बुधवार, जनवरी 31, 2007

भागो भागो, डाकू आये

सुबह से बाजार में हल्ला मचने लगा था, 'भागो भागो, डाकू आये". और जीतु भाई, ई-पंडित , संजय बैंगाणी जी सब ने अपनी कलमी तलवार उठा ली और चालू हो गई डाकू भगाने की प्रक्रिया. तुरत फुरत पुलिस चौकी खोल दी गई, यहाँ रिपोर्ट दर्ज करवायें (क्या मैं आपकी मदद कर सकता हूँ?). जैसा पुलिस चौकी पर लिखा रहता है "सत्यमेव जयते", उसी तरह का स्लोगन टांगा गया, " भरी दोपहरिया, बीच बजरिया, लुट गयी गगरिया। "

जो सबसे जोर से चिल्लाये, " भागो ताऊ भागो अपने अपने चिट्ठों को जल्दी से छिपा दो… डकैतीयाँ शुरू हो गई है। ". हमने देखा, उनके यहाँ डकैती हुई ही नहीं है. वो दुसरे की तरफ से चिल्ला रहे हैं. लोग भाग रहे हैं. कुछ को बहुत मजा आ रहा है. कुछ ऐसे भी हैं, जिनके यहाँ डकैती हुई है, मगर वो अब भी मौन धरे बाकियों की प्रतिक्रिया का नजारा ले रहे हैं. बाद में बोलेंगे, हमेशा की तरह.

कर्नाटक सरकार और विरप्पन टाईप कहानी बनने लगी. एक पत्रकार बंधु ( चिट्ठाकार बंधु) को जंगल भेजा गया, दस्यु राज से बातचीत चलाने को. तब कई राज परत दर परत खुलने लगे. यह पूरी तरह डकैती नहीं थी. कई लोगों ने अपने घर से सामान उठाकर ले जाने को सहमती भी दी थी और कुछ लोगों से पूछने पर उन्होंने सामान उठाने को मना तो नहीं किया मगर चुप रहे. जब बात बढ़ने लगी, तब जंगल से एक सीधा और एक बीचउपुर वाले चिट्ठाकार बंधु के माध्यम से दस्युराज की विज्ञप्ति जारी की गई. अब सब विचार कर रहे हैं कि क्या सही और क्या गलत. हमें तो पता नहीं.

मुझे तो बस रह रह कर आज दूसरी बार जीवन में तन्हाई घेर ले रही है. एक बार तब जब जबलपुर में व्यापार करता था. दनादन सब व्यापारियों के यहाँ आयकर के छापे पड़े. हम इंतजार ही करते रहे, हमारे यहाँ नहीं पड़ा. बड़ा स्टेटस गिरा. आयकर वालों ने हमें इस लायक ही नहीं समझा. झूठे नाम से खुद ही के खिलाफ आयकर वालों को शिकायत भी लिख भेजी मगर छापा नहीं पड़ा, उन्होंने उस शिकायत को मजाक माना.बड़ी मुश्किल से शाम की दावतों में अपने छापा खाये दोस्तों से नजर मिला पाता था. कई दिन डिप्रेशन का शिकार रहा, तब जाकर स्वामी रामदेव के प्रणायाम से आराम लगा.

आज फिर वही, हल्ला सुनकर हम भी भागे रिपोर्ट लिखवाने. सिपाही ने बहुत डांटा कि कहाँ हुई डकैती आपके यहाँ? हम तो अपना सा मुँह लिये खडे रह गये. हमने उनसे कहा कि भईया, कहीं अब न डाका पड़ जाये, इसी से पहले ही एतिहातन रिपोर्ट नहीं लिखवा सकते क्या? बहुत समझाया कि भईया, कुछ ले दे कर रिपोर्ट लिख लो वरना बहुत बदनामी हो जायेगी. मगर बड़ा कर्तव्य निष्ट प्राणी था, नहीं माना तो नहिये माना. अब सब बता रहे हैं कि उनके यहाँ चोरी हुई और हम मुँह छुपाये घूम रहे हैं. अब क्या करें वो द्स्युराज की लूट टीम में एक भी ऐसा पारखी नहीं जो हीरे की परख कर सके तो हम क्या करें. अब हम जीतु तो हो नहीं जायेंगे कि डाका भी नही पड़ा और सबसे जोर नाचे:

हाय! हाय! जे कैसा कलजुग! भरी दोपहरिया, बीच बजरिया, लुट गयी गगरिया। दिन दहाड़े डकैती।

या फिर पंकज, ऐसा चिल्लाये; " भागो ताऊ भागो अपने अपने चिट्ठों को जल्दी से छिपा दो… डकैतीयाँ शुरू हो गई है। ". ऐसा चिल्ला चिल्ला कर भागे कि हमें लगा कि बन्दे की पोस्टों के साथ इन्हें खुद को भी लूट ले गये दिखता है. बाद में पता चला कि यह सिर्फ जन जागृति के लिये मशाल लिये भाग रहे थे, इनका कुछ भी लूटा नहीं गया है.

वैसे, एक बात तो है, ऐसे वक्त में जीतु भाई का बहुत सहारा रहा, वरना तो हम बिल्कुल ही अकेले पड़ जाते. साधुवाद, जीतु भाई को.


