शुक्रवार, मार्च 31, 2006

खुदा बनाया है...

खामोशी की इस ज़ुबां मे तूने
आज ये कैसा गीत सुनाया है.

अब दर्द का लावा आँसू बनकर
क्यूँ दिल मे जा समाया है.

हर साँस मे जो रहता था कल
अब पास ना उसका साया है.

कितने गहरे ज़ख्म लगे हैं
मरहम ना अब तक पाया है.

फ़िर क्यूँ जिससे ठोकर खाई
अब उसको ही खुदा बताया है.

जब जब भी यादों मे आया
तब तुमने शीश नवाया है.

--समीर लाल 'समीर'

<<गज़ल की देवी-देवी नागरानी जी का विशेष आर्शीवाद मेरे इस गीत को प्राप्त है, देवी जी को शत शत नमन>>

3 टिप्‍पणियां:

  1. फ़िर क्यूँ जिससे ठोकर खाई
    अब उसको ही खुदा बताया है.

    वाह! बहुत खूब...दाद कबूल करें
    ...
    फि़जा़

    जवाब देंहटाएं
  2. दाद देने को शुक्रिया, फ़िजा जी.
    समीर लाल

    जवाब देंहटाएं
  3. देवी जी
    यह आपका बड़प्पन है.
    सादर
    समीर लाल

    जवाब देंहटाएं

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