आज फिर लिखने के लिए एक विषय की तलाश थी और विषय था कि मिलता ही न था,
तब
विचार आया कि इसी तलाश पर कुछ लिखा जाये.
वैसे भी अगर आपको लिखने का शौक हो जाये तो दिमाग हर वक्त खोजता रहता
है-कि अब किस विषय पर लिखा जाये? उठते-बैठेते, सोते जागते,
खाते-पीते
हर समय बस यही तलाश. इस तलाश में मन को को यह खास ख्याल रहता है कि एक ऐसा मौलिक
विषय हाथ लग जाये कि पाठक पढ़कर वाह-वाह करने लगे. .. पाठक इतना लहालोट हो जाये कि
बस साहित्य अकादमी अवार्ड की अजान लगा बैठे..और साहित्य अकादमी वाले उसकी कान फोडू
अजान की गुहार सुनकर अवार्ड आपके नाम कर चैन से सो पायें.
यूँ तो जब भी कोई पाठक आपके लिखे से अभिभूत होकर या आपसे कोई कार्य
सध जाने की गरज के चलते ये पूछता है कि-
भाई साहब, आप ऐसे-ऐसे सटीक और गज़ब के ज्वलंत विषय कहाँ से लाते हैं? तो
मन प्रफुल्लित हो कर मयूर सा नाचने लग जाता है. किन्तु मन मयूर का नृत्य पब्लिक के
सामने दिखाना भी अपने आपको कम अंकवाने जैसा है. कौन भला अपनी पब्लिक स्टेटस
गिरवाना चाहेगा...
तो अब सोचिये कि अगर आप तक यह प्रश्न पहुँचा है, इसका
मतलब ही यह है कि सामने वाले ने आपको ज्ञानी माना हुआ है अन्यथा मूर्खों से भी भला
कोई प्रश्न करता है कोई? अतः आपको गभीरता का लबादा चेहरे पर
लादे हुए ज्ञान मुद्रा बनाये व्याख्यान कुछ इस तरह शुरु कर देना पड़ता है कि..
’देखिये, आप तो स्वयं ज्ञानी हैं (इसे नमस्ते के बदले नमस्ते वाले का संस्कार मानें
कि उसने आपको ज्ञानी माना है अतः आप उसका उधार वापस कर रहे हैं ऐसा कह कर, वरना
तो आप जानते ही हैं उसको), विषय तो आपके आस पास ही हजारों बिखरे
होते हैं,,जैसे कि कंकड़ पत्थर.. बात आपकी सजगता और उन्हें पहचान लेने की है.
आपका नित आचरण, मित्रों की गतिविधियाँ, समाज का व्यवहार और रीतियाँ, कुरितियाँ,
सरकार
और सरकारी तंत्र को चलाने के यंत्र और मंत्र आदि-आदि नित हजारों हजार विषयों के
वाहक होते है, मगर जो हीरे को पहचान जाये, वो पारखी कहलाता है वरना तो मूरख उसे
कंकड़ मान कर लात मार मार कर निकल ही रहे हैं. वैसे असल बात ये है कि मात्र हीरे को
पहचान लेना ही पारखी को जोहरी नहीं बना देता..(इस बहाने आप सामने वाले के मन में
आपके ही बयान से उपज आये उस भ्रम को नेस्तनाबूत भी कर देते हैं कि वो भी आस पास
सजगता से देख कर विषय तलाश सकता है).
जैसे एक अच्छा जोहरी बनने के लिए जीवन में कुछ अलग सा कर जाने का
संकल्प, इक हुनर सीख लेने की ललक, एक निष्ठ लगन, तराशने का सधा
हुआ हुनर और एक इमानदार मेहनत की जरुरत होती है वैसे ही किसी भी विषय पर लिखने
वाले एक अच्छे लेखक को शब्दकोश का धनी, विविध साहित्य का अपार पठन और मेहनत और
लगन से अपने लेखन को अंजाम देने की जरुरत होती है. विषय निश्चित ही अपने आप में
महत्वपूर्ण होता है. विषय कथानक की घूमती हुई धूरी होता है जिसके आस पास आपको,
शब्दों
का उचित चयन करते हुए एवं उनको गूथने के हुनर का जतन से इस्तेमाल करते हुए,
एक
ऐसे आभा मण्डल का निर्माण करना होता है कि पढ़ने वाला उसी आम से दिखने वाले विषय को
एकदम खास सा विषय मान ’वाह वाह” कर उठे...’
