गुरुवार, जुलाई 10, 2008

एक सूचना, फिर हाले दिल और फिर लघु कथा

सूचना

'महावीर' ब्लॉग पर मुशायरा (कवि-सम्मेलन)

वरिष्ठ लेखक, समीक्षक, ग़ज़लकार श्री प्राण शर्मा जी की प्रेरणा से जुलाई १५, २००८ एवं जुलाई २२,२००८ को 'महावीर' ब्लॉग पर मुशायरे का आयोजन किया जा रहा है।

इस ब्लाग पर मुशायरे में शिरकत के लिए कवियों और कवियों की बड़ी तादाद होने की वजह से मुशायरे को दो भागों में दिया जा रहा है। पहला भाग १५ जुलाई और दूसरा भाग २२ जुलाई २००८ को दिया जायेगा।
देश-वदेश से शायरों और कवियों में प्राण शर्मा, लावण्या शाह, तेजेन्द्र शर्मा, देवमणि पांडेय, राकेश खण्डेलवाल, सुरेश चन्द्र "शौक़",कवि कुलवंत सिंह, समीर लाल "समीर",नीरज गोस्वामी, चाँद शुक्ला "हदियाबादी",देवी नागरानी, रंजना भाटिया, डॉ. मंजुलता, कंचन चौहान,डॉ. महक, रज़िया अकबरमिर्ज़ा, हेमज्योत्सना "दीप" आदि पधार रहे हैं।
आप से निवेदन है कि उनकी रचनाओं का रसास्वादन करते हुए ज़ोरदार तालियों (टिप्पणियों) से मुशायरे की शान बढ़ाएं।

महावीर शर्मा
प्राण शर्मा

पत्र-व्यवहार इस ईमेल पर कीजिए :
mahavirpsharma@yahoo.co.uk
'महावीर' - http://mahavir.wordpress.com

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आगे,

हाले दिल

तबियत अभी भी गले की खराश और शरीर की टूटन की वजह से खराब ही की केटेगरी में है. इतना बड़ा इन्जन, दुरुस्त होने में समय तो लगता ही है बस यही तस्सली है. हमसे आधे से भी कम साईज वाले ऑफिस में एक महिने में पूरी तरह ठीक हो पाये हैं तो हमारे तो अब क्या बतायें? बस, एक टिमटिमता सा दिया उम्मीद रोशन किये है. :)

ऐसे में नया क्या लिखें, फिर एक पुरानी कहानी, जो ब्लॉग पर नहीं है मगर तरकश और साहित्य कुंज पर प्रकाशित हो चुकी है, वो ही सुनाते हैं.
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लघु कथा

अपराध बोध



अगस्त की उमस भरी शाम। पीछे रेलवे क्वार्टर की सिगड़ियों से उठते कोयले के धुएँ की खुशबू पूरे माहौल मे भरी हुई थी। ये महक मुझे शुरू से बहुत भाती है।

हवा खाने के लिये मैं अपने दूसरी मंजिल के फ्लैट की पीछे वाली बालकनी में निकल आता हूँ। सिगरेट जलाते ही मेरी नज़र उन दो आँखों से टकरा जाती है, जो पिछवाड़े के क्वार्टर के आँगन से मुझे ही ताक रहीं थी। मैं चाह कर भी उसकी नज़रों से अपनी नजरें नही हटा पाया और एकटक उसे देखने लगा।

कितनी गहरी और बोलती हुई आँखें हैं। माथे पर अल्हड़ता से बिखरी जुल्फ़ें और पसीने से बेतरतीब हो गई वो सिंदुरी बिंदिया। एक पुरानी सी धानी रंग की सूती साड़ी मे लिपटी वो बला की खुबसूरत लग रही थी।

ऐसा नहीं कि मैंने पहले कभी उसे नहीं देखा मगर आज पहिली बार नज़रें चार हुईं थी। उसकी आँखों मे एक अजब सा प्रश्न चिन्ह और चेहरे पर आंतरिक वेदना की एक परत।

वो शायद सिगड़ी उठाने ही बाहर निकली थी। नज़रों के मिलते ही वो जड़वत जहाँ की तहाँ खड़ी रह गई। काँपते होंठ जैसे कुछ कह देने को आतुर और आँखें अपने भीतर छिपी असंख्य वेदनाओं का इज़हार करने को बेकरार।

एकाएक उँगलियों के बीच जलन से बिना पिये सिगरेट खत्म होने की तरफ जैसे ही ध्यान गया, हाथ जोर से झटक कर सिगरेट फेंकी। मेरी हालात देख वो बस धीरे से मुस्कराई। हमारी नज़रें फिर भी एक दूसरे को ही देखती रहीं। कब शाम ढल गई और अंधियारा घिर आया, पता ही नही लगा।