इस भरी दुनिया में कोई भी हमारा न हुआ,
एक जीतु न हो तो कोई भी सहारा न हुआ.


चलते चलते: हम तो दस्युराज जी से यही निवेदन करेंगे कि भईया, जब मामला सुलट जाये और फिर भी आपकी साईट चालु रहे तो कभी हमारे दरवाजे आकर भी अनुग्रहित करना. जहाँ आपने पूछा और बस समझो....कि हो ही गया.


नोट: दस्युराज शब्द का उपयोग मात्र बाकी पोस्टों की हैडिंग देखकर किया गया है, कृप्या अन्यथा न लें. सब मौज मजे के लिये है न कि किसी के चरित्र हनन के लिये.

15 टिप्‍पणियां:

  1. आपने तो लूट करने वालों, लूट जाने वालों और पीडीतों की मदद करने वालों, केसी को नही छोडा!!

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  2. बने रहिए समीर भाई जीतू ही नहीं हम भी हैं आपकी राहे कारवाँ में खड़े!!!कितनी सहजता से बाते कहीं आपकी यही शैली मुझे अच्छी लगती है…धन्यवाद।

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  3. अच्छी मौज ली आपने। हम तो कल की चर्चा में जीतू भाई और अक्षरग्राम पर टिप्पणी करने को तरस गए, स्पैम कोतवालों ने अंदर ही नहीं जाने दिया। तब अपनी पोस्ट लिख कर भड़ास निकालनी पड़ी।

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  4. बेनामी1/31/2007 10:51:00 pm

    वो दुसरे की तरफ से चिल्ला रहे हैं. लोग भाग रहे हैं. कुछ को बहुत मजा आ रहा है.

    हम यही सोच रहे थे कि आखिर मजा किसे आ रहा है, आपकी पोस्ट पढने के बाद पता चल गया कि वो है कौन, आप ही हैं मजे लेने वाले ;)

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  5. बेनामी1/31/2007 11:01:00 pm

    समीर जी,

    हमे आपसे पूरी सहानुभूती है।

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  6. बेनामी1/31/2007 11:03:00 pm

    हा हा हा.
    अच्छी मौज ली है. मजा आया.
    अभी हमारा हाल उस कल्लू धोबी जैसा है जिसके यहाँ आयकर वाले भूल से पड़ोसी सेठ के साथ-साथ छापा मारते है. कल्लू कोलर ऊँची किये घूमता है. जिनके यहाँ छापा नहीं पड़ा ऐसे सचमुच के सेठ उससे ईर्ष्या करते है, जिनके यहाँ छापा पड़ा वे मूँह बिचकाते है.
    मगर मामला था गम्भीर.

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  7. बेनामी1/31/2007 11:13:00 pm

    बहुत मजेदार, यह लेख भी और अक्षरग्राम पर आपकी टिप्पणी भी।

    आप मौज ले रहे हैं जो बेचारे लुट गये उनके लिये जरा भी हमदर्दी आपके पास नहीं।
    बहुत निष्ठुर हैं कठोर :(

    आपके चिट्ठे की कीमत किसी हिंदी पढ़ने वाले से पूछिये, गुगल बाबा क्या जानें :)

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  8. मजा आई गवा लालाजी, मौज ले ली मौज मौज में

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  9. तिनके(जीतू) को तिनके(समीर लाल) सॉरी तने का ही सहारा है। हमको तो आज बहुत लज्जा आ रही है, सच पूछों को किसी को मुँह दिखाने के लायक नही। हमारे लेख किसी ने चुराने के लायक नही समझे।

    समीर भाई, नियाग्रा फाल्स पर आत्महत्या का वक्त कितने बजे का रखा है, हम भी आ जाएंगे।

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  10. बेनामी2/01/2007 01:18:00 am

    यम ! यम ! मजा आ गया !

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  11. श्री समीर जी;
    नमस्कार एवं अभिवादन. अभी कल के झटके से उबरने की कोशिश कर रहां हूं. एक चोर को भी संयत होने में कुछ तो समय लगेगा ही.

    कैफ़ेहिन्दी को आपकी रचनाओं एव बहुमूल्य सुझावों का इन्तजार है. मुझे विश्वास है कि आप स्नेह कृपा बनाये रखेगें
    आपका
    मैथिली

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  12. अरे समीर भैया काहे दुखी हो रहे हो। एकबार हमसे कहकर देखा होता। अपने चिट्ठे पर छाप देंगे चुरा कर। बोलो कौन सी पोस्ट लुटवानी है। :)

    और चिन्ता मत करना नाम भी अपना लिख कर छापेंगे। ;)

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  13. चुटीली भी है और चुभीली भी। लगे रहो

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  14. बढ़िया रहा भाई जो चाहते थे वही हुआ, आखिर आपने रो रो कर दस्युराज को आकर्षित कर ही लिया । :p
    बेहद मजेदार लेख !

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  15. मुझे तो अपने पर शर्म आ रही है कि किसी ने इस लायक भी न समझा कि कुछ यहां से भी ले जाता, अरे भाई स्वागत तो करते ही साथ ही मे खिला पिला कर साथ ही मे हो लेते .....

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