--ख्यालों की बेलगाम उड़ान...कभी लेख, कभी विचार, कभी वार्तालाप और कभी कविता के माध्यम से......
हाथ में लेकर कलम मैं हालेदिल कहता गया
काव्य का निर्झर उमड़ता आप ही बहता गया.
रविवार, अक्तूबर 06, 2019
अन्तरराष्ट्रीय स्तर के होने की योग्यता
बहुत सूक्ष्म अध्ययन एवं शोध के बाद लेखक इस निष्कर्ष पर पहुँचा है कि यदि आपके नाम के अन्त में आ की मात्रा लगाने के बाद भी नाम आप ही का बोध कराये तो आप अन्तरराष्ट्रीय स्तर के हो सकते हैं.
जैसे उदाहरण के तौर पर लेखक का नाम समीर है. यदि आपको समीर नाम सुनाई या दिखाई पड़े तो आपकी नजरों के आगे मेरी तस्वीर उभरती है, शायद कविता पढ़ते हुए या आपकी रचनाओं पर दाद देते हुए मगर जैसे ही मेरे नाम के अंत में आ की मात्रा लगा दी जाती है याने समीरा तो आपकी आँखों के आगे फिल्मों वाली समीरा रेड्डी की तस्वीर उभर आती है बीच पर गीत गुनगुनाते. समीर और समीरा- एकदम दो विपरीत ध्रुव. अतः समीर नाम अन्तरराष्ट्रीय स्तर का होने की पात्रता नहीं रखता.
अब दूसरा उदाहरण लें. नरेन्द्र- सुनते ही आँखो के सामने ५६ इंच का सीना तन गया न और कान में गूँजा- मितरों......!!! अब अगर आप इस नाम के अन्त में आ की मात्रा लगा दें याने कि नरेन्द्रा – तब भी आँख के आगे वही ५६ इंच की सीना और कान में..मितरों..!!!!! याने की इनमें अन्तरराष्ट्रीय हो जाने की योग्यता है और हो ही रहे हैं. राष्ट्र में तो होते ही कब हैं? अधिकतर अन्तर्राष्ट्र में ही बने रहते हैं. मित्र भी अन्तरराष्ट्रीय- जैसे बराक!! वरना तो किस की हिम्मत कि ओबामा साहब को बराक पुकारे. इसके लिए तो ५६ इंच के सीने के साथ साथ अन्तरराष्ट्रीय होना भी जरुरी है. अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर जहाँ जाते हैं वहीं नाम का डंका बज रहा होता है.
इनसे जब अरविन्द, राहुल टक्कर लेते हैं तो ये क्यूँ नहीं सोचते कि उनके नाम में अन्तरराष्ट्रीय होने की योग्यता नहीं है तो वो क्या होंगे. बेवजह टकराते हैं. अरविन्दा और राहुला- न जाने कोई होगा भी या नहीं कहीं पर इस नाम का तो तस्वीर क्या खाक उभरेगी भला?
एकदम ताजा ताजा- योग और योगा. योग कहो तो बाबा रामदेव गुलाटी खाते नजर आयें और कान में आवाज गूँजे- करत की विद्या है. करने से होता है- करो करो. और आ की मात्रा लगा कर योगा कह दो तो भी बाबा राम देव ही नजर आयें गुलाटी लगाते और कान में वही- करत की विद्या है. करने से होता है- करो करो.
और फिर ये तो संपूर्ण योग्यता वाले हैं- योग और योगा, राम और रामा और देव और देवा. ’समरथ को नहीं दोष गोसाईं’
अब तो मान जाओ इनका लोहा.
मितरों!! चलो करो- योग (योगा) का जोर है. करो करो- करने से होता है.
-समीर लाल ’समीर’
भोपाल के दैनिक सुबह सवेरे के रविवार अक्टूबर ५, २०१९ के अंक में प्रकाशित
http://epaper.subahsavere.news/c/44391570
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तभी तो हमारा कुछ नहीं हो पा रहा है सुशीला हो जायेंग़े :) जय रा रा तारारारा
जवाब देंहटाएंबहुत खूब !!!
जवाब देंहटाएंकनाडा में भी है...आ की मात्रा...रामायणा और महाभारता के युग में लिंक ही सब कुछ है...😊
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