यूँ तो मेहमान दो प्रकार
के होते हैं- एक तो वो जिन्हें हम बुलाते हैं और दूसरे वो जो बिन बुलाये चले आते हैं.
बिन बुलाये मेहमान किसे
पसंद आते हैं भला और उनके कारण हुई परेशानी और फजीहत के किस्से तो जग जाहिर हैं ही, अतः यहाँ हम उनकी
बात नहीं करेंगे. बिना बुलाये आई अनेको अनेक परेशानियाँ यूँ भी क्या कम हैं
जो इनकी बात करें? परेशानियों की बात करना होती तो नोटबंदी की
करते, जीएसटी की करते, ईवीएम की करते..लिस्ट इत्ती बड़ी दिखी कि चुप मार गये हैं
परेशानियों पर..
अतः बात करते हैं बुलाये
हुए मेहमानों की. बुलाये हुये मेहमान दो प्रकार के होते हैं – एक जो विदेश से आते हैं और दूसरे देशी.
देशी तो हम खुद भी हैं और
हमारा डीएनए कहता है कि कम से कम देशियों में तो हम ही बेस्ट हैं. यह अहम का भाव हर
देशी में है. तो जब मेहमान देशी हो तो हमसे बेहतर तो होने से रहा इसलिये उसे क्या तव्वजो
दी जाये? हमारे यहाँ तो मेहमान क्या, रेल भी जब तक विदेश से न मंगवा लें, तेज भाग ही नहीं सकती. विदेशी दौरा करके और विदेशियों से सलाह लेकर
किया गया काम अव्वल ...जबकि वही विदेश हमारे देशी टेलेंट को बुला बुला कर धन्य हुआ
जा रहा है. देश से निकला सुन्दर पिचाई या सत्या नडेला जब अमरीका में गुगल और माइक्रो
सॉफ्ट का हेड हो जाता है तो सारा देश गौरवांवित होता है कि देखो, हम जगत गुरु बनने
की राह पर हैं...प्रधान मंत्री उन्हें गले लगाता है मगर विडंबना देखिये कि देश में ही न जाने
कितने सुन्दर और सत्या पड़े हैं जिन्हें पहचानने को देश में कोई तैयार ही नहीं और
मजबूरीवश उन्हें अपनी पहचान जाहिर करने के लिए अमरीका और कनाडा जैसे देशों में
पलायन करना पड़ता है. कनाडा लिखकर व्यंग्यकार खुद को गौरवांन्वित होने का अहसास
दिलाना चाहता है. मेक ईन इंडिया के लिए भी आह्वाहन विदेशियों से ही किया जा
रहा है.. अतः विदेशी बेहतर देशी से..यह तय पाया...तो देशी मेहमान कि बात क्या करना..उसे छोड़ते हैं इसी मोड़ पर. अलविदा देशी मेहमान ...
अब बात करते हैं विदेशी
मेहमानों की. विदेशी मेहमान दो प्रकार के होते हैं- एक जिन्हें पैसा रुपया देकर बुलाया जाता है और
दूसरे जो यूँ ही निमंत्रण पर चले आते हैं.
जिन्हें पैसा रुपया देकर
बुलाया जाता है उसमें सलाहकार से लेकर जस्टीन बीवर टाईप वन नाईट फीवर तक के लोग
शामिल हैं...वे सब व्यवसायिक कारणों के ध्योतक हैं. इन्हें मेहमान कहना भी उतना सही नहीं है मगर हम
भारतीय, अथिति देवो भवः से प्रभावित, कहीं भी झुक लेते हैं.
झुकने से याद आया कि हम
तो उस परंपरा से आते हैं कि जो भी पांच साल में एक बार हमारे सामने दंडवत हो लेता
है, हम उसी के हो जाते हैं. जो कायदे से हमारा सेवक है. जो हमें
रिप्रेजेन्ट कर रहा है ..हम उसी को पाँच साल तक फर्शी सलाम बजाते हैं. वो हमारे बीच ऐसे
जेड सिक्यूरीटी लेकर आता है कि मानो हम आतंकवादी हों और उसके लिए सबसे बड़ा खतरा हम
ही हैं जिन्हें वो रिप्रेजेन्ट कर रहा है..और हम खुशी खुशी इस बंदोबस्त को मंजूरी देते
हैं. लानत है ऐसी व्यवस्था पर....मगर है तो है.
