कभी घुटन सी महसूस होने लगती है. सोचने को मजबूर होना पड़ता है कि ये कहाँ आ गये हम. क्या हासिल है? महज एक घुटन का अहसास. एक अंधेरापन. एक दूसरे पर कीचड़ उछालना. एक विवाद समाप्त नहीं होता, दूसरा शुरु, बेवजह. नाम दिया जाता है कि एक स्वस्थ बहस चल रही है.
मुझे तो लगने लगा है कि कुछ ऐसे लोग हैं जो बिना बहस जिन्दा रहना ही नहीं जानते, चार दिन शांति छाई रहे तो खाना हजम होना बन्द हो जाता है. किसी को पुरुस्कार मिले तो विवाद, किसी ने कुछ कहा तो विवाद और तो और कोई चुप रहा तो विवाद.
बात शुरु होती है कहाँ से और चल पड़ती है किस ओर. बहुत कोशिश करनी पड़ती है इससे बच कर निकलने के लिये. इससे किनारा बनाये रखने के लिये.
मगर जब उसी गली के निवासी हैं तो कब तक बचते रहेंगे. माना कि हम नहीं भी खेलें कीचड़-कीचड़ तब भी कुछ छीटें तो आयेंगे ही. न भी आये तो दुर्गंध को कौन रोक पाया है आजतक. कहीं यही दुर्गंध नये आते लोगों का मन ही न बदल दे. फिर तो रह जायेंगे जो रह रहे हैं और छोड़ कर न जा पाना मजबूरी हो गया है या फिर वो, जिन्हें यह खेल पसंद है और इस खेल में मजा आता है. आबादी में विस्तार के मार्ग स्वतः ही अवरुद्ध हो जायेंगे.
अजीब लगता है मगर ये उन लोगों में से है जो खुद का गला घोंटकर उस पार की दुनिया का क्षणिक आभास और आनन्द लेने में अपने आप को एडवन्चर्स का दर्जा देते हैं. क्या ये बीमार नहीं? क्या इन्हें इलाज की जरुरत है?
आज ही ’द चोकिंग गेम’ के बारे में एक खबर पढ़ता था जिसने मुझे यह सोचने को मजबूर किया.
शायद यह उसी प्रजाती के हैं जिन बच्चों को लेकर आज अमरीका/कनाडा चिन्तित हैं. यह बच्चे इसी तरह के चोकिंग गेम में आनन्द का अनुभव करते हैं. ये बच्चे या तो अपने दोस्त के माध्यम से या कम्प्यूटर के तार या टेलिफोन के केबल से खुद ही अपना गला उस स्तर तक घोंटते हैं जब तक की लगभग होश न रह जाये. इन्हें इसमें मजा आता है. यह कहते हैं इन्होंने ब्लैक टनल देख ली जिससे होकर व्यक्ति मौत के बाद गुजरता है. यह मौत के साथ अपने साक्षात्कार का अनुभव करना चाहते है. क्यूँ? कोई नहीं जानता. ये बच्चे खुद नहीं जानते. बस, महज एक मानसिक विक्षप्तता- जिसका कोई जबाब नहीं. जिसे यह बच्चे एडवेन्चर कहते हैं.
तकलीफ तब हो जाती है, जब आसपास कोई नहीं होता या तुरन्त चिकित्सा सुविधा उपलब्ध नहीं हो पाती और यह बच्चे अपनी नादानी से जान गँवा बैठते हैं.
खुद तो चले जाते हैं मगर पीछे छोड़ जाते हैं एक बिलखता बिखरा परिवार और दे जाते हैं अपनी तरह के अन्य नादानों को इसे अजमाने का उकसाहट-चलो देखें तो उसने कैसा अनुभव किया होगा?
इन बच्चों को रोकने के लिये कनाडा में एक वेब साईट शुरु की गई है और न जाने कितने फोरम इस दिशा में कार्यरत हैं.
