमान आएगा... तो उसे गेट से घर के अंदर तक लेके आयेंगे.... एक दिन हमने जैंगो से कहा कि जैंगो आप भौंको ...और हम आपकी भौंक को रिकॉर्ड करेंगे ... और उसकी रिंग टोन बनायेंगें... लेकिन... वो इतने नफासत वाले हैं... कि ज़ोर से बोलना ... बदतमीज़ी समझते हैं..... और हमारे जैंगो जब खाना भी खाते हैं... तो बिलकुल भी अवाज़ नहीं करते... एक बार हमने उनसे ... केक शेयर कर लिया... तो उन्होंने बहुत प्यार से धीरे से बोल कर (गुर्रा कर) हमें कहा कि ऐसे नहीं करते... पर हमारे जैंगो ऐसे हैं कि जब उन्हें पोट्टी आती है तो बता देते हैं.... सू-सू भी आती है तो बता देते हैं.... और पोट्टी .... होटल ताज जो हमारे घर से थोड़ी ही दूरी पर है... उसके पिछवाड़े में जा कर करते हैं.... हम लोग कहते भी हैं.... कि हमारे जैंगो पोट्टी फाइव स्टार में जा कर करते हैं... और जब पोट्टी कर के आते हैं तो पोट्टी पाइप से धुलवाते भी हैं.... और अपने हाथ /पैर धुलवा कर ही घर के अंदर घुसते हैं.... हमारे पडोसी भी उत्तर प्रदेश के तमाम मंत्री , अफसर और नेता हैं.... और सबसे बड़ी बात कि हमारे जैंगो इनसे बात करना भी नहीं पसंद करते हैं.... हमारे जैंगो नेताओं को बहुत ही बिलो स्टैण्डर्ड का समझते हैं... वैसे भी हमारे जैंगो एक सेलिब्रिटी हैं... तो थोडा घमंड में रहते हैं....
जवाब देंहटाएं"अखबार में समाचार छपा था कि किसी बड़े नेता ने किन्हीं दो बड़े नेताओं को “किसी बड़े नेता के कुत्ते” कहा! अगर अलग शब्दों में देखें तो कुत्ते ने कुत्ते को किसी कुत्ते का कुत्ता कहा, फिर इस पर बवाल कैसा?"
जवाब देंहटाएंबढिया पोस्ट..
इस पोस्ट मे काफ़ी सेन्टीमेन्ट्स दिखे.. लग रहा है भारत को मिस कर रहे है..
ओह आजकल ब्लाग जगत में श्वान चिंतन पर जोर है !
जवाब देंहटाएंसमीर भाई मुझे ठीक से याद नहीं पर शायद काफी पहले आप इस मुद्दे पर लिख चुके हैं ?
अब बचपन से अभी तक जो सुख की परिभाषायें पढ़ते और गढ़ते आये हैं, वे सहसा बदलने का मन बना लें तो अटपटा तो लगता है। हम लोग भी विदेश जाकर इतने भारतीय कहाँ रह पाते हैं। कहीं झगड़ा हो तो बातचीत से सुलझाने बैठ जाते हैं। यहाँ तो पहले ही दो झापड़ रसीद कर बातचीत की शर्तें व्यक्त करने की परम्परा रही है।
जवाब देंहटाएंBharat me horn aur overtaking se to pareshan zaroor rahte hain,lekin any sab cheezen to bhai ....Bharat bharat hi hai! Kahin aur janeki manme aatee hi nahee baat!
जवाब देंहटाएंAapka warnan padh laga jaise sab kuchh samne ghat raha ho!
बढ़िया!
जवाब देंहटाएंकुत्ते तो वाकई विकसित देशों के कुछ और ही किस्म के होते हैं। एक बार इनके मालिक इन्हे भी भारत भ्रमण करा दें तो इन्हे भी वहाँ के कुत्तों की संगत में कुछ आध्यात्मिक किस्म की अनुभूति हो जाये, Living on the edge क्या होता है ये तो इन्हे भारत के कुत्तों से मिलकर ही पता चलेगा।
वैसे खामोशी का मामला इअसा है कि इस बात की तस्दीक करनी जरुरी है कि क्या सलीम जावेद शोले लिखने से पहले कनाडा या यूरोप गये थे क्या नहीं तो हंगल साब को ऐसा संवाद कैसे देते," इतना सन्नाटा क्यों है भाई "?
