एक चायनीज़ सर्वे के
मुताबिक २०१९ लोकसभा चुनाव में राहुल जी सबसे लोकप्रिय नेता के रुप में उभर कर आ
रहे हैं और उनका प्रधान मंत्री बनना तय है. ८७% का रुझान है. जनता मन बना चुकी है.
बहुत बड़े बदलाव के संकेत हैं. तिवारी जी पान की दुकान पर बैठे घंसु को बता रहे
हैं.
आंतरिक सर्वे, पब्लिक
सर्वे, प्रीपोल सर्वे और भी न जाने कितने तरह के सर्वे सुने हैं मगर चायनीज़ सर्वे?
यह कौन सा सर्वे होता है? घंसु समझने की कोशिश कर रहा है.
हाँ, चायनीज़ सर्वे. यह
वैसा ही है जैसा सारा चायनीज़ माल. क्वालिटी की कोई गारन्टी नहीं मगर चमक दमक में
सबसे तेज. तिवारी जी ने समझाया.
सो तो अपने देशी सर्वे की
भी क्या गारंटी होती है? सबके अपने अपने सर्वे वाले हैं, वो ही सर्वे करते हैं, वो
ही किनका सर्वे करना है, उनको चुनते हैं और वो ही परिणाम घोषित करते हैं, वो ही
कमाते हैं, वो ही प्रसाद पाते हैं. हमारे पास तो आज तक कोई सर्वे वाला पूछने नहीं
आया कि किसको वोट डालोगे? तो आखिर किससे पूछ कर गये सर्वे वाले? हमारे तो पहचान
में भी कोई नहीं कहता कि उनसे किसी ने पूछा? शायद चुपके से सुन कर चले जाते हों
सर्वे वाले, कौन जाने!! घंसु सोच रहा है.
वैसे तो अब टेक्नालॉजी का
जमाना है. अलेक्सा, गुगल, सीरी आदि सब घरों और फोनों में घुसे हैं. आप क्या सोच
रहे हैं, क्या सर्च कर रहे हैं, क्या बात कर रहे हैं, सब कलेक्ट हो रहा है. एलेक्सा
सुनती है कि बंदा राम राम करता रहता है, तो बीजेपी को वोट नोट कर लेती हो, क्या
पता? दिन भर में एक भी बार राम नहीं, तो कांग्रेस का. नारंगी कुर्ता खरीद लाये तो
दुकान का बिल देख कर बीजेपी वरना कांग्रेस. विचारणीय तो है ही. सर्वे ही तो है गलत
निकल जाये तो निकल जाये.
वैसे कभी कभी सर्वे मुझे
देशी कट्टा जैसा लगता है. बस, चमकाने के काम आता है, चलाने के नहीं. चला दिया तो
कोई भरोसा नहीं, उल्टा ही चल जाये या कहो, चले ही न.
घंसु को अभी भी चैन नहीं
पड़ रहा था चायनीज़ के नाम से. बोला कि देश हमारा, चुनाव हमारा, चुनाव हमारे नेताओं
का, चुनने वाले हमारे लोग, फिर इसमें चाईना का क्या रोल? मजाक है क्या कोई?
तिवारी जी उखड़ पड़े कि तुम
सर्वे पर तो बहुत कूद रहे हो कि चायनीज़ क्यूँ? तब काहे चुप बैठे थे जब महापुरुष भी
हमारे देश का, सम्मान देने वाले भी हमारे देश के, जमीन भी हमारे देश की, टेक्सपेयर
भी हमारे देश का जिनके पैसे से उस महापुरुष की मूर्ति बनवाई, एकता भी हमारे देश
की(स्टेच्यू ऑफ यूनिटी) तो फिर उसे बनाने वाला चाईना क्यूँ? तब काहे नहीं कूद कूद
कर पूछे कि ऐसा कैसे हो गये? वो मेक इन इन्डिया वाला शेर कहाँ गुम हो गया, उस नारे
का क्या हुआ? वो भी जुमला ही था या हमारे यहाँ लोहार और मूर्तिकार नहीं बच रहे अब? हो सकता है जीएसटी की भेंट चढ़ गये हों सब.
तिवारी जी को उखड़ता देखकर
घंसु ने पैतरा बदला और कहने लगा कि आपने वो नारा तो सुना ही होगा ’हिन्दी चीनी भाई
भाई’, बहुत पहले हकीकत फिल्म में भी दिखाया था. तो क्या फरक पड़ता है इस भाई के घर
बना या उस भाई के घर. एक ही बात तो हुई न!!
अब तुम मेरा मूँह मत
खुलवाओ घंसु! एक तो यह नारा ही गलत है. हिन्दी भाषा है, चीन की बोली को भी आमतौर
पर चीनी भाषा बोलते हैं, तब भाई कैसे? भाषा स्त्रीलिंग हैं. बहन बहन हो सकती हैं
और बहने हैं तो अलग अलग घर गई और अलग अलग घर की हो गईं. यही मान्यता है.
तिवारी जी आप समझ नहीं
रहे. असल में चीन में रहने वाले लोगों को चीनी कहते हैं न इसलिए इसका तात्पर्य
लोगों से है. घंसु बता रहे हैं.
तो हिन्दुस्तान में रहने
वाले कब से हिन्दी कहलाने लगे. उनको हिन्दु कहने की कवायद भी अभी पिछले ४ सालों का
ही सियासती खेला है, वरना तो हिन्दु, मुसलमान, सिख, ईसाई, पारसी और जो भी
हिन्दुस्तान में रहता है, हिन्दुस्तानी ही कहलाता है. यूँ भी जबसे हिन्दी चीनी भाई
भाई का नारा दिया गया था तब से हमेशा धोखा ही हुआ है उनसे.
वैसे तो ३००० हजार करोड़
की मूर्ति का तो छोड़ो, ३ करोड़ का ठेका भी मिलना हो तो सगा भाई ही भाई को धोखा देकर
हथिया ले. ऐसा ही होता आया है. फिर हिन्दी चीनी वाले भाई भाई की तो बात ही न करो.
अपवाद तो खैर हर जगह होते
हैं.
-समीर लाल ’समीर’
भोपाल से प्रकाशित सुबह
सवेरे में रविवार नवम्बर ४, २०१८
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आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (05-11-2018) को "धनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएँ" (चर्चा अंक-3146) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी