2022 गुजरने को है। न जाने कितने लोग
आने वाले नये साल के साथ कितना कुछ नया कर गुजरने की मंशा बना रहे हैं। न्यू ईयर रेजोल्यूशन
जिस कदर फैशन में है, उससे कहीं ज्यादा उस पर अमल न
कर पाना फैशन में है। 100 में से कोई एक पूरा कर जाए यह भी बमुश्किल ही देखने को
मिलता है। इससे ज्यादा प्रतिशत तो नेताओं के चुनावी वादों को अमली जामा पहनाने का
है। वहां शायद 100 मे से दो नेता वादा निभाते दिख जाएँ -इसमें भी शायद शब्द गौर
फरमा है।
ऐसे ही अपवादों मे से एक हैं
हमारे तिवारी जी। कहते हैं इसी न्यू ईयर रेजोल्यूशन के चलते बहुत सालों पहले उनकी
शादी हुई थी वरना शादी कर के परिवार चलाने लायक न तो उनकी कमाई थी और न ही निकट
भविष्य में कोई आशा। बाद में सोचो तो लगता है कि अच्छा ही हुआ जो न्यू ईयर रेजोल्यूशन बना बैठे और शादी कर ली।
कमाई के भरोसे रहते तो आजीवन बेरोजगार के साथ साथ अविवाहित भी रह जाते। उस जमाने
में शादी के बाद गौना करके पत्नी को घर लाया जाता था। साल भर बाद गौना होना था।
भरम ये था कि शायद तब तक कुछ कमाई भी होने लग जाएगी। चौराहे पर पान की दुकान पर
सुबह से डेरा और मात्र चर्चाओं मे कमाई के साधनों का प्रयास मानो घर नहीं देश
चलाना हो। न कभी प्रयास पर चर्चा खत्म हुई और न कभी कमाई शुरू हुई।
बस किस्मत ही की बात थी कि पत्नी
अपने माँ बाप की इकलौती संतान थी और उनके पास उनका पुश्तैनी मकान था जिसका ज्यादा
हिस्सा किराये पर था और वही किराया उनकी जीविका का साधन था। गौना होता होता तब तक
पत्नी के पिता का देहावसान हो गया और गौना एक बरस के लिए टल गया। तिवारी जी कमाई
के साधन की चर्चा में चौराहे की पान की दुकान पर इतना मशगूल रहे कि समय कैसे कटता
गया, पता ही नहीं चला। चर्चा करते करते
शाम तक इतना थक जाते कि इतना भी होश न रहता कि किसने पिलवा दिया और किसने खिलवा
दिया – बस गुजर बसर हो जाती।
इस बीच पत्नी की माता जी भी गुजर
गई और तिवारी जी को गौना कराने की जरूरत ही नहीं पड़ी बल्कि वे स्वयं ही पत्नी के
घर पर रहने लगे। कमाई के साधन की चर्चा को भी विराम मिला। अब पत्नी के पुश्तैनी
मकान का किराया इनकी जीविका का साधन बन गया।
तिवारी जी अक्सर घँसू को
समझाते भी थे कि न्यू ईयर रेजोल्यूशन का बहुत महत्व
होता है यदि आप उस पर अमल करें। एक बहुत बड़ी भ्रमित आबादी की तरह ही घँसू की मजबूरी यह कि सब समझने के बाद भी उसे यही नहीं समझ आ रहा
है कि आखिर न्यू ईयर रेजोल्यूशन बनाएं तो बनाएं
क्या? पूरा करना या नहीं करना तो बहुत दूर की बात है।
खैर, अब तिवारी जी हर साल नये नये
न्यू ईयर रेजोल्यूशन बनाते और उनको पूरा करते। घँसू इसी बात से प्रसन्नतापूर्वक
जीवन काटे दे रहा था कि तिवारी जी अपने न्यू ईयर रेजोल्यूशन पूरे किये चले जा रहे
हैं। तिवारी जी की भी एक खासियत यह रही कि न तो उन्होंने कमाई को ले कर कभी कोई
चिंता की और न ही इसके लिए कभी न्यू ईयर रेजोल्यूशन बनाया। घँसू बता रहे थे कि
तिवारी जी जरा हट के काम करने वालों में से
हैं। पता नहीं वो हट कर क्या काम करते थे जिन्हें हमने चौराहे से ही हटते कभी नहीं
देखा।
घँसू से और जानने का प्रयास
किया तो बताने लगे कि 2021 में तिवारी जी ने मंचों के लिए कविता लिखने का न्यू ईयर रेजोल्यूशन बनाया था और साल भर में 100
से ऊपर मंचों के लिए कविता लिखी याने हर साढ़े तीन दिन मे एक नई कविता मंच के लिए
हाजिर।
करत करत अभ्यास ते की तर्ज पर 2022
का न्यू ईयर रेजोल्यूशन फिल्मों के लिए गीत लिखने का बनाया और अभी साल खत्म भी
नहीं हुआ है 200 के आसपास गीत लिख चुके हैं। सुनने वाले सब आश्चर्यचकित से खड़े तिवारी
जी को देख रहे थे और श्रद्धाभाव से सर झुकाए थे।
तिवारी जी कागज कलम लिए पान दबाए आसमान की तरफ मुंह उठाए मुस्करा रहे थे मानो अगले
बरस का टारगेट आसमान ही हो।
बताया गया कि 2023 में और भी
बड़ा कुछ कर गुजरने की मंशा है और न्यू ईयर रेजोल्यूशन फिल्मों के लिए पटकथा लेखन
का है और साथ ही डायलॉग राइटिंग भी करेंगे।
जिज्ञासा तो जिज्ञासा होती
है अतः मैं पूछ बैठा कि कौन कौन सी फिल्म के लिए गीत लिखे हैं और अब पटकथा किस
फिल्म के लिए लिखने जा रहे है? जबाब में पता चला कि तिवारी जी का काम है लिखना और
वही वादा भी था सो लिखे जा रहे हैं। फिल्म वाले अभी तक तिवारी जी तक नहीं पहुंचे
हैं अतः इनके लिखे गीतों से वंचित हैं और अगर फिल्म वाले लोग ऐसी ही कामचोरी करते
रहे तो अगले साल इनकी पटकथाओं से भी वंचित रह जाएंगे।
मैं तिवारी जी के जज्बे पर
नतमस्तक अपना 2023 का न्यू ईयर रेजोल्यूशन राष्ट्र निर्माण
का बना बैठा हूं -देखना यह है कि राष्ट्र इस बात का फायदा उठा पता है या फिर
फिल्मी दुनिया की तरह ही यह भी वंचित रह जाएगा।
-समीर लाल ‘समीर’
भोपाल से प्रकाशित दैनिक
सुबह सवेरे में सोमवार जनवरी 9,
2023 में:
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