और इतना सब कह कर भी इस बात को तय कर पाने के लिए, कि
आप पूछने वाले पर अपने ज्ञानी होने की पूरी छाप छोड़ पाये या नहीं और उसे सदैव
मूरखता से अभिशप्त रहने का अहसास दिला पाये या नहीं...., आप उससे यह
पूछने से बाज नहीं आते कि ’क्या समझे? समझे कि नहीं?”
सामने वाला साहित्य का ज्ञान भले न रखता हो पर प्रश्नकर्ता भारतीय है
और हर पान की दुकान पर खड़े से रेल में बैठे आम भारतीय की तरह उसे राजनीत का ज्ञान
तो जरुर ही होगा....हर भारतीय पर इस हेतु विशेष ईश कृपा है और इस ज्ञान का होना तो
उसके डी एन ए में शामिल है अतः उसी आधार पर वो ’क्या समझे? समझे कि नहीं?’
का
जबाब देता है. और कहता है कि...जी, मैं समझ गया और मैं इसे ऐसे समझा कि
जैसे राजनीत में तमाम मुद्दे आपके आस पास बिखरे पड़े होते हैं.. बस बात उन्हें
पहचानने की है और इतना और जान लिजिये कि मात्र उन मुद्दों को पहचान जाने से भर आप
राजनेता नहीं बन जाते...बात उन आम मुद्दों को शब्दों और जुमलों के मायाजाल में
बाँध कर आमजन के सामने ऐसे पेश करने की है कि वो मुद्दे इतने खास हो जायें...कि
आमजन महसूस करने लगे..’वाह, बस इस बंदे को चुनना है इस बार और फिर
देखो...जल्दी ही अच्छे दिन आने वाले हैं!!’ और आमजन का यह इन्तजार आमजन वो ख्वाब
बन जायेगा जो आपको राज गद्दी दिला जायेगा...
उसकी यह व्याख्या इस लेखक श्रेष्ठ के दिल को छू गई ..बस, पाठको
में इसी तरह के इन्तजार को जगाना अब मात्र इस लेखक की तमन्ना बची है और लेखक की
राजगद्दी यानि अकादमी का साहित्य सम्मान.वो तो फिर मिल ही जायेगा एक दिन...जुमले
पर जुमले गढ़ते रहेंगे इसी इन्तजार को जगाने के लिए...कौन जाने कौन सा जुमला हकीकत
में साहित्य सम्मान दिला जाये..
-समीर लाल ’समीर’
भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के रविवार जुलाई 11, 2021 के
अंक में:
http://epaper.subahsavere.news/c/61727731
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जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार १६ जुलाई २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
व्वाहहहहह...
जवाब देंहटाएंहर पान की दुकान पर
खड़े से रेल में बैठे
आम भारतीय की तरह
उसे राजनीत का
ज्ञान तो जरुर ही होगा....
हर भारतीय पर
इस हेतु विशेष ईश कृपा है
और इस ज्ञान का होना तो
उसके डी एन ए में शामिल है
अतः उसी आधार पर वो
’क्या समझे? समझे कि नहीं?’
क्या बात है..
सादर..
अब जुमलों पर ही ध्यान है । ������
जवाब देंहटाएंजुमले बाजी का क्या कहें
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा आलेख
बहुत खूब समीर जी | जुमलेबाजी तो बतरस की जान है | रोचक लेख के लिए हार्दिक बधाई |
जवाब देंहटाएंसाहित्य सम्मान पाने की चाह और जुमलेबाजी....
जवाब देंहटाएंवाह!!!
शानदार लेख।