शाम को टहलने निकलता हूँ लगभग ४५ से ५० मिनट के लिए. शुद्ध हवा मिल जाती है. मन बहल जाता है और स्वास्थय पर भी अगर अच्छा नहीं, तो कम से कम बुरा प्रभाव तो नहीं ही होता है.
वैसे भी यहाँ पूरे शहर भर सड़क के किनारे किनारे वाक वे बने रहते हैं और हम जैसे जो शहर से थोड़ा दूर रहने वाले, रहवासी इलाकों में तो हरियाली, पार्क आदि से इन वाक वे पर चलना बहुत सुखद अनुभूति होता है.
कुछ चित्र संध्या भ्रमण के दौरान लिए गये.
रास्ते में रोज एक खरगोश मिल जाता है. मैने उसका नामकरण भी कर दिया है ’चीकू’.
शायद बचपन में पढ़ी चंपक का असर रहा हो इस नामकरण में. मुझे तो लगता है कि चीकू जान गया है कि कब मैं उसके एरिया से निकलूंगा. कोने में बैठा इन्तजार करते ही मिलता है. बस, देखेगा और फुदक फुदक कर अपनी खुशी जाहिर करेगा.
कई दिन से सोचता था कि अपने इस दोस्त की तस्वीरें ली जाये तो एक दिन कैमरा लेते गया साथ में. बड़ी खुशी खुशी तस्वीरें खिंचवाईं चीकू ने. डरता तो बिल्कुल ही नहीं है. जान गया है कि ये मारेंगे नहीं, बस, और क्या चाहिये.
आज देखा कि उसने दो प्यारे प्यारे बच्चे दिये हैं. दोनों चलने लग गये हैं मगर अभी जरा डरपोक हैं. पास जाओ तो छिप जाते हैं. शायद दो चार दिन में जानने लगेंगे.
क्या नाम रखूँ उनका??
आज एक अजीब बात देखी. आज तो क्या, देख बहुत समय से रहा था, जाना आज. यहाँ बहुत सारे घरों के सामने उल्लू की मूर्ति या पेन्टिंग लगी होती है दरवाजे पर.
बड़ी उत्सुकता थी जानने की कि आखिर उल्लू क्यूँ बैठालते हैं घर के सामने. घर का सामना तो शो रुम सा ही हुआ, उसी को देखकर तो अंदाज लगेगा कि दुकान में घुसा जाये या नहीं. मगर ज्ञात हुआ कि नहीं, घर के सामने से जो हिस्सा घर को रिप्रेजेन्ट करता है अगर वहाँ से उल्लू दिखे तो वह बहुत शुभ माना जाता है. समॄद्धि आती है. नाम होता है.
मेरे देश की संसद में बैठे राजनेता भी मेरे देश को रिप्रेजेन्ट करते हैं और जहाँ तक उल्लू बैठालने का सवाल है, उसमें हमने कोई भूल नहीं की. पूरे ५५० बैठाये हुए हैं. फिर आखिर समृद्धि क्यूँ नहीं आ रही है.
जरुर यह इन लोगों का अंध विश्वास होगा. उल्लू है ये भी. मेरे समझाने से थोड़ी न समझेंगे. जिस दिन धोखा खायेंगे, खुद समझ जायेंगे मगर तब कुछ कर पाने की स्थितियाँ नहीं बचेंगी.
हम ही क्या कर पा रहे हैं.
शायद इनके यहाँ इस श्लोक के पाठ का ज्ञान नहीं है:
बरबाद-ए-गुलिस्तां करने को बस एक ही उल्लू काफी था,
हर शाख पर उल्लू बैठा है, अंजाम-ए-गुलिस्तां क्या होगा.
मेरा ख़्याल है कि भारत का उदाहरण देकर, आपको अब ये बात अपने आस-पास के लोगों को बता ही देनी चाहिये कि उनकी धारणा में कोई दम नहीं है :)
जवाब देंहटाएंschitr karara vyagngy! shandaar prastuti.
जवाब देंहटाएंसटीक व्यंग्य ।
जवाब देंहटाएंआपका आलेख गहरे विचारों से परिपूर्ण होता है।
जवाब देंहटाएंमेरे देश की संसद में बैठे राजनेता भी मेरे देश को रिप्रेजेन्ट करते हैं और जहाँ तक उल्लू बैठालने का सवाल है, उसमें हमने कोई भूल नहीं की. पूरे ५५० बैठाये हुए हैं. फिर आखिर समृद्धि क्यूँ नहीं आ रही है.
