रविवार, जून 01, 2008

कड़वी निंबोली

nimboli

माँ की धुँधली सी तस्वीर उसके मानस पटल पर अंकित है. साफ साफ तो नहीं याद, जब माँ गुजरी तब वो बहुत छोटा था. रात माँ के बाजू में ही दुबक के सोया था. उसे अंधेरे से डर लगता था तो माँ से चिपक कर सो रहता, कोई डर पास ना आता.

सुबह उठा तो रोज की तरह माँ बाजू में नहीं थी. कमरे के बाहर निकल कर आया तो माँ को सफेद चादर में लिपटा हुआ जमीन पर लेटा पाया. मोहल्ले की सारी स्त्रियाँ उनके इर्द गिर्द इकट्ठा होकर रो रहीं थीं. सबको रोता देख वो भी रोने लगा. उसे तो यह भी पता नहीं था कि मौत क्या होती है. बाद में रद्दो मौसी ने उसे बताया था.

रद्दो मौसी, उसकी प्यारी मौसी, एक दिन बाद आई थी पास के गांव से. तब तक न उससे किसी ने खाना पूछा था और न ही दूध. जब जब उसे भूख लगती वो माँ को याद करता.

माँ को कँधे पर उठाकर बाबूजी और मोहल्ले वाले ले गये थे. पड़ोस की बिमला चाची कह रहीं थी कि अब वो भगवान के पास गईं और अब कभी नहीं आयेगी. मगर उसे उनकी बात पर यकीन ही नहीं आ रहा था, भला उसकी माँ उसे छोड़ कर कैसे जा सकती है कहीं हमेशा के लिये.

शाम को बाबूजी वहीं बैठक में बैठे रहे और लोग आते जाते रहे उनसे मिलने. कुछ रिश्तेदार भी आ गये थे. किसी को भी उसका ध्यान नहीं था. सब बाबूजी से मिलते और उसके सर पर हाथ फिरा कर चले जाते.

रात होते वो कमरे में आ गया. बाबूजी बैठक में ही बैठे थे. कुछ बोल ही नहीं रहे थे. वैसे भी वो चुप ही रहते थे और बैठक में ही रहते, खाते और सोते थे. वो तो बस अपनी माँ से ही बात करता था. अब भूख के साथ साथ उसे नींद भी आ रही थी. वो वहीं माँ के बिस्तर पर लेट गया. उसे पूरा यकीन था कि माँ मौसी के यहाँ गई होगी, रात गये आ जायेगी. तब वो उससे खाना खाने को कहेगी, तो वो रुठ कर मना कर देगा. जब बहुत दुलरायेगी और अपने हाथ से पुचकार कर खिलायेगी, तब खा लेगा.

यही सोचते सोचते आँखों में आंसू लिये कब आँख लग गई, पता ही नहीं चला. सुबह सुबह जब रद्दो मौसी ने प्यार से उसके सर पर हाथ फेरा, तो उसकी नींद खुली. उसे ऐसा लगा जैसे माँ वापस आ गई है. उसे मौसी के आंचल से माँ की खुशबू आती थी. मौसी ने उसे बहुत पुचकारा, नहलाया और अपने हाथ से खाना खिलाया. बाबूजी तो आज भी दिन भर बैठक वाले कमरे में ही बैठे थे, सब मिलने जुलने वाले दिन भर आते रहे.

आज वो मौसी के साथ माँ के बिस्तर पर सो गया. मौसी उसके सर पर माँ की तरह ही हाथ फिराती रही. माँ की खुशबू आ रही थी उसके पास से. उसने मौसी से माँ के बारे में पूछा. मौसी ने उसे बताया कि मौत क्या होती है और यह भी, माँ अब मर चुकी है और अब कभी वापस नहीं आयेगी. पता नहीं क्यूँ अपनी सबसे प्यारी मौसी से यह सुन कर उसका मन बैठ गया. आज मौसी उसे अच्छी नहीं लग रही थी और उसके पास से आती माँ की खुशबू भी न जाने कहाँ खो गई थी. वो करवट बदल कर नम आँख लिए सो गया.

