शनिवार, अक्तूबर 28, 2017

भ्रम रोमांचित करता है

जब किसी की नई नई तोंद निकलना शुरू होती है तो वो बंदा बड़े दिनों तक डिनायल मोड में रहता है. वह दूसरों के साथ साथ खुद को भी भ्रमित करने की कोशिश में लगा रहता है. कभी टोंकते ही सांस खींच लेगा और कहेगा कहाँ? या कभी कहेगा आज खाना ज्यादा खा लिया तो कभी कमीज टाईट सिल गई जैसे बहाने तब तक बनाता रहता है जब तक कि तोंद छिपाए न छिपे और खुद के बस के बाहर ही न निकल जाए. 
भ्रम रोमांचित करता है इसलिए यथार्थ से अधिक प्रिय होता है. भ्रम आपको अपने मन के मुताबिक़ खुश होने का मौका देते है. आज की भागती दौड़ती जिंदगी में चंद लम्हें भी ख़ुशी के मिल जाएँ तो मानो जीवन सार्थक हो जाता है और भागते दौड़ते रहने के लिए नई ऊर्जा मिल जाती है.. शायद इसी सोच को पोषित करने हेतु ओपिनियन पोल और एक्जिट पोल जैसे खेल बनाये गए होंगे. खेल इसलिए कहा क्यूंकि मुझे तो आजतक कोई नहीं मिला जिससे ओपिनियन ली गई हो या वोट डालकर निकलते वक्त किसे ने पूछा हो कि किसको लगा आये? शायद मेरा ही परिचय का दायरा छोटा हो मगर मेरी बातचीत का आधार तो वही हो सकता है.
जब हम बचपन में परीक्षा देकर घर लौटते तो अम्मा पूछा करती थी कि पेपर कैसा हुआ? हम वही रटा हुआ जबाब देते की १०० में १०० आना चाहिए, पूरा सही किये हैं. जितना वो हमें जानती थीं उतना ही हम उनको जानते थे तो घर लौटने के पहले तेज बच्चो से सारे प्रश्नों का उत्तर पता करके आते और पूछने पर सही वाला बता देते. इन सब खटकर्मों के पीछे मात्र इतनी मंशा होती कि काहे दो बार पिटना? जब रिजल्ट आएगा तब तो फुड़ाई होना ही है, आज तो इत्मिनान से खेलें और खुश हो लें. रिजल्ट आने पर कह देते थे कि मास्साब से ट्यूशन नहीं पढ़ी इसलिए गलत कॉपी जांच दी है, मानो न जीत पाने का आरोप इवीएम पर लगा रहे हों. मगर अम्मा सब समझती थीं. बाद में जब थोड़ा बड़े होने लगे तो हमारा १०० में से १०० का जबाब सुनकर अम्मा एक मुहावरा बोला करतीं:
नाऊ भाई नाऊ भाई कितने बाल..
सरकार दो घड़ी में आगे ही गिरेंगे.. 
मगर आज के ओपिनियन और एक्जिट पोलक नाऊ इतना सीधा और सच्चा कहाँ बोलते हैं? जब से नाऊ की दुकान पार्लर में बदली है, तब से नाऊ भी स्टाइलिस्ट कहलाने लगे हैं. ये वही कहते है जैसा ग्राहक सुनना चाहता है. पहले का नाऊ मोहल्ले भर के खूफिया किस्से सुनाता था और आज का नाऊ ग्राहक की पसंद के नए गानों की प्ले लिस्ट बजाता है. ओपिनियन और एक्जिट पोलक नाऊ को भी पता है कि बस नतीजे आने को ही हैं फिर भी एक अंतिम बार अपने आकाओं को खुश करने के लिए ही सही, उनकी पसंदीदा स्वरलहरी सूनाता है. बिहार में तो असली नतीजे आ जाने पर भी एक्जिट पोल के नतीजे सुना डाले थे.
वैसे इस तरह के पोल के नतीजों की खासियत यह रहती है कि ओपिनयन पोल में जो जीत रहा होता है वो पूरे विश्वास के साथ बताता है कि हम क्या बोलें, आप खुद ही देख लिजिये ओपिनियन पोल के नतीजे..यही जनता की मंशा है और जिसे ओपिनियन पोल हारा दिखा रहे होते हैं वो कल नतीजे आने तक रुकने की बात कहते हुए हमारी अम्मा के मुहावरे का पूर्ण भक्ति भाव से मुस्कराते हुए उच्चारण करता है:
नाऊ भाई नाऊ भाई कितने बाल..
सरकार दो घड़ी में आगे ही गिरेंगे... 

वह एकाएक मंझा हुआ चुनावी विश्लेषक बन जाता है और मय माह और तारीख के पुराने २० सालों के उन सारे ओपिनियन पोलों का ब्यौरा सामने रखने लग जाता है जिसमे ओपिनियन पोल उन्हें हारा दिखा रहे थे और बाद में असली नतीजों में वह जीत गए थे. तारीफी यह कि ब्यौरा देते वक्त वो उन चुनावों को गायब कर जाता है जिसमें ओपिनियन पोल सही साबित हुए थे. ओपिनियन और एक्जिट पोल के नतीज़ों पर यह बात भ्रष्टाचार की तरह ही दलगत राजनीत से ऊपर की है और सभी दल इसका अक्षरशः पालन करते हैं. 
दो घड़ी में असली नतीजे आ ही जाते है. जीते हुए सूरमाओं की जीत की ख़ुशी में बजते ढोल की आवाज में ओपिनियन पोल की आवाज गोल हो जाती है.  .. 
इसके बाद बस टीआरपी का जरिया बदल जाता है – नई सरकार और नया विपक्ष जो आ जाता है.
-समीर लाल ‘समीर’

भोपाल से प्रकाशित सुबह सवेरे के रविवार अक्टूबर २९, २०१७ के अंक में:
http://epaper.subahsavere.news/c/23265848

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3 टिप्‍पणियां:

  1. जब तक रहस्य खुल नहीं जाता रोमांच बना रहता है !

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (30-10-2017) को
    "दिया और बाती" (चर्चा अंक 2773)
    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'


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  3. ये भी रोमांच जो बनाये रखने का साधन है ... मीडिया का खेल है ... नहीं तो कौन ससुर इनको देखेगा ... अभी कोई ठीक सी खबर चला के देखिये ... सब चेनल बदलने लगते हैं ...

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