बस, साथियों से यही कहना चाहूँगा कि इस खेल का अन्त अच्छा नहीं है. कहीं चिट्ठाजगत के लिये भी ऐसी ही वेबसाईट न शुरु करना पड़े. खुद ही समझ जाओ न!!
नोट: १.मूलतः इस पोस्ट की वजह ’द चोकिंग गेम’ की जानकारी देना था बाकि तो साथ में बह निकला. :)
२. आज से ४ दिन के लिये बाहर जा रहा हूँ. यह पोस्ट स्केड्यूल की है कल सुबह के लिये, जब मैं कहीं और से अपना ब्लॉग चेक करने वाला हूँ.
भला हो कनाडियन वेब साइट का, जिसके निमित्त आप हिन्दी ब्लॉग जगत की मनस्थिति बता पाये।
जवाब देंहटाएंऔर बिल्कुल सही-सटीक कहा।
अब जब हवा चली है भाई अपना असर दिखा जायेगी
जवाब देंहटाएंदेखें क्या क्या नई कहानी ये अपने संग ले आयेगी
जो इन उल्टे सीधे कामों में अपना हैं समय बिताते
क्या उपलब्धि नाम के आगे उनके दीप जला पायेगी
सही लिखा है मित्र आपने घुटन लगी है ज्यादा बढ़ने
मन करता ही नहीं पढ़े कुछ या कुछ और आ सके कहने
एक दूसरे पर उछालना रं ग नहीं, बस केवल कीचड़
अब परिवर्तन होगा ! यह विश्वास लगा है मेरा ढहने
भईये इसे हटाओ यार.. क्यों पश्चिम की बेवकूफ़ियां इन्टरनेट स्पीड से देसियों तक पहुंचा रहे हो? उधर भी बच्चे ट्राई मारने लगेंगे! गोलियां तो पहले ही चलाने लगे हैं!
जवाब देंहटाएंसोचने पर आपने विवश किया ।
जवाब देंहटाएंमन तो खट्टा होता ही है विवादों ,लानतों ,प्रलापों से । पर अभी यह पढकर ही मन मे आया कि कई बार कुछ रास्ते शायद इस कीचड में से गुज़रे बिना पार नही होते । कितने रास्ते साफ मिलेंगे ? और क्या साफ रास्ते सेफ रास्ते हैं इसी लिये काम्य हैं ?
खैर इन प्रश्नों से सब अलग अलग तरह झूझते होंगे ।
फिलहाल तो बच्चों की फाँसी लगाकर आत्महत्या की खबर से दिल दहला हुआ है ।
सचमुच बहुत दुखद ।
इस चोकिंग गेम के बारे में कुछ महीनों पहले पढ़ा था जब किसी बच्चे की मृत्यु हो गयी थी यहाँ तो एक आलेख आया था। पढ़ने के बाद अपने तो झुरझुरी दौड़ गयी थी, आज आपने फिर याद दिला दी।
जवाब देंहटाएंकभी कभी ऎसी ही चोकिंग हमें भी लगती है चिट्ठाजगत में...तब मन करता है कि सब कुछ छोड़ के चिट्ठाजगत से भाग जायें..लेकिन फिर...
जवाब देंहटाएंसमीर जी आपने बहुत सही बात लिखी है। आज कल तो बस ऐसी ही बातें पढने को मिल रही है।
जवाब देंहटाएंनई जानकारी पसंद आई
जवाब देंहटाएंसही बात. सच्ची बात.
जवाब देंहटाएंक्या यह सब चिट्ठाजगत में होता है? पता नहीं कम आना जाना होता है, आजकल.
जवाब देंहटाएंसत्य वचन. उम्दा कथन
जवाब देंहटाएंवैसे मैं भी ई-स्वामी जी की बात से सहमत हूँ.