सब क्रिया करम हो जाने के बाद मौसी उसे अपने साथ ले जाना चाहती थी. बाबूजी ने हाँ भी कर दी थी मगर वो रो रो कर जाने को तैयार ही नहीं हुआ. बाबूजी ने डाँटा भी, मगर वो नहीं गया. रद्दो मौसी लौट गई.

बाबू जी सुबह से काम पर निकल जाते और घर पर रह जाता वो और सुबह से आई छुट्ट्न की माई. वो ही अब खाना बनाती थी, उसे नहलाती, खाना खिलाती और देर रात वापस घर चली जाती. पास ही रहती थी. अक्सर छुट्ट्न भी साथ आ जाता. वो दिन भर छुट्ट्न के साथ खेलता.

समय निकलता गया. बाबू जी शाम से ही पीने लगते. अब वो सोचता है तो लगता है कि शायद इस तरह माँ के न रहने का दुख भुलाते होंगे.

फिर नई अम्मा भी आ गई. मगर बाबू जी का दुख कम नहीं हुआ और उनका शाम से ही पीना जारी रहा. दर्द तो नई अम्मा के आने से उसका भी कम नहीं हुआ बल्कि कुछ बढ़ ही गया. छुट्टन की माई का आना भी बंद करा दिया गया सो छुट्टन का आना भी बंद हो गया.

अब वो खुद से नहाना और खाना निकाल कर खाना भी सीख गया था. मोहल्ले के और बच्चों को अपनी माँ से दुलरवाते देखता तो माँ की याद में उसकी आँखें भर आती. वो अपने ही अहाते में लगे नीम के पेड़ के नीचे आकर बैठा माँ को याद करता रहता. कोई कौआ नीम पर बैठा निंबोली गिरा देता. बिल्कुल कड़वी निंबोली- उसे उसकी बदकिस्मती की अहसास कराती निंबोली.

दर्जा १२ के बाद उसे आगे पढ़ने शहर भेज दिया गया. उसे बिल्कुल बुरा नहीं लगा. वहाँ भी अकेला ही तो था और यहाँ भी. वो छुट्टियों में भी गाँव न जाता. पढ़ाई खत्म करके वहीं शहर में एक अखबार में नौकरी पर लग गया.

एक रात खबर आई कि बाबू जी की तबीयत खराब है, तुरंत चले आओ. जब वो पहुँचा तो बाबूजी अंतिम सांसे गिन रहे थे. शायद उसका ही इन्तजार कर रहे थे. उसे देखकर उनकी आँखों से दो बूँद आँसूं गिर पड़े. हमेशा की तरह आज भी बोले कुछ भी नहीं. बस, तकिये के नीचे से एक लिफाफा निकाल कर दिया और इस दुनिया से विदा हो गये.

दाह संस्कार करके घर लौटा तो वहीं नीम के नीचे आ बैठा और लिफाफा खोल कर देखने लगा. उसमें एक फोटो थी. माँ की शादी के पहले की. पिता जी ने एक कागज पर लिख दिया था कि माँ की बस यही एक फोटो उनके पास थी. किसी मेले में खींची गई. नाना, नानी और माँ. बिल्कुल मौसी की तरह. शादी के पहले वाली मौसी. उसे अपनी स्मृति वाली माँ की धुँधली सी तस्वीर याद आई. बिल्कुल इस तस्वीर से जुदा.

न जाने क्या सोच कर उसने वो तस्वीर फाड़ दी. आखिर आज तक वो अपनी स्मृति वाली माँ की धुँधली सी तस्वीर के सहारे ही तो जीता आया था. वो उसे विस्मृत नहीं करना चाहता था. तभी कोई कौआ नीम पर आ बैठा और कौवे ने एक निंबोली गिरा दी. बिल्कुल कड़वी निंबोली- उसे उसकी बदकिस्मती की अहसास कराती निंबोली.

अगले दिन ही वो शहर चला आया और उसके साथ शहर लौटी उसकी अपनी स्मृति वाली माँ की धुँधली सी तस्वीर. वो फिर कभी गाँव नहीं गया लेकिन शहर में अपने घर के अहाते में उसने आम का पेड़ लगाया है, मीठे आम का पेड़.

