भाई जी, आपका ठिया तो सबसे बड़े बाजार में है. पता चला है, होल
सेल में डील करते हो. कुछ हमें भी बताओ भाई, सुना है दिवाली
सेल लगी है आपके बाजार में.
हमने कहा कि दिवाली कहो या दिवाला. सेल तो लगी है ६०% से ७०% की भारी
छूट चल रही है. एस एम एस से विज्ञापन भी किया जा रहा है. स्लोगन भेजा जा रहा है,
आपको
भी मिल गया लगता है..आपके जमाने में बाप के जमाने के भाव. और जाने क्या क्या
विज्ञापन किये गये हैं.
मुझे सेठ दीनानाथ की आढत याद आ गई. दिन भर मंडी के बीचों बीच अपनी
दुकान पर तख्त पर बिछे सफेद गद्दे पर आधे लेटे रहते थे. बंडा और प्रदर्शनकारी धोती
पहने. भई, जब प्रदर्शनकारी नेता हो सकता है तो धोती क्यूँ नहीं. जो भी प्रदर्शन
करे, वो प्रदर्शनकारी, ऐसी मेरी मान्यता है. मेरी नजर में तो
मल्लिका शेहरावत और राखी सावंत के डिज़ानर परिधान को भी प्रदर्शनकारी श्रेणी में ही
रखता हूँ. खैर, सेठ के मूँह में हर समय पान. सामने मुनीम अपने हिसाब किताब में
व्यस्त. बस, होलसेल का व्यापार था उनका भी, इसीलिए याद हो
आई.
उनके ठीक विपरीत हम. न्यूयार्क स्टॉक एक्सचेंज, टोरंटो
स्टॉक एक्सचेंज, नेसडेक और शिकागो कमॉडेटी एक्सचेंज पर डील तो करते हैं मगर कुर्सी पर
सीधे बैठे सामने कम्प्यूटर लगाये. न आसपास घूमते बजारिया सांड और न ही पास बैठा
मुनीम. मुनीम, चपरासी से लेकर सब कुछ खुद. माल की खरीदी बिक्री सब कम्प्यूटर पर.
अगर अपने आप को ट्रेडर न बतायें तो कोई कम्प्यूटर ऑपरेटर ही समझे.
मित्र कहने लगे कि हाँ, विज्ञापन तो मिला. इसीलिये फोन किये
हैं. भाई, बहुत घाटा लग गया. आप तो वो माल बताओ जिसको १०० टका ऊपर ही जाना हो,
बस,
वो
ही लेंगे और एक बार लॉस पूरे हुए तो जीवन में स्टॉक एक्सचेंज की दिशा में सर रख कर
सोयेंगे तक नहीं. खेलने की तो छोड़ो.
हमने उनको पहले भी समझाया था और फिर समझाया कि भाई, हम
तो बस आप जो बोलो, वो खरीद देंगे और जो बोलो, वो बेच देंगे. हमारे लिए तो हर माल
बराबर, हमें तो दोनों हालात में कमीशन बस लेना है. चाहे बेचो तब और खरीदो
तो. जिस दिन हमें या इन बाजार एनालिस्टों को ये मालूम चलने लग जाये कि ये वाला तो
पक्का ऊपर ही जायेगा तो क्या पागल कुत्ता काटे है जो सुबह से शाम तक कम्प्यूटर
लिये लोगों के लिए खरीदी बेची कर रहे हैं. घर द्वार बेच कर सब लगा दें और एक ही
बार में वारा न्यारा करके हरिद्वार में आश्रम खोलकर साधु न बन जाये और जीवन भर
एय्याशी करें. ये सब बाजार एनालिस्ट मूँह देखी बात करते हैं आज जो दिखा वो कह दिया,
कल
जो दिखा तो बदल गये.
हम में और नारियल बेचने वाले किराना व्यापारी में बस यही फरक है.
दोनों को माल बेचने से मतलब है मगर हर आने वाले को वो नारियल देते वक्त एक को
हिलाकर कान में न जाने क्या सुनता है. फिर उसे किनारे रख दूसरा उठाकर बजाता है और
कहता है कि हाँ, ये ठीक है. इसे ले जाईये और आप टांगे चले आते हैं जबकि ऐसे ही हिला
हिला कर शाम तक वो सारे नारियल बेच लेता है और आप भी खुश, वो भी खुश.
हमारे यहाँ ऐसा हिलाने का सिस्टम नहीं हैं. निवेशक को बाजार खुद हिला लेता है
इसलिये हमें हिलाने की जरुरत नहीं.
जिस दिन आप इस दिशा में सर रख कर सोना बंद कर दोगे, उस
दिन से हम क्या घास छिलेंगे. ऐसा अशुभ न कहो एन धंधे के समय भाई.
अजी, आप तो अंतिम दमड़ी तक खेलो. जब पूरा बर्बाद हो जाओ, तब
मजबूरी में बंद हो ही जायेगा, इसमें प्रण कैसा करना. हमें भी तब तक
१० दूसरे मूर्ख मिल जायेंगे जो रातों रात लखपति बनना चाहते, हम उनसे अपना
काम चला लेंगे. कसम खाते हैं आपको याद भी न करेंगे.
तो बोलो, क्या आर्डर लिखूँ...सब माल चोखे हैं.
ऐसा मौका कहाँ बार बार आता है जब ६०% से ७०% तक छूट चले और आपके
जमाने में बाप के जमाने के भाव पर माल मिलें.
जल्दी..फटाफट आर्डर बोलो. टाईम न खोटी करो.
नोट: यूँ भी अगर हम तुम्हें अपना खास मान कर बाजार से दूर रहने की
सलाह दें तो तुम मानोगे थोड़ी न बल्कि किसी और ट्रेडर के यहाँ जाकर खेलोगे. फिर हम
ही अपनी कमाई क्यूँ छोड़ें. ये बाजार ही अजीब है कि जब तक खुद न हार लो सब जीते हुए
ही नजर आते हैं.
-समीर
लाल ’समीर’
भोपाल के दैनिक सुबह सवेरे में रविवार फ़रवरी
१६, २०२० में
प्रकाशित:
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