आपने शायद वो लतीफा सुना होगा : एक बार एक साहब कनाडा से भारत भ्रमण को आए. एक देसी को सड़क में सरकारी दीवार पर खुलेआम शास्त्रीय शैली में लघुशंका करते देख उन्होंने उत्सुकतावश पुछा, "ये क्या करता है. हमारे कनाडा में ऐसा खुलेआम करो तो पुलिस आ के पकड़ लेता है.."
जवाब देंहटाएंदेसी ने भोलेपन से एक जवाब दिया .......
चलिए छोड़िये, पहली पोस्ट के लिए थोडा ज्यादा हो जाएगा ये चुटकुला .. निदा साहब की एक शेरनुमा तुकबंदी ही सुन लीजिये.
हर तरफ हर जगह बेशुमार आदमी,
फिर भी तनहाइयों का शिकार आदमी!
कई बार तो अपने नेताओं को सुनकर कि मैं सड़क का आदमी हूँ, मुझे लगने लगता है कि अम्मा कितना सही कहती थी कि जिनकी संगत करोगे, वैसे ही हो जाओगे.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति ....अच्छा व्यंग लिखा है ...
कुत्ता, नेता, शोर-शराबा
जवाब देंहटाएंभारत की पहचान क्या अब यही रह जायेगी?
aap to har topic ko interesting banaa sakte hain ...
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक प्रस्तुति. बिना किसी को निशाना बनाये आपने सब कुछ बहुत साफ़ तरीके से कह दिया.
जवाब देंहटाएंसमीर जी, आपने सही कहा है......
जवाब देंहटाएंसंगति का ही असर होता है,
यदि हम अपने को पहचाने तो
क्या यह नहीं लगता कि हम भी वही हैं
जैसी हमारे इर्द-गिर्द जो जीवात्माएं है।
पशु-पक्षी हो या मानव!
आपने गली के जिस सन्नाटे का शब्द चित्रण वह यहाँ बैठ कर विश्वास करना जरा मुश्किल सा लगता है :)कुछ आवाजों और कुछ आदतों से अलग हो कर जीना वाकई मुश्किल सा लगता है ..अच्छी पोस्ट ...
जवाब देंहटाएंन जाने कैसे संस्कार हैं उनके? न तो भौंकते हैं और न काटते हैं? कई बार तो उनसे निवेदन करने का मन करता है जब कोई उन्हें घुमाने निकलता है कि हे प्रभु!! आपकी मधुर वाणी सुने एक अरसा बीता. एक बार, बस एक बार, कृपा करते और भौंक देते. जीवन भर आभारी रहूँगा. मगर कनैडियन कुत्ता, काहे सुने हमारी विनती? इन्सान तो सुनने तैयार नहीं, फिर वो तो कुत्ता है.
जवाब देंहटाएंऐसा भी कोई कुत्ता होता है...क्या कमाल लिखते हैं आप !
aaj kutton ko jarur hichki aa rahi hogi..itni tabiyat se un par puran jo likha gaya hai :) hehehe
जवाब देंहटाएंसमीर भाई, बातों बातों में आज फिर बहुत कुछ कह गए आप .........लाजवाब !
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति,
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें...
Bahut hi sahi bakhaan kiya hai aapane yahan ke sunepan ko ...galiyon me I mean sadakon par kutte phir bhi nazar aajaaenge magar kisi Car main baithe khidaki se bahar jhankate hue lekin unka bhaunka sunana dubhar hai :)
जवाब देंहटाएंDhanywaad
100% sahi farmaya hai ...ye jeena bhi koi jeena hai...
जवाब देंहटाएंकुत्तों पर पहली नजर
जवाब देंहटाएं"कुत्ते ने कुत्ते को किसी कुत्ते का कुत्ता कहा, फिर इस पर बवाल कैसा"
जवाब देंहटाएंआपको भी कुत्ते याद आ गए :-)
आभार महाराज
पहली तस्वीर जो लगाया है आपने वो कुत्ता बड़ा ही प्यारा है! आपका ये पोस्ट मुझे लाजवाब और दिलचस्प लगा! बढ़िया प्रस्तुती !
जवाब देंहटाएंbahut khoob sir. mujh jainse chote insaan ki hosla afjai ke liye sukriya............