55 टिप्‍पणियां:

  1. समीर भाई, कभी हंसाते हो, कभी रुलाते हो.
    आप भी जिन्दगी की तरह हो.

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  2. मैथली जी, अगली पोस्ट में हँसाना तय रहा. :)

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  3. नीम और आम - दोनो ही जिन्दगी के स्वाद तय करते हैं। यहां तो दोनो पेंड़ लगे हैं मन में।
    इतनी सशक्त पोस्ट के लिये बहुत धन्यवाद। आपके जीवन में एक बड़ी अमराई हो!

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  4. कड़वी निम्बोली, अच्छी कहानी, मैथिली जी के शब्दों में कहू तो जीवन की कहानी. लेकिन यह भूलना नही चाहिए की यह असल जिन्दगी है. हा यह जरुर हो की हमे मीठे आम की कोशिश करते रहना चाहिए..

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  5. नीम और आम दोनों ही भारत के प्राचीन प्रतिनिधि। दोनों ही जरूरी। वीरान जीवन से प्रेरित, उसे मिठास से भरने के संकल्प की सशक्त कथा।

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  6. बेनामी6/01/2008 09:28:00 pm

    आनंद आ गया भाई लाल
    जब चली समीर लेकर गुलाल
    खूब खोला है चिट्ठा सच्‍चे मन का
    कमल खिल गया मन दिल उपवन का
    आंसू भी छलके हैं जहां प्रेम की पलकें हैं
    निंबोली जो आपने दोनों बार कड़वी बताई है
    पहली बार तो सही है
    पर दूसरी बार तो पका देते
    आम से भी अधिक मजा देते
    स्‍वास्‍थ्‍य को भी बना देते
    सेहत की रखवाली निंबोली
    क्‍या आपने कभी पकी निंबोली चूसने का
    आनंद नहीं लिया, मैं ऐसा नहीं मान सकता
    अब की पीढ़ी की कह नहीं सकता
    पर हमारी पीढ़ी ने खूब खाई हैं
    पकी निंबोलियां
    सच कह रहा हूं न मेरे भाई
    तो अगली बार आम से चाहे
    हंसाना या न हंसाना
    पर पक्‍की निंबोली के
    चूसने का किस्‍सा अवश्‍य सुनाना.

    - अविनाश वाचस्‍पति

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  7. समीर जी,

    बहुत सुन्दर शब्द चित्रण किया है आपने भावनाओं का। यह तो तय है कि वह आम के मीठे फलों को देखकर भी कड़वी निंबोली को कभी भी भूल नहीं पायेगा पर अन्त में आम का पेड़ लगवाना मनुष्य के आशावादी होने का प्रतीक है।

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  8. बहुत मर्मस्पर्शी ,आत्मकथात्मक दास्तान [?}...ऐसा कि आंखों में आंसू छलक आए ...

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  9. चाचा जी के बेटे रिदवन की याद आ गई। बस उसकी ही कहानी है। आपने कैसे जानी। बहुत रुला दिया भईया आपने. रुलाई रुक नहीं रही है।

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  10. जीवन सुख दुख का इक संगम है दुख थोड़ा जियादा है सुख थोड़ा कम है । थाली के कोने में रखी हुई मिर्ची की चटनी हमें यही याद दिलाती है कि मीठा मीठा खाने के बाद जबान परिवर्तन मांगती है । अच्‍छी पोस्‍ट के‍ लिये बधाई

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  11. माफ़ कीजिएगा टिप्पणी थोड़ी गीली हो गयी.. इस बार कलम को कौनसी स्याही में डुबोकर लिखा था आपने .. क्या कहे..

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  12. मर्मस्पर्शी सशक्त पोस्ट.

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  13. बेनामी6/01/2008 11:54:00 pm

    ओह बहुत आत्‍मीय संस्‍मरण है आपका ......

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  14. हाय हाय क्या दिन थे वो भी

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  15. समीर जी,

    आप भी ?
    आप ये अन्य लेखको के लिये छोड़ दिजिये ! हमे तो आपका हंसाने वाला अंदाज ही पसंद है !