एकाएक उसके घर के दरवाजे पर उसके पति की दस्तक सुनते ही घबड़ा कर वो अंदर भाग गई। मै वहीं बालकनी मे कुर्सी खींच कर बैठ गया। मन अभी भी उसके आँगन में ही विचर रहा था।

उसके घर से चिल्लाने की आवाज आ रही थी। शायद उसका पति पीकर नशे मे घर लौटा था।
वो चिल्ला रहा था.. स्स्साआली, दिन भर पड़ी पड़ी आराम करती रहती है और अब कह रही है अभी खाना बनने में समय लगेगा... वो बुरी बुरी गालियाँ बकता जाये और उसे बुरी कदर मारता जाये। उसके रोने की आवाज़ भी मेरे कानों को भेद रही थी।

न जाने वो कब तक उसे मारता और चिल्लाता रहा। मुझसे सहा ना गया। मैं उठकर भीतर चला आया, एक आत्मग्लानि का एहसास लिये कि मेरी वजह से बेचारी की क्या हालत हो रही है। न मैं बालकनी में निकलता, न उससे नज़रें टकराती और न ही खाना बनाने में उसे देर होती... मैं अपराधबोध से घिरता चला गया।

इस वाकये को दो हफ़्ते बीत गये हैं। आज फिर बहुत उमस है। शाम हो रही है, अभी अभी दफ़्तर से लौटा हूँ। कुछ ताजी हवा खाने का मन है लेकिन आज मैं घर की सामने वाली बालकनी मे आकर बैठ जाता हूँ।

उस रोज का सिगरेट से जलने का घाव तो भर गया है, मगर उसकी जलन और अपराधबोध, दोनों अब तक ताज़े हैं।

39 टिप्‍पणियां:

  1. टिमटिमाता सा काहे...खूब जगमगाता हुआ पूरे पाँच सौ वॉट का ब्ल्ब रौशन कीजिए बन्धुवर क्योंकि उम्मीद पे दुनिया कायम और ये बस थोड़ी से तबियत खराब है....


    आपकी कहानी पसन्द आई

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  2. इस काहानी का शीर्षक होना चाहिए था -एक अधूरी कहानी .....लेकिन जो बात प्रभावित करती है वह है भाषा और भाव का नपा तुला कदमताल जो मंत्रमुग्ध करता है -कहानी आगे बढायें ....शुभकामनाएं .....

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  3. पहले अपना स्वास्थ सही करें फ़िर इन ब्लागरियों के चक्कर मे आयें :)

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  4. अब जल्दी से मुलाहिजा भी फर्माईये और कहानी तो हम पहले ही पढ़ चुके हैं, कुछ दिनों ट्रैन से जाना बंद कीजिये, आंख वगैरह सब दुरूस्त हो जायेंगी ;)

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  5. समीर भाई,
    आप जल्द से जल्द स्वस्थ हो जायेँ - ऐसे काम नहीँ चलेगा जी :)
    कहानी को सुखाँत कीजिये ना !!
    हम भारतीयोँ को वैसी ही कहानियाँ भाती हैँ ना -
    महावीर जी के ब्लोग की सूचना मैँने भी मेरे ब्लोग पर दी है -
    अवश्य देखियेगा ...
    सभी से, नम्र, निवेदन है --
    स्नेह सहित,
    - लावण्या

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  6. बेनामी7/10/2008 10:53:00 pm

    aap jaldi se achhe ho jaye. kahani bhut achhi lagi.

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  7. जल्दी ठीक हो जाईये.
    जब तक नया नहीं पोस्ट करते, पुराने माल से ही काम चलाते हैं. पुराना तो सोना है ही.

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  8. अपराध बोध! अक्रियता का। पति-पत्नी के निजि जीवन में दखल न देने का? लेकिन क्या इसे निजि जीवन कहा जा सकता है?
    समाज को निजि जीवन की परिभाषा बदलनी होगी।
    डॉ. प्रभात की टिप्पणी और सलाह आप मानें तो ठीक, जल्दी लौटेंगे। ज्ञान जी ने तो मान ली है।

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  9. उस रोज का सिगरेट से जलने का घाव तो भर गया है, मगर उसकी जलन और अपराधबोध, दोनों अब तक ताज़े हैं।

    "very painful story, read in one go phir ek gehree udasee see hai mun mey kaheen"

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  10. सुंदरतम कहानी। साधुवाद।

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  11. आप जल्द से जल्द ठीक हों, हमारी शुभकामनाएं आपके साथ है। वैसे, अपराबोध कब तक समाप्त होगा आपका? क्योंकि जब समाप्त होगा तो जरूर कुछ नया मिलेगा। इस इंतजार में....