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक कटाक्ष !!
चीकू के बच्चों के नाम....हनी-बनी...
जवाब देंहटाएंइन उल्लुओं ने ही तो पूरे देश को हुड़कचुल्लू बना रखा है...
जय हिंद...
प्रश्न का जवाब भी पूरे 545 उल्लु ही देगें।
जवाब देंहटाएंजिसका इंतजार 63 बरसों से हो रहा है।
जब ये उल्लु हो गए तो असली उल्लुओं के रोजगार की समस्या खड़ी हो जाएगी। अगर लक्ष्मी जी पता चल गया।
जय जोहार
पैसा तो बेहिसाब है पर विकास नहीं। उल्लू तो धन का प्रतीक है न कि विकास का।
जवाब देंहटाएंलक्ष्मी जी की कृपा बस उल्लुओं तक ही सीमित रह जाती है...जब तक उल्लू बीच में है बाकी के पास कुछ नही आने वाला..कुछ नेक उल्लुओं की ज़रूरत है,रही बात गुलिस्ता के अंजाम की तो वो तो हम सब भलीभाँति देख ही रहें है...बढ़िया सुंदर और मजेदार प्रस्तुति....धन्यवाद
जवाब देंहटाएंवाह ! चीकू के पुत्तर पुतरी को मीकू मिनी कहकर नामकरण संस्कार कराएं -
जवाब देंहटाएंयाहं उल्लू नहीं गिद्ध बैठते है -उल्लू तो बिचारा सोझ और बुद्धिमान पक्षी हैं !
बरबाद-ए-गुलिस्तां करने को बस एक ही उल्लू काफी था,
जवाब देंहटाएंहर शाख पर उल्लू बैठा है, अंजाम-ए-गुलिस्तां क्या होगा.
"संध्या भ्रमण के हरे भरे चित्र बेहद मनभावन लगे, और चीकू और भी प्यारा...."
regards
sair ko jate hue khargosh to hume bhee dikta hai bhoora hai safed nahee.
जवाब देंहटाएंUllu ki bhali kahee aji Lakmi ji ka wahan hai gadi parked hai to malkin bhee ander hee hongi na ?
समीर भाई, इन उल्लुओं को उल्टा टांगना (लटकाना) पड़ेगा तो समृधि आएगी...
जवाब देंहटाएंचीकू मस्त है..
आप घूमने निकले या नहाने, हर जगह कुछ न कुछ तलाश ही लेते हैं कटाक्ष करने को. ग्रेट सेन्स ऑफ ऑबजर्वेशन.
जवाब देंहटाएंसमीर जी , लगता है वहां मनुष्यों के साथ साथ जानवरों को भी संगी साथी कम ही नज़र आते हैं ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर तस्वीरों ने तो मन मोह लिया ।
समृद्धि क्यों नहीं आ रही है ?
समृद्धि तो है लेकिन --इसका एक ज़वाब आज की हमारी पोस्ट पर ।
आज तो उल्लू अपनी बरादरी में कहते होगे हर शाख में आदमी टंगा है अंजामे उजाडिस्तान क्या होगा. समीर जी कभी कनाडा और अमेरिकी लोगो के व्यवहारों पर अपनी कलम चलाये.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति
ye lekh chehre par muskuraahat chod gayaa ....lekin janaab uloo to kafee samajhdaar panchee hai...rajnetaaon ko uloo kehnaa bechaare kee touheen hogi
जवाब देंहटाएंसमीरजी भाई साहब ,
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
पोस्ट तो रोचक है ही , आप जहां हैं , वहां के चित्र देख कर और भी आनन्द आया ।
खरगोश के बच्चों का नामकरण शीघ्र करलें … पार्टी हो जाए इस बहाने ।
… लेकिन , शर्तिया अपने उल्लू दुनिया के हर प्रजाति के उल्लुओं से आगे हैं उल्लूपन में ।
साथ ही उल्लू के पट्ठे भी …
व्यंग्य की धार बहुत पैनी है >
बधाई !
