सुन्दरियाँ चाहे वो मोहल्ला सुन्दरी हो, या शहर
या प्रदेश या राष्ट्रीय या विश्व सुन्दरी, उनके अन्दर उनकी प्राथमिक योग्यता याने
सुन्दरता निश्चित ही होती है. वो सुन्दर होती हैं. सुन्दरियों में भी अधिकतम सुन्दरी
विश्व सुन्दरी बन जाती है, मगर मोहल्ला स्तर वाली सुन्दरी भी सुन्दर तो होती है.
यही हाल अन्य क्षेत्रों में अक्सर देखने में
आता है. जैसे की पहलवान, मुक्केबाज, धावक, तैराक आदि. सभी किसी भी स्तर के हों मगर
होते अपने क्षेत्र के उस स्तर पर धुरंधर ही हैं. ऐसा कभी नहीं होगा कि पहलवान जी
राज्य स्तर पर खेलते हैं मगर कभी अखाड़े में नहीं उतरे हैं.
नेतागिरी में भी चुने हुए नेताओं में भी यही
देखने को आता है, जिस स्तर पर भी जीत कर आये हों, नेतागिरी के प्राथमिक गुण जैसे
मक्कारी, भ्रष्ट मानसिकता आदि तो कम से कम होते ही हैं. इसके बिना कैसा नेता? दो
चार अपवाद हो सकते हैं मगर सच कहें तो चार भी ज्यादा कह गए भावुकता में आकर. नेतागिरी
में तो कई ऐसे गुणधारी भी नेता बनने की होड़ में हैं जिन्हें कोई पूछ नहीं रहा है.
तो उसी प्राथमिक गुणधर्मिता के आधार पर गुंडागिरी में नाम रोशन किये हैं. वैसे तो
बहुत महीन रेखा है दोनों क्षेत्रों के बीच और इस पार से उस पार आना जाना लगा ही
रहता है. कभी कभी कोई जगा जाए तो मालूम पड़ता है जैसे कि एकाएक मालूम चले अरे, ४०
लाख घुस आये बंगलादेश से और हमारे बीच बैठे हैं. फिर सब शांत और फिर आना जाना
जारी.
मगर इन सब से भिन्न हिंदी साहित्यकारी, जिसमें
लहलहाने और जगमगाने के लिए न तो प्रदेश, न राष्ट्र और न ही विश्व स्तर पर आपको
साहित्य रचने की आवश्यकता है. एक बड़े ऊँचे साहित्यकार(विश्व स्तरीय) से चर्चा के
दौरान जब मैंने कहा कि मै बहुत मेहनत कर रहा हूँ. हर सप्ताह अखबारों में लिख रहा
हूँ. नियमित पत्र पत्रिकाओं में आलेख आ रहे हैं. किताब भी लिख चुका हूँ और एक अन्य
किताब भी जल्द ला रहा हूँ. अब आप बतायें कि क्या किया जाये एवं और कितनी मेहनत करूं
कि आपकी तरह विश्व स्तरीय न सही, प्रदेश स्तरीय साहित्यकार ही कहला जाऊँ?
वे बड़ी अजीब सी निगाह से मुझे बड़ी देर तक देखते
रहे फिर एकाएक बोले; अगर तुम अपना समय लिखने पढ़ने में ऐसे ही लगाते रहे तो नाम कब
कमाओगे? बिना नाम कमाए भी कोई स्तरीय हो सकता है क्या?
स्तरीय साहित्यकार कोई अपने लेखन से बनता है
क्या भला?
अरे, कुछ मित्रता बनाओ और सम्मान वगैरह अर्जित
करो. इसी मित्रता से तरह तरह के पुरूस्कार से नवाजे जाओ. विभिन्न साहित्यिक
सम्मेलनों में शिरकत करो. इन कार्यक्रमों में मुख्य अथिति एवं अध्यक्ष बनो. फिर
भले ही तुम अपना खुद कुछ भी न लिखो मगर दूसरे के लिखे पर अपने विचार लिखो, बोलो और
उसकी बेहतरी के लिए सुझाव दो, तब जाकर एक लंबे समय में स्तरीय कहला पाओगे. ऐसे
लिखते रहे तो सिवाय समय खर्चने के कुछ भी हासिल न होगा.
एक बार शहर, प्रदेश और देश में पहचान बना लो तो
विश्व स्तर पर तो एक दो विश्व हिंदी सम्मेलन में इन्हीं सब परिचयों के चलते या तो
बुलावा बुलवाने का इंतजाम कर लो या खुद ही चले जाओ तो भी बिल्ला वगैरह तो मिल ही
जाता है. फिर किसे मालूम की बुलवाए गए हो या खुद आ गए हो. सब पहचान और नेट्वर्किंग
की बात है. विश्व हिंदी सम्मेलन में शिरकत अपने आप तुमको विश्व स्तरीय बना देगी,
वरना तो कौन सा हिंदी साहित्यकार विश्व स्तर पर पढ़ा जा रहा है जो वो स्तर हासिल
हो.
जो विश्व स्तर पर अपना स्थान बना गए उनके समय न
तो विश्व हिंदी सम्मलेन होते थे और न ही स्थान बनाने की हाथापाई. तब वे वाकई लिखा
करते थे.
वैसे स्तर हासिल करने का एक नया तरीका और भी है
की पहले कोशिश करो की बुलावा मिले विश्व हिंदी सम्मलेन में आने का और न मिलने पर,
उस सम्मेलन को ही दौ कौड़ी का ठहरा देने वाला आलेख लिख मारो तो भी सारे न बुलाये गए
आपको सम्मानित कर ही डालते हैं और अगली बार बुलाये जाने की संभावनाएं भी बलवती हो
जाती हैं.
-समीर लाल ‘समीर’
भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे में अगस्त २६, २०१८ में:
http://epaper.subahsavere.news/1790548/SUBAH-SAVERE-BHOPAL/26-august-2018#page/8/2
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