शनिवार, मई 30, 2020

अगर आप खुशहाल जिन्दगी जीना चाहते हैं तो कान में रुई खोंस कर रहिये।


कनाडा में प्रधान मंत्री जब भी जनता को संबोधित करते हैं तो अंग्रेजी और फ्रेंच दोनों में बोलते हैं। आज जब ऐसी आपदा आई हुई है तो रोज सुबह जनता को संबोधित करके बताते हैं की सरकार क्या कर रही है? क्या योजनाएं हैं? जो घोषणाएं हुई हैं उस पर कैसे और कितना अमल हो गया है, कितना बाकी है? आदि आदि - तिवारी जी घंसु को लॉक डाउन से छूटने के बाद पान के ठेले पर बैठे ज्ञान दे रहे हैं।
लॉक डाउन ने अर्थव्यवस्था का जो भी बँटाधार किया हो मगर लोगों को ज्ञानी जरूर बना दिया है। आप एक चीज का ज्ञान दो, अगला उसमें दो जोड़ देने के काबिल होकर लौटा है। मुझे पता था की ऐसा होगा क्यूंकी मैंने देखा था हमारे एक परिचित जो ७ साल की जेल की सजा काट कर आए थे। जेल जाते वक्त वे बारहवीं पास थे और जेल से लौटे तो बीए, एलएलबी होकर। फिर तो शहर ऊपर उनकी वकालत चली। उनसे बेहतर अपराध के तरीके और फिर उससे बच निकलने के गुर कौन जान सकता था। वकालत चलने का एक कारण यह भी रहा होगा की अपराधी को वो अपने से लगते होंगे। कहते है न, वैसे कहते तो क्या हैं- देख ही रहे हैं, कि अगर चोर को आप चौकीदार बना कर बैठाल दो तो उससे बेहतर कोई चौकीदारी नहीं कर सकता। उसे तो चोरों के सारे पैतरे मालूम ही हैं। उसके इलाके में चोरी तभी संभव है जब चोर चौकीदार का खास साथी हो।
तो लॉक डाउन से सिर्फ तिवारी जी ही थोड़ी न छूटे हैं वो तो घंसु भी छूट कर आया है तो कुछ तो ज्ञानी वो भी हो ही गया है। कहने लगा कि उनके कनाडा में दो ऑफिसियल भाषा हैं तो वो दो में बोलते है, हमारे यहाँ एक है तो हमारे वाले एक में बोलते हैं और रही रोज रोज आकार बताने की बात, तो वो तो उन्हीं को मुकारक हो। हमारे यहाँ तो १५ दिन में १ बार बोलना ही काफी है। फिर सारा देश १५ दिन तक ताली थाली बजाता रहता है और फिर दिये टॉर्च जलाता रहता है। रोज आ जायें तो क्या हाल होगा खुद ही सोच कर देखो। अब तक तो कुछ बाकी ही न बचता बजाने को। तो सबसे कहा जाता की अपने बाजू वाले के गाल बजाओ रात ८ बजे ८ बार दायाँ और ८ बार बायाँ। फिर कुछ लोग इसका धार्मिक महत्व बताते और कुछ इसे विज्ञान की कसौटी पर खरा बताते। रोज रोज ये भला कहाँ संभव है? अब तो १५ दिन भी जल्दी ही लगने लगा है। फिर रोज रोज ये बताना की फलां घोषणा का कार्य पूरा हो गया है, फलां का इतना बचा है। ये बात तो वे पाँच साल में भी नहीं बता पाते, बस किसी तरह घुमा फिरा कर झूठ का मुलम्मा चढ़ाकर छुटकारा पाते हैं ताकि जनता मान जाये की गलती उनकी नहीं, पहले वालों की थी। फिर भला रोज रोज झूठ काहे बुलवाना चाहते हो? पाँच साल में एक बार भरपूर झूठ बोलकर छठे साल में अर्द्ध या महा कुम्भ में स्नान करके पाप धुलाकर फिर साफ सुथरे हो लेना ही मुफीद है इनके लिये। और फिर कनाडा में तो कुम्भ का भी फैशन नहीं है। वो तो सिर्फ हम ही हैं कि उनके भी सारे त्यौहार अपनाए जा रहे है हैं वेलेंटाईन डे से लेकर हॅलोवीन और क्रिसमस तक।  
तिवारी जी घंसु के ज्ञान से अचंभित थे। आजकल यूं भी लोगों का व्हाट्सएप्प यूनिवर्सिटी से प्राप्त ज्ञान आश्चर्यचकित करता है। अतः तिवारी जी पूछ बैठे कि अच्छा फिर ये बताओ की दो भाषाओं के अलावा उनके साथ जो एक साइन लैंग्वेज वाला बंदा इशारे में बधिर लोगों के लिए इशारा करके बताता जाता है वो तो अपने यहाँ कर ही सकते हैं? वो क्यूँ नहीं करते?
घंसु मुस्कराते हुए बोले कि एक तो बेचारा वैसे ही बहरा है, वो कोई कम परेशानी है क्या? और इनकी बातें सुनवा कर कितना परेशान करना चाहते हैं आप? कुछ तो संवेदनशील बनिए, इतना भी अमानवीय न हो जाईये। और फिर जो सुन सकते हैं उनने भी सुन कर क्या समझ लिया? कुछ समझ में आया आपको आजतक की वो क्या कह गये?
मेरी बात मानिये बहरों को उनके हाल पर छोड़ दीजिए। वो बिना सुने ज्यादा खुशहाल है। और अगर आप भी  खुशहाल जिन्दगी जीना चाहते हैं तो कान में रुई खोंस कर रहिये
तिवारी जी लॉक डाउन में अब इतना तो सीख ही चुके हैं अतः उन्होंने ऑनलाइन ईयर प्लग ऑर्डर कर दिए हैं। आज के जमाने में रुई भी भला कोई खोंसता है?
-समीर लाल ‘समीर’

भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के रविवार मई ३१,२०२० के अंक में:

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13 टिप्‍पणियां:

  1. Excellent sattire together with excellently titled,. Great!!!

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  2. एकदम पक्की बात है। ऐसा किए बिना अब कोई उपाय नहीं है। इस दौर में यही एकमात्र विकल्प है

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  3. हाहा...बहुत बढ़िया।मज़ा आ गया।

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  4. उप़्फोह,कहाँ कहाँ की विशेषज्ञताएँ प्राप्त करते जा रहे हैं !

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  5. हम तो गाँधी जी के तीनों बंंदर बने हुए हैं ।

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  6. हम तो गाँधी जी के तीऩों बंदर बने हुए है।

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  7. सही है, कान बंदकर रखने में ही भलाई है। क्या पता कल को यह भी कहा जा सकता है कि अब ख़ुद को दिवार पर पीटो... कोरोना भगाने का टोटका।

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  8. लॉक डाउन ने अर्थव्यवस्था का जो भी बँटाधार किया हो मगर लोगों को ज्ञानी जरूर बना दिया है। आप एक चीज का ज्ञान दो, अगला उसमें दो जोड़ देने के काबिल होकर लौटा है। मुझे पता था की ऐसा होगा क्यूंकी मैंने देखा ,
    मेरी बात मानिये बहरों को उनके हाल पर छोड़ दीजिए। वो बिना सुने ज्यादा खुशहाल है। और अगर आप भी खुशहाल जिन्दगी जीना चाहते हैं तो कान में रुई खोंस कर रहिये।
    तिवारी जी लॉक डाउन में अब इतना तो सीख ही चुके हैं अतः उन्होंने ऑनलाइन ईयर प्लग ऑर्डर कर दिए हैं। आज के जमाने में रुई भी भला कोई खोंसता है?मस्कार समीर जी, ये तो बिल्कुल सही कहा ,
    बढ़िया पोस्ट ,

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  9. सही सलाह दी है भाई जी ... रूई डाल के रहना है अच्छा है आज के समय में ...

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