शस्वरं पर भी आपका हार्दिक स्वागत है , आइए…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
उन्हें बैठाने वाले भी तो हम ही हैं..मतदान के समय यदि हम उल्लू नहीं बने तो कुछ हो सके ...
जवाब देंहटाएंचित्र बहुत ही खूबसूरत हैं ...
चीकू के बच्चे चिंकी , मिंकी ...
उल्लू दरवाजे पर है का मतलब है कि लक्ष्मी देवी घर के भीतर हैं यानि समृधि ही समृधि. और हर शाख पर उल्लू उल्लू को बैठाएंगे तो अति का परिणाम भुगतेंगे. एक घर एक उल्लू ठीक हैं और एक house पर ५२५ उल्लू बहुत बुरा. ये तो अति कि भी अति हो गयी.... कि मैं झूट बोलियाँ....
जवाब देंहटाएंsameer ji !
जवाब देंहटाएंaapki chinta vaajib hai lekin bhaarat me hamne ullu nahin ullu ke patthe baitha rakhe hain isliye aapko vo parinam nahin mil raha hai jo milna chahiye.......
sanyog se koi ullu hai bhi toh voh mere jaisa kaath ka ullu hai..........ha ha ha ha ha ha
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जवाब देंहटाएंतभी मैं सोचूं कि क्यों उल्लू को रात में ही उड़ने लायक बनाया गया। दिन में ज़रूरत ही नहीं थी। पहले से ही काफी भरे पड़े हैं।
जवाब देंहटाएंएक उत्कृष्ट लेख. आपने प्रश्न किया है कि "पूरे ५५० उल्लू बैठाये हुए हैं. फिर आखिर समृद्धि क्यूँ नहीं आ रही है". Well.. समृद्धि तो हुई है लेकिन केवल इन उल्लुओ की हुई है. तभी तो आज देश को आजाद हुए ६३ साल ही हुए है और केवल स्विस बैंको में हमारे देश के ७० लाख करोड रूपये काले धन के रूप में जमा पड़े है जो वहाँ पर जमा बाकि सभी देशो के कुल जमा पैसे से ज्यादा है. मानेंगे न तरक्की हुई है. वैसे चीकू खरगोश का पढ़ते ही मुझे भी एकदम चम्पक की याद आ गई :-)
जवाब देंहटाएंयह जानकार अच्छा लगा कि कनाडा में भी उल्लू समृद्धि का प्रतीक है - कुछ उसी तरह जैसे भारत में यह पक्षी लक्ष्मीजी का वाहन है. वैसे ये घर भारतीय मूल के लोगों के हैं या किसी और देश के लोगों के?
जवाब देंहटाएंएक बात और - चिकू ने अगर दो बच्चे दिए हैं तो वो शायद मादा होगी ना? पर आपने तो उसे अपने पोस्ट में पुरुष की तरह संबोधित किया है. ;-)
उल्लू को रात में दीखता है इसलिए हमारे देश के उल्लू उस दिन कुछ जरूर अच्छा करेंगे जिसदिन से सूर्योदय होना बंद हो जायेगा ,इन ऊल्लुओं का तब तक हमलोगों को ही कुछ सोचना होगा ...
जवाब देंहटाएं,और जहाँ तक उल्लू बैठालने का सवाल है, उसमें हमने कोई भूल नहीं की. पूरे ५५० बैठाये हुए हैं. फिर आखिर समृद्धि क्यूँ नहीं आ रही है.,
जवाब देंहटाएंखरगोश, खरगोश के बच्चों से लेकर उल्लू तक की पूरी कथा बाँच ली है श्रीमन्!
जवाब देंहटाएं--
बरबाद चमन को करने को
बस एक ही उल्लू काफी है!
--
हर शाख पे उल्लू बैठा है,
अन्जामे गुलिस्ताँ क्या होगा?
--
जाने भी दीजिए साहिब!
उल्लू तो सम्पन्नता की निशानी है!