अतः विदेशी नाम आते ही
हल्की सी कमर झुक ही जाती है..खैर जाने दें इसे और पेड विदेशी मेहमानों को.. जिन्हें व्यवसाय हेतु निमंत्रित किया गया है. उनका प्राफिट लॉस वे जाने, हम उनको इस आलेख से बाहर रखते हैं.
अब बचे वे जो विदेश से
निमंत्रण पर आते हैं. विदेश से निमंत्रण पर आने वाले मेहमान दो
प्रकार के होते हैं – एक वो जो रिश्तेदारी निभाने और मिलने मिलाने, शादी ब्याह आदि में आते हैं...और दूसरे वो जो राजनितिक कारणों से आते और
बुलाये जाते हैं.
वो जो रिश्तेदारी निभाने
और मिलने मिलाने, शादी ब्याह आदि में आते हैं...उनकी तो बात ही न करो. उन्हें देख कर लगता ही नहीं कि कभी ये भी इसी
देश में रहते थे. जैसे ही आयेंगे..वेस्टर्न स्टाईल
टायलेट खोजते हुए तुरंत नाक पर रुमाल और हाथ में पानी की बोतल लेकर.. लब से गुनगुनाते रहेंगे लगातार .. डिस्गस्टिंग...सो डिस्गस्टिंग...खायेंगे भी सब और लगातार कहते चलेंगे..सो अनहेल्दी...मानो हमारा नेता कह रहा हो..कितना भ्रष्टाचार है? हद हो रखी है..कोई भी घूस लेते दिखे..उसकी तस्वीर उतारो और हमें भेज दो तुरंत और आप सोचोगे कि वो उसे निलंबित करेंगे..और..वो तस्वीर खिंचवा रहे हैं ये पता करने के लिए..कि उसने इन्हें
हिस्सा दिया कि नहीं? और अगर न दिया हो तो तस्वीर दिखा कर वसूला
जाये.. ऐसे में इस तरह के रिश्तेदारों की क्या बात करना..इन्हें जाने देते हैं...
अब बचे वे.. जो राजनितिक कारणों से आते और बुलाये जाते हैं..ऐसे मेहमान दो
प्रकार के होते हैं- एक वो जो अपने फायदे के लिए आते हैं और दूसरे
वो, जिन्हें आप अपने फायदे के लिए बुलाते हैं.
एक वो जो अपने फायदे के
लिए आते हैं..उनमें वो पुराने मित्र भी हो सकते हैं जिन्हें कभी हमने
अपने फायदे के लिए बुलाया था...तमाम सत्कार किया था...उनके लिए नया सूट
अपना नाम लिखवा कर सिलवा कर पहना था....मेरा दोस्त ...जैसा जुमला कहा था..आज वो ही मेहमान आकर मनमोहन सिंह की तारीफ कर के
चला जाता है और उनके प्रिय मित्र उनसे मिलने भी न आते हैं जो कहते थे कि हम यूँ ही
फोन उठा कर गप्प सटाका कर लेते हैं..हर हफ्ते...इतना अप साईड
डाऊन,,,हद है ..ऐसे में तो इनकी बात क्या करना- इन्हें जाने देते हैं..
आज बात करते हैं जिन्हें
आप विदेश से अपने फायदे के लिए बुलाते हैं....जैसे कभी मित्र को बुलाया
था अमरीका से.....और हाल ही में अमरीका
की बिटिया को..
बिटिया का आना..फोटो ऑप...हैदराबादी दावत..आदि स्वागत में सब कुछ
हुआ जो एक जबरदस्त मेहमान नवाजी में किया जा सकता है...यूँ तो स्वागत भी
दो प्रकार के होते हैं..मगर...कितने और कब तक दो दो प्रकार निकालें? कहीं तो रुकना पड़ेगा वरना बात बढ़्ते बढ़ते
आदमियों पर चली जायेगी जिसमें तो एक ही आदमी के कितने प्रकार होते हैं...निदा फाजली साहब भी फरमाते हैं कि
हर आदमी में होते हैं दस
बीस आदमी
जिस को भी देखना हो कई
बार देखना
मगर हर हाल में फिर भी मेहमान
तो मेहमान ही है..सत्कार तो होना ही चाहिये.
-समीर लाल ’समीर’
भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के दिसम्बर
१०, २०१७ के अंक में:
http://epaper.subahsavere.news/c/24388840
#Jugalbandi
#जुगलबंदी
#व्यंग्य_की_जुगलबंदी
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
अरे....!
जवाब देंहटाएंहमने तो मिस समीरा को याद किया था।
मगर समीर लाल से रूबरू हो गये।