जवाब देंहटाएंवाकई ...ये कुत्ते भी कोई कुत्ते हैं ...!
जवाब देंहटाएंझक्कास पोस्ट ...!
neta aur kutta....main to kahunga kutte unse lakh guna behtar hai..
जवाब देंहटाएंहा हा हा हा....कुत्ता और नेता, अगर सड़क का न हो..भौंके नहीं, तो धिक् है इनकी जात और जनम पर.....
जवाब देंहटाएंअंतर बड़ा जबरदस्त बताया आपने...कन्क्लूजन यही निकला कि कुत्ता हो या नेता,प्रवृत्ति एक सामान होती है,चाहे इस देश के हों या उस देश के...
कितना तो बढ़िया लेख चल रहा था किन्तु अन्त तक आते आते आपने कुत्तों का बहुत अपमान कर दिया। मैं हूँ कुत्ता प्रेमी, सो दुखी हो गई। कुत्तों की भी किस किस से तुलना करते हैं आप!
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
गिरिजेश राव जी टिप्पणी ईमेल से प्राप्त:
जवाब देंहटाएं@ http://udantashtari.blogspot.com/2010/08/blog-post_12.html
टिप्पणी नहीं हो पा रही इसलिए मेल से प्रतिक्रिया:
आज कल कुत्तों की बहार है। व्यंग्य धारदार है।
@ ठंडी रात में कई बार डर सा लग जाता है कि कहीं मर तो नहीं गये जो शमशान में सोये हैं. न कुत्ता रो रहा है, न ही कोई धत धत बोलता सुनाई दे रहा है. हड़बड़ा कर उठ बैठता हूँ. जब खुद को चिकोटी काट कर दर्द अहसास लेता हूँ तो संतोष हो जाता है कि घर पर ही हूँ, अभी मरा नहीं.
बहुत देर तक इस अंश के जाने कितने अर्थों पर सोचता रहा। बहुत दिनों के बाद ऐसा कुछ पढ़ने को मिला।
इसे कहते हैं व्यंग्य ! ज़िन्दगी के मायने कितने अलग अलग हैं ! हो जाते हैं। बना दिए जाते हैं। आभार।
कुत्तो पर भी आपने काफी शोध कर लिया .... अब जल्दी से जबलपुर आ जाइए बारिश के सीजन में वही गड्डों भारी यादें तरोताजा करने के लिए ... इंसान घर की यादें कभी विस्मृत नहीं कर सकता है आप भी नहीं ... आखिर अपना वतन और अपना घर ही सब कुछ होता है ... काफी भावपूर्ण पोस्टऔर अच्छा खासा व्यंग्य ... आभार .
जवाब देंहटाएंसमीर भाई मुझे तो कनाडा के कुत्तों से जलन होने लगी है। कितने सुकून से रहते हैं वहां।
जवाब देंहटाएंमजा आ गया समीर जी पढ़कर..........
जवाब देंहटाएंवैसे मैंने जबलपुर में तीन माह काटे हैं। नईदुनिया अखबार में काम करता था। देर रात कमरे पर लौटना होता था। ताज्जुब की बात यह है कि शायद आपके कैनेडियाई कुत्तों का असर उस दौरान रहा। रात में सड़क पर कई कुत्ते मिलते थे, लेकिन वे भौंकते नहीं थे।
ha ha ha .... bahut sundar prastuti padhkar maza aagaya!
जवाब देंहटाएंआपकी बात से यही सिद्ध होता है कि भूखे पेट वाला कुता ही भौंकता है. कनाडाई कुत्ते खाये पीये अघाये हैं.:)
जवाब देंहटाएंरामराम.
आपकी बात से यही सिद्ध होता है कि भूखे पेट वाला कुता ही भौंकता है. कनाडाई कुत्ते खाये पीये अघाये हैं.:)
जवाब देंहटाएंरामराम.
अजी कनाडियन कुत्तों जैसे कुत्ते तो यहाँ भी मिल जाते हैं ।
जवाब देंहटाएंलेकिन यहाँ जैसे होमो सेपियंस वहां नहीं मिलेंगे ।
अब ये तो अपनी अपनी किस्मत है ।
कहीं कुत्ते आदमी से बेहतर , कहीं आदमी कुते से बदतर --- रोल रिवर्सल ।
Bahut badhiya bhai sahab.. lajawab vyang..