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  12. कहानी अच्छी है .दिल को कहीं छू गई है
    .आप जल्दी से ठीक हो जाए ..जीवन उर्जा में दिए गए नियमों का पालन करे :) और सूरज से चमके :) आपके ब्लॉग से मुशायरे की सूचना हम अपने ब्लॉग पर लिए जा रहे हैं पोस्ट करने के लिए :) धन्यवाद

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  13. भई वाह वाह जमाये रहिये

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  14. वाह! क्या रचना है! अति सुंदर!
    समीर भाई, आप बहुत सुंदर लिखते हैं | जारी रखिये |
    जल्दी स्वस्थ होने की शुभ कामनाएं !

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  15. आप सब को बहुत बहुत बधाई , अच्छी रचना फिर से बधाई।

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  16. इस कहानी ने भी दिल को छू लिया,मेरी इक request है समीर जी, अपनी और कहानियाँ भी पोस्ट करें....
    मुझे तो हैरानी होती है,आप शायर जितने अच्छे हैं , कहानी भी उतने ही कमाल की लिखते हैं....
    आपकी तबियत अभी तक ठीक नही हुयी, ये जानकर दुःख हुआ..लगता है आप अपना ठीक से ख्याल नही रखते,और जब तक ठीक न हो जाएँ कोई काम मत करें प्लीज़....

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  17. सूचना के लिए धन्यवाद ,ओर जम के antibiotic खाये ओर फिलहाल सिगरेट न पिये,आपकी कहानी पढ़कर मै फ़िर आपके इस लेखक पक्ष का कायल हो गया हूँ....ओर इसे महज टिपण्णी न समझे ...दिल से कह रहा हूँ

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  18. समीरजी आप जल्दी ही स्वस्थ होंगे.. मैंने भगवान को मिस्ड कॉल दिया है. इस कवि सम्मलेन की सुचना तो कई स्रोतों से मिली... अब तो ताली बजानी ही पड़ेगी.

    रहिमन ताली मारिये बिन ताली सब सुन,
    ताली गए न उबरे मच्छर, कवि, सुर्ती-संग-चुन.

    कहानी तो पढ़ी हुई निकल गई. पर एक बार फिर पढ़ के भी अच्छा लगा.

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  19. जब आपके आफिस के आपसे साइज में आधे एक माह में ठीक हो पाए है तो आपको अच्छा होने में कितना समय लगेगा ? क्या कनाडा में लम्बी अबधि का बुखार होता है ? ब्लागिये मुशायरे में जरुर दस्तक दूंगा. कहानी अच्छी लगी . धन्यवाद

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  20. समीरजी, जल्दी आप तन्दरुस्त हों और ऐसी ही भावभीनी कथाएँ पढ़ने को मिलें...शभकामनाएँ

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  21. आपकी यह लघुकथा साहित्यकुंज पर पढ़ चुकी हूँ पर इसने दुबारा पढने पर भी उतना ही रस दिया.वैसे इसे कहानी नही कह सकते,यह तो जीवन की त्रासदी का एक चित्र है,जिसे बहुत ही खूबसूरती से आपने शब्द दिया है..
    आपके शीघ्र स्वस्थ लाभ की कामना है.अपना ख्याल रखें.

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  22. समीर जी
    बस बहुत हुआ अब आप ठीक हो जायें...आप ने इक छोटी सी घटना को कहानी का केन्द्र बना जिस अंदाज से प्रस्तुत किया है वो सिर्फ़ आप ही कर सकते हैं...इक साँस में पढने योग्य छोटी सी प्यारी कहानी.
    नीरज

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  23. समीर जी ,जल्द से जल्द ठीक हो जाये हमारी भगवान से प्राथना हे,बोलो तो अस्ट्रिया की रम भेजू ८०%, दो पेग लगाओ सुबह काम पे जायो,

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  24. मुशायरे की सूचना के लिए धन्यवाद....शीघ्र स्वस्थ हो जाइये आप! और हाँ..कहानी बहुत अच्छी रही...

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  25. ब्लॉगीय मुशायरा; नयी चीज लग रही है। कौतूहल है - यद्यपि हमारे लिये आउट आफ कोर्स है।
    आपके स्वास्थ्य की चकाचकता की कामना सहित यह टिप्पणी अर्पित करता हूं।

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  26. Mushayra sunne zarror aayenge jee. Theek ho jaiye jald-as-jald.

    -Janab aap rahain,
    khairo-khairiyat se rahain !
    zara gul-gasht karain,
    shokh tabeeyat se rahain !!

