बचपन से सुनते आए मौसम का हाल। जब
कभी रेडियो पर बताता कि तेज हवा के साथ बारिश होगी, तब तब मौसम मिजाज बदल लेता और
न बारिश होती और न ही तेज हवा चलती। लगता कि मौसम भी रेडियो लगा कर बैठता होगा और
विपक्ष की तरह हर काम में अड़ंगा लगाने की ठान कर बैठा हर घोषणा के विपरीत काम करता।
जब मौसम विभाग कहता कि धूप निकलेगी तो तुरंत
ही कपड़े आचार धूप दिखाने के लिए छत पर निकाले जाते और उसी रोज बारिश होती तो भाग
भाग कर वापस लाए जाते।
आमजन का तो विश्वास ही उठ
गया था इनकी घोषणाओं पर से बिल्कुल वैसे ही जैसे सरकार पर से। लेकिन मौसम विभाग ने
न तो कभी घोषणा करना बंद किया, न ही सरकार ने। विश्वास न करना तुम्हारा काम और
घोषणा करना इनका काम और इनकी घोषणाओं को मिट्टी मे मिलाने का काम मौसम का और
विपक्ष का।
वैसे ही जैसे सरकार चुनावों
मे किया अपना कोई वादा पूरा कर दे तो लगता है कि ये क्या हुआ? वैसे ही 100 में से
एकाध बार अगर मौसम विभाग की घोषणा सच निकल भी जाए तो लगता कि आज या तो इनसे कोई
गल्ती हो गई या फिर मौसम के रेडियो को सिग्नल नहीं मिला होगा। कौन जाने उसके यहाँ
भी बिजली गोल हो जाने की व्यवस्था हो। अंदाज ही तो लगाना है तो यही सही। सरकार जब
कभी अपना कोई वादा पूरा कर दे तब तो अंदाज भी नहीं लगाना होता। बस नजर उठाओ तो
सामने कोई चुनाव आता साफ नजर आ जाएगा।
खैर, मौसम विभाग की घोषणा से
बात शुरू हुई और कहाँ चली गई। ऐसे परिवेश में पाले बढ़े जब कनाडा पहुंचे नए नए और
यहाँ के मौसम विभाग ने घोषणा की आज बर्फ गिरेगी तो आदतन नजर अंदाज करते हुए बिना
बर्फ वाले लेदर के जूते पहने ही निकल लिए। मगर ये क्या, यहाँ तो वाकई में बर्फ
गिरी और तैयारी से न निकलने के कारण बर्फ के साथ साथ फिसल कर हम भी गिरे। दो तीन लोगों
की मदद से उठाए गए और फिर पाँच दिन बात न मानने की सजा के तहत कमर में भीषण दर्द लिए
करहाते रहे। तब लोगों ने बताया कि मौसम का हाल सुन कर घर से निकला करो। यहाँ जब
मौसम विभाग की घोषणा में गल्ती होती है तो वो वाकई में गल्ती होती है और ऐसा 100
मे से एकाध बार होता है कि वो बोलें कि आज मौसम -10 रहेगा और मौसम -10 तक न गया
हो।
सरकारी घोषणायें भी बिना
चुनाव आए ही अक्सर पूरी कर ही दी जाती हैं। चुनाव आ भी रहे हों तो भी पता ही नहीं
लगता कि चुनाव हैं भी। न रैली, न जन सभाएं और न ही बड़े बड़े पोस्टर। न तो कोई दारू
बांटने वाला और न ही कंबल साड़ी। खुद की गाड़ी से जाओ। गत्ते के डिब्बे में वोट डाल
आओ। वोटिंग का समय समाप्त। पोलिंग स्टेशन वाले उन डिब्बों को अपनी कार में रखकर
शहर की काउंटिंग स्टेशन पर ले जाकर हर उम्मीदवार के एक एक एजेंट के सामने गिन कर 2 घंटे में ही गिनती खत्म। फोन से रिजल्ट भी भेज
दिया। जीत की घोषणा हो गई और चुनाव सम्पन्न। रस ही नहीं है चुनाव में चुनाव वाला।
अब जब आदत हो गई है इतने
सालों में इन मौसम विभाग वालों की बात मानने की तो अब ये स्लिप मारने लगे हैं। कभी
कहते हैं बर्फ का तूफान आ रहा है और फिर शाम तक बताएंगे कि बाजू वाले शहर से निकल
गया। मगर जब से खुद दो चार बार फिसले हैं और मित्रों की फिसलने से टूटी हड्डियों
के किस्से सुनते हैं तो भले ही ये गलत भविष्यवाणी कर दें, न मानने की गल्ती करने
की तो सोचते भी नहीं।
ऐसे ही जैसे कानून तोड़ने की
सजा सचमुच तगड़ी हो तो फिर भला कौन कानून तोड़ेगा जैसे किन्हीं देशों में चोरी करने
पर हाथ ही काट डालते हैं तो वहाँ भला कौन चोरी करेगा।
मगर हम तो जानते हैं न कि
कानून तोड़ों और पॉवर और पैसे से रिश्ता जोड़ों तो भला कोई हमारा क्या बिगाड़ पाएगा-
फिर हम क्यूँ माने किसी की बात!
-समीर लाल ‘समीर’’
भोपाल से प्रकाशित दैनिक
सुबह सवेरे के मंगलवार 16 फरवरी,2025 के अंक में:
https://epaper.subahsavere.news/clip/16052
ब्लॉग पर पढ़ें:
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क्या ही खूब लिखते हो समीर, एक
जवाब देंहटाएंसंग्रह निकलो ३६५ दिनों का चिट्ठा , और एक प्रति मुझे ज़रूर भेजिएगा, बार बार पढ़ने से दिल बह जाता है,
मौसम का क्या है
दुल्हन की तरह रोज़ नये नख़रे करती है
🙏
देवी नागरानी