नाम है सेवकराम। वह शुरू से पैदावार
के पक्षधर रहे। पैदावार में उनकी अटूट आस्था का चरम यह रहा कि जब गाँव मे भीषण
सूखा और अकाल पड़ा, तब भी उनके घर में मुन्ना पैदा हुआ। बाकी बरसों में जब जब खेतों
में फसल लहलहाती, उनके आँगन में भी नई नई किलकारियाँ गूँजा करतीं।
उनका दूसरा स्वभाव खुद किसी भी बात
का श्रेय न लेने का था। अपने खेत में भी चाहें वह खुद कितनी भी मेहनत करके फसल की पैदावार करें, श्रेय सदा मजदूरों
को देते। उनका मानना था कि बिना इन मजदूर भाईयों के पसीना बहाये इतनी फसल कभी न
होती। इसी वजह से मजदूर और मेहनत करते और वह फसल बेचकर मजदूरों को अच्छी मजदूरी
देते। उनके परिवारों का ख्याल रखते और पूरे गांव में खुशहाली पैदा करते। इस तरह मजदूरों
की मदद से धन पैदा करके वह खुद भी खासे धनवान हो चले थे।
देखते देखते उनके आंगन में एक पूरी
क्रिकेट टीम मय अंपायर के तैयार हो गई। खुद कभी श्रेय न लेने की आदत के चलते वह इस
टीम को भगवान का दिया प्रसाद बताते। प्रसाद को जिस श्रद्धापूर्वक ग्रहण किया जाता है, उसी तरह ग्रहण करते रहे।
उनका यही स्वभाव उन्हें न
सिर्फ अपने मजदूरों के बीच बल्कि पूरे गांव में लोकप्रियता के चरम पर ले गया। जैसा
कि लोकप्रियता का परिणाम होता है, उनके अंदर भी लोकप्रियता भुनाने की ललक पैदा हो
गई, जिसे उन्होंने पुनः ईश्वर का प्रसाद एवं आदेश माना और वह सरपंच हो गए। कहते हैं न कि वातावरण और माहौल मानसिकता पैदा
करता है और इसीलिए शायद आपसी रिश्तों में रोमांस पैदा करने के लिए नवयुगल हनीमून
मनाने कश्मीर और स्वीटजरलैण्ड जाते हैं।
राजनीति के वातावरण और माहौल
में आते ही उनके भीतर भी कूटनीति और चालबाजी पैदा हुई किन्तु भीतर की पैदाइश का
बाहर किसी को पता न लगने देना भी उनके चतुर्भुजीय स्वभाव का तीसरा कोण था। इसी स्वभाव
के चलते गाँव वाले सिर्फ उनके आँगन में खेल रही क्रिकेट टीम से परिचित थे अन्यथा
अगर भीतर की बात जानें तो वह सब मिला जुला कर कम से कम दो टीमों की मैनेजरी तो काट
ही रहे थे। इसे भी वह ईश्वर का गुप्तदान की तर्ज पर दिया गया गुप्तप्रसाद मान कर
गुप्त ही बनाए रहते।
सरपंची में भी समस्त कार्यों
का श्रेय ठेकेदारों को देकर वह गुप्तदान प्राप्त करते रहे। इस तरह एकत्रित दान से
पैदा हुई अकूत संपदा को भी कुछ ऐसा गुप्त रखा कि कोई कानों कान न जान पाया। गुप्त
बनाए रखने की इस आदत ने लोकप्रियता में इत्र का काम किया। लोकप्रियता हवा के संग
लहराती बलखाती गांव की सरहद पार करके पूरे राज्य में सर्वत्र फैल गई।
इस तरह सेवकराम ने पूरे
राज्य की सेवा करने का अवसर पैदा कर लिया। इस सफलता की चढ़ाई चढ़ते हुए उन्होंने
तमाम पायदानों को पाठशाला माना और लगन से चालबाजियों के नये नये पैंतरे सीखते रहे।
हर पैंतरे को वो नए नए नाम देकर उनके नए स्वरूप पैदा करते। किसी को समाजसेवा, तो
कभी जनहित और कभी गरीबों के प्रति अपना दुलार आदि आदि न जाने क्या क्या बताते। इन
नामों की पैकेजिंग के भीतर क्या है, उसे वह आदतानुसार गुप्त ही रखते। इस तरह वह आमजन
में उनके परिणाम के इन्तजार की ललक पैदा करते। जब इंतजार की घड़ियां असह्य होने
लगती, तब वह एक नई ललक पैदा कर देते। सतत ललक की पैदावारी में वह महारत की उस चोटी
पर जा पहुंचे, जहाँ से महारत जादूगरी नजर आती है।
इस जादूगरी ने उनके भीतर एक
ऐसा जादूगर पैदा कर दिया जो एक पूरी आबादी को हिपनोटाईज
करना जान गया था। वो गांव में कचरे के ढेर पर बैठे कव्वे को हरियाली भरे बाग में
नाचता मोर बताता और सम्मोहितजन नृत्य करने को मचल उठते और उसका जयकारा लगाते। अब
वह नित नए खेल दिखाता। सम्मोहितजनों को कभी देश को सिंगापुर तो कभी हस्तिनापुर
बताकर नए नए नजारे दिखाता और तालियां बटरोता।
पैदावारी का वो आज भी उतना
ही बड़ा पक्षधर है। इसी के चलते भले ही किसी को रोजगार मिले न मिले मगर वह रोजगार
के अवसर पैदा करने में जुटा है। जिस वक्त आपदा की रोकथाम पर काम होना चाहिये, वह उस
आपदा से अवसर पैदा करने में जुटा है।
बचपन में जादूगर पी सी सरकार
का जादू देखने जाया करते थे और आज सेवकराम की सरकार का जादू। दोनों में ही तालियों
की गड़गड़ाहट के रुकते ही अगला खेला पेश कर दिया जाता है। अंतर सिर्फ इतना है कि वो
तीन घंटे दिखाते थे और ये पाँच साल।
-समीर लाल ‘समीर’
भोपाल से प्रकाशित सुबह सवेरे में रविवार अगस्त ९ , २०२०
#Jugalbandi
#जुगलबंदी
#व्यंग्य_की_जुगलबंदी
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
#Hindi_Blogging
Nice
जवाब देंहटाएंExcellent satire!!!!
जवाब देंहटाएंसटीक व्यंग्य.....
जवाब देंहटाएं