जवाब देंहटाएंसमीर जी,
जवाब देंहटाएंलोग समझें न समझें मैं समझ गया कि चिट्ठा जगत में जो लोग चोकिगं गेम खेल रहे हैं वह बच्चे नहीं है.. हां उनकी मानसिकता जरूर उन बिगडे हुये बच्चों जैसी ही है... मगर वो इतने बिगड चुके हैं कि उनका स्वस्थ मानसिकता की और लोटना नामुमकिन सा है.....
और अगर जिन्दगी में मुश्किलें न हो तो जिन्दगी दुश्वार हो जाये.......यही समझ कर इन्हें झेलेंगे :)
ह्म्म्म, चिट्ठाजगत को आप दीन-दुनिया से बाहर क्यों मानते हैं, जैसे लोग हमारे आसपास हैं वही सब तो आएंगे न चिट्ठे पर तो जो कुछ हमारे आसपास है वही सब यहां भी दिखेगा ही!!
जवाब देंहटाएंई स्वामी और काकेश जी शायद यह मानकर चल रहे हैं कि इस तरह चोकिंग गेम भारत में नही पहुंचा है। कुछेक महीने पहले पुणे या मुंबई में एक किशोर ने इसे ही आजमाते हुए खुद की जीवनलीला समाप्त कर ली थी। इस तरह के चीजों को आजमाने में हमारी महानगरीय पीढ़ी काफी आगे है।
हम आप इंटरनेट का उपयोग क्या करते हैं और वह क्या करते हैं।
कुछ दिन पहले एक ठीक-ठाक बंदे ने मुझे एक वेबसाईट का एड्रेस दिया और कहा कि इसे देखना बढ़िया है। मैने ओपन कर देखा तो दिमाग खराब हो गया आत्मपीड़न और वीभत्सता के अलावा कुछ नही था उस साईट में।
बाकी किधर जा रेले हो चार दिन के लिए?
जैसा कि ईस्वामी ने कहा कि भैया जब तक हो सके इन व्याधियों के वहीं रहने दें।
जवाब देंहटाएंबाकि विवाद या बहस चोक नहीं करते, चोकिंग तो शायद निरुद्देश्य व निरंकुशता से उपजती है। अपना तो जब दम घुटना शुरू होता है हम आपकी ही कोई पुरानी पोस्ट पढ़ मारते हैं (क्या करें नई आप लिख कम रहे हैं)
ऐसे भारी देह के साथ इतनी आसानी से आप चोक होने लगते हैं?..
जवाब देंहटाएंमन्द समीरा, तनिक झटक में
सगरे देह समचु मन मरोड़ा?
aap sach kah rahey hain....sochney pe vivash kiya....
जवाब देंहटाएंमैं तो कई बार भाग भी चुका हूँ पर फ़िर वापस आजाता हूँ. पता नही क्यों?
जवाब देंहटाएंसमीर भाई
जवाब देंहटाएंये चोकिंग गेम तो वहाँ अब खेल रहे हैं हमारे यहाँ तो समाज के हर क्षेत्र में चोकिंग गेम चल रहा है. पति-पत्नी, अफसर-मुलाजिम, नेता- जनता, सभी तो हैं इस खेल के महारथी.जिसको मौका मिलता है वोही दूसरे का गला दबा देता है...मर गयातो हरी इच्छा बच गया तो हरी इच्छा...
ब्लोगर भी तो इसी समाज के हिस्से हैं वो क्यों नहीं खेलेंगे वो खेल यहाँ बताईये?
{मुम्बई में आप से दिल खोल के मुलाकात नहीं हो पायी....दुबारा आने का कार्यक्रम हो तो सूचित करें}
नीरज
आप हैं कहां.
