शनिवार, जून 25, 2022

हम भ्रष्टन के..भ्रष्ट हमारे: गीता सार



क्यूँ व्यर्थ परेशान होते हो, किससे व्यर्थ डरते हो

कौन तुम्हारा भ्रष्टाचार बंद करा सकता है...

भ्रष्टाचार न तो बंद किया जा सकता है

और न ही कभी बंद होगा. बस, स्वरुप बदल जाता है

(पहले १००० और ५०० में लेते थे, अब २००० हजार में ले लेना)


कल घूस नहीं मिली थी, बुरा हुआ.

आज भी कम मिली, बुरा हो रहा है.

कल भी शायद नही मिले, वो भी बुरा होगा.

नोटबंदी और नोट बदली का दौर चल रहा है...

तनिक धीरज धरो...हे पार्थ,

वो कह रहे हैं न, बस पचास दिन मेरा साथ दो..दे दो!!

फिर उतनी ही जगह में डबल भर लेना.

१००० की जगह २००० का रखना.

           

इस धरा पर कुछ भी तो शाश्वत नहीं..आज यह सरकार है..

हम भ्रष्टन के..भ्रष्ट हमारे....का मंत्र कभी खाली नहीं जाता;;

अतः कल कोई और सरकार होगी..


वैसे भी तुम्हारा क्या गया, कोई मेहनत का पैसा तो था नहीं, जो तुम रो रहे हो...

माना कि इतने दिन छिपाये रखने की रिस्क ली मगर उसके बदले ऐश भी तो की, काहे दुखी होते हो.

(सोचो, छापा पड़ने के पहले ही सब साफ सफाई हो गई वरना क्या करते? इसी बात का उत्सव मनाओ..

अगर छापा पड़ जाता तो नौकरी से भी हाथ धो बैठते )


तुम्हें जो कुछ मिला, यहीं से मिला

जो कुछ भी आगे मिलना है, वो भी यहीं से मिलेगा.


पाजिटिव सोचो..आज नौकरी बची हुई है

वो कल भी बची ही रहेगी..

सब ठेकेदार आज भी हैं

वो सब के सब कल भी रहेंगे..

शायद चेहरे बदल जाये बस..

साधन खत्म नहीं किये हैं..बस, नोट खत्म किये हैं..

इन्तजार करो, नये छप रहे हैं..

साधन बने रहें तो नोट कल फिर छपकर तुम्हारे पास ही आयेंगे..


लेन देन एक व्यवहार है..और व्यवहार भी भला कभी बदलता है..

.

आज तुम अधिकारी हो, तुम ले लो.. कल कोई और होगा..वो ले लेगा और परसों कोई और.

कल तुम अधिकारी नहीं रहोगे

परसों तुम खुद भी नहीं रहोगे

यह जीवन पानी केरा बुदबुदा है...

और तुम इसे अमर मान बैठे हो और इसीलिए खुश हो मगन हो रहे हो.


बस यही खुशी तुम्हारे टेंशन का कारण है.

बस इसलिए तुम इतना दुखी हो...


कुछ नहीं बदलेगा..आज ये फरमान जारी हुआ है..कल नया कुछ होगा.

जिसे तुम बदलाव समझ रहे हो, वह मात्र तुमको तुम्हारी औकात बताने का तरीका है.

और खुद को खुदा साबित करने की जुगत...

आँख खोलो..जिसे तुम अपना मानते रहे और हर हर करते रहे- वो भी तुम्हारा नहीं निकला.


जीवन में हर चोट एक सीख देती है..

यही जीवन का सार है...


जो इन चोटों से नहीं सीखा..

उसका सारा जीवन बेकार है...

तो हे पार्थ ..आज इस चोट से सीखो...


अब तुम अपने घूस के रुपये को सोने को समर्पित करते चलो..

कागज को कागज और सोने को सोना समझो..


यही इस जीवन का एक मात्र सर्वसिद्ध नियम है..

अपनी कमाई का कुछ हिस्सा अपने सीए से भी शेयर करो

वह तुम जैसों के लिए धरती पर प्रभु का अवतार है..

प्रभु को दान देने से जीवन धन्य होता है..

उसकी शरण में जाओ..

वही तुम्हारी जीवन नैय्या पार लगवायेगा..


और जो मनुष्य इस नियम को जानता है

वो इस नोटबंदी और काला धन को ठिकाने लगाने की टेंशन से सर्वदा मुक्त है.

ॐ शांति...

-समीर लाल 'समीर'


भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के रविवार जून 26,2022 के अंक में:

http://epaper.subahsavere.news/c/68825401


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9 टिप्‍पणियां:

  1. Excellent sattire on what people do and expect reverse of it from others.

    I believe people get inspired by reading this article to reject dishonesty and walk along path of honesty.

    Honesty is absolute in every sphere of life. It start from within and radiates slower than snail's place. An extremely difficult proposition.

    Unless eachone of us takes a resolve to be absolutely honest we would be enjoying humour of who is more relatively dishonest.

    Excellent thoughts .....

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  2. ज़बरदस्त व्यंग्य ....... यदि सच्ची गीता सार समझ आ जाये तो बात ही क्या है ......

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  3. शानदार व्यंग्य
    सादर...

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  4. क्यूँ व्यर्थ परेशान होते हो, किससे व्यर्थ डरते हो

    कौन तुम्हारा भ्रष्टाचार बंद करा सकता है...

    भ्रष्टाचार न तो बंद किया जा सकता है

    और न ही कभी बंद होगा. बस, स्वरुप बदल जाता है

    (पहले १००० और ५०० में लेते थे, अब २००० हजार में ले लेना)......यथार्थ का सटीक बीचित्रण ।बहुत बधाई आदरणीय ।

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  5. वाह!!!
    गजब का गीता सार...
    बहुत ही लाजवाब।

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  6. क़रार व्यंग, यकिनन ऐसा कमाल आप की लेखनी ही कर सकती है। बाकी समझना समझाना तो स्वयं पर निर्भर करता है,सादर नमन आपको 🙏

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आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है. बहुत आभार.