लेकिन अपने यहां तो सडक किनारे घुमने का मतलब प्रदुषण से अपना स्वास्थ्य खराब करना
जवाब देंहटाएंखूबसूरत तस्वीरें और बेहतरीन वाकावली :)
जवाब देंहटाएंऐसी वाकावलीयों के हम भी मुरीद हैं....चलते चलते कई ख्याल आस पास के माहौल को देख ...लोगों को देख मन में आते जाते रहते है।
सुंदर पोस्ट।
जो भी प्यार से मिला हम उसी के हो लिए की तर्ज़ पर आप हर किसी को अपनाते चलते हैं रास्ता फिर चाहे जो भी हो ...चीकू भी आपका हो लिया और उल्लू की तरफ आप आकर्षित हो गए :)
जवाब देंहटाएंचीकू के बच्चो के नाम चिका चीकी रख दे ..बहुत नाम जुड़ गए आपके पास इस लिस्ट में .वोटिंग करे अब इसकी :)
उल्लू तो बेचारा फिर भी बारह घंटे सोता है.... और हमारे देश के सो-कॉल्ड उल्लूज़ तो चौबीस घंटे सोते हैं.... इसलिए हमारे देश का विकास नहीं हो पा रहा है... अब तो ब्यूरोक्रेट्स भी उल्लूज़ की कैटेगरी में आ गए हैं....
जवाब देंहटाएंआप दोनों बच्चों के नाम ... पीकू और टीकू रख दीजिये...
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंaapka lekh jaisa main likhti aa rahi hun har baar ek naveevn vicharoon ko janm deta hai.vyangytmak put liye aapke hamesh kisi nakisach se rubaru karvaata hai.bahut shandaar prastuti.
जवाब देंहटाएंpoonam
SAHI HAI...
जवाब देंहटाएंउल्लू का फंदा तो गज़ब दिया है ...
जवाब देंहटाएंऔर चीकू के बच्चों का नाम - चेरी ,बेरी :)
:) :)
जवाब देंहटाएंवाह क्या व्यंग है ५५० उल्लू...
सटीक व्यंग । वैसे ये तो आपने बताया ही नही कि उल्लू के बच्चे लडकियाँ हैं या लडके? नामकरण तो तभी होगा और किस राशी पर रखना है अगर राशी नही पता तो जन्म समय, शहर का अक्षाँश रेखाँश बता दें नामकरण हो जायेगा। ऐसे व्यंग के उपहार स्वरूप मुफ्त मे नाम बतायेंगे। बधाई ।
जवाब देंहटाएंउल्लू के जरिये सही कटाक्ष किया है।
जवाब देंहटाएंचीकू और चित्र सुन्दर है। बाकि नाम मीकू टीकू कैसा है :-)
रोचक पोस्ट है...बधाई...
जवाब देंहटाएंगज़ब का व्यंग,
जवाब देंहटाएंबढ़िया (अच्छा) है।
आभार...
यहाँ शाख पर नहीं दरवाजे पर दिख रहा है...
जवाब देंहटाएंजय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड
संसार में हर व्यक्ति दूसरे को उल्लू बनाने का प्रयत्न करता है लेकिन वह यह नहीं जानता है कि वह स्वयं को ही उल्लू बना रहा है।......
जवाब देंहटाएंबड़ी मनमोहक तस्वीरें हैं...आपके संध्या भ्रमण के
जवाब देंहटाएंचीकू के बच्चों के नाम तो इतने सारे मिल गए....अब हम भी बताने लगे तो आप दुविधा में पड़ जाएंगे..
ये उल्लुओं वाला व्यंग्य बहुत करारा रहा...
जब गुलिस्तां के मुकद्दर में ही उल्लूओं का साथ बदा हो तो फिर भला कोई इसमें कर भी क्या सकता है :)
जवाब देंहटाएंमहाराज!चर्चा मंच पे जरा आज की चर्चा बाँच लीजिएगा :)
बरबाद-ए-गुलिस्तां करने को बस एक ही उल्लू काफी था,
जवाब देंहटाएंहर शाख पर उल्लू बैठा है, अंजाम-ए-गुलिस्तां क्या होगा.
शायद इसके बाद कहने को कुछ बचा ही नही।
चीकू से लेकर उल्लू तक। क्या बात है॥
जवाब देंहटाएंइशारों इशारों में आपने बहुत कुछ कह दिया।
जवाब देंहटाएं………….
अथातो सर्प जिज्ञासा।
संसार की सबसे सुंदर आँखें।
समीर साहब ,
जवाब देंहटाएंपिछली टिपण्णी में सिर्फ आपका ही लिखा उद्घृत किया अपना कमेन्ट देना तो भूल गया ; ये ५५० उल्लू नहीं है , उल्लू के पठ्ठे है .
