शनिवार, मई 12, 2018

आँधी चाहे जितनी भी तबाही मचा ले, आखिर में उसे शान्त होना ही है.!!



भारत में मौसम विभाग का मजाक एक जमाने से बनता आया है. किसी पुरानी फिल्म में देखा था कि बंदा अपनी बीबी से कह रहा है कि छाता निकाल कर दे दो, मौसम विभाग ने रेडियो से बोला है कि आज आसमान साफ रहेगा. आजकल नये दावों की मानें तो देश में पिछले ६७ साल में न कुछ हुआ है और न ही कुछ बदला है, यह बाकी क्षेत्रों के लिए भले ही चुनावी जुमला हो मगर मौसम की भविष्यवाणी के लिए एकदम सही है.
मौसम की भविष्यवाणी में हम न जाने क्यूँ हमेशा ही फेल हो जाते हैं. न हम सुनामी भांप पाये और लाखों जिन्दगियाँ चली गई. न भूकम्प, न बद्रीनाथ केदारनाथ की बाढ़ भांप पाये. सब जब भीषण तबाही मचा कर चले गये तो हम पूरा ज्ञान टीवी के माध्यम से बांट देते हैं कि किस कारण से आया. क्या वजहें रहीं और मौसम का पूरा विज्ञान जन जन तक पहुँचा देते हैं. रेक्टर स्केल क्या होती है और सेस्मिक ज़ोन कहाँ होती है..कितना मेग्निट्यूड होता है..यह सब सारा देश सीख जाता है मगर मौसम विभाग जस का तस रहता है. अगली बार फिर वही गल्ती.
फिर जो ६७ साल में न हुआ वो एकाएक पिछले ४ साल में इतने जोर से हुआ कि लोग दंग ही रह गये. पहले हम बता नहीं पाते थे और विपदा आ जाती थी और अब देखो जबरदस्त विकास, हम बता जाते हैं और वो आती ही नहीं. चीख चीख कर बताया कि आँधी आ रही है. स्कूल बंद, लोग घरों में बंद, दफ्तर बंद. सब खिड़की से झांक रहे हैं कि अब आँधी आई और तब आँधी आई. छिप कर बचने के लिए बैठे हैं मगर व्हाटसएप और फेसबुक पर अपडेट चालू हैं. सब इन्तजार कर रहे हैं कि आँधी आये तो उसके साथ एक ठो सेल्फी खिंचवा कर सबसे पहले चढ़ा दें इस स्टेटस के साथ कि..हेविंग फन एण्ड एडवेन्चर विथ आँधी. इन सेल्फी पीरों का उत्साह देखकर तो ऐसा लगता है कि अगर आँधी इन्हें उड़ा ले जाये तो बचने की कोशिश करने के पहले पाऊट काढ़ कर पहले तो ये सेल्फी खींच कर स्टेटस अपडेट डालेंगे, फिर बचने का जुगाड़ खोजेंगे. इन्हें जब तक बचने का जुगाड़ मिलेगा, तब तक स्टेटस अपने आप अपडेट होने लायक हो जायेगी लोकेशन फाईन्डर से..ऑन सेवेन्थ क्लाऊड..अब सातवें आसमान पर हैं..रेस्टिंग इन पीस.
ये वो लोग हैं जो आँधी का इन्तजार करते करते बोर हो गये तो २०१५ की दुबई की आँधी का विडिओ चढ़ाकर लिख दिया कि अभी कुछ देर पहले, शाम ४ बजे जेसलमेर से आँधी ने टेक ऑफ कर लिया है..लोगों ने भी बिना सोचे समझे धड़ाधड़ विडिओ फारवर्ड करना शुरु कर दिया. मिलियन में फारवर्ड हो गये. उतने तो तब नहीं हुए थे जब यह तूफान दुबई में वाकई में आया था. तूफान भी सोच रहा होगा कि बेवजह दुबई में आये, इण्डिया में आये होते तो क्या शोहरत हासिल होती. खैर, देर आये भारतीयों के हाथ मगर शोहरत तो हासिल कर ही ली. तभी तो चाहे मैकडानल्ड हो, केएफसी हो, वालमार्ट हो या एमोजान, सबको चाहे दुनिया भर में कितना भी व्यापार मिले मगर अंत में विस्तार और शोहरत हासिल करने के लिए भारत में ही पांव पसारने हैं. इसके लिए भले ही १६ बिलियन में फ्लिपकार्ट ही क्यूं न खरीदना पड़े. वे जानते हैं कि एक बार भारत में उनकी आँधी चल गई तो उनके वारे न्यारे हो जायेंगे.
ऐसे में जब सारी दुनिया, यहाँ तक की तूफान भी, विस्तार पाने के लिए भारत का दरवाजा खटखटा रहा है, तब न जाने क्यूँ हमारे साहेब भारत छोड़कर दुनिया भर में घूम रहे हैं? उन्हें तो आँधी का महत्व भली भाँति पता है. वो तो खुद आँधी के प्रोडक्ट हैं. तब देश में उनके नाम की आँधी चली थी. अब उस आँधी का हाल हालांकि मौसम विभाग वाली आँधी का सा हो चला है मगर जब तक मौका है पुरानी आँधी के आड़ में झाड़ काटते चलो. बस इतना ध्यान रहे कि आँधी का स्वभाव होता है कि कितनी भी तबाही मचा ले, उसे शान्त होना ही होता है. वह लगातार नहीं चल सकती.
खैर, उम्मीद बस इतनी है आगे से मौसम विभाग कुछ बेहतर हो. नई टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करे और बेहतर भविष्यवाणियाँ करे न कि जुमलेबाजी कि १५ लाख खाते में आ रहे हैं, विकास हो रहा है..डिजिटल इण्डिया बन रहा है..और हाथ आया सिफ़र..जनता हाथ में कैमरा थामें खड़ी है सेल्फी खिंचाने को और फॉरवर्ड करना पड़ रहा है दुबई की आँधी.
आखिर मूँह छिपाने का तरीका भी तो खोजना होता है न!!
-समीर लाल समीर

भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे में दिनांक मई १३,२०१८ को:


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4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सही कहा मौसम और नेताओं, चाहे किसी भी पार्टी के हों, उनकी भविष्यवाणी और आश्वासन पर बहुत निर्भर नहीं रह सकते |यह सिर्फ व्यंग नहीं एक यथार्थ है |
    वे हमें सचेत करने के लिए काफी हैं | अगले लेख की प्रतीक्षा में.....

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  2. मौसम ,विभाग और नेता हमारे यहाँँ ऐसे ही रहने वाले हैं....
    सटीक व्यंग्य!

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  3. सटीक सामयिक प्रस्तुति

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