शनिवार, सितंबर 12, 2020

कबूतर उड़ाने का शौक एक बार लग जाए तो फिर जाता नहीं।

 


तिवारी जी को कबूतर उड़ाने के शौक था। एक शाम कबूतर उड़ाते हुए उनके मन ने भी उड़ान भर ली और तिवारी जी राजनीति में उतर आए।

इंसान में सीखने की ललक हो तो कहीं से भी ज्ञान ग्रहण कर लेता है। तिवारी जी ने भी कबूतरों से पैतरेबाजी के गुर सीख लिये थे। उन्हीं को अंजाम देते हुए वे शीघ्र सरपंच हो गए।

सरपंच का चुनाव जीतने के लिए तिवारी जी के दिखाए गए सब्ज बाग ऐसे थे कि उनका लगना तो दूर, उनके तो बीज भी शायद चांद पर भी न मिलें। अतः गांव वालों को बहलाने के लिए तिवारी जी ने ‘गाँव की बात, सरपंच के साथ’ कार्यक्रम की घोषणा की। इस कार्यक्रम को तिवारी जी ने ‘बात’ का नाम तो दिया मगर था असल में घोषणा का मंच। घोषणा स्वभावतः जबाबदेही से मुक्त होती हैं एवं नई घोषणा पुरानी घोषणा एवं वादों को स्मृति धुमिल कर देती हैं। एक मंझा हुआ नेता घोषणा के इस स्वभाव से भली भांति परिचित होता है।

घोषणा की गई कि गाँव कों चारों तरफ से ऊंची ऊंची दीवार से घेर दिया जायेगा। इससे गाँव पड़ोसी गाँवों से सुरक्षित हो जायेगा। मगर उससे भी गहरी बात जो गाँव वाले सोच भी नहीं सकते वो यह बताई गई कि जो बारिश का पानी बह कर पड़ोस के गाँवों में चला जाता है, वो गाँव की जमीन में समाहित हो जायेगा और गर्मी में बोरवेल को अच्छा जलस्तर मिलेगा। यह ज्ञान उन्होंने पर्यावरण पर अखबार में छपे एक आलेख को पढ़कर अर्जित किया था। अध्ययन की अपनी महत्ता है भले ही अखबार का ही क्यूँ न हो।

भव्य शिलान्यास का आयोजन हुआ। बताया गया कि ऐसी दीवार से घिरा दुनिया का यह पहला गाँव होगा। हम इस क्षेत्र में विश्व गुरु कहलाएंगे। तुरंत गाँव वालों को काम पर लगा दिया गया। उत्साहित गाँव वाले यह भी न जान पाये कि वह पड़ोस के गाँव से असुरक्षित कब थे। उन्हें तो बस अब इस बात की धुन थी कि गाँव का पानी गाँव के बाहर न जाए। पूरा गाँव दीवार से घेर दिया गया। सरपंच जी को हर कार्य में उत्सव मनाने की आदत थी। अतः दीवार बन जाने पर उसके लोकार्पण का मेगा उत्सव मनाने का कार्यक्रम रखा गया जिसमें शहर से नाना प्रकार के व्यंजन मंगा कर ग्रमीणों में वितरित करने की बात तय पाई गई।

शहर से व्यंजन लाए जाने की बात पर एकाएक यह पता चला कि गांव तो अति उत्साह में चारों तरफ से दीवार से घेर दिया गया है, अब शहर जायेंगे कैसे? बात सरपंच जी तक पहुंचाई गई। सरपंच जी गुणों की खान हैं, इस बात का परिचय देते हुए उन्होंने इसे योजना की भूल न बताते हुए, ग्रामीणों की मूर्खता बताया। बताया गया कि दीवार के साथ दोनों तरफ से सीढ़ी बनाने जैसा सामान्य बुद्धि वाला काम भी अगर सरपंच जी ही बताएंगे तो फिर विकास की अगली योजना पर विचार कब करेंगे?

