कक्षा ६ में मेरा
सहपाठी राजू मेरा पड़ोसी बना क्लास में. वो निहायत बदमाश लेकिन चेहरे से एकदम दीन हीन
और निरिह सा दिखने वाला. दिन भर तरह तरह
की आवाज निकालता और सामने बैठे लड़कों की पीठ पर मेरे पैन से स्याही छिड़क देता. हरी स्याही का पैन सिर्फ मेरे पास था तो वो
लड़के समझते कि मैने छिड़की है. शिकायत होती और
राजू की गल्ती पर पिटता मैं. बाद में राजू
अकेले में हो हो करके हँसता. मैने कई बार
उससे कहा कि अबकी बार तो ठीक है मगर आगे से करोगे तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा. मगर वो नहीं मानता. वो भली भाँति जानता था कि गरजने वाले बादल बरसा
नहीं करते.
एक बार परेशान
होकर मैने मास्साब से यह कहते हुए अपनी सीट बदलने को कहा कि राजू बहुत परेशान करता
है. मास्साब ने आव दे
ताव, एक बार फिर मेरी
ही पिटाई कर दी कि एक तो बदमाशी खुद करते हो और शिकायत उस बेचारे राजू की. आईंदा राजू को परेशान करने की शिकायत न मिले
वरना तुम्हारे घर खबर भेजूंगा.
अब हालत ये हो गई
कि कुछ समझ ही न आये कि मामला कैसे सुलझाया जाये. यह तय था कि इस साल तो कम से कम वही पड़ोसी
रहेगा. किसी तरह दोस्ती
का नाटक करते रहे, उसकी जी हुजुरी
करते रहे ताकि वो बदमाशी न करे और हम बचे रहें. मगर न तो उसकी
बदमाशी ही बंद हुई और न ही हमारा पिटना.
तब हमारे मोहल्ले
में हमारे पड़ोस में एक विपिन भईया रहते थे. थे तो हमसे ५ साल बड़े मगर कद काठी से लहीम सहीम. चेहरे पर रोब भी बहुत था और बचपन में साईकिल से
गिर जाने के कारण होंठ के बाजू में कटे का निशान भी था फिल्मी खलनायक जैसा.
किसी पर भी जब
अत्याचार की अति हो जाती है न तो हिम्मत एकाएक न जाने कहाँ से आ जाती है. एक शाम उनको अपनी
व्यथा बताई इस वादे के साथ कि वो मेरे घर में किसी को इस बारे में नहीं बतायेंगे
वरना मैं भी उनके पापा को उनकी सिगरेट पीने वाली बता दूँगा. धमकी काम कर गई और वह मेरा मसला सुलझाने को मान
गये.
अगले दिन शाम को
वो स्कूल के बाहर ही खड़े थे. मैं और राजू
स्कूल से निकले तो उन्होंने आगे बढ़कर राजू की कालर पकड़ी और पाँच छः तमाचे जड़ दिये. भईया से उसे धमकाते हुए कहा कि अगर आज के बाद
इसे परेशान करने की तेरी शिकायत मिली तो फिर आकर तुझे इससे भी ज्यादा मारुँगा. उसके कुछ दिनों बाद ही विपिन भईया के पिता जी
का तबादला हो गया और वो दूसरे शहर चले गये.
वो दिन था और फिर
११ वीं कक्षा तक राजू क्लास में मेरा पड़ोसी रहा मगर ऐसा खौफ में आया कि हमेशा मेरी
जी हुजुरी ही करता रहा. मैने उसे कभी यह
नहीं बताया कि विपिन भईया अब हमारे पड़ोस में नहीं रहते बल्कि हर महिने एक दो
किस्से जरुर सुना देता कि आज विपिन भईया ने ऐसा किया वैसा किया. हमउम्र होने के
बाद भी उस दिन के बाद से उसने मुझे हमेशा भईया जी ही पुकारा.
बाद में फिर न
कभी राजू मिला और न ही विपिन भईया मगर इस प्रसंग से जीवन की कुछ सीखें जरुर मिल
गई:
- पड़ोसी चाहे मुल्क हो या घर के बाजू में रहने वाला या कक्षा में साथ बैठने वाला या फिर कहीं और, अक्सर यह आपके बस में नहीं होता कि वो कौन होगा.
- अगर पड़ोसी अच्छा है तो इस बात को अपना सौभाग्य मानें. यह हर के नसीब में नहीं होता.
- अगर अच्छा नहीं है तो भी आपको उसके साथ निभाना ही होगा चाहे जैसे भी वरना जीवन दूभर हो जायेगा.
- पड़ोसी से जितना डरोगे वो उतना ही डरायेगा. जितने अत्याचार सहोगे वो उतने ही अत्याचार करेगा.
- कभी पड़ोसी के खौफ को अपने पर हाबी मत होने दो.
- बार बार मात्र गीदड़ भभकियाँ मत दो वो भली भाँति जानता है कि तुम मात्र गरज रहे हो, बरसोगे नहीं.
- अगर वह सौहार्दय पूर्ण तरीके से रहने की बात नहीं मानता तो एन केन प्रकारेण, एक बार हिम्मत जुटा कर उसके अंदर इस बात का खौफ पैदाकर दो कि अगर वो अत्याचार करेगा तो उसे सजा मिलेगी. उसे एक बार वाकई भरपूर सजा का स्वाद भी बिना डरे चखवा दो.
- इस बात का जरुर ख्याल रखो कि जिसे सजा दे रहे हो, उसे वाकई सजा मिली है. वरना इसे फोटोऑप बना कर शहर भर डंका पीट भी दोगे कि उसे सजा दे दी है, इससे भले कुछ क्षणों के लिए आप अपने लोगों में बहादुर दिखकर तारीफ पा भी जाओ मगर उसके अत्याचार रुकने वाले नहीं बल्कि बढ़ेंगे ही.
- अपनी असुरक्षा का भाव या अपने कमजोर हो जाने का भाव कभी उसके सामने उजागर मत होने दो.
- हमेशा दर्शाते रहो कि तुम आज भी उतने ही ताकतवर हो जितना उस वक्त सजा देते समय थे.
बस, इतना ही तो करना
है फिर देखो पड़ोसी कैसे भईया जी भईया जी कहते हुए आगे पीछे घुमेगा. राजू आखिर घूमा
ही हमारे पीछे.
-समीर लाल ’समीर’
भोपाल से
प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे में रविवार मार्च ०३, २०१९ को: http://epaper.subahsavere.news/c/37230758
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आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (05-03-2019) को "पथरीला पथ अपनाया है" (चर्चा अंक-3265) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बड़ा अच्छा लगा पढ़कर. आपको मिली सीख तो सबके बड़े काम की है. हमारे पड़ोसी का चुनाव तो नहीं कर सकते लेकिन उसकी दादागिरी भी नहीं सहनी चाहिए. वरना अगर वह जान गया कि यह सिर्फ गरजने वाला बादल है बरसेगा नहीं तब तो वह और भी डराएगा. मुश्किल यह है कि अगर पड़ोसी के सामने मुँह मियाँ मिट्ठू बन रहे तब तो वह न सिर्फ डराएगा बल्कि मज़ाक भी उडाएगा. अब भलाई इसी में है कि एक विपिन भईया हमलोग को खोज के रखना होगा. शुभकामनाएँ समीर जी.
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