जवाब देंहटाएंNav Bharat Jabalpur me 1 saal se adhik samay tak raha.. mujhe yaad hai, der raat ko ghar me ghusne se pehle makan malik ke kutte ko ek roti ki rishwat deni padti thi..jo me apne tiffin se bacha kar rakhta tha.
जवाब देंहटाएंन जाने कैसे संस्कार हैं उनके? न तो भौंकते हैं ेन काटते हैं? कई बार तो उनसे निवेदन करने का मन करता है जब कोई उन्हें घुमाने निकलता है कि हे प्रभु!! आपकी मधुर वाणी सुने एक अरसा बीता. एक बार, बस एक बार, कृपा करते और भौंक देते. जीवन भर आभारी रहूँगा.
जवाब देंहटाएंहे भगवान ई कैसन गजब भया?ईका मतबल कनाडा के कुत्ते तो कुत्ते होने लायक ही नाही?
असल कुत्ते त हमार हिंदुस्तानी कुत्ते होत हैं. इहां पर त कुत्ते भी बिना इंतकाम लिये नाही मानत हैं. जो कुत्ता इंतकाम नाही लेवे उसका कुत्ता होने पर धिक्कार है. जय हो कुत्ते के इंतकाम की.
"यहाँ रहो तो वहाँ, वहाँ जाओ तो यहाँ"
जवाब देंहटाएंये दुनिया हो या वो दुनिया अब ख्वाहिशे दुनिया कौन करे :)
एक जानदार व्यंग्य.. एक शानदार व्यंग्य.. मैं चूक गया आपने पहले ही लिख डाला.. :)
जवाब देंहटाएंकुत्ता पुराण तो बहुत शानदार रहा!
जवाब देंहटाएं--
ऐसे प्रतीत होता है कि आपने कुत्ता सबजेक्ट पर पी.एचडी. की है!
बढ़िया प्रस्तुति,
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें.
अमेरिका में तो एक कहावत गढ रखी थी कि यहां के कुत्ते भौंकते नहीं और बच्चे रोते नहीं। यदि कहीं बच्चा रो रहा है तो समझो भारतीय है।
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंभारत की भला क्या तुलना करना और क्यूँ करना?
जवाब देंहटाएंकमल हसन की 'मूक' फिल्म पुष्पक का वह दृष्य याद आ गया जब फाईव स्टार होटल के कमरे में नींद न आने से परेशान नायक, अपनी बस्ती की आवाजें रिकॉर्ड कर लाता है फिर चैन की नींद सोता है
मुझे भी लगता है कि आप भारत को 'मिस' कर रहे :-)
बी एस पाबला
बहुअर्थ भरा लेख है. प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए भी संशय हुआ जा रहा है कि न जाने ऊंट किस करवट बैठा मिले...
जवाब देंहटाएंसमीर जी,व्यंग्य के साथ साथ प्रवासियों की उलझन और उहापोह का वर्णन भी आपने बड़े सटीक ढंग से किया है|
जवाब देंहटाएंहम भारतीयों को तो यहीं का शोर भरा लेकिन आत्मीय जीवन सुहाता है.कनाडा पहुँच कर जब घर फोन किया तो माँ ने पूछा कि कैसा लग रहा है ?मेरा जवाब था कि जगह तो खूबसूरत है पर निष्प्राण लगाती है.जब वापिस आई तो यह लगा कि वह सन्नाटा ही शायद बेहतर है |अपनी हालत तो धोबी के कुत्ते जैसी हो गयी है|न घर के रहे न घाट के |
अजी यह नस्ल पर नही खाने पर होता है, हमारे गांव के सभी कुते कभी नही भोंकते... ओर हमारा शेर रोटिया खा कर उन्हे घर तक छोड कर आता है, आवाज ऎसी की तीन मील तक सुनाई दे,गोरो के कुते डबल रोटी ओर ब्रेड खाते है यह कहा मुकबला कर सकते है, ओर हमारा शेर हरी मिर्च भी बहुत चाव से खाता है, मधु मक्खी घर मै घुस कर तो दिखाये.... बस काटता नही:)
जवाब देंहटाएंसर जी , व्यंग्य वाकई मजेदार है | नेता और कुतों के स्वाभाव में कुछ खास फर्क नहीं होता | दोनों ही जरुरत के समय न भोंककर बेवजह भोंकने के आदि होते है |
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं"खैर, यह उहापोह की स्थिति तो बनती बिगड़ती रहती है हर प्रवासी के साथ. यहाँ रहो तो वहाँ, वहाँ जाओ तो यहाँ. "
जवाब देंहटाएंसमीर जी आपने एकदम सही लिखा है प्रवासी के मन की उहा-पोह के बारे में.. ऐसा ही होता है लगभग हर बार मेरे साथ भी .... हमारी मनःस्थिति ही ऐसी ही हो गयी है कि यहाँ रहें तो वहां की याद सताती है और वहां जाएँ तो यहाँ के गुण याद आते हैं
मगर कनैडियन कुत्ता, काहे सुने हमारी विनती?
