रविवार, जुलाई 10, 2022

उसका गाँव खो गया है...

 



रामफल को विरासत में अगर कुछ मिला था तो मात्र दो चीजें.

एक तो पिता के द्वारा पुरखों से प्राप्त एक बीघा जमीन और उस पर बने दो कमरे के पक्के मकान की वसीयत और दूसरा, पिता से मिली कभी गाँव छोड़ कर शहर न जाने की नसीहत.

पिता का कहना था कि गाँव ने तुम्हें जन्म दिया है तो तुम्हारा फर्ज है कि उसका कर्ज अंतिम सांस तक अदा करो. ये गाँव की जमीन, मात्र जमीन नहीं, माँ है तुम्हारी.

और रामफल, जिसके सारे सहपाठियों से लेकर लगभग सभी हमउम्र जानने वालों के शहर पलायन कर जाने के बावजूद, इस नसीहत को थामे गाँव में ही मास्टरी करते हुए जीवन गुजारते रहा. उसे गर्व था कि उसने पिता की नसीहत का अक्षरशः पालन किया.

जब कभी शहर से कोइ मित्र लौट कर रामफल से अपने पैसों और सफलताओं की नुमाईश करता कि उसके पास मकान है, पैसा है, कार है...और तुम बताओ रामफल, तुम्हारे पास क्या है? तब गाँव की जमीन को माँ का दर्जा दे उसकी सेवा में अपना जीवन समर्पित कर देने वाला रामफल, कुछ कुछ दीवार फिल्म के शशी कपूर सा महसूस करता हुआ मुस्करा कर कहता कि मेरे पास माँ है!!

मित्र भी हँस कर रह जाते..कौन जाने, कौन हारा और कौन जीता..मगर माहौल तो हल्का हो ही जाता.

पिता की नसीहत इतनी गहरी पैठ कर गई थी कि साथियों की तमाम समझाईशों के बावजूद रामफल की बस एक जिद...गाँव छोड़ कर शहर नहीं जाना है.

समय बीता...रामफल गाँव में सिमटा अपने गर्व के किले में कैद, उसी जमीन और मकान को संभाले मास्टरी करता चला गया.

उसने अपनी इसी जिद को ही अपना अस्तित्व मान लिया और उसी अस्तित्व को बचाना उसके जीवन का एक मात्र ध्येय बच रहा. वो खुश था इस तरह से एक रक्षक का किरदार अदा कर....

रामफल जरुर गाँव में सिमटा रहा मगर शहर..उसके अपने पाँव होते हैं.. वो बढ़ता रहा और फिर एक दिन ऐसा भी आया जब शहर बढ़ते बढ़ते उसके दरवाजे तक चला आया.

आज उसका गाँव खो गया है...वो विलीन हो गया है शहर में और रामफल..वो हताश है कि वो अपना अस्तित्व बचा नहीं पाया जिसके लिए उसने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया..

कहते हैं कोई नया कानून आया है जिसके तहत सरकार ने उसकी जमीन अधिग्रहित कर ली है ..

अब उसकी जमीन से शहर की एक बड़ी सड़क गुजरेगी.

-समीर लाल ’समीर’

 

भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के रविवार जुलाई 10, 2022 के अंक में:

http://epaper.subahsavere.news/c/69088294

 

 

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 चित्र साभार : Google 


11 टिप्‍पणियां:

  1. इसी तरक्की की कई गाँव बाट जोह रहे हैं...अद्भुत लेख...👌👌👌

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  2. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (13-07-2022) को चर्चा मंच      "सिसक रही अब छाँव है"   (चर्चा-अंक 4489)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

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  3. व्यंग्य की कसौटी -आँखों मे पानी और होंठों पर हँसी -विसंगतियों कीचुभतीलहुई प्रस्तुति -बहुत अच्छी लगी .

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  4. वाह वाह! बहुत खूब लिखा है।

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  5. बढ़िया लिखा ,कई रामफल की कहानी है यह

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  6. मार्मिक ...... अब शहर के पाँव हो गए हैं .... सटीक .

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  7. शहर के अपने पाँव होते हैं। सही कहा सर। मार्मिक प्रस्तुति। सादर।

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  8. अपनी जमीन (माँ) को यूँ गाँव के विकास के लिए दे देना...।
    सच कहा कई रामपाल की कहानी।

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  9. सारयुक्त गहन विश्लेषात्मक लेख सर।
    सादर।

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