शनिवार, सितंबर 25, 2021

क्या इंतजाम करके गए बिरजू दद्दा

 


किसान है बिरजू..तो तय है परेशान तो होगा ही..मरी हुई फसलें और उनके चलते सर पर चढ़े बैंक के लोन का बोझ..उसे पता है उसके साथी किसान आंदोलनरत हैं कि शायद कल हालात कुछ बेहतर हों मगर उसके लिए भी तो कल तक जीने के साधन होना चाहिए जो बिरजू के पास अब कहाँ हैं.. वो तो आज कैसे गुजारे, यही नहीं समझ पा रहा है.

वो अक्सर सोचता कि उसके साथी जो पिछले साल भर से आंदोलन पर बैठे हैं, उनका घर कैसे चल रहा होगा? चल तो रहा ही है मगर वो खुद एक साल आंदोलन तो क्या, एक दिन घर भी नहीं बैठ सकता. फिर उसे संसद में बैठे गरीबों के नेताओं का ख्याल आया. तब जाकर उसे तसल्ली हुई कि आंदोलन पर किसानों के नेता बैठे हैं. न कभी गरीबी दूर हुई और न कभी किसानों कि समस्या दूर होने वाली है.  

उसकी परेशानी भी ऐसी वैसी नहीं है..उस सीमा तक की है कि बिरजू जान गया था अब आत्म हत्या के सिवाय कोई विकल्प बाकी नहीं बचा है.

वो सुबह सुबह उठा, पत्नी और बच्चों को सोते में ही देखकर मन के भीतर भीतर माफी माँगते हुए अहाते में लगे पेड़ पर रस्सी से फंदा बना कर लटक गया..आज वो मुक्त हो जाना चाहता था हर दायित्व से और हर उस कर्ज के बोझ से..जिसके नीचे दबा वो जिन्दा तो था पर साँस न ले पाने को मजबूर.. मगर किस्मत जब साथ न हो तो मौत भी धोखा दे जाती है. पेड़ की टहनी कमजोर थी...जामुन के पेड़ में भला ताकत ही कितनी होती है कि उसका वजन ले पाती..कर्ज में डूबा था मगर था तो मेहनती किसान ही. टहनी टूट गई और वो धड़ाम से गिरा जमीन पर..

कहते हैं गिरना हमेशा एक सीख देकर जाता है..तो भला वो कैसे अछूता रह जाता...

वो जान गया है कि सदियाँ बीत जायेंगी मगर हालात नहीं बदलेंगे..किसान आज भी भले कहलाता अन्नदाता है मगर परिस्थितियाँ यूँ हैं कि आत्म हत्या को मजबूर है..ये कल भी यूं ही था और कल भी यूं ही रहेगा..

एकाएक वो उठा और घर में बचे सारे पैसे लेकर निकल पड़ा बस पकड़ कर शहर की तरफ...

शाम जब देर से लौटा तो उसके पास सागौन के पेड़ के बीज थे..

कल वो अहाते से जामुन का पेड़ उखाड़ फेकेगा...और बोयेगा सागौन का बीज..

वो जानता है कि वो बीज अगले ५० साल बाद में जाकर परिपक्व मजबूत पेड़ बनेगा सागौन का..

मगर वो यह भी जानता है कि अगले ५० साल बाद भी हालात न बदलेंगे और उसकी आने वाली पीढियाँ भी उसी की तरह अन्नदाता कहलाती हुई किसी पेड़ से लटक कर आत्म हत्या करने को अभिशप्त होंगी..

बस अब वो यह नहीं चाहता कि उसकी आने वाली पीढ़ियाँ भी उसी की तरह कम से कम आत्म हत्या कर इस जीवन से मुक्त हो जाने में धोखा न खायें..

बाकी तो हर तरफ धोखा खाना किसान होने के कारण उसकी नियति है ही..

आज वो खुश है कि चन्द दशकों में उसके अहाते में सागौन का एक मजबूत पेड़ खड़ा होगा सीना ताने..

वो तो न होगा तब उस पेड़ को देखने के लिए..मगर उसकी आने वाली नस्लें जब पेड़ पर से लटक कर आत्म हत्या करेंगी तो उसे जरूर याद करेंगी कि क्या इंतजाम करके गये हैं बिरजू दद्दा..

-समीर लाल ’समीर’

 

भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के रविवार सितंब 26, 2021 के अंक में:

http://epaper.subahsavere.news/c/63350620


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