जवाब देंहटाएंसर विनती हिंदी में कर दी होगी। अब उन्हें कहां हिंदी समझ आएगी।
"कुत्ता विहिन गलियाँ विधवा की मांग सी सूनी लगती हैं" हे हे. अब सदा सुहागन का आशीर्वाद तो नहीं ही दे सकते अपनी सड़कों को :)
जवाब देंहटाएं...न जाने कैसे संस्कार हैं उनके? न तो भौंकते हैं और न काटते हैं?
जवाब देंहटाएं... chhaa gaye sameer bhaai ... bahut khoob !!!
बहुत अच्छी प्रस्तुति.......
जवाब देंहटाएंबातों बातों में बहुत कुछ कह गए है आप !!!
.... फिर भी ... कुत्तों मे कुछ इंसानियत तो बाकी है ... बाकी तो इंसानों के कुत्तेपन का कहना ही क्या
जवाब देंहटाएंजब से मैंने पढ़ा कि युद्धिष्ठिर ने कुत्ते के बिना स्वर्ग में प्रवेश करने से इनकार कर दिया था,मेरे मन में कुत्तों के लिए विशेष स्थान बन गया था। मगर इन नेताओं को देखने के बाद तो.............
जवाब देंहटाएंज़रा कनाडाई कुत्तों को पता चलने दीजिए कि आप उनकी तुलना नेताओं से कर रहे हैं। फिर सुनिएगा उनकी भौंक।
जवाब देंहटाएंwaqai kya kamaal ka likhte hai aap sir.aapki koi post aesi nahi hoti,jo haqikat se saamna na karaati ho.
जवाब देंहटाएंbahut badhiya prastutikaran.
poonam
बहुत ही नजाकत और नफासत से अपनी बात कहेना. - क्या कहेना दद्दा आपका.
जवाब देंहटाएंहाँ एक बात और - बाबा नागार्जुन की एक कविता याद आ गयी....
कुत्तों ने भी कुत्ते पाल लिए देखो भाई.
पर मुझे बहुत कोफ़्त होती है - घरों में पलने वाले कुत्तों पर. सुबह पार्क में तहेलने जाओ और ये कुत्ते वाले अपने कुत्तों को पार्क की पटरी पर गंदगी फ़ैलाने को छोड़ देते है - बहुत गुस्सा आता है - तो अपने गली के ये आवारा कुत्ते भी सलीकेदार लगते है - जो पार्क की पटरियों पर तो शुशु पोती नहीं करते.
बहुत अंतर है!
जवाब देंहटाएंतुलना में भी देश प्रेम की झलक आ रही है |
जवाब देंहटाएंवाह मज़ा आ गया ! क्या उपमाएं दी हैं - " कुत्ता विहिन गलियाँ विधवा की मांग सी सूनी लगती हैं" पर होशियार कुत्तों की तुलना नेताओं से करके आपने अच्छा नहीं किया. कुत्ते नेताओं की तरह दल नहीं बदला करते, जिसकी रोटी खाते हैं उसी के आगे पूँछ हिलाते हैं, लेकिन इतना तो सच है कि कुत्ते हमारे हिन्दुस्तान की गलियों की जान हुआ करते हैं और बिन कुत्ता वो वैसे ही लगती हैं जैसा आपने ऊपर बताया है.
जवाब देंहटाएंआपने तो कुत्तों को आईना दिखा दिया ……………अरे नही नही ,नेताओं को आईना दिखा दिया……………नही, आपने तो बस आईना बीच मे रख दिया हर तरफ़ एक ही चेहरा नज़र आ रहा है……………आज का सच दिखा दिया।
जवाब देंहटाएंअच्छी पोस्ट ।
जवाब देंहटाएंकुत्ता विहिन गलियाँ विधवा की मांग सी सूनी लगती हैं.