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  27. गुरुदेव तबियत जल्दी ठीक करिये, मजा नही आ रहा है !
    आपके जल्दी स्वस्थ होने की शुभकामनाओ सहित

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  28. बेनामी7/11/2008 11:45:00 am

    उड़न तश्तरी पर मुशायरे की सूचना देने के लिए किन शब्दों से आपका धन्यवाद दूं!
    मस्तिष्क के शब्दकोष में से उचित शब्द ढूंढना मुश्किल हो रहा है। बस एक ही शब्द 'धन्यवाद' में ही मेरी हार्दिक भावनाओं को महसूस कर लेना।
    ईश्वर से प्रार्थना है कि जल्दी से जल्दी वही
    हंसते-हंसाते,तो कभी अपनी लेखनी से हृदय के तारों को झंकारने वाले समीर उड़न तश्तरी से पाठकों पर नए-नए मन-लुभावन लेखों की वृष्टि करते रहें।
    जिन लोगों की ऊंघती सी आंखों से साहित्यकुंज और तरकश पर पढ़ने से चूक गये हों,उनके लिए यहां पढ़ने का स्वर्ण-अवसर प्राप्त मिल गया। मैं भी उन्हीं ऊंघती आंखों वालों में हूं।
    कथा कहने में तो लघु है पर आँखों की राह से सीधे ही दिल में उतर गई जो लंबे अर्से तक मन को झिंझोड़ती रहेगी।
    साधुवाद!

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  29. बेनामी7/11/2008 02:03:00 pm

    हमने भी कभी आँखें चार किया था । कम्बख्त वह खिड़की से हँसती रही और हमें पिता जी ने पटक पटक कर धोया था ।

    आज आपकी कहानी पढ़कर मुझे एहसास हुआ कि शायद उसे भी "अपराध बोध" हुआ हो ।

    अब हुआ कि नही हुआ ये तो ईश्वर ही जानता है ।

    बाकी आपसे यह कहते बहुत दुख हो रहा है कि मुझे मुशायरे का शौक नही !!

    साथ रहते रहते शायद हो जाय :) :)

    बाकी इधर इतनी बारिश हुई कि 10 - 12 साल का रिकार्ड टूट गया

    सो बारिश पर मैं टूट पड़ा था :) :)

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  30. नेंईंऽऽ.., कम्पूटर नेंईं छूने का !
    ठीक हो जाओ, पहले !
    ... .. लेटे लेटे भी ख़ुराफ़ात ?


    जब तक ठीक नहीं होगे, यक बी टिप्पणी नेंईं ! लाओ सब इ्धर..मैं कहता हूँ, लाओ मुझे दो ! पुरानी कहानी पर इत्ती सारी नई टिप्पणी नुकसान कर्रेगी, बाबा !

    रियली समीर भाई, ज़्यादती ठीक नहीं । अब देखिये कम्प्यूटर पर खड़र-बड़र कर ही रहे हैं, तो यह टीपऽनिआ भी माडरेट करते जाइये ।
    थैंक यू !

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  31. wonderful Marvelous
    कहानी का अंत क्या हुआ फिर,
    अपना स्वास्थ्य जल्दी ठीक करे

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  32. कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है
    दो चार रख कर दूं तुम्हे ऐसे ही...टिप्पणी जनाब :)
    कहानी अच्छी लगी, स्वास्थय का ध्यान रखें।

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  33. http://www.rajasthanpatrika.com/magazines_new/ravi_inner1.php

    समीर लालजी,

    सन्दर्भ से हट्कर कुछ कहने के लिए क्षमा चाहता हूँ।

    ऊपर दी हुई कड़ी देखिए।
    रविवार जुलाई १३ को राजस्थान पत्रिका में "ब्लॉग बोलता है" शीर्षक का हिन्दी ब्लॉग जगत के विषय पर शानदार लेख है।

    बहुत खुशी हुई पढ़कर।
    विशेषकर इस लेख में आपके बारे में पढ़कर बहुत अच्छा लगा।
    आलोक पुराणिकजी, मसिजीवी जी, युसुफ़ खान साहब, जीतेन्द्र चौधरीजी इन सब महाशयों का जिक्र है।

    आशा है आपका स्वास्थ्य सुधर गया होगा।
    शुभकामनाएं
    गोपालकृष्ण विश्वनाथ, जे पी नगर, बेंगळूरु

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  34. अच्छी रचना और सूचना पाकर अच्छा लगा. आपके स्वास्थ्य के प्रति शुभकामनाएं.

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  35. बेनामी7/13/2008 01:58:00 pm

    Are ye kya sir ji, hum to itne arse baad aap se milne aaye and aap hai ki tabiyat karab hone ka bahana bana kar baithe hai, naaaa esa nahi chalega jaldi se change ho jaiye and keep posting :)

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  36. बेनामी7/26/2008 11:40:00 am

    bhaiya painting bhi bhut acchi hai.

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आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है. बहुत आभार.