गुरुवार, मार्च 30, 2006

महाकवि Robert Frost भाग ३: एक नज़रिया-क्षणभंगुर बचपन

जैसा कि मैने पहिले भी कहा था कि Robert Frost हमेशा से मेरे अंग्रेजी के सबसे पसंदीदा कवि रहे है.आज़ फिर एक कविता जो कब से डायरी मे थी, पर नज़र पड गई और भईया को पढते पढते हिन्दी जोर मारने लगी. मात्र मेरे विचार हैं, देखें:

Nothing Gold Can Stay

Nature's first green is gold,
Her hardest hue to hold.
Her early leaf's a flower;
But only so an hour.
Then leaf subsides to leaf.
So Eden sank to grief,
So dawn goes down to day.
Nothing gold can stay.

--Robert Frost

मेरा नज़रिया: क्षणभंगुर बचपन

इस चमन मे एक बालक
फ़ूल सा आकर खिला
निष्कपट, निःस्वार्थ, निश्छल
ह्रदय साथ उसको मिला.

कुछ पलों के बाद ही
ज़माने की हवा चलने लगी
गर्म उन थपेडों से
कोमल त्वचा जलने लगी.

बालक मन ने घबडा कर
कर लिया किनारा बचपन से
छल और कपट का साथ पकड
कर लिया सामना जीवन से.

अब फ़िर चमन उदास है
फ़िर एक बालक की आस है
यही जीवन का यर्थाथ है
यह हर चमन का इतिहास है.

--समीर लाल

8 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़ा अच्छा भावानुवाद किया है आपने।अपने प्रिय कवि को अच्छी तरह आत्मसात किया है।

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  2. आपने पसंद किया, अनूप भाई, अच्छा लगा.
    प्रयास सार्थक रहा.
    समीर लाल

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  3. इस चमन मे एक बालक
    फ़ूल सा आकर खिला
    निष्कपट, निःस्वार्थ, निश्छल
    ह्रदय साथ उसको मिला.

    कुछ पलों के बाद ही
    ज़माने की हवा चलने लगी
    गर्म उन थपेडों से
    कोमल त्वचा जलने लगी.

    bahut khoob sameer sahab ! lutph aa gaya aapki is rachna ko padh ke ! daad qubool karein.

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  4. बहुत धन्यवाद, मनीष जी.बस दिल के भाव हैं जो Robert Frost की कविता पढते समय आये.

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  5. इस चमन मे एक बालक
    फ़ूल सा आकर खिला
    निष्कपट, निःस्वार्थ, निश्छल
    ह्रदय साथ उसको मिला.

    कुछ पलों के बाद ही
    ज़माने की हवा चलने लगी
    गर्म उन थपेडों से
    कोमल त्वचा जलने लगी.

    Aapki ye kavita parhkar...woh geet yaad aagaya...bacche mann ke sacche...insaan jab tak baccha hai tab tak samjho saccha hai
    jyon jyon ooski umar badhe tyon tyon mann per jhuth ka mail chadhe :)

    waqai bahut khoob saraansh hai aapki iss kavita ka ..daad kabool farmayein

    cheers

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  6. बहुत खुब गीत याद कराया है, सेहर जी.
    धन्यवाद.
    समीर लाल

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  7. समीर जी, बहुत अच्छी रचना है. पढकर एक शेर याद आ गया:

    मन के किसी कोने में, इक मसूम सा बच्चा है
    बडों की देख के दुनिया, बडा होने से डरता है

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  8. "मन के किसी कोने में, इक मसूम सा बच्चा है
    बडों की देख के दुनिया, बडा होने से डरता है "...बहुत बढिया भाव है, बधाई..
    समीर लाल

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