वाह समीर जी आप भी ना हँसी दिला ही देते हो!
मा
जवाब देंहटाएंफ करना मुक्ति आपसे यह उम्मीद नहीं थी। अव्वल तो समीर भाई को भी कम से कम यह उपमा तो नहीं देनी चाहिए थी। अगर वे व्यंग्य कर रहे हैं तो बहुत तीखा व्यंग्य है। मांग का सिंदूर यानी..। उस पर आप भी समर्थन कर रही हैं।
वहाँ लोग कुत्ते पालते क्यों है। तौहीन है कुत्ते की ।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया!
जवाब देंहटाएंइसकी चर्चा चर्चा मंच पर भी है!
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http://charchamanch.blogspot.com/2010/08/244.html
jai ho kis shaan se jai hind kahaa hai. ham to fan nahin coolar nahin nahin AC ho gaye aapke.
जवाब देंहटाएंतब तो वाकई बड़ी बोर जिंदगी जी रहे हैं ....
जवाब देंहटाएंऐसे शांत माहौल में आत्मा और भी बेचैन हो जाएगी.
व्यंग्यकार तो ऐसा व्यंग्य लिखते होंगे कि पढ़कर माथा पीट लें.
तभी आप 1-2 माह के लिए भारत आते हैं ताकि उर्जा मिलती रहे.
बढिया पोस्ट
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी पोस्ट है भारत भक्ति अच्छी लगी
जवाब देंहटाएंकुत्ते तो कुत्ते है लेकिन भारत क़े कुत्ते भी वफादार होते है
बिदेशी क्या जाने कुत्तो क़ा हाल भारतीयों से पूछो
और नहीं तो नेताओ से.
वैसे ब्लॉग जगत के ...... के बारे में क्या ख्याल है? कभी इनपर भी लिखें।
जवाब देंहटाएं………….
सपनों का भी मतलब होता है?
साहित्यिक चोरी का निर्लज्ज कारनामा.....
हम तो इत्ता जानते हैं कि आधुनिक युग मे प्रवृत्ति के हिसाब से इस प्राणी का जितना अभूतपूर्व विकास हुआ है. उतना तो शायद मनुष्य का भी नहीं हुआ है.इंसानो के साथ रहते हुए कुछ तो अपने को कुत्ता ही नहीं समझते. उनका अपना अहंकार होता है, अपनी ही एक अलग चाल होती है. वे आपकी तरफ़ देखेंगे तो कुछ इस तरह जैसे यह उनकी कृपा है कि वे आपको देख रहे हों. वे कुत्तों में अपने को आर्य समझते हैं :)
जवाब देंहटाएंha....ha...ha...ha....ha..ha... mazaa aa gayaa mujhe meri jaat ke baare men padhkar.....sach sameer ji....
जवाब देंहटाएंदेरी से आने के लिए क्षमा. आपकी कनाडियन कुत्तों का व्यवहार पढ़ कर मुझे डा.अजित जी की लिखी पुस्तक 'सोने की जंजीरे' के वृतांत याद आ गए . उन्होंने भी अमरीका का यही माहोल वर्णन किया है.
जवाब देंहटाएंबाकी रही नेताओ की बात तो आज कल नेता क्या हमारे अभिनेता भी तो कुत्तों की बात करने लगे है अब देखना ये है की उन पर संगत का असर क्या होता है ?
स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंबहुत सही लिखा अंकल जी...
जवाब देंहटाएं________________
स्वतंत्रता दिवस की बधाइयाँ..!!
असली कुत्तागिरी सीखनी हो तो इन कनाडाई कुत्तों को भारत के योग्य कुत्ता गुरुओं से दिक्षा लेनी चाहिये.:)
जवाब देंहटाएंस्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंbahut sundar post, swatantarata divas ki subhakamanae.
जवाब देंहटाएंपूरा श्वान-चालीसा ही लिख दिया...मजेदार.
जवाब देंहटाएंस्वाधीनता-दिवस की हार्दिक शुभकामनायें...जय हिंद !!