लोकार्पण कार्यक्रम स्थगित कर सीढ़ी बनाई गई और धूमधाम से लोकार्पण हुआ।

मौसम आया तो बारिश हुई। पानी गिरता और धरती में समा जाता। ‘गाँव की बात, सरपंच के साथ’ में इसे विश्व स्तरीय उपलब्धि बताया गया और सभी गाँव वासियों को ताली पीट कर और दिया जला कर इस उपलब्धि का समारोह मनाने की घोषणा की गई। गाँव हर्षोल्लास में डूबा ताली बजाता रहा, दीपक जगमग जलाता रहा। बारिश थी कि रुकने का नाम नहीं ले रही थी।

दीवारों से घिरा गाँव जल निकास के आभाव में जब कमर तक पानी में डूबने लगा तब लोग चिंतित हुए। कुछ दिन सबको घरों में बंद रहने की घोषणा की गई और किसी आदि कालीन कुनबे की साल में सात दिन घर में बंद रहने की प्रथा के फायदे बताए गए। लोग घरों में बंद हो गए और सरपंच गाँव के सबसे ऊंचे टीले वाले अपने घर में कबूतरों को दाना खिलाने में मगन रहा।

धीरे धीरे गांव जलाशय में तब्दील होने लगा। मगर काबिल सरपंच पुनः ‘गाँव की बात, सरपंच के साथ’ में नई घोषणा के साथ अवतरित हुए। उन्होंने इसे आपदा में अवसर खोजने का वक्त बताया और कहा कि इस पानी में क्यूँ न मछली पाल ली जाएं और बारिश रुकते ही उन्हें शहर ले जाकर बेचा जाए? इस आय और व्यापार के नए अवसर से गाँव आत्म निर्भरता की ओर अग्रसर होगा।

शहर से मछली के बीज बुलवा कर गाँव रुपी जलाशय में छोड़ दिए गए। घर पानी में डूबते रहे और मछलियाँ बड़ी होती रहीं। गाँववासी घर की छतों पर बैठे अपनी अपनी बंसी जलाशय में डाले मछली फसने का इन्तजार करते रहे।

सरपंच कबूतरों को दाना खिला कर न जाने कब शहर जाकर मछलियों के बाजार और व्यापार की संभावनाओं पर गोष्ठियों में व्यस्त हो गए।

देखते देखते गाँव मय गाँववासियों के जलमग्न हो गया।

सरपंच जी ने शहर में पत्रकारों से चर्चा करते हुए इसे ईश्वर का कहर बताया और अपनी संवेदनाएं प्रकट की।

आजकल तिवारी जी अपने शहर वाले मकान से कबूतर उड़ा रहे हैं। कहते हैं कि कबूतर उड़ाने का शौक एक बार लग जाए तो फिर जाता नहीं।

-समीर लाल ‘समीर’

 

भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के रविवार सितंबर १३,२०२० के अंक में:

http://epaper.subahsavere.news/c/54909214


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5 टिप्‍पणियां:

  1. Tiwari ji is Jack of All, and fits into every role model..... great....

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  2. मस्त व्यंग्य और अच्छा कटाक्ष है समाज की दिशा और सोच पर ...

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  3. बहुत सुन्दर।
    हिन्दी दिवस की अशेष शुभकामनाएँ।

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  4. शौक कोई भी आसानी से उससे दूर नहीं हो सकता कोई भी
    फिर शौक राजनीति का हो तो उससे तो खुदा भी बचाये
    अच्छे-अच्छे इसमें डूब कर फिर कभी नहीं लौटते घर अपने
    बहुत खूब!

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  5. ग़ज़ब का कटाक्ष। दूसरों को आपदा में डालकर उनसे ही ताली थाली पिटवाकर उनको ही मिटाकर अपने फ़ायदे को देखना, यही तो मन की बात है।

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