जवाब देंहटाएंआजकल ब्लागिंग कम क्यों कर दी।
बहस चलने दीजिये।
सब चलता है। मार धुआंधार, फुफकार, चीत्कार, मारामार,न हो लाइफ में, तो मजा नहिं ना आता।
इस खबर से आपकी तरह मैं भी विचलित हुई थी।
जवाब देंहटाएंhttp://anuradhasrivastav.blogspot.com/2007/12/blog-post_20.html
सच में दिल दहला देने वाली पोस्ट है। मेरा सिर चकरा गया।
जवाब देंहटाएंसमीर जी विश्वास मानिये... जैसे मेरा अपना दर्द कह दिया आपने...सच मुझे भी बड़ा कष्ट हो रहा है इस बात से...हम अपने को साहित्य के प्रेमियों की श्रेणी में रखते है, फिर भी इतनी बहस...!
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आप ही बचे हुए थे. अब कोई यह नहीं कह सकता कि समीरलाल को बहस में नहीं पड़ता. विवाद(बहस)की दुनिया में आपका स्वागत है.
जवाब देंहटाएंखैर ऐसी बहसबाजियाँ होती रहेंगी जब घुटन ज्यादा लगे तो मात्र हजार के आस पास के इन प्राणियों की दुनिया से बाहर निकल आइए मन हल्का हो लेगा।
जवाब देंहटाएंनई जानकारी हेतु आभार !बिल्कुल सही और सटीक कहा है आपने ।
जवाब देंहटाएंसमीर जी, चोकिंग की इस बीमारी के लक्षण भारत में भी देखे जा रहे है। करीब एक महीने पहले मुंबई में एक बच्चे ने इसी तरह से अपनी जान गवाई थी। हाल ही में दिल्ली के एक स्कूल के छात्र ने अपने हॉस्टल में मौत को गले लगाया था। मौत के बाद पता चला कि वो लडका इंटरनेट की कुछ ऐसी वेबसाईट के संपर्क में था जो मौत से कुछ पल पहले का मजा (या नशा) बताने का दावा करती थी। चोकिंग के इस गेम से हम और हमारे बच्चे सिर्फ और सिर्फ जागरुक होने पर ही बच पायेंगे।
जवाब देंहटाएंचिट्ठाजगत पर
जवाब देंहटाएंबहस व टाँग खिचाईं तो प्रबुद्ध होने का सबूत है, मित्र ! हाँ, टाँग खिंचाईं इतनी भी न हो अगला
अपनी टूटी टाँग सहलाता हुआ अलग बैठ जाय ।
दूसरी बात यह कि जिस बहस से कोई निष्कर्ष न
निकल कर आये, ऎसे पंचायत में जाना बेमानी है । वेस्टेज़ आफ़ टाइम !
चोकिंग गेम पर
भरपूर जीवन जीने के सुख से बदहज़मियाये हुये
पीढ़ी का शगल है । स्वयं ही शान्त हो जायेंगे ।
जहाँ ढंग से जीने की जद्दोजहद में जीवन ही शेष
हो जाता हो, वहाँ इतनी चिंता करने की आवश्यकता ही नहीं है । अब भला उस स्थिति को
आप कहाँ रखेंगे जब यह समाचार छपता है,कर्ज़ से
तंग आकर पत्नी का गला घोंटा या प्रेमिका ने अपने प्रेमी के साथ मिल कर पति का गला घोंटा । यह किस प्रकार का चोकिंग गेम माना जाय ।
ब्लॉगजगत की चोकिंग गेम को एक बार नज़र अन्दाज़ किया जा सकता है लेकिन बच्चों की चोकिंग गेम दिल को चाक चाक कर जाती है.
जवाब देंहटाएंचोकिंग गेम के बारे में पढ कर बहुत दु:ख हुआ
जवाब देंहटाएंऐसे व्लॉगर्स पर कोई टिप्पणी आगर न हो तो अपने आप लाइन पर आ जायेंगे । क्यूं कि लिखते तो हम इसी आशा में हें कि कोई पढे । इन शॉर्ट हुक्का पानी बंद ।
आजकल बच्चों को इस तरह के गेम में कुछ ज्यादा ही आंनद आता है और बाकी कसर नेट ने पूरी की हुई है...
जवाब देंहटाएं