विविधता से भरा है यह विश्व...बस कुत्ते भी ऐस ही हैं और स्वभाव में परिवर्तन को आस-पास के माहौल से हो जाता है भारत में बेचारे भूखे रहते है सो दो रोटी डालने वालों के आगे दूम हिलाते रहते है और भिखारी उन्हे अजनबी लगता है...
जवाब देंहटाएंकुछ भी हो आपका यह आलेख बहुत ही लाज़वाब बन पड़ा है..सुंदर व्यंग्यात्मकता लिए प्रस्तुति..बधाई..
समीर जी..भारत को आज़ाद हुए आज ६३ साल हो गये...स्वतंत्रता के सालगिरह की हार्दिक बधाई....
जवाब देंहटाएंवहां के कुत्तों की जातिगत गणना कर के रिपोर्ट करें, ताकि वहां भी आरक्षण चालू किया जा सके.
जवाब देंहटाएंयहां के कुत्तों के मज़े हैं, क्योंकि स्वामिभक्ति का उपहार चुनावों में टिकट के रूप में मिल ही जाता है!!
स्वातंत्रता दिवस की शुभकामनायें. वहां आज के दिन क्या माहौल होता है?
स्वतंत्रता दिवस के पावन अवसर पर
जवाब देंहटाएंआपको बहुत बहुत बधाई और शुभ कामनाएं
स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आप एवं आपके परिवार के सभी सदस्यों को शुभकामनाएं और बधाई !
जवाब देंहटाएंMeri Nayi Kavita par Comments ka intzar rahega.....
A Silent Silence : Hum Kyu Bade Hue...
Banned Area News : Karnataka News
स्वाधीनता दिवस की अनन्त शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंकमाल की बात है जी के इतने लोगों में इस पोस्ट का सैंट्रल आयडिया सिर्फ़ हमें ही समझ में आया। और मज़े की बात यह है कि हमें उसे चुपचाप समझ कर जेब में रखना होगा। किसी को बता भी नहीं सकते। हा हा।
जवाब देंहटाएंHehehe...Sirji, padhkar maza aa gaya.
जवाब देंहटाएंHappy Independence day to you too!
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें
जवाब देंहटाएं... behatreen ....svatantrataa divas kee badhaai va shubhakaamanaayen !!!
जवाब देंहटाएंबेहद ही उम्दा व्यंग है भाईसाहब ..
जवाब देंहटाएंखैर यहाँ जब वे सभी कुत्ते एक जगह इकट्ठे होते है (और हमारे यहाँ तो उन्हें इतना सम्मान दिया जाता है की उनका सजीव प्रसारण हो सके इस लिए एक अलग से चैनल ही बना दिया गया है )तो हमें उन्हें देखकर उतना ही आनंद आता है जितना की मेरे भाई को WWE fighting देखने पर....!! :-)
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स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आप एवं आपके परिवार का हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ !
आपको भी स्वतंत्रता दिवस की बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा व्यंग है
स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर आपको बहुत बहुत बधाई .कृपया हम उन कारणों को न उभरने दें जो परतंत्रता के लिए ज़िम्मेदार है . जय-हिंद
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंस्वतंत्रता दिवस के शुभ अवसर पर हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंयह सही कहा आपने । यहाँ के कुत्तों के जिंदगी में अभाव है ही नही । भारत के इन्सानों से बढ कर ऐशो आराम है यहाँ कुत्तों को । पर यहां एन्डरसन में तो देख कर लगता है सब कुछ है पर प्यार नही है जब हम शाम को घूमने जाते हैं तो अपनी बाड के पास आकर उछल उछल कर, भोंक कर भी ये जीव चाहते हैं कि हम कुछ कं कुछ नही तो हाथ ही हिला दें फिर चुप हो जाते हैं ।
जवाब देंहटाएंsir ji aap ka blog kaise follow kare
जवाब देंहटाएंaap se mil ke/ya yun kahun padh ke bahut achha laga ....
बहुत बढ़िया लिखा है, आनंद आ गया.
जवाब देंहटाएंआभार
मनोज खत्री
हमने तो अभी असल माहौल ही देखा है।
जवाब देंहटाएंदिल खुश कर दिया आपने अपने दिल से अपने देश की माटी की खुशबू को दरसाने का क्या जबरदस्त आईडिया निकाला है. बस वाह वाह कहना चाहूंगा ...
जवाब देंहटाएंसचमुच दया के पात्र है कनाडा के कुत्ते ।
जवाब देंहटाएं