नमस्कार । बहुत सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंsir ullu dhan ka prateek hai aur desh ke ullu to ghane dhani hai.. :)
जवाब देंहटाएंसमीर जी,
जवाब देंहटाएंउल्टा है सब, उन साढे पांच सौवों ने अपने सामने करोंडों बैठा रखे हैं और देखिए कैसे समृद्धि उनके घरों में घुटने तुड़वा कर जा बैठी है।
वाह वाह वाह
जवाब देंहटाएंबड़ा सटीक व्यंग्य है
बरबाद-ए-गुलिस्तां करने को बस एक ही उल्लू काफी था,
जवाब देंहटाएंहर शाख पर उल्लू बैठा है, अंजाम-ए-गुलिस्तां क्या होगा.
उडन जी ,
जवाब देंहटाएंफ़ोटो कमाल है सांध्य भ्रमण का ।
दुनु खरगोश का बचवा का नाम ...टुट्टु लट्टू रख दीजीए ....
और उल्लू वाली बात से एक बात याद आया ..........यहां अब सब रिटायरमेंट के फ़िराक में हैं ....आप वहां की सरकार से कहिए न कि यहां से उल्लू ले जाएं ..चाहे तो उलटा लिटाएं ..या पकाएं खाएं .........its all yours .....
हा हा हा हा हा
मेरे देश की संसद में बैठे राजनेता भी मेरे देश को रिप्रेजेन्ट करते हैं अजी अब तो इन मै कई उल्लू के पठ्टे भी आ गये है...फिर आखिर समृद्धि क्यूँ नहीं आ रही है.यह तो मेन उळ्ळू से पूछे जी वो ही पूछ कर जबाब देगा
जवाब देंहटाएं...तस्वीरें सुन्दर हैं!!!
जवाब देंहटाएंमेरे देश की संसद में बैठे राजनेता भी मेरे देश को रिप्रेजेन्ट करते हैं और जहाँ तक उल्लू बैठालने का सवाल है, उसमें हमने कोई भूल नहीं की. पूरे ५५० बैठाये हुए हैं. फिर आखिर समृद्धि क्यूँ नहीं आ रही है......हा....हा....हा.....समीर जी ....अच्छी खासी रचना में भी आप ठिठोली नहीं छोड़ते .....आपकी रचना की यही तो खासियत है .....!!
जवाब देंहटाएंचीकू की तसवीरें बहुत प्यारी हैं .......बच्चों का नाम चुन्नू -मुन्नू रख दीजिये मैंने बचपन में अपनी बिल्लियों के बच्चों का रखा था ......
हाँ चुन्नू मुन्नू की भी तसवीरें लगिएगा .....!!
बहुत ही सुन्दर व्यंग है जो हास्य का पुट लेते हुए भी यथार्थ के करीब है
जवाब देंहटाएंAapka lekhan hamesha behad badhiya hota hai...aur zyada kya kahun?
जवाब देंहटाएंदेश की समृद्धि नहीं हो रही है उसमें कितना उन चुने हुये उल्लूओं का दोष है और कितना उन उल्लूओं को चुनने वालों का- ये बहस का विषय है सरकार। वैसे पोस्ट बड़ा दिलकश लगा।
जवाब देंहटाएंचंपक की अच्छी याद दिलायी आपने। चिकु के बाल-बुदरुक का नाम चिटु-निटु रहे तो कैसा हो। चंपक से ही साभार... :-)
ऐसे उल्लूओ को हमने ही वहाँ बैठाया है।
जवाब देंहटाएंअब हम ही उन्हे उल्लू कहेंगे तो हम कौन कहलाएंगे?
वे उल्लू नही है उन्होने तो जनता को उल्लू बनाया है
झूठी मूठी बाते बनाकर अपना आधिपत्य जमाया है।
यह प्रस्तुति बहुत अच्छी रही।
जवाब देंहटाएंव्यंगवाण के तीर तथाकथित दोनों ही उल्लूओं को लग जाए तो परिस्थिति वाकई बदल जाएगी...