    वैसे कड़वे नीम की निंबोली मीठी होती है :)

    आपका
    आशीष

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  16. बेनामी6/02/2008 12:45:00 am

    ye kya,man kadwa to nahi khatta jarur ho gaya,ankhein bhar aayi,bahut hi bhavuk kahani,bahut badhai.

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  17. शानदार लेखन है समीर भाई...ज़िंदगी का ही एक और पहलू.
    लेकिन मैथिली जी के साथ मेरी अभी अपील सुनें. अगली बार हँसाना तय रहा.

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  18. भावुक हो गया हूँ पढ़कर ........सुबह ये सोचकर आपका ब्लॉग खोला था कि मुस्कान आयेगी... पर आज आपने........

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  19. बहुत मार्मिक. बचपन की स्म्रितियों के साथ स्थिर हो चुके दुखों के रंग को गाढा़ करता एक संवेदनशील शब्दांकन. मैं भॊ मां के बाद मौसी की आवाज़ और गंध में उन्हें खोजता था.
    बहुत अपनापे और प्यार के साथ बधाई!

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  20. सघन
    स्मृति
    की
    रचना
    है
    अंत
    बहुत
    मार्मिक बन गया है .बधाई

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  21. मैंने हमेशा यह तो माना है , आप अच्छा लिखते हैं , लेकिन आज आपने बहुत प्रभावित भी कर दिया....

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  22. हृदयस्पर्शी, मार्मिक चित्रण. गोर्की की याद आयी.

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  23. अच्छी कथा.
    पढ़ते -पढ़ते बच्चे के साथ लगा एक आत्मीयता होती जारही है.
    ये आपकी सशक्त लेखनी का ही कमाल है.
    कथा का अंत भी बहुत ही प्रेरनादायी है.
    आपको बधाई.

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  24. बहुत मर्मस्पर्शी कहानी....मन को छू गयी.

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  25. समीर जी दिल को छू देने वाली अभिव्यक्ति है इसी को जीवन कहते हैं...
    सुन्दर लेखन के लिये बधाई...

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  26. आंखें नम हो गई... आम से तो हमेशा प्यार रहा पर निम्बोली कभी इतनी कड़वी नहीं लगी.. जितनी आज !... भगवान करें सबके जीवन मैं आम की मिठास बनी रहे.

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  27. मन भर आया। पोस्ट का शीर्षक भी गहरा है..

    ***राजीव रंजन प्रसाद

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  28. मर्मस्पर्शी!
    मैथिली जी ने क्या बात कही है।

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  29. मर्मस्पर्शी और साथ-साथ जीवन की एक सच्चाई भी।

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  30. बहुत ही भावुक कर देने वाली पोस्ट लिखी है आपने ..पढने के बाद कुछ कहना ही बाकी न रहा ..एक याद रखने लायक है यह पोस्ट ..

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  31. सचमुच आंख नम कर देने वाली पोस्‍ट।

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  32. समीर भाई, आप भी जिन्दगी की तरह हो. बहुत सुन्दर शब्द चित्रण किया है आपने भावनाओं का। आंखें नम हो गई...

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  33. जिन्दगी के कड़वे घूँट पीकर भी
    मिठास को जीकर दिखा देना
    बड़ी बात है....कटु अनुभव के
    बंजर में भी मीठी अनुभूति के
    फूल-फल खिल सकते हैं ....यही
    तो कह रही है आपकी ये पेशकश !
    ===========================
    ज़वाब नहीं !
    शुक्रिया
    डा.चंद्रकुमार जैन

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  34. हम अपनी आंखे नम करने का कोटा पूरा कर चुके, अब आप ही हंसी दिलाईयेगा ।

    आपकी लेखनी क्या क्या रंग दिखाती है ।

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  35. नीम और आम के साथ एक साथ न्याय बहुत कम वैद्य कर सकते है । आपने बहुत खूब किया है। नीम (मन के) कीटाणु साफ कर सकता है और आम जीवनी शक्ति का पुष्टिवर्धन करता है। शायद नीम और आम पूरक है जीवन के योगछेम का । और आपने दोनों के साथ अपनी नजदीकी दर्ज कराइ है। बहुत खूब लगा यह रंग भी ।

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  36. 18 घंटों बाद, घूमफिर कर वापस लौटा हूँ, केवल यह दर्ज़ कराने कि
    मुझे इस मर्मस्पर्शी पोस्ट के अनुरूप शब्द नहीं मिले । गहरायी तक
    महसूस किये जाने और बारबार पढ़े जाने को बुलाती है यह पोस्ट !






    यहाँ तो पहले ही इस कहानी के दर्द को लेकर शोकसभा हो चुकी है,
    अपुन तो बस, निंबोली का ज़ायका दुहराने आये थे ।

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  37. सुंदर पोस्ट। मार्मिक । शानदार लेखन।

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  38. समीर भाई,
    शायद बच्चे की माँ को ये जानकर खुशी हुई होगी कि उसका "लाल"
    अब बडा हो गया है और अच्छा बुरा समझने लगा है!
    ( तभी तो आम का पेड लगाया !)
    काश ! कभी ऐसी कडवी नीम्बोली किसी के जीवन बगिया मेँ ना गिरे ..
    स स्नेह
    --लावण्या

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  39. आंखें नम हो गईं। इतनी मार्मिक कहानी को पढ़ कर दिल स्वयमेव ही कह उठता है कि समीर बहुमुखी प्रतिभाओं के सफल लेखक हैं।
    इन पंक्तियों को पढ़ते हुए कुछ क्षणों के लिए पाठक वहीं ठहर जाता है। कितना सत्य है इन में:
    "न जाने क्या सोच कर उसने वो तस्वीर फाड़ दी. आखिर आज तक वो अपनी स्मृति वाली माँ की धुँधली सी तस्वीर के सहारे ही तो जीता आया था. वो उसे विस्मृत नहीं करना चाहता था."
    बधाई हो।

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  40. बहुत अच्छा लिखा आपने एकदम मर्मस्पर्शी , आत्मीय कथा...

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  41. समीर जी पढ़ते-पढ़ते पोस्ट कब खत्म हो गई पता ही नहीं चला...कभी निबोली तो कभी स्मृतियों में बस चुकी चारपाई पर मां की रिक्तता के बारे में सोचता रहा, यकीनन ये अहसास भीतर तक मुझे झकझोर गया। एक विकल्प शून्य सत्य डरा गया।
    बेहद मार्मिक।

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  42. अच्छा लिखा है आपने...

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  43. निमकौडी कहूं या निंबोली , लेकिन कहते हुऐ मन में थोडी हुक सी उठ रही है, लेख ही ऐसा है कि बस....

    मार्मिक ...

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  44. आपकी लेखनी के एक और सशक्त भाव का आस्वादन कर मन भारी हो गया। इतनी भावभीनी पोस्ट के लिए बधाई।

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  45. मर्मस्पर्शी!! प्रतीकों का उपयोग बहुत सशक्त तरीके से किया है आपने!! इस कारण कम से कम शब्दों में आप बहुत कुछ कह गये हैं, खास कर उन पाठकों के लिये जिनकी उमर 50 के आसपास है

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  46. वाह! टिप्पणियों की संख्या ही इतनी है की टिप्पणी करने की हिम्मत ही नहीं होती

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  47. बेनामी6/04/2008 06:04:00 pm

    अभी तेज बुखार से ग्रस्त हूँ ....था शायद रहूँगा ....फीड पर नज़र पड़ी ...देखा .......नीम के कड़वे फल लटक रहे हैं ...
    सोचा कोई मजेदार हँसाने वाला लेख होगा ...लेकिन ज्यों पढ़ना शुरू किया ....हंसी की ख़ुशी ..जाती रही ...
    और आखिर तक जाते जाते ......गला रूंध गया .. :(

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  48. समीरजी, बड़ी भावात्मक कहानी लिखी है लेकिन अंत में मीठे आम का पेड़ आपकी पोजिटिव सोच भी दिखाता है।

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  49. Sameerji,
    Aapko dhanyawad kehne, aapke blogpe aayee to mazaa aa gayaa. Maine aaj pehlee baar ye kathaa padhee. Aap jaise diggaj jab mere blog pe tippanee chhodte hain to bohot hee aanand hotaa hai!
    Kahaaneeke liye kuchhbhee kehna,soorajko raushnee dikhaanewaalee baat hogee!
    Shama

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