नेता का नाम लो, जेहन में भ्रष्टाचार का ख्याल आता है. सचिन
का नाम लो, तो
क्रिकेट कौंधता है दिमाग में. सर्दी की बात आती है तो रजाई याद आती है.
कभी कोई नहीं कहता कि कम्बल में दुबके बैठे हैं. हमेशा रजाई में दुबकने की ही बात होती
है.
भारत में ठंड में रजाई में दुबके रहने का आनन्द
ही अलग होता था. रजाई ओढ़े हुए ही चाय पी ली, अखबार
पढ़ लिया, गरमागरम
मूँगफली खा ली. अगर बहुत जरुरी हुआ तब बड़ी हिम्मत जुटा कर
निकलते थे रजाई से. कभी कभी तो ठंड इतनी ज्यादा पड़ती थी कि अगर कोई
जरुरी काम न हो, तो सारा दिन रजाई में घुसे रहते थे.
चाय, गरमाहरम पकोड़ी, मूँगफली, अंगीठी, हीटर, मफलर, कम्बल चाहे जिसकी भी बात कर लो, ठंड
का किंग तो रजाई को ही माना जायेगा.
भारत में सर्दियों में जब तापमान घट कर ३ या ४
डिग्री पहुँच जाता था तो हाड़ गला देने वाली ठंड कहलाती थी. रजाई का आनन्द अपने चरम पर पहुँच चुका
होता था. रजाई
में घुसने के बाद उसे गरम होने में थोड़ा समय लगता था. एक बार गरम हो जाये तो कोई उसे छोड़ना
ही नहीं चाहता था. जैसे कोई नया नया मंत्री कुछ समय लेता है पैसा
खाने के गुर सीखने के लिए और जैसे ही रमा हो जाये तो फिर कुर्सी छोड़ना ही नहीं
चाहता.
कनाडा आकर बस गये तो बचपन से जुड़ी अनेकों
चीजों की तरह इस रजाई का मजा भी जाता रहा. हालांकि तापमान यहाँ -३०
और -४०
डिग्री सेल्सियस तक जाता है और रजाई भी घरों में होती है मगर हाय!! ये
देश और इनके विकसित हो जाने के घाटे. इनको तो खैर वो भारत वाला रजाई का आनन्द मालूम
ही न होगा तो इनको तो क्या घाटा? जैसे हमने कभी इमानदार नेता देखे ही नहीं है तो
भ्रष्टाचारी नेता से हमें कैसा नुकसान? ले देकर काम कराना तो हमारे डीएनए में है.
प्रकृति अपना कहर बरपाती है तो विकसित देश उसकी
काट लिए खड़े हो जाते हैं. जैसे हमारे देश में सरकार लाख सर पटक ले, हजार
कानून ले आये, नोट बंदी कर दे मगर काला धन अपने रास्ते खोज ही
लेता है. इच्छाधारी
नागिन की तरह इस बिल से उस बिल, कभी यहाँ दिख गये, कभी वहाँ दिख गये. जब कोई पकड़ने पहुँचा तो अदृष्य हो लिये. मीडिया
वाले भी इसका नाट्य रुपांरण दिखाने और बीन बजाने में मगन हो लेते हैं. मानो
उनका काम समाचार दिखाना न होकर फिल्म बनाना हो. काला धन जस का तस बरकरार रहता है.
विकसित देश है तो विकास का परचम लहरा रहा है. बिजली
कभी जाती नहीं. घर पूरी तरह से इन्सूलेटेड, स्टेशन
से लेकर रेल, बस, कार सब पूर्ण सुविधाओं से सुसज्जित. गरमी
में ठंडे और ठंड में गरम. कभी सोचता हूँ कि अच्छा है यहाँ सूखा नहीं
पड़ता वरना इस हिसाब से तो ये उस समय घर में पानी बरसवा रहे होते. सरकारी
योजना में दिमाग तो लगाना नहीं होता. वो तो बाद में पता चलता कि अरे, घरों
में पानी बरस रहा है तो एमेन्डमेन्ट लाते कि सूखा पड़े तो घरों में पानी नहीं बरसाना
है. जैसे
जीएसटी में रोज नये एमेन्डमेन्ट लाते ही हैं.
ठंड में जो थोड़ा बहुत बाहर निकलना भी हो तो
एकदम ऐसा बख्तरबंद सिपाही सा निकलते हैं मानो युद्ध पर जा रहे हों. ठंड
का अहसास तो होता है मगर तब तक आप फिर किसी हीटेड गरमागरम माहौल में अपने आपको
पाते हैं. अब
बाहर -३०
डिग्री का तापमान और आप खिड़की के काँच से बाहर बरफ गिरती देख रहे हैं टीशर्ट पहने
हुए.
मानो बाढ़ग्रस्त क्षेत्र का नेता जी हेलीकाफ्टर से दौरा कर रहे हों. हीटिंग चालू है. रजाई में घुसो तो कोई आनन्द ही नहीं. आधी
रात में रजाई हटा ही देने का मन करता है. -३० डिग्री बाहर का तापमान और आप मखमली रजाई ओढ़े
जिसमें से भले ही लैवेन्डर की खुशबू आ रही हो मगर आपको लुभाती तो ३ -४
डिग्री वाली वो ठंड ही है जिसमें रजाई से उठती नैप्थेलीन बाल की खुशबू में रजाई
गरमाते कुकुड़ रहे होते थे.
मैं विकास का विरोधी कतई नहीं हूँ मगर विकास के
साथ साथ लुप्त हो गया वो गरमाहट का आनन्द कचोटता तो है चाहे वो संबंधों में हो, संवेदनशीलता
में हो या रजाई में हो.
रजाई का आनन्द ये नरम नरम कम्बल और गरम गरम
हीटर कभी नहीं दे पायेंगे.
-समीर लाल ’समीर’
दैनिक सुबह सवेरे, भोपाल के रविवार २४
दिसम्बर, २०१७ में प्रकाशित
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