जवाब देंहटाएंलेकिन सर ये भारत है यहां के नेता सुधरनेवाले कहां हैं..? जनता चाहे जितना भी ठोक बजाकर उन्हें वहां भेजे...संसद की कुर्सी मिलते ही वो रंग बदलना बखूबी जानते हैं....
भैया अब चीकू के बच्चों का नामकरण संस्कार कर ही दीजिये बहुत से सुझाव भी आ चुके हैं, हमें ज़रूर बुलाइएगा इसी बहाने टोरंटो घुमने का मौका मिल जाएगा!
जवाब देंहटाएंaap badi paini nazar rakhte hain.yeh canada ke ullu ki kahani aaj samajh aayi.mujhe lagta tha shayad yeh asians ke ghar honge kyunki north east main bhi joot se banai gayi ullu ki aakriti log apne darwaje ke bahar lagate hain .
जवाब देंहटाएंमेरे देश की संसद में बैठे राजनेता भी मेरे देश को रिप्रेजेन्ट करते हैं और जहाँ तक उल्लू बैठालने का सवाल है, उसमें हमने कोई भूल नहीं की. पूरे ५५० बैठाये हुए हैं. फिर आखिर समृद्धि क्यूँ नहीं आ रही है.
जवाब देंहटाएंबढ़िया व्यंग है !
समृद्धि इसलिए नही आ रही है भाईसाहब क्यूंकी इन उल्लुओं ने लक्ष्मी मैया को स्विस बॅंक का रास्ता दिखा दिया है...हा हा हा
क्लिंचर - मेरे देश की संसद में बैठे राजनेता भी मेरे देश को रिप्रेजेन्ट करते हैं और जहाँ तक उल्लू बैठालने का सवाल है, उसमें हमने कोई भूल नहीं की. पूरे ५५० बैठाये हुए हैं. फिर आखिर समृद्धि क्यूँ नहीं आ रही है.
जवाब देंहटाएंबिहार सांसद ने अभी ताज़ा ताज़ा उधाहरण पेश किया है!
बिहार सांसद = बिहार विधानसभा
जवाब देंहटाएंकरारा झटका धीरे से.
जवाब देंहटाएंएक उल्ल्लू बैठाना होता है :) अब ५५० थोड़े न.
जवाब देंहटाएंचलिए उल्लू को कहीं तो सम्मान मिला..!
जवाब देंहटाएंहा हा हा ! एकदम सही कहा आपने ... पर शायद हमने केवल उल्लू ही नहीं कुछ बन्दर और कुछ गधे भी पाले हुए हैं
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर व्यंग !,
लेकिन डर है कहीं माँ लक्ष्मी ने सुन लिया तो वह भी एक पोस्ट ड़ाल देंगी आपके खिलाफ। आजकल लोग मुद्दे से ज्यादा अपने अहंकार को बड़ा समझने लगे हैं, और बहुत शीघ्र व्यक्तिगत हो जाते हैं और देश की गरिमा ठन्डे बसते में चली जाती है ।
आभार इस सुन्दर पोस्ट का।
.
दो नये जन्मे शिशु खरगोश - अब तो शायद चीकू भी चीकी हो जायेगा, चीकू किसी बालक खर्गोश के काम आ सकता है :)
जवाब देंहटाएंवैसे सारे उल्लू ही नहीं है लुटियेन्स की कल्पना से उपजी बिल्डिंग में बैठे महानुभावों में और जो उल्लू हैं उन्हे लक्ष्मी ने भरपूर समृद्धि से नवाजा है सो उल्लू ने अपना नाम सार्थक रखा है और लक्ष्मी जी को इन साहिबान के दरवाजे पर लेकर गया है। अब तो इन सबको बहुत अच्छा वेतन और तमाम भत्ते मिलते हैं और सहुलियतों का तो कहना ही क्या।
यह और बात है कि ये समृद्धि को नीचे और लोगों में फैलने नहीं दे रहे हैं शाख पर बैठे हुये ही ऊपर ही ऊपर लपक लेते हैं सब कुछ |
आज तो कई जानवरों से मिला दिया ....नेताओं को भी हमने ही बिठाया है,या तो वोट डालते नहीं या फिर गुडों को देते हैं.
