प्रकृति प्रद्दत मौसमों से बचने के उपाय खोज लिये गये हैं. सर्दी में
स्वेटर, कंबल, अलाव, हीटर तो गर्मी में पंखा, कूलर ,एसी, पहाड़ों
की सैर. वहीं बरसात में रेन कोट और छतरी. सब सक्षमताओं का कमाल है कि आप कितना बच
पाते हैं और मात्र बचना ही नहीं, सक्षमतायें तो इन मौसमों का आनन्द भी
दिलवा देती है. अमीर एवं सक्षम इसी आनन्द को उठाते उठाते कभी कभी सर्दी खा भी जाये
या चन्द बारिश की बूँदों में भीग भी जायें, तो भी यह सब
सक्षमताओं के चलते क्षणिक ही होता है. असक्षम एवं गरीब मरते हैं कभी लू से तो कभी
बाढ़ में बह कर तो कभी सर्दी में ठिठुर कर.
कुछ मौसम ऐसे भी हैं जो मनुष्य ने बाजारवाद के चलते गढ़ लिये हैं.
इनका आनन्द भी सक्षमतायें ही उठाने देती है. इसका सबसे कड़क उदाहरण मुहब्बत का मौसम
है जिसे सक्षम एवं अमीर वर्ग वैलेन्टाईन डे के रुप में मनाता है. फिर इस डे का
मौसम पूरे फरवरी महीने को गुलाबी बनाये रखता है. फरवरी माह के प्रारंभ में अपनी
महबूबा संग गिफ्ट के आदान प्रदान से चालू हो कर वेलेन्टाईन दिवस पर इजहारे मुहब्बत
की सलामी प्राप्त करते हुए फरवरी के अंत तक यह अपने नियत मुकाम को प्राप्त हो लेता
है.
रेडियो पर गीत बज रहा है...’आज मौसम बड़ा..बेईमान है बड़ा..आज मौसम...’
बेईमानी का मौसम? फिर अन्य मौसमों से तुलना करके देखा तो
पाया कि इसे भी अमीर एवं सक्षम एन्जॉय कर रहे हैं. इससे बचने बचाने के उनके पास
मुफीद उपाय भी है और कनेक्शन भी. कभी कभार बड़ा बेईमान पकड़ा भी जाये तो क्या?
कुछ
दिनों में सब रफा दफा और फिर उसी रफ्तार से बेईमानी चालू. इस बीच कुछ दिन लन्दन
जाकर ही तो रहना है या अगर किसी सक्षम को जेल जाना भी पड़ा तो वहाँ भी उनके लिए
सुविधायें ऐसी कि मानो लन्दन घूमने आये हों. मरता इस मौसम में असक्षम ही है जैसे
पटवारी, बाबू आदि की अखबारों में खबर आती है कि २००० रुपये रिश्वत लेते हुये रंगे
हाथों पकड़ाये. वे जेल की हवा तो खाते ही खाते हैं, साथ ही नौकरी से
भी हाथ धो बैठते हैं. उनके पास खुद को बचाने के लिए न तो कनेक्शन होते हैं और न ही
ऊँचे ओहदे वाले वकील. इसका कतई यह अर्थ न लगायें कि उन्होंने गलत काम नहीं किया. बात
मात्र सजा के अलग अलग मापदण्ड़ो की है.
इधर एकाएक नया सा मौसम सुनने में आ रहे हैं- देशभक्ति का मौसम.
इस मौसम का हाल ये है कि जो हमारे साथ में है वो देशभक्त और जो हमारा
विरोध करेगा वो देशद्रोही? देश भक्ति की परिभाषा ही इस मौसम में
बदलती जा रही है. देशभक्ति भावना न होकर सर्टीफिकेट होती जा रही है. सर्टिफाईड
देशभक्त बंदरटोपी पहने, हर विरोध में उठते स्वर को देशद्रोह घोषित करने में मशगुल हैं. सोशल
मीडिया एकाएक देशभक्तों और देशद्रोहियों की जमात में बंट गया है.
भय यह है कि कल को यह देशभक्ति का मौसम भी अमीरों और सक्षम लोगों के
आनन्द का शगल बन कर न रह जाये और गरीबों और असक्षम को फिर इस मौसम की भी मार सहना
पड़े.
रेडियो पर गाना अब भी बज रहा है.. ’आने वाला कोई तूफान है ..कोई
तूफान है.. आज मौसम है बड़ा...’
-समीर लाल ’समीर’
भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के रविवार अप्रेल 25, 2021 के अंक में:
http://epaper.subahsavere.news/c/60010390
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आज कल तो न जाने कौन कौन से मौसम चल रहे । आने वाला सच में ही तूफान है । सटीक व्यंग्य ।
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी कोई रचना सोमवार 3 मई 2021 को साझा की गई है ,
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
सच है...मौसम बड़ा बेईमान है।
जवाब देंहटाएंसच है...मौसम बड़ा बेईमान है।
जवाब देंहटाएंआदरणीय सर, आपका यह व्यंग्यात्मक लेख बहुत ही सशक्त और सटीक है। बदलते मौसमों की तरह प्रेम और देशभक्ति जैसी भावनाओं को भी एक मौसम बना दिया गया है जिसका लाभ ये मुट्ठीभर अमीर और भ्रष्ट लोग लेते हैं और उनकी बैमानी का मौसम तो साल भर चलता ही रहता है, कभी खत्म नहीं होता। हृदय से आभार इस सुंदर लेख के लिए व आपको प्रणाम ।
जवाब देंहटाएंमौसम सचमुच बेईमान हो रहा है। बहुत तंग कर रहा है लोगों को।
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक व्यंग हमेशा की तरह समीर जी!
जवाब देंहटाएंमौसम हमेशा से ही गिरगिट थे अब स्वार्थों के रंग रंग कर सियार हो गए। अच्छा लगा लेख। हार्दिक शुभकामनाएं🙏🙏
अब इस मौसम और इसकी बेईमानी को क्या कहें
जवाब देंहटाएंवैसे मरता हरदम अक्षम ही है ....
विचारणीय लेख।
सुन्दर व्यंगात्मक लेख।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया।
जवाब देंहटाएंवाह सर बहुत ही ऊंम्दा लेख लिखते हो सर जी
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