जवाब देंहटाएंहो गुलिस्ताँ की खैर शाखों पर,
जवाब देंहटाएंउल्लूओं का निवास देखा है।
======================
लाद कर संसद चले, 'बंजारे'* किस्मत देश की, [*सौदागर]
साथ में 'बिरयानी' के अब, पा रहे वो सूप है.
मेरे देश की संसद में बैठे राजनेता भी मेरे देश को रिप्रेजेन्ट करते हैं और जहाँ तक उल्लू बैठालने का सवाल है, उसमें हमने कोई भूल नहीं की. पूरे ५५० बैठाये हुए हैं. फिर आखिर समृद्धि क्यूँ नहीं आ रही है. .....vaajib savaal...teekha chot.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया. कहां दे मारा है. आनन्द आ गया।
जवाब देंहटाएंहरजीत जी की कुछ ग़ज़लें पोस्ट की हैं देखियेगा.
उनके विषय में कुछ जानकारी हो तो बतायें-
http://kabhi-to.blogspot.com
jab kabhi idhar aataa hu. tiipaniyon ki bhrmar hi pata hu. aapkaa avdaan adbhut hai. is nai post mey yatra-vritaant ka aanand aa gaya. bhashaa bhi achchhi hai. sadhi hui. heerak tippani ke roop mey prastut hai meri 75vi tippani...
जवाब देंहटाएंYOU ARE LIVEING IN HAVEN.
जवाब देंहटाएंउल्लू की तरह उनमे सामर्थ्य नहीं है की वो साक्षात् लक्ष्मी को अपने ऊपर बिठा सके ?
जवाब देंहटाएंओहो तो अब समझा आपकी सेहत का राज़.....रोज की इवनिंग वक और साथ में चीकू के दर्शन लाभ.....चीकू का परिवार बढ़ गया है....कुल मिलकर आपको दो नए नन्हे दोस्त भी मिल गए एन्जॉय कीजिये समीर साहब....! मासूमियत से सनी पोस्ट लिखने का धन्यवाद
जवाब देंहटाएंsameer ji , deri se aane ke liye maafi .. lekh me vyangya acha ban padha hai aur aakhri para me to aapne ekdum sahi likha hai .. waah waah
जवाब देंहटाएंअति सटीक व्यंग, बहुत शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम
हर शाख पे उल्लू बैठा है...सच कहा आपने लेकिन एक बात से चूक गए हमारे यहाँ उल्लू ज्यादा हैं और शाखें कम इसलिए शाखों पे बैठने के लिए उल्लूओं में घमासान होती रहती है...:))
जवाब देंहटाएंकेनेडा में लगता है लोग जानते हों की उल्लू लक्ष्मी की सवारी है...ढूंढती आई तो अन्दर भी आ ही जाएगी...और वहां के लोगों पर लक्ष्मी मेहरबान है ही इसमें क्या शक...??
घूमने के लिए ऐसे सपाट सुन्दर रास्ते यहाँ कहाँ फिर भी टेड़े मेडे रास्तों पर घूम-घूम कर आम भारतियों को विकट परिस्थितियों में से बच निकलना आ गया है...:))
चीकू हमारे बचपन के चम्पक के चीकू जैसा ही प्यारा है...उसके बच्चे मीकू टीकू होंगे...नहीं?
नीरज
सुन्दर प्रसतुति ।
जवाब देंहटाएंचीकू --> मीकू पीकू
जवाब देंहटाएंसवाल उलूक महाराज का लक्ष्मी वाहन.
कनाडा वाले तेज हैं वाहन बाहर रखते हैं, हमने घर के अंदर रखा हुआ है .
उत्तम!
जवाब देंहटाएंहमारी स्थिति किस बात का प्रतीक है- नियति को मान लेने का या खुद के घुन बन जाने का?
जवाब देंहटाएंबाकियों को उल्लू बनाने की प्रक्रिया जारी है, पूरी होने पर समृद्धि आयेगी....
जवाब देंहटाएंउल्लू कथा वाकई शानदार है। आपकी बात से पूरी सहमति।
जवाब देंहटाएं--------
ये साहस के पुतले ब्लॉगर।
व्यायाम द्वारा बढ़ाएँ शारीरिक क्षमता।
yup..photo with new blog theme!:)
जवाब देंहटाएंchiku behad sunder hai;)aur walk par li gayi pictures bhi waah.vaise rajniti se hum jaise log dur hi rehte hai:).
जवाब देंहटाएंआखिर क्या कहना चाहते हैं आप? क्या एक खरगोस उल्लू से अच्छा होता हैं? आप का बखान काफी मनोरंजक हैं ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद।
ए एन नन्द
http://ramblingnanda.blogspot.com
बहुत खूब सर...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंराजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
पूरे ५५० बैठाये हुए हैं. फिर आखिर समृद्धि क्यूँ नहीं आ रही है.
जवाब देंहटाएंकौन कहता है समृद्धि नही आती. कभी गये हैं आप इन उल्लुओं के घर !!
बहुत तीखा व्यंग्य है , हमारे सांसदों पर ...बढ़िया पोस्ट ...आप तो अच्छे खासे प्रकृति प्रेमी हैं ।
जवाब देंहटाएं'समीर लाल की उड़न तश्तरी... जबलपुर से कनाडा तक...सरर्रर्रर्र........... '..........शुरुआत ही ऎसी हो तो आगे क्या कहने .......... हल्के- फुल्के में खूब कह जाते हैं ...........बहुत दिलचस्प हैं............और हाँ , वो आपका प्यारा-सा दोस्त बहुत अच्छा लगा। अब तो दो नन्हें-मुन्ने भी हैं ........ आपको खूब मजा आ रहा होगा आजकल ...................
जवाब देंहटाएंयहां भारत में उल्लूओं को भी सन्मान की नजर से देखा जाता है!.... अब देखिए न... माता लक्ष्मी जी का वाहन उल्लू ही तो है!..... खरगोश चीकू मजेदार है!
जवाब देंहटाएंहमारीवाणी का लोगो अपने ब्लाग पर लगाकर अपनी पोस्ट हमारीवाणी पर तुरंत प्रदर्शित करें
जवाब देंहटाएंहमारीवाणी एक निश्चित समय के अंतराल पर ब्लाग की फीड के द्वारा पुरानी पोस्ट का नवीनीकरण तथा नई पोस्ट प्रदर्शित करता रहता है. परन्तु इस प्रक्रिया में कुछ समय लग सकता है. हमारीवाणी में आपका ब्लाग शामिल है तो आप स्वयं हमारीवाणी पर अपनी ब्लागपोस्ट तुरन्त प्रदर्शित कर सकते हैं.
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बरबाद-ए-गुलिस्तां करने को बस एक ही उल्लू काफी था,
जवाब देंहटाएंहर शाख पर उल्लू बैठा है, अंजाम-ए-गुलिस्तां क्या होगा. बहुत ख़ूब।
मगर
श्रीमान जी,
जहाँ तक हमें मालूम है कि यह शेर वास्तव में कुछ यूँ है-
बस एक ही उल्लू काफ़ी था, बरबाद फ़ज़ाएँ करने को
हर शाख पर उल्लू बैठा है, अंजाम-ए-गुलिस्ताँ का हुई है ?
आप चाहें तो अपने मित्र बवाल से तस्दीक कर सकतें। वो हैं कहाँ भाई आजकल ? होली के बाद से ही गुम हैं। खै़र आपका लेख बहुत ज़बरदस्त लगा। एकदम सटीक मार। रविवार को यश-भारत में छपा था। पढ़ा, बहुत अच्छा लगा, सो यहाँ टीप करने को आ गए। आभार।
mahadevi verma ki likhi huyi "Gillu" yaad dila di....
जवाब देंहटाएंsabse pahle to main aapke janam din 29 july par aapko badhaai detaa hun ,aapko janamdin ki bahut bahut shubhkaamnaaen ,
जवाब देंहटाएंHAR SHAAKH PE BAITHAA ULLU ,
kahte hain ki ullu ko raat me chamaktaa hai par jo ullu hamne paal rakhe hain unko to din, or raat ,me kabhi bhi nahin chamktaa to fir haminkaa naamkaran sanskaar kyon naa koi achchhee tithi dekhkar kar den ,aapse praarthnaa hai ki koi achchhaa saa proposal aap hi bhej den ham aapke shukrgujaar honge , dhanywaad sahit
bahot sunder baat hai.
जवाब देंहटाएंkai dinnon baad aapko pada achha laga.. mein net se door hoon... is liye... blog se bhi doori rahi...
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